मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा पर स्थित प्रख्यात धार्मिक तीर्थ चित्रकूट नगरी के मंदाकिनी नदी स्थित राम घाट में लाखों भक्त जब दीपदान कर रहे हैं तब इस नदी में लंबे समय से व्याप्त प्रदूषण को कुछ समय के लिए जरूर ढंका जा सकता है।
‘सुरसरी धार नाउ मन्दाकिनी, जो सब पातक पोतक डाकिनि’
गोस्वामी तुलसी दास द्वारा रचित रामचरित मानस की इन पंक्तियों में पाप हरने वाली मंदाकिनी नदी आज अपने दुर्दशा के दिनों से गुजर रही है। सच्चाई यह है कि आज इसका जल बढ़ते प्रदूषण के कारण आचवन करने लायक नहीं रहा। इसे लेकर मप्र उच्च न्यायालय ने स्थिति मे सुधार के आदेश दिये तो स्थानीय संतों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समय-समय पर सत्याग्रह किया है। मन्दाकिनी नदी संरक्षण सत्याग्रह के संयोजक अभिमन्यु भाई कहते हैं कि महात्मा गांधी के देश में जब तक नदियों, पहाड़ों व बचपन के साथ हिंसाएं होती रहेंगी तब तक देश का सही मायने में विकास नहीं हो सकेगा।
पौराणिक मान्यता के अनुसार सती अनुसुइया ने अपने पति की प्यास बुझाने के लिए जिस नदी को जन्म दिया था, उस मंदाकिनी का पानी तो अब लोगों के पीने के लायक नहीं बचा है | वर्ष 2018 में प्रकाशित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार मंदाकिनी का पानी जहरीला पाया गया है | इन नदियों का पानी पीने से इंसानों को कई बीमारियां घेर सकती हैं | इस पानी में टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस) की मात्रा 700 से 900 पॉइंट प्रति लीटर और टोटल हार्डनेस (टीएच) 150 मिलीग्राम प्रति लीटर से ऊपर पहुंच गया है | इतने अधिक टीडीएस का पानी पीने से पथरी, किडनी और पेट संबंधी कई बीमारियां इंसानों को अपनी चपेट में ले सकती हैं | वैसे, 300 पॉइंट से ऊपर टीडीएस की मात्रा बेहद नुकसानदेह होती है |
जानकी कुंड से रामघाट तक गंदगी के दर्शन
गत दिनों पूर्व प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता स्व.एस. एन.सुब्बाराव का अस्थि कलश विसर्जन किये जाने की सूचना सर्वोदयी कार्यकर्ता अभिमन्यु भाई से फेसबुक पर मिली और हम अनायास ही चित्रकूट पहुंच गए। पहली बार चित्रकूट जाते हुये मन में उत्साह था कि संत तुलसी दास के जिस राम चरित मानस में हम चित्रकूट व मंदाकिनी का वर्णन सुनते आए हैं उसके सुंदर दर्शन प्राप्त होंगे। श्रद्धांजली कार्यक्रम में शामिल होने के बाद हम जानकी कुंड से होते हुये रामघाट पुल की ओर जैसे- जैसे बढ़ते गए खुले में शौच व नदी में जगह-जगह मिलने वाले सीवेज व प्लास्टिक, शैवाल आदि का प्रदूषण मन को दुखी कर गया।
उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित पुल के समीप एक चेक डैम नुमा संरचना से श्रद्धालुओं के लिए नदी को बांधकर पानी जमा करने की कोशिश की गयी है इससे नाविकों की रोजी-रोटी चल रही है किन्तु नदी के किनारे पर मिलते सीवेज व जगह- जगह जमे कचरे की बदबू से नाक बंद करने की स्थिति बन जाती है। पुल के दूसरी तरफ नदी पूरी तरह से नाले का रूप ले चुकी है । इसके एक किनारे पर गंदगी व झाड़ियों का ढेर है जहां लोग खुले मे शौच करते दिख जाते हैं वहीं दूसरी तरफ बने मकानों का गंदा पानी नदी को प्रदूषित बना रहा है। यह पौराणिक मान्यता है कि प्रभु रामचन्द्र ने अपने वनवासकाल का 11 वर्ष यहीं बिताया जिस दौरान वे मन्दाकिनी नदी में स्नान कर दीपदान किया करते थे । इसी पौराणिक मान्यता की याद में यहां प्रत्येक वर्ष बड़ा मेला लगता है जिसमें लगभग 40 लाख श्रद्धालु स्नान व दीपदान करने आते हैं ।

कम हुआ है मन्दाकिनी में ऑक्सीज़न लेबल
पर्यावरणविद गुंजन मिश्रा, द्वारा 1994 में एक शोध कार्य के लिए गए अध्धयन के अनुसार मन्दाकिनी नदी का औसत बहाव सती अनुसूइया, स्फटिकशिला, जानकीकुंड, रामघाट, कर्वी घाट, सूर्यकुंड और राजापुर में क्रमशः 19, 1.8, 1.8, 1.9, 1.8, 1.4, 0.96 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड था। यही वजह थी कि पुराने समय में 1970 से पहले मोहकमगढ़, जानकी कुंड, सूर्यकुंड में पनचक्की चला करती थी, लेकिन आज यही बहाव रामघाट और कर्वी घाट पर नगण्य हो गया है। मन्दाकिनी नदी का पर्यावरणीय प्रवाह कितना होना चाहिए, बिना इसके अध्ययन के सिंचाई आदि के साथ-साथ नदी किनारे बोर वेल अथवा ट्यूबवेल से पानी लेने के कारण नदी के कनेक्टिविटी स्टेटस इंडेक्स को भी प्रभावित करते हैं।
मन्दाकिनी नदी का स्वस्थ रहना कितना महत्वपूर्ण है वह एक अध्ययन बताता है कि बेटा मछली, गप्पी मछली, फ्लॉवरहॉर्न फिश, गोल्ड मछली, ऑस्कर मछली, ग्रास कार्प मछली आदि एक्वेरियम में पाली जाने वाली मछलियां 1994 में मन्दाकिनी नदी में भी पायी जाती थीं, लेकिन आज प्रदूषण के कारण जल में घुली ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण ये मछलियां विलुप्त हो चुकी हैं।
कब तक पूरा होगा सीवेज लाइन प्रोजेक्ट ?
प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह ने वर्ष 2017 मे मंदाकिनी को सदानीरा बनाने के लिए संकल्प लिया था उन्होंने भरतघाट में 28 करोड़ 87 लाख 61 हजार रुपए की लागत के मंदाकिनी नदी संरक्षण योजना के अतंर्गत चित्रकूट नगर को पूरी तरह से सीवेज लाइन से जोड़ने की बात कही थी जो कि कागजों में अधिक है। फिलहाल सितंबर माह में पूरी होने वाली यह परियोजना न सिर्फ अधूरी है बल्कि बड़े भ्रष्टाचार का शिकार भी हुई है यही कारण है कि ठीक रामघाट पर ही शहरी नाला मन्दाकिनी में मिलता हुआ दिखाई पड़ रहा है ।
तो दीपावली के अवसर पर दीपदान की परंपरा को निभाते भक्तों व संत, सरकार की उपस्थिति में जब बड़े खर्चे और व्यवस्था के बीच हर तरफ रौशनी जगमगा रही है तब जरा सीवेज, प्लास्टिक, शैवाल की बेतहाशा गंदगी के बीच प्रदूषण से कराह रही मन्दाकिनी को जरूर देखें जो कभी तुलसी दास रचित रामचरित मानस में सदानीरा और पाप नाशिनी कही गयी है। यह देखते हुये सरकार खुद से पूछे कि हमने अपनी नदियों को नाला क्यों बनने दिया, उसके लिए वास्तव में क्या किया और भक्त भी अपने मन से पूछें कि इन जीवन रेखा नदियों के प्रदूषित होने में उनका कोई दोष नहीं है? इस समस्या पर चित्रकूट के स्थानीय निवासियों, व्यापारियों, धार्मिक प्रतिष्ठानों व स्थानीय प्रशासन को सच्चे भागीरथी प्रयास करने की आवश्यकता है।
(रामकुमार विद्यार्थी पर्यावरण व युवा मुद्दों पर कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता हैं और आजकल भोपाल में रहते हैं।)
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