जुझारू पत्रकार मनदीप पुनिया के पोर्टल ‘गांव सवेरा’ के फेसबुक पेज और ट्विटर एकाउंट पर केंद्र ने लगायी पाबंदी 

चंडीगढ़। गांव सवेरा के पत्रकार मनदीप पुनिया किसानों के चंडीगढ़ कूच को लगातार कवर कर रहे थे। किसान आंदोलन की सारी अपडेट अपने चैनल गांव-सवेरा के जरिए पूरे देश के किसानों तक पहुंचा रहे थे। वहीं सरकार ऐसा नहीं चाहती है कि किसानों तक उनके संघर्ष की घटनाएं पहुंचे, जिसके चलते सरकार की ओर से गांव सवेरा के सोशल मीडिया अकाउंट को भारत में बैन कर दिया गया है। इसके साथ ही कई किसान संगठनों और किसान नेताओं के सोशल मीडिया अकाउंट भी भारत सरकार ने बैन कर दिये हैं।

दरअसल, 20 अगस्त की रात को चंडीगढ़ प्रशासन और किसान संगठनों के बीच चली लंबी बैठक बेनतीजा रही। दो दिन बाद 22 अगस्त को हरियाणा और पंजाब के 16 किसान संगठन मिलकर चंडीगढ़ कूच करने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही किसान नेताओं की उनके घरों से गिरफ्तारी शुरू हो गई। हरियाणा और पंजाब की सरकारों ने 20 अगस्त से ही एक जॉइंट ऑपरेशन के तहत हरियाणा और पंजाब के किसान नेताओं और सक्रिय किसानों को हिरासत में लेना शुरू कर दिया था।

किसानों ने बाढ़ के कारण ख़राब हुई फसलों के मुआवज़े, पानी के कारण टूट गये घरों के नुक़सान, पालतू पशुओं की हुई मौत, किसी इंसान की मौत, मज़दूरों के काम बंद होने के कारण हुए आर्थिक नुक़सान जैसे कई तरह के नुक़सानों की भरपाई के लिए राहत पैकेज की मांगों को लेकर चंडीगढ़ कूच का एलान किया था। 

फसलों के मुआवजे को लेकर चंडीगढ़ में धरना देने के कार्यक्रम की कवरेज मनदीप पुनिया पहले दिन से ही कर रहे थे। जिसके चलते गांव-सवेरा के फेसबुक पेज और ट्विटर पेज को निशाना बनाया गया। 21 अगस्त को गांव-सवेरा का फेसबुक पेज भारत में बैन किया गया। गांव सवेरा फेसबुक पेज को एक लाख से ज्यादा लोग फॉलो करते थे जिसकी रीच मिलियंस में थी। वहीं अगले ही दिन गांव सवेरा के ट्विटर अकाउंट को भी बैन कर दिया गया। 

सोशल मीडिया पर मनदीप पुनिया अपनी तरफ से बयान जारी कर बताते हैं, “दो दिन तक हरियाणा और पंजाब में किसानों के घरों में छापेमारियां चलती रहीं। किसानों के इस आंदोलन की हमारा न्यू मीडिया प्लेटफ़ॉर्म लगातार कवर कर रहा था, लेकिन 21 अगस्त की देर रात हमारा फ़ेसबुक पेज बंद कर दिया गया और 22 अगस्त को हमारा ट्विटर अकाउंट भी भारत में बंद कर दिया गया। “

वो आगे कहते हैं, “फ़ेसबुक से हमें कोई जवाब नहीं मिला है लेकिन ट्विटर ने मेल भेजकर हमें सूचित किया है कि उन्हें हमारा अकाउंट बंद करने (withheld) के लिए भारत सरकार की तरफ़ से कहा गया है। हमें लगता है कि सरकार चाहती है कि ग्रामीण संकट को लेकर सिर्फ़ सतही जानकारियां बाहर आएं, सही और ठोस जानकारियां नहीं। ‘किसान या मज़दूर के कपड़े फटे हैं, मेहनत कर रहे हैं’ इस क़िस्म की जानकारियां जो लोगों को पहले ही पता हैं”। 

उन्होंने आगे लिखा है, “सरकार उन्हें रिपोर्ट करने से बिल्कुल नहीं रोकती, लेकिन जैसे ही आप किसान और मज़दूरों द्वारा ग्रामीण संकट से निपटने के लिये उनके संघर्षों को रिपोर्ट करने लगते हैं तो सरकार कई तरह से तंग करने लगती है। ख़ासकर देहातियों द्वारा अपने संकट के उलट खड़े किए गए आंदोलनों की सही रिपोर्टिंग करने पर अलग अलग तरह से आपको तंग किया जाने लगता है। स्थानीय पुलिस को आपके घर और दफ़्तर पर भेजा जाता है और फिर भी आप लगातार रिपोर्टिंग जारी रखते हैं तो सरकार आपके प्लेटफ़ॉर्म को ही बंद कर देती है।”

इसके साथ ही खेती किसानी पर लिखने वाले कृषि विशेषज्ञ रमनदीप मान, भारतीय किसान यूनियन कारी संगठन के नेता सुरजीत सिंह फूल और किसान नेताओं और खेती किसानी से जुड़े लगभग 12 किसान संगठनों के सोशल मीडिया अकाउंट को भी निशाना बनाया गया है। 

मनदीप पुनिया आगे बताते हैं, “सारा बखेड़ा तब खड़ा होना शुरू हो जाता है जब आप ग्रामीण संकट से लड़ रहे किसान और मज़दूरों के आंदोलनों की ठोस रिपोर्टिंग करने लगते हैं।  सरकार नहीं चाहती कि ऐसी कोई भी खबर बाहर आए जिसमें लोगों के असल मुद्दे और उन मुद्दों के हल के लिए उनके संघर्षों की ग्राउंड जीरो से कवरेज हो।”

भारत में ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। वैसे तो पत्रकारिता का कोई स्वर्णिम दौर भारत में नहीं रहा, लेकिन यह सबसे ख़राब वक़्त ज़रूर है। जब पत्रकारों को नौकरियों से निकाला जा रहा है, पुलिस केस किए जा रहे हैं और उनके प्लेटफ़ॉर्म बंद किए जा रहे हैं। 

आज पंजाब के लोगोंवाल में किसान संगठनों और और पंजाब पुलिस के आला अधिकारियों के बीच 3 घंटे तक बैठक हुई। जिसमें सहमति बनी कि दिवंगत किसान प्रीतम सिंह के परिवार को दस लाख रुपये का मुआवजा, एक सदस्य को योग्यता के अनुसार सरकारी नौकरी और उनके परिवार के सभी कर्ज माफ कर दिए जाएंगे। बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि लोगोंवाल में पुलिस लाठीचार्ज के दौरान गंभीर रूप से घायलों को दो लाख और कम घायलों को एक लाख रुपये दिये जाएंगे। 

इसके अलावा जिन किसान संगठनों की गाड़ियां टूटी हैं, सरकार उनकी मरम्मत कराएगी। इसके साथ ही पंजाब भर में किसानों के खिलाफ दर्ज किये गये मुक़दमे रद्द किए जाएंगे और किसानों को बिना शर्त रिहा किया जाएगा। साथ ही बैन किये गए किसान नेताओं और पत्रकारों के सोशल मीडिया एकाउंट्स बहाल किये जाये। 

संगठनों ने घोषणा की कि जब तक सभी किसानों की रिहाई नहीं हो जाती, दिवंगत प्रीतम सिंह का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा।

(चंडीगढ़ से रितिक की रिपोर्ट।)

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