मोदी का सूर्यास्त है बंगाल की हार!

Estimated read time 1 min read

मोदी को हर चुनाव जीतना है चाहे वो पंचायत का हो, नगरपालिका का हो, विधानसभा या लोकसभा का हो! किसी भी हाल में चुनाव जीतना ही मोदी का होना है। चुनाव जीतने के लिए मनुष्य होने की तिलांजलि मोदी ने पहले ही दे दी थी। कत्लेआम, लाशें, नफ़रत, सत्ता पिपाशुता का नाम है मोदी! पर देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्होंने विकास का मुखौटा लगा लिया। विकास तो मौत में बदल कर पूरे देश में तांडव कर रहा है। विकास ने अब अपना नाम कोरोना रख लिया है और जहाँ हर हर मोदी का जयकारा लगता था वहां हाहाकार है।

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने ख़ुद को प्रधानमंत्री की खाल में छुपा लिया और प्रधानमंत्री होने के आचार विचार, गरिमा, स्टेटमैनशिप का गला घोंट कर अपने व्यक्तिवाद को मुखर किया। चुनाव पंडित इसे मोदी का आउट ऑफ़ बॉक्स करिश्मा मानने लगे जबकि वोटर मोदी के बजाय देश के प्रधानमंत्री को वोट दे रहा था। मोदी ने हर चुनाव में प्रधानमंत्री पद, भारत सरकार, अपने सांसदों, विधायकों, मुख्यमंत्रियों को झोंक कर सारी ‘राजकीय गरिमा’ को स्वाह कर दिया। चुनाव जीतते-जीतते मोदी ‘चुनाव लूटने वाले गिरोह’ के सरगना हो गए। झूठ को मोदी ने सच की तरह बेचा और वोटर ने उसे वादे की तरह खरीदा। इस संगठित अपराध का पर्दाफाश करने के बजाय चुनावी पंडितों ने इसे चुनाव जीतने की ‘वेल आयलड’ मशीनरी का नाम दिया।

मोदी ने पिछले 7 सालों में संघ के साम्प्रदायिक अजेंडे समान आचार संहिता, NRC, CAA, लव जिहाद, ट्रिपल तलाक, गौ मांस और लिंचिंग, कश्मीर, नेशनलिस्ट बनाम देशद्रोही को राष्ट्रवाद के नाम पर खपा दिया। पर काल की कसौटी पर हमेशा ‘सच’ खरा उतरता है और झूठ भरभरा कर गिर जाता है। वही मोदी के साथ हो रहा है आज। सुरक्षित हाथों ने देश को तबाह कर दिया है। दरअसल मोदी को जिसने वोट दिया, मोदी ने उसे ही लाश बना दिया। पहले अपने गठबंधन की राजनीतिक पार्टियों को और अपने मतदाता को!

मौत के तांडव के बीच जब मोदी बड़ी बेशर्मी से दीदी.. दीदी कर नारी अस्मिता का चीरहरण कर रहे थे तब देश में जनता एक-एक सांस के लिए दर-दर भटक रही थी। मोदी जब बंगाल को ‘सोनार बांग्ला’ बनाने का जुमला बोल रहे थे तब देश कब्रिस्तान में दफ़्न और श्मशान में जल रहा था, पर मोदी का दर्प बंगाल पर कब्ज़ा करने के लिए हवाई उड़ान भर रहा था। पर जलते श्मशानों ने मोदी के दर्प को ख़ाक कर दिया।

कई विश्लेषक बंगाल में कांग्रेस और वामपंथ का मर्सिया पढ़ रहे हैं। उन्हें विकराल राजनीतिक विनाशकाल में कांग्रेस और वामपंथ की ममता को अपरोक्ष समर्थन करने वाली रणनीति नज़र नहीं आती। वामपंथ केरल में ज़िदा है और कांग्रेस असम और केरल में विपक्ष की भूमिका सम्भालते हुए राजनीतिक गरिमा बहाल करने के लिए अपना पुनर्निर्माण कर रही है।

विकल्प रोग से ग्रस्त कई बुद्धिजीवी अभी भी मोदी का विकल्प कौन के भ्रम जाल से फंसे हुए हैं। उन्हें देश की अवाम नहीं दिख रही, विध्वंस नहीं दिख रहा। उन्हें लगता है जनता सब भूल जायेगी और मोदी सत्ता में कायम रहेगा। अवाम ने फ़ैसला कर लिया है। मोदी नहीं चाहिए यह बंगाल ने प्रमाणित कर दिया। जय श्रीराम नारे के आगे नरसिंह राव के विनाशक आत्म समर्पण को बंगाल ने ज़मीदोज़ कर मोदी का सूर्यास्त और संविधान का सूर्योदय कर दिया!

  • मंजुल भारद्वाज

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कवि हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author