इस बार मानसून ने एक हफ्ते से भी पहले केरल में प्रवेश कर गया। इस बार मई का महीना मध्य भारत में तो बेहद सुहाना गुजरा लेकिन उत्तर-पूर्वी राज्यों, खासकर सिक्किम और कनार्टक, महाराष्ट्र, खासकर बंगलुरू और मुंबई में बारिश से भारी तबाही देखी गई।
उत्तर-प्रदेश में आमतौर पर ईंट-भट्ठों का काम मई चौथे हफ्ते तक चलता रहता था। इस बार मई के पहले हफ्ते में ही ठप्प पड़ने लगा। गंगा के मैदानी क्षेत्रों में किसान धान की फसल के लिए बीज की क्यारियां बनाने में लग गये। लेकिन, जिस गति से बारिश की इस मैदानी इलाके में उतर आना चाहिए था, उसमें अब देरी होने लगी है। एक बार फिर से धूप का ताप चढ़ने लगा है और उसमें उमस की हिस्सेदारी बढ़ जाने से ताप का असर कुछ ज्यादा ही हो रहा है।
दिल्ली में पूरे मई भर तेज हवाएं, लगभग 60 किमी प्रतिघंटा से लेकर 80 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार तक चली हैं और हर हफ्ते बारिश हुई है। महीने की औसत के हिसाब से यह बारिश 185.9 मिमी हुई है। जो अब तक के सारे रिकार्ड में सबसे आगे है। मौसम विभाग के अनुसार 1901 से अब तक इस बार का महीना सबसे अधिक बारिश वाला रहा। यह आंधी और बारिश पूरे देश में चला है। इस आंधी बारिश से 100 से अधिक लोगों के मारे जाने की खबरें भी आईं। इन खबरों में एक बड़ी खबर एक घरेलू विमान के क्षतिग्रस्त होने की डरावनी घटना भी थी।
पूरे देश में इस तापमान सामान्य से कम रहा। मध्य-भारत में यह 2.63 डिग्री सेल्सियस सामान्य तापमान से कम रहा। अखिल भारत के स्तर पर यह 1.52 डिग्री सेल्सियस कम रहा। दक्षिण भारत में तापमान में गिरावट उत्तर भारत से थोड़ी अधिक थी। समुद्री तटों पर तापमान में होने वाली वृद्धि से जो होने वाली गतिविधियों, खासकर चक्रवाती तूफानों के उठने और मैदानी क्षेत्रों में बढ़ने की घटनाएं इस बार ना के बराबर ही रहीं।
यदि हम पिछले साल की तुलना करें, तो इस समय दिल्ली और पूरा उत्तर-भारत भयावह गर्मी से जूझ रहा था और कई सारे हीट-डोम बनने की घटनाएं अखबार की सुर्खियां बनी हुई थीं। खासकर, नजफगढ़ जैसी जगहों में जब तापमान का रिकार्ड 52 डिग्री से ऊपर दर्ज किया गया तब उसे तकनीकी खामी बताकर उसे ठीक करने की घोषणा हुई और बाद में इस तापमान को नीचे कर दर्ज किया गया। लेकिन, इस घटना ने शहरों में कई सारे गर्म-द्वीपों के बनने की परिघटना को रेखांकित कर दिया था। बाद में जब बारिश ने दिल्ली में अपना रिकार्ड बनाया तब पूरा शहर ठप्प पड़ गया था। इसने भी दिल्ली की अधिसंरचना को लेकर कई सारे सवाल खड़े कर दिये थे।
इस बार की बारिश में कई सारी समुद्री हवाओं का सम्मिलित प्रभाव बताया जा रहा है। इसमें एक विषुवतीय रेखा से उठने वाली गर्म हवाएं हैं, जिसका संयोग प्रशांत महासागर में उठने वाली गर्म हवा के साथ मिलने और हिंद महासागर की ओर बढ़ना मुख्य कारण बताया गया है।
इसमें पश्चिमी विक्षोभ ने भारत में अपनी भूमिका को बढ़ा दिया। इसकी नमी भरी तुलनात्मक तौर पर ठंडी हवाएं अरब सागर से उठकर मैदानी क्षेत्रों में घुसते हुए हवा के दबाव को बढ़ाती रहीं जिससे तेज हवाएं चलीं। देश के भीतर हिमालय से उतरने वाली ठंडी हवा नीचे से आने वाली गर्म हवा के कारण, खासकर शाम के समय तक निम्न दबाव बनने से आंधी और बारिश के संयोग लगातार बन रहे थे।
सामान्य मान्यता रही है कि मई में उठा ताप जून-जुलाई को बारिश से सराबोर करता है। इस अवधारणा में नवतपा का नाम अक्सर लिया जाता है, जो 25 मई-2 जून तक रहता है। इस बार नवतपा मध्य और उत्तर-भारत में अपना असर नहीं दिखा सका। इसका असर जून के दूसरे हफ्ते में दिख रहा है। खासकर, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और उत्तर-प्रदेश के पूर्वी और विंध्य क्षेत्र में लू का प्रकोप दिखने लगा है। वहीं दक्षिण और पर्वतीय क्षेत्र में बारिश का प्रभाव तुलनात्मक तौर पर इस समय कम है। जो जल्द ही सामान्य बारिश की अवस्था में आ जाएगा।
इस बार जो मौसम में बदलाव दिखा, जिसमें कुछ जगह पर 120 साल का तो कहीं 140 साल का रिकार्ड टूटा, वह क्या सामान्य बात है। यदि हम पिछले साल से तुलना करें तो इस साल का मौसम असामान्य है। लेकिन, इसमें जो असामान्य है वह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाला बदलाव है।
समय से पहले मानसून का आना और मई के महीने में पूरे देश में बारिश का होना, तापमान में एक साथ गिरावट दर्ज करना, निश्चित ही मौसम में आ रहे बड़े बदलाव का संकेत है। लोककथाओं में यह माना जाता रहा है, इसे लेकर कहावतें और दोहे भी हैं कि जेठ की सूखे का आगाज है। मौसम विज्ञानिकों का मानना है कि इस बार सामान्य से अधिक बारिश की संभावना है। समुद्री हवाओं का अध्ययन निश्चित ही इस ओर संकेत दे रहा है।
नौतपे की कहानी और नक्षत्रों की बानी जिस समय लिखा जा रहा था, उस समय से अब तक धरती को इंसान ने जिस तरह से प्रभावित कर दिया है उससे अब नये तरह के अध्ययन की दरकार है। पूंजीवादी उत्पादन पद्धति, साम्राज्यवादी हवस और उपभोक्ता समाज में बदलती इंसानी सभ्यता ने धरती पर एक गहरा असर छोड़ा है। इस असर को जाने बिना मौसम पर अनुमान तोते द्वारा भाग्य के निर्धारण से अधिक नहीं है। दुर्भाग्य से भारत में मौसम के असर को हम तभी जान पा रहे हैं जब वह हमें अपने गिरफ्त में ले लेता है। अब भी मौसम का अनुमान सच्चाई के बहुत करीब नहीं है और उसके आधार पर तैयारियां तो और भी दूर हैं। जबकि रोजमर्रा की जिंदगी मौसम के बिना कभी नहीं चलती।
(अंजनी कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)