पंजाब के तीनों राजकीय विश्वविद्यालयों से जुड़े कॉलेजों में सेंट्रल पोर्टल के जरिए एडमिशन करने का भगवंत मान सरकार का निर्णय कॉलेजों पर भारी पड़ रहा है। राज्य के कॉलेजों में यूजी कोर्सेस में प्रवेश के लिए लगभग 40 दिनों तक चली प्रक्रिया का पहला दौर समाप्त होने पर केवल 48,938 छात्रों ने प्रवेश के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया में हिस्सा लिया है। एक अनुमान के अनुसार राज्य के 408 कॉलेजों में दो लाख के आस-पास सीटें हैं।
ओपन एडमिशन के नाम पर प्रवेश का दूसरा दौर 11 जुलाई से 14 जुलाई तक खुलेगा। पीजी कोर्सेस में दाखिलों की प्रक्रिया 15 जुलाई से शुरू होगी। राज्य के तीनों विश्वविद्यालयों के पीजी कोर्स में एक अनुमान के अनुसार पचास हजार से ज्यादा सीटें हैं।
सनद रहे कि पोर्टल से आने वाली समस्याओं को पहले से भांप कर इस ऑनलाइन प्रक्रिया का सरकारी कॉलेजों को छोड़ कर सभी कॉलेजों ने विरोध किया था और 40 दिनों में से लगभग 32 दिनों तक इस प्रक्रिया का बॉयकाट किया था। लेकिन सरकार की जिद के चलते प्रक्रिया का बॉयकाट करने वाले कॉलेजों ने 17 जून को इस में शामिल होने का निर्णय लिया। सूचना के अभाव और कंप्यूटर में निपुणता न होने के चलते कई कॉलेज प्रक्रिया समाप्त होने से दो-तीन दिन पहले तक पोर्टल पर रजिस्टर होने और सभी कोर्स को भरने की जद्दोजहद में लगे हुए थे।
कुछ भी कहें, पंजाब के बहुत से कॉलेज, जो पहले से ही छात्रों के विदेश पलायन की समस्या के चलते आर्थिक मंदी की समस्या से जूझ रहे थे, निश्चित ही अब बंद होने की कगार पर हैं। सरकारी कॉलेजों या कुछ बड़े शहरों के कॉलेजों को छोड़ दें तो, पंजाब के ज्यादातर कॉलेजों की 80 फीसदी से ज्यादा सीटें खाली पड़ी हैं और कॉलेजों को डर हैं कि वह बिना नए एडमिशन के ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाऐंगे।
पंजाब का सामाजिक ढांचा भारत के अन्य राज्यों से बिल्कुल भिन्न है। शायद ही कोई और राज्य हो जहां से उच्च शिक्षा के नाम पर इतनी भारी संख्या में छात्रों का विदेश पलायन होता हो। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो राज्य से प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक छात्र उच्च शिक्षा के नाम पर विदेश चले जाते हैं। जिन में से एक बड़ा हिस्सा कनाडा की ओर रुख करता है, इसके बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का नंबर आता है।
छात्रों के विदेश पलायन के चलते राज्य के कॉलेजों में पिछले कई सालों से एडमिशन का रुझान कम हुआ है। बहुत से कॉलेजों में तो तब दाखिले होते हैं जब कनाडा और अमेरिका में अगामी सेशन के दाखिले बंद हो जाते हैं। पढ़ाई में व्यवधान न आए इसलिए छात्र पंजाब के कॉलेज में एक साल के लिए दाखिला ले लेते हैं और जैसे ही नए सत्र में उनका विदेश में दाखिला हो जाता है, सब कुछ छोड़कर वो विदेश का रुख कर लेते हैं।
इसी के चलते विश्वविद्यालयों में लेट फीस के साथ अक्टूबर माह तक भी दाखिले चलते रहते हैं। मौजूदा ऑनलाइन पोर्टल में लेट फीस के साथ एडमिशन का कोई प्रावधान नहीं दिया गया है। और आने वाले समय में प्रवेश कैसे सुनिश्चित किया जाऐगा, इस पर कोई भी उच्च शिक्षा विभाग का अधिकारी बोलने के लिए तैयार नहीं है।
कॉलेजों में ऑनलाइन पोर्टल में तकनीकी समस्याओं को लेकर भी रोष है। उनका कहना है कि कॉलेजों पर इसको थोपने से पहले इस को अच्छे तरीके से टेस्ट क्यों नहीं किया गया। कॉलेज के अधिकारी प्रक्रिया के दौरान लगभग रोज देर रात तक हेल्पडेस्क पर बैठे उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों से जूझते देखे गए। एक कॉलेज के प्रिंसिपल ने बताया कि पोर्टल में कई खामियां थीं। अपने आप ही चुने गए कोर्स दिखाई देना बंद हो जाते थे। रजिस्टर बच्चे भी दिखाई नहीं देते थे और इसके निदान के लिए कॉलेजों को घंटों तक हेल्पडेस्क के अधिकारियों से बातचीत करनी पड़ती थी।
क्या थी प्रक्रिया और कैसे चला सिस्टम?
सरकार की ओर से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों के तहत दाखिलों के लिए एक पोर्टल बनवाया गया है ताकि दाखिलों में पारदर्शिता रहे। छात्रों को घर बैठे ही इस पोर्टल पर अपने आप को रजिस्टर करना था और कोर्स और कॉलेज का चुनाव भी करना था। अन्य प्रदेशों में यह प्रक्रिया कई वर्षों से सफलता पूर्वक चल रही है। पर पंजाब में छात्रों को इस सिस्टम के बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं थी। सरकार का भी इस प्रक्रिया को लेकर प्रचार ज्यादातर सोशल मीडिया तक ही सीमित रहा। इस ऑनलाइन पोर्टल पर ज्यादातर छात्रों ने ऑफलाइन कॉलेज में जा कर, कॉलेज की सुविधाओं का प्रयोग करके ही इस प्रक्रिया में हिस्सा लिया।
(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार संजीव भल्ला की रिपोर्ट)
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