माहेश्वरी का मत: विश्व इतिहास की विरल घटना है नागरिकता क़ानून विरोधी आंदोलन

Estimated read time 0 min read

नागरिकता क़ानून विरोधी महा आलोड़न के स्वत:स्फूर्त प्रवाह में राजनीतिक दलों की भूमिका इसके मार्ग की सारी बाधाओं की सफ़ाई तक ही सीमित रहनी चाहिए ।

इस आंदोलन का विस्तार जिस तेज़ी से सचमुच के एक नए, जाति, धर्म और लिंग भेद से मुक्त भारत की रचना कर रहा है, वह देश की किसी भी एक राजनीतिक दल की शक्ति के बाहर की बात है ।

हमारे राष्ट्रीय जीवन का कोई भी हिस्सा इससे अछूता नहीं रहेगा । मज़दूर, किसान, दलित, आदिवासी, स्त्रियाँ, पुरुष, नौजवान और बच्चे भी, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, डाक्टर, इंजीनियर, कलाकार, लेखक, पत्रकार, बल्कि सेना और पुलिस, जज और वकील — तमाम तबकों के लोग इसमें उतरे हुए नजर आयेंगे ।

यह विश्व इतिहास में एक विरल घटना है । आज़ादी की लड़ाई के वक्त की राष्ट्रीय कांग्रेस के आंदोलन की तरह ही विरल। देश की सभी मुक्तिकामी देशभक्त ताक़तों का एक वास्तविक संयुक्त मोर्चा ।

आरएसएस और तमाम सांप्रदायिक ताक़तें हमेशा इस देश के हितों के विरुद्ध रही हैं और आज भी वे अपने इतिहास की उसी पंचम स्तंभ वाली जगह पर खड़ी हैं।

इस आंदोलन में शामिल सभी राजनीतिक दलों को अपनी भूमिका की सीमा और संभावनाओं का सम्यक ज्ञान होना ज़रूरी है ताकि वे अपनी भूमिका का सही ढंग से पालन करते हुए नये भारत के निर्माण यज्ञ में अपनी पूरी ताक़त का सदुपयोग कर सकें ।

यह आंदोलन ही भारत में असंभव को साधने की राजनीति की प्रकृत भूमिका को चरितार्थ कर रहा है । यह क्रांतिकारी आंदोलन है ।

(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और स्तंभकार हैं आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author