छह फरवरी 1995 का एक कैबिनेट नोट है, जिस पर तत्कालीन गृह सचिव के पद्मनाभैया के हस्ताक्षर हैं। उसमें कहा गया है कि इस बात के लिए तनिक भी संदेह की गुंजाइश नहीं है कि नेताजी की 18 अगस्त 1945 को ताईहोकू में विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 18 अगस्त 1945 को ताइपे में विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। नेताजी के रहस्यमय तरीके से गायब होने को लेकर विवाद के बीच एक कैबिनेट नोट में 50 साल बाद यह जानकारी सार्वजनिक की गई।
एक दिलचस्प तथ्य यह है कि नेताजी की विमान दुर्घटना में मौत हुई या नहीं इस पर तो आजतक बहस जारी है पर इस बात पर कम से कम मुझे तो कहीं पढ़ने को नहीं मिला कि यदि विमान दुर्घटना हुई थी तो यह सामान्य दुर्घटना थी या कोई साजिश?
जानकारी के मुताबिक, विमान दुर्घटना के पांच दिन बाद ब्रिटिश राज के एक शीर्ष अधिकारी ने नेताजी के खिलाफ युद्ध अपराधी के तौर पर मुकदमा चलाने के नफा-नुकसान का आकलन किया था। अधिकारी ने सुझाया था कि सबसे आसान तरीका यह होगा कि वह जहां हैं उन्हें वहीं छोड़ दिया जाए और उनकी रिहाई की मांग नहीं की जाए। यह संकेत देता है कि वह तब जिंदा रहे हो सकते हैं।
यह बातें उन दस्तावेजों से सामने आई हैं, जो 100 गोपनीय फाइलों का हिस्सा हैं। ये फाइलें 16 हजार 600 पन्ने में हैं और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को नेताजी की 119वीं जयंती पर सार्वजनिक किया।
जिन दस्तावेजों को सार्वजनिक किया गया है उनमें छह फरवरी 1995 का एक कैबिनेट नोट है, जिस पर तत्कालीन गृह सचिव के पद्मनाभैया का हस्ताक्षर हैं। उसमें कहा गया है, ‘इस बात के लिए तनिक भी संदेह की गुंजाइश नहीं है कि उनकी 18 अगस्त 1945 को ताईहोकू में विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। भारत सरकार ने पहले ही इस रुख को स्वीकार कर लिया है। इसका खंडन करने के लिए कोई सबूत नहीं है।
नोट में आगे कहा गया है, ‘अगर कुछ व्यक्ति, संगठन अलग राय रखते हैं तो ऐसा लगता है कि वे किसी तर्कसंगत सोच की बजाय भावनात्मक तौर पर अधिक प्रेरित हैं। ऐसे लोगों का यह मानना कि नेताजी जीवित हैं और किसी के भी संपर्क में नहीं हैं और जरूरत पड़ने पर सामने आएंगे। इसने अब तक अपनी प्रासंगिकता खो दी है। यह कैबिनेट नोट सरकार के लिए तैयार किया गया था ताकि वह जापान से नेताजी की अस्थियां भारत ला सके। नेताजी की अस्थियों को टोक्यो में बोस अकादमी में रखा गया था’।
भारत सरकार ने 1956 से लेकर अब तक 3 कमेटियां बनाई हैं। मुखर्जी कमीशन(1999) का मानना है कि उनकी मौत हवाई दुर्घटना में नहीं हुई थी, हालांकि, सरकार ने इस दावे को खारिज किया है। 1956 में बनी शाहनवाज कमेटी और 1970 में बने खोसला आयोग ने तो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत को विमान दुर्घटना ही बताया, लेकिन 1978 में मोरारजी देसाई ने इन दोनों आयोगों की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। इसके बाद गठन हुआ मुखर्जी आयोग का जिसने सच्चाई जानने की कोशिश की, लेकिन इस आयोग की रिपोर्ट को कांग्रेस ने मानने से इंकार कर दिया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्य से जुड़े जापान सरकार के 60 साल पुराने एक गोपनीय दस्तावेज को सार्वजनिक किया गया, जिसमें कहा गया है कि किंवदंती बन चुके स्वतंत्रता सेनानी बोस का देहांत 18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान हादसे में हुआ था। यह दस्तावेज नेताजी के बारे में आधिकारिक विवरण का समर्थन करता है।
नेताजी के निधन के इर्द-गिर्द की परिस्थितियों से संबंधित दस्तावेजी सबूत के लिए स्थापित ब्रिटिश वेबसाइट Bosefiles.info ने कहा कि यह पहली बार है, जब दिवंगत सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के कारण और अन्य तथ्यों पर जांच शीर्षक वाली रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया है, क्योंकि जापानी अधिकारियों और भारत सरकार ने इसे गुप्त रखा था। वेबसाइट का कहना है कि रिपोर्ट जनवरी 1956 में पूरी हुई और टोक्यो में भारतीय दूतावास को सौंपी गई, लेकिन;चूंकि यह एक गोपनीय दस्तावेज था, इसलिए इसे कभी जारी नहीं किया गया।
जापानी भाषा में सात और अंग्रेजी में 10 पन्नों के अनुवाद वाली यह रिपोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि नेताजी 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे के शिकार हो गए और उसी दिन शाम को ताइपेई के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया।
रिपोर्ट में जांच परिणाम के प्रारूप में लिखा है कि उड़ान भरने के तत्काल बाद विमान नीचे गिर पड़ा, जिसमें वह (बोस) सवार थे और वह घायल हो गए। इसमें आगे कहा गया है कि दोपहर बाद करीब तीन बजे उन्हें ताइपेई सैन्य अस्पताल की नानमोन शाखा ले जाया गया और शाम करीब सात बजे उनका देहांत हो गया।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 22 अगस्त को (ताइपेई निगम श्मशान घाट) में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। घटना का अधिक ब्योरा देते हुए रिपोर्ट कहती है कि विमान के उड़ान भरने और जमीन से करीब 20 मीटर ऊपर उठने के बाद इसके बाएं पंख के तीन पंखुड़ी वाले प्रोपेलर की एक पंखुड़ी अचानक टूट गई और इंजन गिर पड़ा। इसके बाद विमान असंतुलित हो गया और हवाई पट्टी के पास कंकड़-पत्थरों के ढेर पर गिर गया तथा कुछ ही देर में यह आग की लपटों से घिर गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि आग की लपटों से घिरे बोस विमान से उतरे, एड्जूटेंट रहमिन (कर्नल हबीबुर रहमान) और अन्य यात्रियों ने उनके (बोस के) कपड़ों में लगी आग बुझाने का प्रयास किया। उनका शरीर बुरी तरह झुलस गया था।
नेताजी तब 48 साल के थे। वेबसाइट के अनुसार, उनकी मौत से संबंधित जापान सरकार की रिपोर्ट शाहनवाज खान समिति की रिपोर्ट का समर्थन करती है। यह समिति तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गठित की थी, जिसने 1956 में इस मामले में जांच की थी।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)
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