पंजाब में जन्म ले रहा है नया किसान मोर्चा

कोई डेढ़ साल पहले राष्ट्रीय राजधानी की सरहदों और पंजाब में लगे ऐतिहासिक विशाल किसान मोर्चे ने दिल्ली दरबार को हिला कर रख दिया था। भाजपा को छोड़कर लगभग तमाम राजनीतिक संगठनों ने खुलकर उक्त किसान तथा खेत मजदूरों के उस मोर्चे को अपना समर्थन दिया था। आम आदमी पार्टी (आप) ने भी कमोबेश अपना समर्थन किसानों को दिया था। मौजूदा मुख्यमंत्री भगवंत मान तब राज्य इकाई के अध्यक्ष थे तथा संगरूर से सांसद। उन्होंने लोकसभा में किसानों के हित-हक में जोरदार आवाज बुलंद की थी और व्यापक किसान आंदोलन को विश्वव्यापी घटना बताया था। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल भी यदा-कदा आंदोलनरत किसानों के समर्थन में बोलते रहे।

उनकी अगुवाई वाली आप सरकार ने दिल्ली कूच के दरमियान किसानों का स्वागत किया था। लाल किला घटनाक्रम को छोड़ दें तो लंबे अरसे तक चलने वाला किसान आंदोलन अहिंसक तथा अराजकता से कोसों दूर था। जब निहंगों ने उस दौरान एक व्यक्ति को बेअदबी का दोषी बताकर बेरहमी से मार डाला था, तब आंदोलनरत तमाम किसान जत्थेबंदियों ने एक सुर में इसकी कड़ी निंदा करते हुए साफ कहा था कि ऐसे तत्वों का आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं। पंजाब में भी उन्हीं जत्थेबंदियों की अगुवाई में हर जिले तथा कस्बे में सैकड़ों की तादाद में किसान मोर्चे तब तक अनवरत जारी रहे, जब तक दिल्ली मोर्चा फतेह नहीं कर लिया गया। तत्कालीन पंजाब की कांग्रेस सरकार ने किसानों की मांगों का खुला समर्थन किया था और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह मध्यस्थता के लिए आगे भी आए थे। किसानों ने उनकी मध्यस्थता नामंजूर कर दी। अलहदा बात है कि बाद में भाजपा को सरासर किसान विरोधी बताने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह खुद कांग्रेस से जुदा होकर उसी भाजपा में चले गए।             

आंदोलनरत किसान और पुलिस के साथ उनकी मुठभेड़।

राष्ट्रीय किसान मोर्चा खत्म होने के बाद और लगभग आठ महीने पहले पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए तो आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की और आंकड़े एवं तथ्य बताते हैं कि सत्ताधारी कांग्रेस और फिर से शासन में आने का सपना देखने वाले शिरोमणि अकाली दल का सफाया करने में किसानों, बेरोजगार युवाओं और बदलाव के तलबगारों ने एकजुट होकर भारी बहुमत से आप को सत्ता के शिखर पर बैठाया। कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के दिग्गज शर्मनाक हार का सामना करने के बाद खामोशी से घर बैठ गए। किसानों ने जगह-जगह आप के पक्ष में घर-घर जाकर प्रचार किया और लोगों को मतदान के दिन घरों से बाहर लाने में महती भूमिका अदा की। विपक्ष के मुकाबले आम आदमी पार्टी के पास परंपरागत कैडर नहीं था।

चुनाव के ऐन वक्त किसान और युवा उसका कैडर बनकर आगे आए। किसानों ने ‘आप’ के बूथ संभाले तो नौजवानों तथा महिलाओं तक ने पोलिंग एजेंट की भूमिका पार्टी के लिए निभाई। नतीजतन आप की सरकार बनी और भगवंत मान मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। शपथ ग्रहण करने से पहले और कुर्सी संभालने के बाद उन्होंने खुलेआम कहा कि उनका (यानी शासन का) ‘हर पेन’ किसानों, बेरोजगारों तथा वंचित तबके के लिए चलेगी। तब समूचे पंजाब में जश्न मनाए गए और किसान तथा नौजवान गांवों, कस्बों तथा शहरों में कहते पाए गए कि आम आदमी पार्टी की नहीं बल्कि ‘हमारी अपनी’ सरकार बनी है!                                           

लेकिन नई सरकार वजूद में आने के चंद हफ्तों बाद ही आलम कुछ और हो गया। सरकार ने कुछ पहलकदमियां अवाम के हक में जरूर कीं। पर किसानों और बेरोजगार नौजवानों का मोहभंग ‘अपनी’ इस सरकार से होने लगा। आठ महीनों के बाद ठीक पहले की तर्ज पर व्यापक किसान आंदोलन ने जन्म ले लिया। शुरुआत पांच महीने पहले हो चुकी थी और दिसंबर का दूसरा पखवाड़ा आते-आते एकदम साफ हो गया कि जिस तरह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ किसान मोर्चा रफ्ता-रफ्ता लगा था, ठीक उसी मानिंद पंजाब की भगवंत मान की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी के खिलाफ लग गया है। न्यूनतम से वह व्यापक हो रहा है। नरेंद्र मोदी और कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चालाक कूटनीति से पहले के किसान आंदोलन को दबाना चाहा लेकिन नाकामयाब रहे थे। भगवंत मान की सरकार पुलिसिया हथकंडों से इसे कुचलना चाहती है। लेकिन फिलवक्त किसान सरकार पर हावी हैं।                                       

जीरा शराब फैक्ट्री के मालिक दीप सिद्धू।

राज्य के जिला फिरोजपुर के कस्बे जीरा का गांव रटोल रोही किसान आंदोलन की जन्म स्थली बना है। दीप सिद्धू शराब के एक बहुत बड़े कारोबारी हैं। कह सकते हैं कि दिवंगत हो गए पोंटी चड्ढा से भी विशाल उनका शराब का कारोबार है। कई फैक्ट्रियां हैं। मूल पंजाब के हैं। फिरोजपुर के जीरा रटोल रोही में उनकी बहुत बड़ी शराब फैक्ट्री है। बड़े कांग्रेसियों तथा शिरोमणि अकाली दल सुप्रीमो तक से उनकी नजदीकियां जगजाहिर हैं। सुखबीर बादल ने उन्हें विधानसभा चुनाव की टिकट भी दी थी।

सूत्र बताते हैं कि वह खुद अकाली बनकर चुनाव लड़े थे लेकिन (दो नंबर में नोटों की थैलियां चुनावी चंदे के तौर पर दूसरी पार्टियों को भी भेजी गईं थीं)। दीप सिद्धू चुनाव हार गए लेकिन लगभग हर बड़े कारोबारी की मानिंद उन्होंने सत्ता के गलियारों अपने संसाधनों के बूते अच्छी खासी पैठ जमा ली और सूबे की हर राजनीतिक पार्टी के आका तथा बड़े अधिकारी घरों के दरवाजे उनके लिए हमेशा पहले जैसे ही खुले हैं। मतलब कि ‘बड़े कारोबारी’ होने की शान और धमक यथावत कायम है।             

जीरा से सटे जिस रटोल रोही गांव में दीप सिद्धू की कई एकड़ में फैली शराब की फैक्ट्री बनी हुई है, उसका विरोध नींव रखने से ही स्थानीय लोग; विशेषकर किसान करने लगे थे। नियमानुसार शराब की फैक्ट्री लगाने के लिए आसपास के लोगों की स्वीकृति लेना अपरिहार्य है और किसानों का कहना है कि इस फैक्ट्री को बनाते समय ऐसा कुछ नहीं किया गया और ऐसी तथा इस जैसी अन्य जरूरी प्रक्रियाएं फिरोजपुर में कागजी खानापूर्ति में गुपचुप ढंग से कर दी गईं। यह घपला जब खुला तो स्थानीय स्तर पर इसका विरोध किया गया। कंपनी के प्रबंधतंत्र ने इलाके के कुछ बेरोजगार युवाओं को नौकरी पर रखा और किसानों को कई तरह से झूठे आश्वासन दिए गए। गौरतलब है कि तब खुद मौजूदा मुख्यमंत्री और उस वक्त के सांसद भगवंत मान ने यह मुद्दा शिद्दत से उठाया था और कहा था कि पंजाब में शराब की फैक्ट्रियां पानी दूषित कर रही हैं और जानलेवा प्रदूषण फैला रही हैं। ऐसा है भी। लेकिन अब आम आदमी पार्टी की सरकार महज नाटकीय ढंग से इस पूरे मसले को बंद आंखों तथा पूरी तरह से बहरेपन के साथ देख रही है।     

नई सरकार बनने के सिर्फ पांच महीनों के बाद स्थानीय किसानों और लोगों ने विरोध में धरना लगाया क्योंकि शराब फैक्ट्री की वजह से लगातार दूषित हो रहे पानी से पहले पशु और फिर इंसान मरने लगे। फिजाओं में जबरदस्त जहर फैल गया और डॉक्टरी रिपोर्ट्स में सामने आने लगा कि यह सब दीप सिद्धू की शराब फैक्ट्री से फैल रहे प्रदूषण की देन है। अब जीरा भी पंजाब के मालवा इलाके की कैंसर पट्टी का हिस्सा बन गया है। स्थानीय लोग इस बाबत पहले विधायक से मिले और फिर मंत्रियों के यहां चक्कर लगाए लेकिन हालात नहीं बदले। जब से आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है तभी से ‘वीवीआईपी कल्चर’ का विरोध करने वाले मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद सुपर वीवीआईपी हो गए। उड़नखटोले के जरिए ज्यादातर हवा में रहने लगे। राज्य की उन जमीनी सच्चाइयों से कटते चले गए, जो कभी उनकी चिंताओं में शुमार थीं। जीरा पट्टी में कैंसर जोर पकड़ता रहा और मुख्यमंत्री की दूरियां वहां के लोगों से बढ़ती गईं। फिर कभी गुजरात तो कभी हिमाचल प्रदेश में ज्यादा विचरने लगे।     

करीब पांच महीने पहले आजिज किसानों ने कंपनी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और फौरी धरना लगाकर तदर्थ तौर पर शराब फैक्ट्री का उत्पादन बंद करवा दिया। फैक्ट्री का प्रबंधन हाई कोर्ट चला गया और वहां से फैसला हुआ कि राज्य सरकार फैक्ट्री के नुकसान की भरपाई करोड़ों रुपयों में करे तथा आंदोलनकारी किसानों को वहां से हटाकर 20 दिसंबर तक सारे गेट खुलवाए।                                     

किसान हितेषी होने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए यह बहुत विकट स्थिति थी। पहले-पहल उच्च न्यायालय के फैसले की दलील लेकर अधिकारी, फिर विधायक और बाद में मंत्री बाकायदा किसानों के बीच गए। लेकिन किसान अड़े रहे कि शराब की फैक्ट्री को सदा के लिए बंद किया जाए। आंदोलनकारी किसानों ने पक्का मोर्चा लगा लिया तो मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसानों के शिष्टमंडल को चंडीगढ़ बुलाया और लंबी बैठक करके समझाया कि बीच का रास्ता यथाशीघ्र निकाल लिया जाएगा। लेकिन किसान बीच का नहीं सीधा रास्ता चाहते थे। इसलिए अंततः वह बैठक बेनतीजा रही और इधर आंदोलनकारी किसानों का काफिला दिन-प्रतिदिन लंबा होने लगा। इस बीच यह कवायद भी हुई कि फैक्ट्री द्वारा इस्तेमाल करने के बाद रिवर्स पानी डालने से दूषित होते जल की जांच और हल के लिए कमेटी बैठाई गई।

आप की तरफ से राज्यसभा में भेजे गए सांसद और पर्यावरणप्रेमी संत सींचेवाल पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड और जल निगम के भारी अमले की अगुवाई करते हुए गांव रटोल रोही गए। किसानों ने उन्हें यथास्थिति से अवगत कराते हुए आग्रह किया कि वह इस पानी को पिएं। सूबे के जानलेवा ढंग से प्रदूषित होने वाले जल को स्वच्छ करने की मुहिम शुरू करने वाले संत सींचेवाल और उनके साथ गए आला अफसरों ने वहां के पानी की एक बूंद भी नहीं पी। जाहिर है कि वह और सरकारी तंत्र जमीनी हकीकत से वाकिफ था क्योंकि इससे पहले की वैज्ञानिक जांच रिपोर्टौं में पानी तथा वायु में प्रदूषण का पैमाना मापा जा चुका था जो पॉजिटिव आया था। यानी तथ्यात्मक ढंग से साफ हो गया था कि उक्त फैक्ट्री हर तरह का प्रदूषण धड़ल्ले से फैला रही है और इस जानकारी को दबाने- छिपाने के लिए हर संभव हथकंडा इस्तेमाल कर रही है।     

सूत्रों के मुताबिक स्थानीय पुलिस- प्रशासन को उच्चस्तरीय आदेश दिए गए कि 20 दिसंबर से पहले जैसे-जैसे किसानों को धरना स्थल से हटाया जाए। किसानों ने वहां पावन गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश भी किया हुआ था। पुलिस- प्रशासन के उच्चाधिकारी इसलिए भी भारी दबाव के बावजूद हिचकिचाहट में थे। फिर भी हिदायतों पर अमल की कोशिशें जारी रहीं। पुलिस की नफरी बढ़ा दी गई और चौतरफा जबरदस्त नाकाबंदी कर दी गई। इधर, 20 दिसंबर यानी अदालत में जवाब दायर करने का दिन करीब आ रहा था और उधर दिल्ली के किसान मोर्चे में शामिल रहे विभिन्न किसान संगठनों ने रटोल रोही में धरना-प्रदर्शन पर बैठे किसानों का मौखिक समर्थन ही नहीं किया बल्कि उनके कारकून बहुत भारी तादाद में धरना-प्रदर्शन में शामिल होने लगे। 20 दिसंबर को भारी नाकेबंदी के बावजूद पुलिस और किसानों में जबरदस्त झड़प हुई। दिल्ली मोर्चे से जुड़े रहे एक चर्चित नाम लक्खा सिंघाना ने बताया कि दोनों तरफ से लाठियां चलीं। खुद सरकार ने माना कि इसमें कई लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं। एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी किसान रेशम सिंह ने फोन पर आंखों देखा हाल बताते हुए कहा कि “हजारों की तादाद में किसान 18 दिसंबर की रात से ही रटोल रोही पहुंचने लगे थे। पुलिस नाकों को उन्होंने जैसे-तैसे पार कर लिया। तब भी पुलिस-किसानों के बीच मुठभेड़ हुई थी। लेकिन किसान धरना प्रदर्शन वाली जगह तक पहुंच गए और भारी ठंड के बावजूद धरने पर बैठ गए।” असल में पुलिस की घेराबंदी गांव रटोल रोही के इर्द-गिर्द है और धरना प्रदर्शन की जगह गांव मंसूरवाल है।                               

गांव मंसूरवाल के सरपंच गुरमेल सिंह के मुताबिक हाड़ कंपाती ठंड और धुंध में से रिस्ते पानी के बावजूद प्रदेशभर से आए किसान खुले में टेंट लगाकर बैठे हुए हैं। 20 दिसंबर का आलम बताते हुए सरपंच गुरमेल सिंह ने कहा कि उस दिन चूंकि हाईकर्ट में इस मामले में राज्य सरकार की जवाबदेही थी, इसलिए पुलिस भी सख्त रवैया अख्तियार किए हुए थी। किसानों को धरना प्रदर्शन से दूर रोकने के लिए बैरिकेट्स लगाए गए और फैक्टरी के दरवाजों के आगे सरकारी बसें खड़ी कर दी गईं। किसानों ने पुलिस के नाके तहस-नहस कर दिए तो पुलिस ने लाठियां चलानी शुरू कर दीं। जवाब में किसानों ने भी पुलिस पर आक्रमण किया।” एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार पुलिस ने उच्चाधिकारियों के आदेश पर बंदूकें भी संभाल ली थीं लेकिन चंडीगढ़ से आदेश आया कि किसी भी कीमत पर फिलहाल फायरिंग न की जाए। इस दौरान किसानों का आना और पुलिस के साथ हाथापाई तथा लाठियों से झड़प का सिलसिला चलता रहा। पुलिस प्रशासन घटनाक्रम के रेशे रेशे की वीडियोग्राफी करवा रहा था ताकि अदालत में वक्त आने पर उसे रखा जा सके। खैर।                       

उधर, हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही थी। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने प्रदर्शनकारियों के वकील को बहस के दौरान साफ कहा कि शराब फैक्ट्री से निकलने वाले दूषित केमिकल की जांच के लिए कमेटी गठित करने के अदालती आदेश दिए जा सकते हैं लेकिन इससे पहले विरोध प्रदर्शन को खत्म करना होगा। इसके लिए हाईकोर्ट ने प्रदर्शनकारियों को उनका पक्ष रखने के लिए 48 घंटे की ‘मोहलत’ दी है। यानी अगली सुनवाई 23 दिसंबर को तय की है। (आंदोलनरत किसान, जिनका मोर्चा लगातार फैल रहा है, वे इसे मानने से नाबर हैं। मतलब साफ है कि तब तक टकराव और ज्यादा तीखा मोड़ ले लेगा)। पंजाब सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल विनोद घई ने कहा कि वहां प्रदर्शन की बाबत एफआईआर दर्ज की जा चुकी है। शराब फैक्ट्री के वकील ने कहा कि उनके टैंकर अंदर नहीं जाने दिए जा रहे और इससे करोड़ों रुपए का रोजाना नुकसान हो रहा है। इस पर बहस करते हुए आंदोलनरत किसानों के वकील आर एस बेंच ने कहा कि यह मुद्दा इस फैक्ट्री के नजदीक के कई गांव के लोगों से जुड़ा है। फैक्ट्री से जो प्रदूषण हो रहा है उससे लोग बेतहाशा कुप्रभावित हैं। ऐसे में इस फैक्ट्री से हो रहे प्रदूषण की उच्चस्तरीय जांच बेहद जरूरी है।                                         

इन पंक्तियों को लिखने तक पुलिस ने 600 किसानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। जब 20 दिसंबर को यह घटनाक्रम हो रहा था तो पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान हैदराबाद में थे और फिलवक्त वह इस प्रकरण पर खामोश हैं। यह वही भगवंत मान हैं, जो शासन व्यवस्था के मुखिया बनने से पहले कहा करते थे कि उनकी पार्टी की सरकार बनी तो पुलिस की एक भी लाठी किसी प्रदर्शनकारी अथवा आंदोलनकारी पर किसी भी सूरत में नहीं चलेगी। लेकिन अब? किससे पूछें कि ऐसा क्यों हो रहा है! 21 दिसंबर का सूरत-ए-हाल यह है कि तमाम किसान जत्थेबंदियां पुलिसिया विरोध के बावजूद वहां पहुंच रही हैं और पक्का मोर्चा लगा दिया गया है। पहली कतार में वही चेहरे बैठे हैं, जो राष्ट्रीय किसान आंदोलन के दौरान बैठे मिलते थे। लंगर का बंदोबस्त भी वैसे ही हो रहा है। इसका दो टूक अर्थ यह है कि पंजाब में एक नया किसान मोर्चा जन्म ले चुका है! जाहिर है उसका कद जैसे-जैसे बढ़ेगा, वैसे-वैसे किसान हितैषी होने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी का इकबाल छोटा होता जाएगा!                 

किसानों को सियासी समर्थन भी खुलकर हासिल होने लगा है। पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वेडिंग ने राज्य सरकार को शराब फैक्ट्री के बाहर प्रदर्शन कर रहे किसानों को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरतने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि प्रदर्शनकारी किसानों पर किसी भी तरह का बल प्रयोग सहन नहीं किया जाएगा और इसकी खिलाफत में पार्टी की राज्य इकाई अपने स्तर पर सड़कों पर उतरेगी। यह भगवंत मान के लिए इसलिए भी बड़ी परेशानी का सबब है कि जनवरी के पहले हफ्ते में राहुल गांधी की बहुचर्चित पैदल यात्रा पंजाब में प्रवेश कर रही है। हरियाणा में आ चुकी है और हरियाणा से भी किसान जीरा मोर्चा की ओर कूच कर रहे हैं।

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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