चंदौली। अगर पढ़ाने का जज़्बा और पढ़ने की लगन हो, तो कोई भी व्यक्ति किसी से कम नहीं रहता। इस बात को सच साबित किया है चंदौली जिले के चकिया प्रखंड के बियासड़ स्थित कंपोजिट स्कूल की शिक्षिका रीता पांडेय ने।
जिस दौर में सरकारी स्कूलों को केवल गरीब बच्चों की शिक्षा का केंद्र माना जाता है और सक्षम परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजते हैं, उस दौर में रीता पांडेय ने साबित कर दिया कि सरकारी स्कूल भी शिक्षा में नया मानक स्थापित कर सकते हैं।
करीब एक हजार की आबादी वाले बियासड़ प्राइमरी स्कूल में रीता पांडेय ने साल 2016 में नौकरी ज्वाइन की थी। उस समय इस स्कूल में सिर्फ 40 बच्चों ने दाखिला लिया था। स्कूली बच्चे और दलित व पिछड़े समुदाय के लोग शिक्षा को लेकर ज्यादा जागरूक नहीं थे।
बियासड़ गांव में अधिकतर आबादी दलित और पिछड़े समुदाय की है, जिनमें शिक्षा के प्रति रुचि और संसाधनों की कमी थी। इन परिस्थितियों में भी रीता पांडेय ने हिम्मत नहीं हारी और अपने प्रयासों से स्कूल को बदलने का बीड़ा उठाया।

रीता पांडेय ने बच्चों को केवल पाठ्यक्रम पढ़ाने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उनके भीतर सीखने की उत्सुकता और आत्मविश्वास भी जगाया। उनकी मेहनत और लगन का नतीजा यह हुआ कि आज स्कूल में 350 से अधिक बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। यह प्राइमरी स्कूल अब “मॉडल स्कूल” के रूप में जाना जाता है। साल 2019 में प्राइमरी स्कूल को सरकार ने कंपोजिट विद्यालय का दर्जा दे दिया और अब यहां आठवीं तक के बच्चों को शिक्षा दी जाती है।
कंपोजिट स्कूल की शिक्षका रीता पांडेय की पहल पर इस स्कूल के बाकी शिक्षकों ने अथक मेहनत की, जिन्होंने बच्चों को न केवल पढ़ाई में निपुण बनाया, बल्कि उन्हें अंग्रेजी में बोलने और प्राइवेट स्कूलों के बच्चों के समान प्रतिस्पर्धी भी बना दिया।
उनकी पढ़ाने की अनूठी शैली और मेहनत को देखते हुए सरकार इस स्कूल को कई मर्तबा सम्मानित कर चुकी है। कंपोजिट स्कूल में रीता पांडेय के अलावा प्रधानाचार्य उपेंद्रनाथ सिंह और बेबी सिंह, देवेंद्र प्रताप सिंह, अग्रसेन गुप्ता, अतुल उपाध्याय, कंचन, शशिभूषण मौर्य, सुनील कुमार मौर्य और अनुराधा ने इस विद्यालय में मील का नया पत्थर खड़ा किया है।
प्रधानाचार्य उपेंद्रनाथ सिंह के साथ रीता पांडेय, दवेंद्र प्रताप सिंह और उनके सहकर्मियों ने शिक्षा को आधुनिक बनाने की दिशा में कई कदम उठाए। स्कूल में स्मार्ट क्लासेस की शुरुआत की गई, जिससे बच्चे डिजिटल माध्यम से पढ़ाई के नए तरीकों को समझने लगे। इसके साथ ही बच्चों को कंप्यूटर और लैपटॉप के उपयोग की जानकारी भी दी जा रही है।

बियासड़ कंपोजिट स्कूल के बच्चे भले ही गरीब परिवारों के हैं, लेकिन वो आनलाइन पढ़ाई में दक्ष हो गए हैं। तीसरी और चौथी कक्षा के बच्चे अब ई-मेल आईडी बनाने, उसका महत्व समझने और ऑनलाइन कक्षाओं से जुड़ने में सक्षम हो गए हैं। यहां तक कि वे क्यूआर कोड स्कैन करने और उसका उपयोग करने जैसे तकनीकी कार्य भी जानते हैं।
यह पहल इसलिए की गई ताकि भविष्य में किसी भी आपातकालीन स्थिति, जैसे कोविड महामारी, में बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो। इसके लिए यहां टैब लैब बनाई गई है। सभी बच्चों को विधिवत टैबलेट आवंटित किए गए हैं।

बियासड़ कंपोजिट स्कूल के कमजोर बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए विशेष कक्षाओं की व्यवस्था की गई है। यहां टैब लैब के अलावा विद्यालय समय समाप्त होने के बाद भी ऐसे बच्चों को अलग से पढ़ाया जाता है, ताकि उनकी शैक्षिक क्षमताओं को मजबूत किया जा सके।
पिछले दो वर्षों से चल रहे इस प्रयोग ने कई बच्चों को बेहतर परिणाम देने में मदद की है। प्रभा फाउंडेशन की ओर से राज्य स्तर पर आयोजित होने वाली विद्या विज्ञान परीक्षा में पांचवीं कक्षा के छात्र यश कुमार ने एक बड़ा रिकार्ड बनाया है।

यश चकिया प्रखंड में विद्या ज्ञान की प्रारंभिक परीक्षा पास करने वाला इकलौता स्टूडेंट हैं। इसके पिता जयनारायण बिंद मामूली किसान हैं। अंग्रेजी में खास दिलचस्पी लेने वाला स्टूडेंट यश कहता है, “मैं हर शाम करीब तीन घंटे पढ़ता हूं। अंग्रेजी हमारा प्रिय सब्जेक्ट है। मैं और मेरे क्लासमेट आपस में अंग्रेजी में बात करते हैं। अपने गुरुजनों की प्रेरणा से हमने अंग्रेजी सीखी। भविष्य में हम अपने जिले का नाम रौशन करना चाहते हैं। हमारी सफलता के पीछे रीता पांडेय समेत स्कूल के सभी शिक्षकों का रोल काफी अहम है।”
चकिया के ही हैं रक्षा मंत्री राजनाथ
साल 1997 में बनारस से कटकर अस्तित्व में आए चंदौली जिले के चकिया इलाके में कई मर्तबा सर्वे के बावजूद अब तक रेल नहीं पहुंच सकी है। क्षेत्रफल के लिहाज़ से चकिया प्रखंड आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से काफी पिछड़ा माना जाता है।
खासतौर पर दलित और पिछड़े समुदाय के लोग अभी भी यहां हाशिए पर हैं। हालांकि चकिया प्रखंड का पिछड़ापन दीगर मामला है। इसी इलाके के भभौरा गांव में 10 जुलाई 1951 में जन्मे राजनाथ सिंह भारत के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ और वर्तमान में भारत के रक्षा मंत्री हैं।
वर्तमान में राजनाथ सिंह लखनऊ से सांसद हैं। वे भारत के गृह मंत्री रह चुके हैं। सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनके पिता राम बदन सिंह साधारण किसान और मां गुजराती देवी हाउस वाइफ रहीं।
यूपी के मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह पर चकिया प्रखंड के लोग भले ही उपेक्षा का आरोप रहे, लेकिन शान बघारने की बात आती हैं तो उनका नाम लेने से कोई पीछे नहीं रहता।
चकिया पहले काशी राज्य का हिस्सा और जिला हुआ करता था। भगवान बुद्ध ने इस इलाके की पहाड़ियों में साधना की थी, जिनके पदचिह्न आज भी मौजूद हैं।
बियासड़ गांव की प्रधान हैं चंदा पांडेय और वह 8वीं तक पढ़ी हैं। हालांकि वह दावा करती हैं कि उन्होंने विकास के कई मानक गढ़े हैं, लेकिन बियासड़ के युवाओं, पिछड़ों और दलितों का एक बड़ा वर्ग उन पर घोर उपेक्षा का आरोप लगाता है।
करीब 136 परिवारों वाले बियासड़ गांव की आबादी करीब 774 है, जिनमें 368 पुरुष और 356 महिलाएं (साल 2011 की जनगणना के अनुसार) हैं। इस ग्राम सभा से चार अन्य मौजा जुड़े हैं, जिनमें बेदौली, अमौली, बगही और शाहपुर हैं। इन गांवों के दलित और पिछड़ी जातियों के बच्चे बियासड़ कंपोजिट स्कूल में पढ़ने आते हैं। इन मौजों की आबादी क्रमशः 451, 398, 20 और 06 है।
बियासड़ गांव के नौजवान सोनू, अवनीश, प्रमोद, मनोज, राधेश्याम, हीरालाल, जगनारायण, आफताब हुसैन, अस्मित और हिमांशु प्रधानपति कृष्णानंद पांडेय पर ऐलानिया तौर पर आरोप लगाते हैं, “वो नहीं चाहते कि दलितों और पिछड़ों के बच्चे पढ़ें-लिखें। वो पढ़-लिख लेंगे तो बड़े किसानों के घरों में काम कौन करेगा।
रीता पांडेय बियासड़ गांव की बेटी हैं, लेकिन उनके मन में हाशिए पर जीवनयापन कर रहे लोगों के प्रति गहरी बेचैनी है। रीता ने अपने वेतन के पैसे से कई लोगों को पढ़ा-लिखाकर अफसर बनाया है। कई लोग नौकरियों में हैं। उनके योगदान को सिर्फ बियासड़ ही नहीं, आसपास के गांवों के लोग कभी नहीं भुला सकेंगे।

दरअसल, बियासड़ के प्राइमरी स्कूल को मॉडल बनाने के पीछे रीता पांडेय का स्वार्थ इतना रहा कि इनके बाबा बच्चन पांडेय के प्रयास से साल 1937 में अंग्रेजी हुकूमत के समय यहां प्राइमरी स्कूल खोला गया गया था। इनके बाबा इलाके के जाने-माने समाजसेवी और ऊंच-नीच के कट्टर विरोधी थे।
वो जातियों में नहीं, व्यक्तियों में भरोसा करते थे। मन में गरीबों के उत्थान की ललक थी। दरअसल जिन मूल्यों और आदर्शों की सीढ़ी चढ़कर रीता पांडेय ने प्राइमरी स्कूल को मॉडल के रूप में विकसित करने का सपना संजोया, उसके जनक कोई और नहीं उनके बाबा बच्चन पांडेय ही थे। उनके बाबा, बच्चन पांडेय, एक सामाजिक कार्यकर्ता थे और समाज में बदलाव लाने के लिए प्रयासरत रहते थे।
संघर्ष, सपना और सफलता
गरीब बच्चों के जीवन में शिक्षा की रोशनी लाने का सपना एक साधारण शिक्षिका, रीता पांडेय, ने अपने अथक प्रयासों और समर्पण से पूरा किया। यह कहानी न केवल उनके संघर्षों और उपलब्धियों की है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक व्यक्ति के प्रयास पूरे समाज की दिशा बदल सकता हैं।
रीता का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जो शिक्षा और समाज सेवा को प्राथमिकता देता था। उनके पिता, स्वर्गीय हरिवंश पांडेय का सपना था कि गरीबों के लिए एक ऐसा स्कूल हो, जो उन्हें जीवन में आगे बढ़ने का मौका दे। इस पारिवारिक पृष्ठभूमि ने रीता के भीतर शिक्षा और सेवा के प्रति गहरी प्रेरणा जगाई।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद, रीता ने अपनी शिक्षा और क्षमता को समाज के निर्माण में लगाने का निश्चय किया। उन्होंने आदित्य बिड़ला ग्रुप, गढ़वा रोड (रांची) में एक शिक्षिका के रूप में अपनी सेवाएं दीं और जयपुर में एक सीबीएसई स्कूल में प्रिंसिपल के रूप में काम किया।
लेकिन उनकी आत्मा हमेशा अपने गांव और गरीब बच्चों की ओर खिंची रही। अपनी न्युक्लियर फैमिली के साथ रीता बनारस लौट आईं। उनके मन में यह दृढ़ निश्चय था कि वह अपने परिवार के सपने को पूरा करेंगी।
साल 2016 में, उन्होंने चंदौली जिले के बियासड़ गांव के प्राइमरी स्कूल में बतौर शिक्षिका जिम्मेदारी संभाली। उस समय स्कूल की स्थिति बहुत खराब थी। केवल 40 बच्चे नामांकित थे, और स्कूल की हालत ऐसी थी कि लोग इसे उपेक्षित मानते थे।
रीता पांडेय ने स्कूल को बदलने की ठान ली। उन्होंने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए अपनी जेब से खर्च करना शुरू किया। उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उनका आत्मविश्वास भी बढ़ाया। शिक्षा के प्रति उनकी लगन का नतीजा यह हुआ कि स्कूल में नामांकन इतना बढ़ गया कि तमाम बच्चों को एडमिशन देने से इनकार करना पड़ा।
उन्होंने स्कूल के लिए पेंटिंग करवाई, कंप्यूटर लैब, टैब लैब, और एस्ट्रो लैब जैसी सुविधाएं शुरू कीं। इसके अलावा, बच्चों को पिकनिक पर ले जाने, उन्हें कॉपी-पेन उपलब्ध कराने और पढ़ाई में रुचि बढ़ाने के लिए विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया।

रीता को अपने प्रयासों के दौरान कई सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ा। गांव के लोग कहते थे, “इन बच्चों को पढ़ाओगी तो हमारे घरों में काम कौन करेगा?” इस तरह की बातें रीता को हतोत्साहित करने की कोशिश करती थीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
तमाम ऊंच-नीच के बावजूद बियासड़ और आसपास के गांवों के लोग उनकी मदद के लिए आगे आए। उनके सहयोगी विनोद कुमार गौतम, अग्रसेन गुप्ता और रमाकांत प्रसाद (जिनका कोरोना महामारी के दौरान निधन हो गया) ने उनके साथ मिलकर स्कूल को बेहतर बनाने में योगदान दिया।
रीता पांडेय के अथक प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि स्कूल में 40 बच्चों से बढ़कर पौने तीन सौ बच्चे पढ़ाई करने लगे। बच्चों को न केवल शिक्षा बल्कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक कौशल भी सिखाए गए। स्कूल को राज्य स्तर पर पुरस्कार मिले, और यह पूरे ब्लॉक और मंडल का अव्वल स्कूल बन गया।
इनकी कोशिशों का नतीजा यह रहा कि महंगी फीस लेकर बच्चों को पढ़ाने वाले तीन निजी स्कूलों को बंद करना पड़ा। नतीजा, इनके खिलाफ सवर्ण समुदाय का एक बड़ा तबका खड़ा हो गया, जबकि दलितों व पिछड़ों ने उन्हें भरपूर समर्थन दिया।
शिक्षिका रीता पांडेय ने बच्चों को ई-मेल, ऑनलाइन कक्षाओं और तकनीकी शिक्षा के बारे में सिखाया, ताकि भविष्य में कोई बाधा उनकी पढ़ाई को प्रभावित न कर सके।

शिक्षिका रीता कहती हैं, “बियासड़ हमारा मायका है। जन्म के कुछ ही साल बाद हमारे पिता गुजर गए, लेकिन हमने अपनी मां से ईमानदारी और निष्ठा सीखी है। दादा के आर्दश आज भी हमारी प्रेरणा हैं। हमने उनके सपनों को साकार करने के लिए सरकारी प्राइमरी स्कूल को कान्वेंट स्कूल से बेहतर बनाने की पहल शुरू की और हमें कामयाबी भी हासिल हुई।”
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं बच्चे
राजा काशी नरेश की सैरगाह रही चकिया के अधिकांश प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर सिर्फ रस्म अदायगी होती रही है, लेकिन बियासड़ कंपोजिट स्कूल के शिक्षकों का जज़्बा देखते ही बनता है। बड़े बच्चे खुद से छोटे बच्चों और क्लासेस के लिए गाइड या टीम लीडर की भूमिका अदा करते दिखते हैं। कई बच्चे तो फर्राटेदार अंग्रेजी में बातचीत भी करते हैं।

शिक्षकों की कमी की भरपाई के तौर पर पढ़ाते नज़र आते हैं। मिड डे मील के लिए कोई भगदड़ नहीं दिखाई देती। रसोई भी अपेक्षाकृत साफ़-सुथरा दिखाई पड़ता है, और रसोइया भी। स्कूल के एस्ट्रो लैब में टीवी भी लगी है तो टेलीस्कोप भी है।
विज्ञान की आधुनिक पढ़ाई के लिए ढेरों उपकरण भी हैं। और तो और बच्चों को लोकतंत्र से रू-ब-रू कराने व स्कूल के बेहतर संचालन के लिए यहां बाल संसद-सह कार्यकारिणी भी कार्यरत है।

कंपोजिट स्कूल के प्रिंसिपल उपेंद्रनाथ सिंह और सहायक अध्यापक देवेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, “छात्रों की संख्या अधिक होने के कारण इस समय ढेरों दिक्कतें हैं, लेकिन उसका समाधान होता नजर आ रहा है। शासन ने यहां एक नई बिल्डिंग खड़ी करनी शुरू कर दी है।
यहां आधुनिक गणित, विज्ञान, प्रयोगशाला, स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब, खेल का मैदान, स्किल लैब और केंद्रीकृत किचन का निर्माण हो रहा है। जल्द ही कंपोजिट विद्यालय की दिक्कतें दूर हो जाएंगी।”
बियासड़ गांव के सोनू और अस्मित पांडेय कहते हैं, “राजनीतिक वजहों से चंदौली को भले ही जिला बना दिया गया हो लेकिन यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। चकिया के इस सुदूर ग्रामीण इलाक़े में सीमित संसाधनों की कमी के बावजूद चल रहे इस स्कूल को देखकर खुशी का एहसास होता है। कई बार तो ऐसा लगता है जैसे यह स्कूल मरुस्थल में जल का स्रोत हो, और इस स्रोत के माध्यम से बहुतों के दिन बहुरेंगे।”

स्कूल के प्रांगण में ही हमारी स्टूडेंट महिमा कुमारी, दीपक कुमार, किशन कुमार, अंश कुमार, हरिओम कुमार और विकास से हुई। सबने यही कहा कि वो स्कूल को और बढ़िया बनाना चाहती हैं। इनमें कुछ छात्र-छात्राएं डाक्टर व नर्स बनकर मरीजों की सेवा करना चाहती हैं तो कुछ इंजीनियर व शिक्षक।
जयहिंद हमसे बातचीत में कहते हैं कि हमारे पिता गरीब जरूर हैं, लेकिन हम पढ़-लिखकर उनकी गरीबी मिटा देना चाहते हैं। स्कूल में बेंच-डेस्क की कमी है। कुछ बच्चों ने हमसे शिकायत की कि सरकार से ऊनी वस्त्र और जूता-मोजा के लिए उनके खाते में पैसा अभी तक नहीं आया है। मौजूदा समय में सर्दी पीक पर है।”
सरकारी स्कूल भी बनेंगे आदर्श
योगी सरकार ने राज्य के 50 फीसदी प्राइमरी स्कूलों को आदर्श विद्यालय बनाने की योजना शुरू की है, जबकि रीता पांडेय जैसे शिक्षकों ने अपनी निजी कोशिशों की बदौलत कई साल पहले ही बियासड़ के प्राइमरी स्कूल को माडल स्कूल बना दिया था।
मौजूदा समय भी यहां अव्वल दर्जे की पढ़ाई होती है। खास बात यह है कि इस कंपोजित विद्यालय में 65 फीसदी छात्र दलित और 35 फीसदी पिछड़े समुदाय के हैं। अपर कास्ट के बच्चे पास के कान्वेंट स्कूल में पढ़ते हैं। बताया जाता है कि ऊंच-नीच के भेदभाव के चलते अच्छी पढ़ाई के बावजूद अपर कास्ट के लोगों ने अपने बच्चों का नाम कंपोजिट स्कूल से कटवा दिया है।
उत्तर प्रदेश में कुल 1,67,265 प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूल हैं। सरकार ने 84,000 स्कूलों को 2029 तक आदर्श विद्यालयों में बदलने का निर्णय लिया है। इस प्रक्रिया में शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के तहत स्कूलों में सुधार किया जाएगा और इन्हें आदर्श विद्यालय के मानकों पर तैयार किया जाएगा। चंदौली की एसडीएम दिव्या ओझा कहती हैं, “सरकार द्वारा संचालित आदर्श स्कूलों में बच्चों के लिए सुरक्षित, तनावमुक्त और खुशहाल माहौल सुनिश्चित किया जाएगा ताकि वे बेहतर सीख सकें। शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त रखा जाएगा और हर स्कूल में कम से कम पांच कक्षाएं और पांच शिक्षकों की तैनाती की जाएगी। स्मार्ट क्लासेज की सुविधा, आधुनिक पुस्तकालय और प्रयोगशालाएं स्थापित की जाएंगी। स्वच्छता को प्राथमिकता देते हुए स्वच्छ शौचालय, स्वच्छ पेयजल और सुव्यवस्थित डेस्क-बेंच की व्यवस्था की जाएगी।”
“शिक्षकों की तैनाती उनके विषय विशेषज्ञता और अनुभव के आधार पर की जाएगी। सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों के माध्यम से बच्चों में संचार कौशल, समस्या समाधान, आत्मविश्वास और टीम वर्क की भावना विकसित की जाएगी। खेल के मैदान और बच्चों की सुरक्षा के लिए आग और अन्य खतरों से बचाव की व्यवस्था भी की जाएगी। सरकार ने इस कार्य को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्देश दिया है। यह पहल न केवल शिक्षा के स्तर को सुधारने में मदद करेगी, बल्कि बच्चों को समग्र विकास के अवसर भी प्रदान करेगी।”
रीता, प्रेरणा की मिसाल
शिक्षिका रीता पांडेय का सफर संघर्ष और चुनौतियों से भरा हुआ था। उन्हें शुरुआती दिनों में स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी मेहनत और समर्पण ने स्कूल और बच्चों दोनों का भविष्य बदल दिया।
रीता का यह प्रयास साबित करता है कि शिक्षा में बदलाव लाने के लिए किसी बड़ी सुविधाओं की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि एक शिक्षिका का समर्पण और बच्चों की लगन ही काफी है। यह कहानी उन सभी शिक्षकों और छात्रों के लिए प्रेरणा है, जो अपने लक्ष्य को पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
आज, बियासड़ का कंपोजिट स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में एक मिसाल बन चुका है। शिक्षिका रीता पांडेय का अभिनव प्रयास और उनकी सफलता की कहानी प्रेरणा का स्रोत है, जो हमें यह सिखाती है कि सही प्रयास और दृढ़ निश्चय से समाज में बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।
मौजूदा समय में चंदौली जिले के चकिया तहसील का बियासड कंपोजिट स्कूल ग्रामीण परिवेश, शिक्षा और सामाजिक प्रगति का एक अनोखा मिश्रण प्रस्तुत करता है। यह गांव सामाजिक और शैक्षणिक विकास की राह पर अपने संघर्षों और उपलब्धियों के साथ आगे बढ़ रहा है।
यह क्षेत्र मुख्य रूप से ग्रामीण है, जहां की अर्थव्यवस्था कृषि और श्रम आधारित है। यहां की जनसंख्या में महिलाओं और पुरुषों की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण है।
शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में थोड़े और प्रयास से बियासड़ गांव एक मॉडल गांव के रूप में उभर सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब शिक्षकों पर इस तरह का दबाव न डाला जाए कि वे दलितों व पिछड़ों के बच्चों को इसलिए अच्छी शिक्षा दें क्योंकि अमीर खेतिहर किसानों के घरों में काम कौन करेगा?
(विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं। चंदौली के बियासड़ गांव से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट)
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