आतंकवादी नहीं, सैयद आदिल हुसैन शाह करते हैं जम्मू व कश्मीर की भावना कर प्रतिनिधित्व

संजीव कुमार एक अध्यापक हैं। वे अपनी पत्नी रश्मि और साढ़े तेरह वर्षीय पुत्र विहान के साथ पुंछ में रहते थे। 7 मई को दो-ढाई बजे रात को बत्तियां बुझाने का निर्देश हुआ और दूरदर्शन पर गोले बरसने के दृश्य दिखाए जा रहे थे। विहान डर के मारे कांपने लगा। उसे दवाई दी गई। पौने पांच बजे वह सोने गया। आधे ही घंटे में धमाके से फिर उसकी नींद खुल गई। आपरेशन सिंदूर शुरू हो चुका था। विहान अपने मित्रों के साथ सोशल मीडिया पर संवाद करने लगा। वह खुश था कि नरेन्द्र मोदी ने पहलगाम का बदला ले लिया था। संजीव ने उसका ध्यान बंटाने के लिए उसे कुछ गणित के अभ्यास करने को कहा जो विहान ने फटाफट कर लिए। फिर वह बाहर गया और एक बम का टुकड़ा लेकर आया जो रश्मि ने उसके हाथ से तुरंत छीन लिया। किंतु उसी क्षण रश्मि के दिमाग में अपशकुन कौंधा। अब तक उनके सारे रिश्तेदार-दोस्त पुंछ छोड़कर सुरक्षित जगहों पर जाने लगे थे।

उन्होंने भी पुंछ छोड़ने का फैसला लिया। अभी उनकी गाड़ी दस मिनट का ही सफर तय की होगी कि दुर्भाग्य से उन्हीं की गाड़ी पर एक गोला गिरा। जब संजीव को होश आया तो देखा वे खून से लथपथ थे। बगल की सीट पर खून में सनी रश्मि भी बेहोश पड़ी थीं। पीछे की सीट पर विहान भी बेहोश पड़ा था। विहान की ठुड्डी को अपने हाथ में लिया तो उसके दिमाग का मांस निकल कर उनके हाथ में आ गया। संजीव व रश्मि का एकमात्र बेटा जा चुका था। अब उनके लिए देशभक्ति, सुरक्षा, रणनीति, विदेश नीति, आदि बड़ी-बड़ी बातों का कोई मतलब नहीं था। संजीव व रश्मि, जिनके मुंह से तो शब्द ही नहीं निकलते, के लिए तो कोई भविष्य ही नहीं बचा। संजीव को सरकार से शिकायत है कि उसने नागरिकों को युद्ध की चेतावनी नहीं दी। उन्हें दुख इस बात का है कि सरकार चाहती तो इलाका खाली करवा देती। वे भावावेश में पूछते हैं, ’क्या युद्ध के समय अपने नागरिकों की जान बचाना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है?’

राजौरी, पुंछ व उड़ी – जो इलाके युद्ध से प्रभावित रहे – में यह आम शिकायत है। सरकार ने तो पाकिस्तान को बता कर हमला किया। किंतु अपने नागरिकों को नहीं बताया। बताया तो यह गया था कि 7 मई को मॉक ड्रिल होगा। लेकिन युद्ध शुरू हो गया और लोगों को अपने हाल पर ही छोड़ दिया गया। दूसरी शिकायत लोगों की यह थी कि भारत के मुख्य भू-भाग के लोग प्रधान मंत्री को युद्ध के लिए उकसा रहे थे और संचार माध्यम तो एक कदम आगे जाकर पाकिस्तानी शहरों पर कब्जा हो जाने का दावा भी कर रहे थे, जबकि सीमा पर रहने वाले लोग युद्ध नहीं चाहते क्योंकि उन्हें ही युद्ध के परिणाम झेलने पड़ते हैं।

उन्होंने पहले भी युद्ध झेले हैं और आगे नहीं झेलेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं। स्थानीय लोग युद्धोन्मादी लोगों को आमंत्रित करते हैं कि वे एक रात जब सीमा पार से बमबारी हो रही हो तो उनके इलाकों में रह कर देखें। तब इन जंग चाहने वाले लोगों को समझ में आएगा कि युद्ध का मतलब क्या होता है? दूरदर्शन के स्टूडियो में बैठकर पाकिस्तान पर विजय हासिल करने का दावा करना आसान है। हकीकत यह है कि अमरीका के हस्तक्षेप से अथवा आपसी बातचीत से युद्ध लम्बा खिंचने से पहले ही रुक गया।

हिन्दुत्व समर्थक नरेन्द्र मोदी से इस बात के लिए नाराज थे कि उन्होंने युद्ध बड़ी जल्दी रुकवा दिया। किंतु प्रधान मंत्री की कुर्सी पर कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति होता तो वही करता जो नरेन्द्र मोदी ने किया। अन्यथा रूस-यूक्रेन व इजराइल-फिलीस्तीन के लम्बे खिंच रहे युद्धों, जो कि वहां के लोगों के लिए लगातार भौतिक व मानसिक रूप से पीड़ा का स्रोत बन गए हैं, की सूची में हम भी शामिल हो जाते। नरेन्द्र मोदी ने व्लादिमीर पुतिन को कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है। उन्हें यह भी जोड़ देना चाहिए था दोनों तरफ से जब आधुनिक युद्ध प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल होगा तो कोई युद्ध जीता भी नहीं जा सकता।

उड़ी में नियंत्रण रेखा के पास रहने वाले एक नौजवान पिता ने अपना दुख इस तरह बयान किया कि भारत के मुख्य भू-भाग में रहने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई या अन्य शैक्षिकेत्तर गतिविधियों के बारे में सोचते होंगे लेकिन सीमा के पास रहने वाले बच्चे रोज शाम अपने पिता से पूछते हैं कि आज उन्हें सोना कहां है – बिस्तर पर या सीढ़ी के नीचे? लोगों के जीवन में इस तरह की अनिश्चितता एक मानसिक प्रताड़ना है।

इससे एक जरूरी सवाल उठता है। भारत और चीन की तरह भारत और पाकिस्तान के बीच अभी तक यह समझौता क्यों नहीं हुआ कि दोनों मुल्कों के सैनिक एक दूसरे पर गोली नहीं चलाएंगे और सामान्य आबादी पर गोलाबारी नहीं करेंगे? गलवान के अपवाद को छोड़ दिया जाए तो लम्बे समय से चीनी सीमा से सैनिकों के मरने या सामान्य आबादी पर गोलाबारी की कोई खबर नहीं आई है।

पर इसके लिए भारत सरकार को पाकिस्तान की सरकार से बात करनी होगी। बजाए एक प्रतिनिधिमण्डल पाकिस्तान भेजने के या वहां से यहां बुलाने के हमने दुनिया भर में चीन और पाकिस्तान को छोड़कर सात प्रतिनिधिमण्डल भेजे हैं। यदि भारत सरकार यह कहती है कि भारत पाकिस्तान के बीच मसला द्विपक्षीय है जिसमें कोई तीसरा हस्तक्षेप नहीं कर सकता तो कभी न कभी तो वार्ता करनी ही पड़ेगी। फिर इसमें देरी क्यों करें? यह कहने से काम नहीं चलेगा कि पाकिस्तान के साथ वार्ता सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने के लिए ही होगी। जम्मू-कश्मीर के लोगों को लगता है कि भारत-पाकिस्तान के झगड़े में उनका इस्तेमाल होता है लेकिन दोनों ही देश जम्मू-कश्मीर के लोगों का भला नहीं चाहते।

जिस तरह नरेन्द्र मोदी को 3 मई, 2023 से, जब वहां मैतेई-कुकी झगड़ा शुरू हुआ, अभी तक मणिपुर जाने का मौका नहीं मिला उसी तरह बिहार चुनाव की सरगर्मी के बीच नरेन्द्र मोदी को जम्मू-कश्मीर के युद्ध प्रभावित इलाकों का दौरा करने का वक्त नहीं मिला है। जम्मू-कश्मीर के लोगों को लगता है कि उनका मसला अभी हल नहीं हुआ है। वे अपमानित महसूस करते हैं जब उनके मुख्यमंत्री को सरकारी बैठकों में सुरक्षा मामले पर चर्चा के समय उठ कर चले जाने के लिए कहा जाता है। क्या सरकार को जम्मू-कश्मीर के लोगों पर भरोसा नहीं है? वे पूछते हैं, ’क्या हम भारत के अटूट अंग नहीं हैं?’

सैयद आदिल हुसैन शाह, जो पहलगाम हमले में पर्यटकों को बचाने के लिए आतंकवादियों से बंदूकें छीनते हुए मारा गया, के भाई नौशाद बताते हैं कि जब माता-पिता रोते हैं तो मैं समझाता हूं कि तुम्हारा लड़का बहुत बड़ा काम करके गया है। वे कहते हैं कि उन्हें अपने भाई से ज्यादा पर्यटकों के मरने का दुख है क्योंकि वे हमारे मेहमान थे और कश्मीरी अपनी मेहमाननवाज़ी के लिए मशहूर हैं। वे पर्यटकों से अपील करते हैं कि लोग जम्मू-कश्मीर आते रहें क्योंकि यहां और भी आदिल हैं जो अपनी जान पर ,खेल कर उन्हें बचाएंगे। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे आदिल के परिवार के लिए उनके पुराने घर के बगल में ही एक नया घर बनवा रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि आदिल ही पहलगाम के नायक हैं और वे सारी सही चीजों के प्रतीक हैं – साम्प्रदायिक सद्भावना, शांति, सहिष्णुता, विवेक, और सबसे बड़ी मानवता। आदिल ही जम्मू-कश्मीर की शांति और खुशहाली के लिए उम्मीद हैं।

लेखकः संदीप पाण्डेय, महासचिव, सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया), फोनः 0522 3564437, 2355978, e-mail id: [email protected]

(यह लेख सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के 14 सदस्यीय कश्मीर एकजुटता मिशन के 25-30 मई के जम्मू-कश्मीर के युद्ध प्रभावित क्षेत्रों के दौरे के बाद लिखा गया है।)

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