पहलगाम के अनुत्तरित सवालों पर आती खबरें चिंता जनक

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बिहार चुनाव से पूर्व पहलगाम की घटना कितनी असर कारक हो सकती है यह हमारे सऊदी अरब में कार्यक्रम छोड़ कर आए पीएम की मधुबनी सभा से ज़ाहिर हो गया है। उनके अचानक आने से जो संवेदनशील छवि बनी थी वो बिहार चुनावी सभा ने धूमिल कर दी। मोदी मीडिया ने इस हृदय विदारक घटना से भाजपा को भरपूर लाभ मिलने की बात कहना शुरू कर दिया है। उसने बिहार में पूर्ण बहुमत की घोषणा कर दी है।

किंतु ग़म में डूबी वादि-ए-कश्मीर और मारे गए देशवासियों के परिवार शायद ही पीएम को माफ कर पाएं। समग्र देश हतप्रभ है इस दुर्दांत घटना पर दो मिनट का मौन भी नहीं रखा गया। राष्ट्रीय शोक तो दूर की बात है। जबकि पोप फ्रांसिस का राष्ट्रीय शोक चल ही रहा था। ये छोटी बात लगती है उन्हें जो इस तरह की हत्याओं को अंजाम देते रहे हैं। वे आपदा में अवसर लेने वाले लोग हैं। यह किसी से छुपा नहीं है।

आइए, पहलगाम घटना के बाद सरकार की गतिविधियों पर भी नज़र डालें। हमारे पीएम साहब सर्वदलीय ज़रूरी बैठक में भी अनुपस्थित रहे। जबकि सारे देश के राजनैतिक दल मौजूद थे और पीएम के आदेशों का समर्थन किए।

दूसरी बात ये कि सम्बंधित चार आतंकवादी भारतीय सेना की पोशाक पहने थे और वे सुगमता से विलुप्त हो गए। वे कहां से मिले? कहा जा रहा है कि नव प्रशिक्षु आतंकी भारत सरकार के मुंद्रा एयरपोर्ट पर हेरोइन तस्करी से मिले धन से ही तैयार किए गए। सबको मालूम है यह एयरपोर्ट गौतम अडानी का है और इस तरह यह कनेक्शन सिर्फ अडानी नहीं बल्कि भारत सरकार तक जाता है।

दूसरा तथ्य जो अब तक सामने आया है कि पश्चिम राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा जो सुरक्षा के लिए सेना के पास था वह गौतम अडानी को दे दिया गया है जहां से बिजली उत्पादन कर पाकिस्तान भेजी जा रही है।

अब सवाल ये है कि जब दुश्मन देश पाकिस्तान को मिट्टी में मिलाने की बात पीएम करते हैं, सिंधु का पानी रोकने की तैयारी में है। देश में आए पाकिस्तानी खदेड़े जा रहे हैं। राजनयिक रिश्ते तोड़े जा रहे हैं। तब अडानी की बिजली पाकिस्तान क्यों जा रही है?

पाकिस्तान ने इसके एवज में शिमला समझौता ख़त्म करने का ऐलान किया है जो इंदिरा जी के कार्यकाल में किया गया महत्वपूर्ण समझौता था। इसके अन्तर्गत इंदिरा गांधी ने पाक प्रधानमंत्री भुट्टो को यह शर्त मानने के लिए मज़बूर किया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी किसी तरह के विवाद होंगे दोनों देश बैठकर उसे सुलझाएंगे। इसमें किसी राष्ट्र की मध्यस्थता नहीं होगी। ना किसी बड़े देश का दबाव होगा। अब यदि शिमला में हुए समझौते को पाकिस्तान समाप्त कर देता है तो कई राष्ट्र आकर भारत को कमज़ोर कर सकते हैं।

एक और ख़बर यह संकेत दे रही है कि इज़राइल के हत्यारे राष्ट्रपति नेतन्याहू और अमेरिका के तार मोसाद से जुड़े हुए हैं और वे भारत के प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी को निशाने पर लिए हैं। ये ख़बरें भारतीय जनमानस को विचलित करने वाली हैं। एक आम आदमी भी इस बात तो समझता है जिसके जैसे यार वैसा ही साथी वह ढूंढ लेता है। गाज़ा की विभीषिका कहीं हमारे मेहमान नवाज़ कश्मीर को ना झेलनी पड़े।

इस कौम ने बार-बार हिंदुस्तान पर विश्वास किया। इस बार भी सैलानियों के साथ इस कौम का व्यवहार कतिपय लोगों को खटक रहा है। उन्हें इस बात का ग़म है यह हिंदू मुस्लिम में क्यों तब्दील नहीं हुआ। बेशक कश्मीर को जन्नत वहां की अवाम की खिदमत और प्राकृतिक सौन्दर्य की वजह से कहा जाता है।

भारत सरकार को चाहिए वह असलियत छिपाए नहीं सार्वजनिक करे और कश्मीर को बचाने की भरपूर कोशिश करे। क्योंकि सिरफिरा पाकिस्तान  इस जन्नत को गाज़ा जैसे दोज़ख में धकेल सकता है। अभी भी वक्त है देश अपनी विदेश नीति को पुख्ता करे। अमेरिका हथियारों का व्यापारी है। वह दोनों राष्ट्रों  को इस बहाने भरपूर हथियार बेचेगा। पीओके छीनने की बात करने वाले, कश्मीरियत को बचाने पहले पुख्ता इंतजाम कर लें। फिर खरामा खरामा आगे बढ़ें। इसे सिर्फ चुनाव से जोड़कर ना देखें यह देश की अस्मिता से जुड़ा सवाल है।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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