पहलगाम के पास बैसरन में 26 पर्यटकों की हत्या हाल के समय की सबसे भीषण त्रासदियों में से एक है। बैसरन एक अत्यंत रमणीक स्थान है जहां सिर्फ घोड़े पर सवार होकर या ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है।
इस हत्याकांड से सारा देश गहन शोक में डूब गया। यद्यपि आतंकवादियों ने पर्यटकों की हत्या उनके धर्म की पहचान करके की थी, लेकिन हमले का शिकार होने वालों में एक स्थानीय मुसलमान घोड़े वाला, जो पर्यटकों के साथ आया था, भी था। वह तब मारा गया जब उसने आतंकियों का विरोध किया। कश्मीरी कुलियों ने पर्यटकों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया और कश्मीरियों ने अपने घरों और मस्जिदों के दरवाजे मेहमानों के लिए खोल दिए। कश्मीर में बंद का आयोजन किया गया और ‘हिंदू मुस्लिम एकता‘ का संदेश देने वाले कई जुलूस निकाले गए। सारे देश में मुसलमानों और अन्यों ने मोमबत्ती जुलूस निकाले और शहीदों को श्रद्वांजलि अर्पित की।
लगभग इन्हीं तारीखों में मोदीजी की कश्मीर यात्रा तय की गई थी। लेकिन निर्धारित तिथि के कुछ ही दिन पहले उसे रद्द कर दिया गया। घटना के समय वे सऊदी अरब में थे। घटना के बाद वे अपनी यात्रा अधूरी छोड़कर स्वदेश रवाना हो गए। किंतु वापिस अपने के बाद कश्मीर जाने के बजाए वे एक चुनावी रैली में भाग लेने के लिए बिहार चले गए जहां उन्होंने आतंकियों को अंग्रेजी में कड़ी चेतावनी दी। आतंकी मुसलमान थे और मारे गए लोग हिंदू थे। इसे दबे-छिपे ढंग से इस घटना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू बना दिया गया।
डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम की घोषणा की। मोदीजी ने इस बारे में कुछ अलग बात कही। इस बीच गोदी मीडिया की बन आई और उसने नफरत फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे अपने शानदार आरामदायक स्टूडियो में बैठे-बैठे पाकिस्तान के विभिन्न शहरों पर भारतीय सेना का कब्जा होने की खबरें देते रहे। गोदी मीडिया अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया और उसने पत्रकारिता की आचार संहिता के उल्लंघन का नया रिकार्ड कायम किया, जिसे वह बहुत पहले ताक पर रख चुका है।
इस सबका सबसे बुरा नतीजा मुसलमानों के प्रति नफरत में बढ़ोत्तरी के रूप में सामने आया। सारा देश इस्लामोफोबिया के सैलाब में डूब गया और इसकी तीव्रता और स्तर अकल्पनीय ऊंचाई तक पहुंच गए। लातूर में एक मुसलमान पर पाकिस्तानी होने का लेबिल चस्पा कर उसकी बुरी तरह पिटाई गई। उसे इतना अपमान महसूस हुआ कि उसने आत्महत्या कर ली।
उत्तराखंड के एक हॉस्टल में कश्मीरी छात्रों को आधी रात को बाहर निकाल दिया गया और उन्हें देहरादून विमानतल के बाहर रात बितानी पड़ी। सबसे बुरी हरकत मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के मंत्री विजय शाह ने की। उन्होंने भारतीय सेना की प्रवक्ता कर्नल सोफिया कुरैशी को ‘आतंकवादियों की बहन‘ बताया। बाद में बात संभालने के लिए उन्होंने माफी मांग ली।
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेक्यूलरिज्म, मुंबई की मिथिला राऊत ने दैनिक लोकसत्ता (मराठी) में प्रकाशित अपने एक लेख में विभिन्न समाचारपत्रों में छपी खबरों के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ हुई नफरत-जनित हरकतों की जानकारी प्रस्तुत की है। उनके लेख के मुताबिक पहलगाम हमले के बाद कई मुस्लिम विरोधी घटनाएं हुईं। ऐसी शर्मनाक घटनाओं में से एक उत्तरप्रदेश के शामली के ठोडा गांव में हुई जहां गोविंद ने सरफराज पर हमला किया। गोविंद ने कहा कि तुमने हमारे 26 मारे हम भी तुम्हारे 26 मारेंगे! पंजाब के डेरा बस्सी में यूनिवर्सल समूह के छात्रावास में कश्मीरी छात्रों पर हमला किया गया।
मसूरी में रहने वाले शब्बीर धर नाम के एक कश्मीरी, जो शाल बेचते थे, और उनके सहायक पर हमला किया गया और उन्हें पहलगाम की हत्याओं का कुसूरवार बताते हुए धमकाया गया कि यदि वे दुबारा वहां नजर आए तो बहुत बुरा होगा। हरियाणा के रोहतक नाम के गांव में मुस्लिम निवासियों को धमकाया गया और उनसे 2 मई तक गांव छोड़ देने के लिए कहा गया।
ये तो केवल कुछ घटनाएं हैं जिनका विवरण समाचारपत्रों से पता लगा है। लेकिन इनसे यह साफ जाहिर है कि नफरत किस हद तक बढ़ गई है। समाज में माहौल धीरे-धीरे खराब हो रहा है। हिंदू दक्षिणपंथियों ने पहले से ही मुस्लिम विरोधी वातावरण बनाया हुआ है। शुरूआत में आरएसएस शाखाओं में मध्यकालीन इतिहास को तोड़-मरोड़ कर मुसलमानों के प्रति नफरत फैलाई गयी। हाल के कुछ सालों में गोदी मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए मुसलमानों की शत्रु की छवि बनाई गई।
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान के निर्माण से साम्प्रदायिक राजनीति करने वालों को एक नया हथियार मिल गया और उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि पाकिस्तान बनने के लिए मुसलमान जिम्मेदार हैं। यह पूरी तरह से इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने वाली बात थी क्योंकि पाकिस्तान के निर्माण की तीन वजहें थीं – अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति, मुस्लिम साम्प्रदायिकता और हिन्दू साम्प्रदायिकता। द्विराष्ट्र सिद्धांत सबसे पहले हिन्दुत्ववादी विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने पेश किया था।
पाकिस्तान बनने के बाद यह प्रोपेगेंडा कि पाकिस्तान के निर्माण के लिए मुसलमान जिम्मेदार हैं, नफरत फैलाने का एक नया औजार बन गया। हकीकत यह है कि दो देश, भारत और पाकिस्तान एक साथ बने थे। मुस्लिम बहुल इलाके पाकिस्तान का हिस्सा बने। मुस्लिम-विरोधी प्रोपेंगेंडा का एक नया मुद्दा बन गया कश्मीर का पेंचीदा मामला। 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के कश्मीर से पलायन का इस्तेमाल भी मुसलमानों खिलाफ किया गया। जब यह पलायन हुआ था तब भाजपा समर्थित वी. पी. सिंह सरकार केन्द्र में सत्ता में थी और भाजपा की विचारधारा वाले जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल थे। इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए मुसलमानों को पंडितों के पलायन की मुख्य वजह बताते हुए उनके प्रति घृणा को और बढ़ाया गया।
इस तरह एक के बाद एक कई मसलों का इस्तेमाल भारतीय मुसलमानों को सताने के लिए किया गया। इन दिनों भाईचारे की बातें बहुत कम सुनायी पढ़ती हैं और हर घटना का इस्तेमाल मुसलमानों के प्रति पहले व्याप्त नफरत को और बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस नफरत का इस्तेमाल आरएसएस-भाजपा हिंदू राष्ट्र के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करते हैं।
पहलगाम के मसले से भारतीय कूटनीति की बदलती प्रकृति भी सामने आ गई है। 1972 में इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुए शिमला समझौते के अनुसार सारे मसलों का समाधान किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के बिना द्विपक्षीय आधार पर ही किया जाना है। लेकिन अब तो पूरे मसले पर डोनाल्ड ट्रंप हावी हैं। नरेन्द्र मोदी उनका मुकाबला करने में अक्षम हैं। इससे समीकरण बदल गए हैं। वैश्विक स्तर पर ज्यादा देश भारत के पक्ष में खड़े नहीं हुए।
मुख्य मुद्दा यह है कि कश्मीर का मसला अटल बिहारी वाजपेयी के इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत के नारे के आधार पर सुलझाया जाए। हम अपने पड़ोसियों के साथ शांति से रहें, यह बहुत जरूरी है। वाजपेयी ने ही कहा था कि “हम अपने मित्र तो चुन सकते हैं लेकिन अपने पड़ोसी नहीं चुन सकते”। पाकिस्तान के प्रति दक्षिणपंथियों की नफरत और उसके साथ नफरती गोदी मीडिया की बकवास का नतीजा भारतीय मुसलमानों को भुगतना पड़ता है। इससे देश में सौहार्दपूर्ण माहौल कायम रखना मुश्किल हो जाता है।
पहलगाम के मसले के चलते और गहरी होती साम्प्रदायिकता की समस्या को समझने की जरूरत है और देश में शांति और समृद्धि के लिए नफरत और जंग की वकालत करने वालों को नकारना आवश्यक है। अब तक मुसलमानों को पाकिस्तानी कहकर गाली दी जाती थी अब उसमें कश्मीरी शब्द भी जुड़ गया है। इसका इस्तेमाल उनके प्रति नफरत बढ़ाने के लिए किया जा रहा है।
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया. लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)