सीबीआई के बाद अब आरबीआई की बारी: सेक्शन-7 के सहारे सरकार की आरबीआई पर कब्जे की तैयारी

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जनचौक ब्यूरो

नई दिल्ली। सीबीआई के बाद अब आरबीआई में तख्तापलट की कवायद शुरू हो गयी है। सरकार ने आरबीआई एक्ट की धारा-7 का हवाला देकर उसमें सीधे हस्तक्षेप का रास्ता ढूंढ लिया है। और ये सब कुछ जनता के हितों के नाम पर किया जा रहा है। उसने कहा है कि आरबीआई की स्वायत्तता बुनियादी बात है लेकिन सरकार और सेंट्रल बैंक को जनता के हितों और भारतीय अर्थव्यवस्था की जरूरतों के मुताबिक चलना होगा।

इंडियन एक्सप्रेस के सूत्रों के मुताबिक सरकार ने आरबीआई को दो विशिष्ट निर्देश दिए हैं। साथ ही उसमें आरबीआई एक्ट के सेक्शन-7 का हवाला दिया है गया। जिसके तहत सरकार सार्वजनिक हित में रिजर्व बैंक को कुछ निश्चित निर्देश दे सकती है। इसमं  पहला एनबीएफसी के लिए स्पेशल लिक्विडिटी विंडो यानी पैसे देने का रास्ता मुहैया कराना और दूसरे में 11 बैंकों में शामिल कम से कम तीन बैंकों के लिए जल्द सुधार की कार्रवाई को ढीला करने की बात शामिल है।

ऐसा कहा जा रहा है कि सरकार ने आरबीआई के साथ बातचीत में उसके रिजर्व की गणना के फार्मुले की भी जांच-पड़ताल की है। इसे सरप्लस पैसे को बाजार में आए लिक्विडिटी संकट यानी पैसे की कमी को पूरा करने के लिए उधर भेजने के उपायों के तौर पर देखा जा रहा है।

दरअसल आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने रिजर्व बैंक की स्वायत्तता के साथ छेड़छाड़ नहीं करने की चेतावनी दी थी। इसके साथ ही सरकार और रिजर्व बैंक के बीच जंग शुरू हो गयी। फिर सरकार ने निर्णायक कदम उठाते हुए उर्जित पटेल को आरबीआई के सेक्शन 7 का हवाला दिया। इस सिलसिले में उसने एक बयान भी जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि “आरबीआई एक्ट के ढांचे के भीतर सेंट्रल बैंक की स्वायत्तता सरकार की एक बुनियादी और स्वीकार्य जरूरत है। भारत सरकार ने उसे पाला-पोषा और उसका सम्मान किया। सरकार और सेंट्रल बैंक को जनता के हितों और भारतीय अर्थव्यवस्था की जरूरतों के मुताबिक चलना होगा।”

हालांकि वित्तमंत्रालय के बयान में सेक्शन-7 का जिक्र नहीं है। और इसे पहले कभी इस्तेमाल भी नहीं किया गया। आरबीआई एक्ट का सेक्शन-7 कहता है कि “समय-समय पर केंद्र सरकार सार्वजनिक हितों को ध्यान में रखते हुए बैंक को इस तरह का निर्देश दे सकती है।” इसे आरबीआई की स्वायत्तता को कम करने और गवर्नर के अधिकारों को नजरंदाज करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

इसके साथ ही वित्त मंत्रालय ने कहा कि “उद्देश्य के लिए समय-समय पर सरकार और आरबीआई के बीच विभिन्न मुद्दों पर विस्तारित बातचीत होती रहती है। दूसरे रेगुलेटरों के लिए भी यही बात सत्य है। भारत सरकार उन संपर्कों से जुड़े विषयों को कभी भी सार्वजनिक नहीं करती है।” बयान में कहा गया है कि “केवल लिया गया आखिरी निर्णय बता दिया जाता है। सरकार इन संपर्कों के जरिये मुद्दों पर अपने मूल्यांकन पेश करती है और उसके संभावित निदानों का सुझाव देती है। सरकार ऐसा करना जारी रखेगी।”

गौरतलब है कि वित्त मंत्रालय और आरबीआई के बीच तनाव आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के शुक्रवार को एक लेक्चर में दिए गए बयान के साथ ही शुरू हो गया था। जिसमें उन्होंने बैंक की स्वायत्तता को नजरंदाज करने का सरकार पर आरोप लगाया था। और उसके बेहद घातक परिणाम की आशंका जतायी थी।

आचार्य ने चेतावनी दी थी कि “सरकारें जो सेंट्रल बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं वो तुरंत या फिर बाद में वित्तीय बाजारों में झटके लगने और आर्थिक आग का सामना करेंगी और एक दिन उन्हें पता चलेगा कि उन्होंने एक महत्वपूर्ण रेगुलेटरी संस्था को नजरंदाज किया था।”

जेटली ने मंगलवार को आरबीआई पर आरोप लगाया था कि जब बैंक 2008-14 के बीच अंधाधुंध कर्जे दे रहे थे तब वो दूसरी तरफ देख रहा था। जिसके नतीजे के तौर पर खराब लोन का भीषण भार बैंकों के कंधों पर आ गया। और उनकी वित्तीय स्थिति बहुत खराब हो गयी। 

इसके साथ ही आरबीआई ने नॉन बैंकिंग फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशन (एनबीएफसी) और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के लिए विशिष्ट लिक्विडिटी विंडो खोलने के सरकार के प्रस्ताव को बेहद घातक बताया है। उसने कहा है कि इस सुविधा का बेजा इस्तेमाल होने की आशंका है।

कहा जा रहा है कि एक बार स्पेशल विंडो खोला गया तो आरबीआई को मांगने वाली सभी कंपनियों को पैसा देना पड़ जाएगा। आरबीआई के बयान में कहा गया है कि “सामान्य चैनल से इस सेक्टर के लिए पर्याप्त रकम उपलब्ध है। लेकिन हम कंपनियों को रोकने में सक्षम नहीं होंगे क्योंकि एनएफबीसी की संपत्तियों के बीच गुणवत्ता में भेद कर पाना मुश्किल है सरकार ने अपने रिजर्व की गणना के फार्मुले के बारे में बैंक की राय जाननी चाही है और उसके नतीजे के तौर पर सरप्लस रकम को केंद्र को ट्रांसफर करना था। जो उसके जरिए वित्तीय मार्केट में पैसे की कमी की समस्या को हल करेगा।” 

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