उत्तराखंड के 25 हजार उपनल कर्मचारी हड़ताल पर, मानदेय में बढ़ोतरी की मांग

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देहरादून। देश की आजादी के पूर्व से ही उत्तराखण्ड एक सैन्य बाहुल्य राज्य रहा है, जहां बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष हजारों सैनिक सेवानिवृत होते हैं। इनके पुनर्वास एवं कल्याण को ध्यान में रखते हुए राज्य गठन के कुछ वर्ष बाद ही 2004 में उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लि. (उपनल) का गठन किया गया था, जिसके तहत पूर्व सैनिकों/अर्द्ध सैनिकों एवं उनके आश्रितों को आउटसोर्सिंग के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराकर पुनर्वास के काम को अंजाम दिया जा रहा था।

सरकार का यह फैसला देखने में भले ही पूर्व सैनिकों एवं उनके आश्रित परिवारों की भलाई के लिहाज से उचित कदम लग सकता है, लेकिन हकीकत यह है कि पिछले कई वर्षों से इसके तहत कार्यरत कर्मचारी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। उत्तरखंड उपनल संविदा कर्मचारी संघ के 25,000 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ एकता विहार, देहरादून में 12 फरवरी से धरने पर बैठे हैं। यह आंदोलन सिर्फ प्रदेश की राजधानी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी चपेट में चंपावत, पिथौरागढ़, बागेश्वर सहित गढ़वाल मंडल के सभी जिलों के सरकारी कार्यालय और विश्वविद्यालय एवं कालेज इसकी चपेट में आ गये हैं। 

सोमवार से प्रदेश के सभी उपनल कर्मचारी हड़ताल पर चल रहे हैं। सरकारी कामकाज पर इस हड़ताल का भारी प्रभाव देखने को मिल रहा है। इन कर्मचारियों की मांग है कि इनके मानदेय में 40% का इजाफा किया जाये, जबकि धामी सरकार दस फीसदी बढ़ोत्तरी की योजना बना रही है, जिसे कर्मचारी किसी भी सूरत में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। इसके साथ ही कर्मचारी स्थायी किये जाने, मनमानेपूर्ण तरीके से नौकरी से निकाले जाने को लेकर विशेषरूप से आक्रोशित हैं।

देश में आम चुनावों को देखते हुए 2024 वर्ष खासा महत्व रखता है, और संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों को अच्छी तरह से मालूम है कि अगर उनकी वाजिब मांगों पर इस समय सरकार की ओर से सकारात्मक कार्रवाई नहीं की गई तो भविष्य में उनके लिए उम्मीद की कोई किरण नहीं है। यही वजह है कि राज्य सरकार की हीलाहवाली को देखते हुए कल कर्मचारी संघ के नेताओं की ओर पत्रकारों के साथ मंच से ऐलान किया गया है कि, “सभी 25,000 संविदा कर्मचारी समूचे परिवार के साथ धर्म परिवर्तन करने जा रहे हैं। यह राम राज्य नहीं है, हम इस राम राज्य में नहीं रहना चाह रहे हैं।”

उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड (उपनल) की वेबसाइट पर जाने पर पता लगता है कि असल में इसकी स्थापना के पीछे पूर्व सैनिकों एवं उनके आश्रितों की सहायता से कहीं अधिक एक ऐसे बिचौलिए के रूप में व्यवस्था का निर्माण करना था, जिससे कि सरकार को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करने के झंझट से बचाया जा सके। इसके तहत उत्तराखंड सरकार के लगभग सभी महत्वपूर्ण सरकारी विभागों की जरूरत के अनुरूप संविदा पर हजारों कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है।

  1. उत्तराखण्ड पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड,
  2. सतलज जल विद्युत निगम लि. (SJVN Ltd)
  3. उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लि. (UJVNL)
  4. Power Transmission Corporation of Uttaranchal Ltd (PTCUL)
  5. राज्य इन्फ्रॅस्ट्रक्चर डेवलपमेन्ट कॉर्पोरेशन
  6. भारत हेवी इलेक्ट्रीकल लि. (BHEL)।
  7. टिहरी हाइड्रो इलेक्ट्रिक डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (THDC)
  8. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO)
  9. कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC)
  10. नेशनल थर्मल पॉवर कॉर्पोरेशन। (NTPC Ltd।)
  11. इन्स्ट्रूमेन्ट रिसर्च और डेवलपमेन्ट एस्टैब्लिसमेंट (IRDE)
  12. इंद्रप्रस्थ गैस लि. (IGL)
  13. गैस अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लि. (GAIL INDIA)
  14. मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी उत्तराखण्ड
  15. मेडिकल कॉलेज देहरादून उत्तराखण्ड
  16. India Tourism Development Corporation Ltd।
  17. Delhi Technological University

नई सेवा शर्तों में वेतन में देरी पर शिकायत या आंदोलन न करने तक पर हस्ताक्षर कराया जा रहा है। नियुक्ति को अस्थाई मानकर चलना होगा और मुख्य नियोक्ता के मुताबिक कार्य-अवधि को घटाने और बढ़ाने का अधिकार प्रदान किया गया है। एक प्रकार से बंधुआ मजदूर के बतौर काम करने को मजबूर किया जा रहा है। 

संविदा पर कार्यरत इन हजारों कर्मचारियों में कई ऐसे हैं जिन्हें काम करते हुए 15-20 वर्ष बीत चुके हैं, और अब उम्र के उस पडाव पर आ चुके हैं, जहां से वे किसी अन्य काम की सोच भी नहीं सकते। उनके उपर परिवार एवं बच्चों की शिक्षा का बोझ तो है ही, राज्य सरकार की ओर से कभी भी सेवा-मुक्त किये जाने का भय रह-रहकर सता रहा है। 

इसकी एक बानगी कृषि निदेशालय के 25 जनवरी 2024 को जारी आदेश में देखी जा सकती है, जिसमें साफ़ लिखा गया है कि राज्य के विभिन्न कार्यालयों में 68 उपनल कर्मियों के स्थान पर स्थायी नियुक्तियां की जा रही हैं। इस नियुक्ति के साथ ही उपनल कर्मियों की सेवाओं की आवश्यकता नहीं रही। अब चूंकि ये संविदा कर्मचारी सीधे राज्य सरकार के पे-रोल पर नहीं थे, इसलिए वे किसी प्रकार से उन्हें जवाबदेह भी नहीं ठहरा सकते। 

इस बारे में संगठन की ओर से एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा गया है, “देश की अंतिम अपीलीय अदालत में उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण का मामला चल रहा है। लेकिन विभागीय अधिकारी अपनी मनमानी में उतर आये हैं। एक तरफ सरकार के अधिवक्ता कोर्ट में मौखिक अंडरटेकिंग देते हैं कि किसी को अंतिम फैसले तक नौकरी से हटाया नहीं जा रहा है, जबकि दूसरी तरफ छल-कपट कर बिना किसी नाम का नोटिस जारी किए ही उपनल कर्मचारियों को बाहर किया जा रहा है।।

10-15 साल से अल्प मानदेय में कार्यरत ये कर्मचारी खुद के नियमितीकरण की उम्मीद लगाए हुए थे, ऐसे में इन्हें नौकरी से बर्खास्त कर सैनिक आश्रितों के साथ यह कैसा न्याय किया जा रहा है? अब इस उम्र में वे कहां जाएंगे? अपर कृषि निदेशक इसका जवाब कौन देगा? जबकि सैनिक कल्याण मंत्री ही कृषि मंत्री के पद पर आसीन हैं। 

बता दें कि उपनल कर्मचारियों बनाम राज्य सरकार का मामला उच्च न्यायालय में भी कर्मचारियों के पक्ष में आया था, जिसे राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी हुई है। सोमवार से पूरे प्रदेश में धरने पर बैठे इन हजारों कर्मचारियों से राज्य के मंत्री भी मिलने नहीं आये हैं। आज देहरादून में भारी तादाद में उपनल कर्मचारी सैनिक कल्याण मंत्री पर पूरे मामले की अनदेखी का आरोप लगाते हुए उनके आवास का घेराव करने निकल पड़े। राजपुर रोड पर प्रदर्शनकारियों को पुलिस प्रशासन के साथ मुठभेड़ का सामना करना पड़ा। इसके बाद प्रदर्शनकारी सड़क पर ही धरने पर बैठ गये थे, और वहीं से उन्होंने अपना विरोध जारी रखा हुआ है। 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य भाजपा सरकार हाल ही में समान नागरिकता कानून पारित कराने वाला पहला राज्य बन गया है। 8 फरवरी के दिन हल्द्वानी के वनभूलपूरा में कथित अवैध धार्मिक ढांचे को ध्वस्त करने पर विरोध में उतरे अल्पसंख्यक समुदाय के साथ झड़प, आगजनी और हिंसा की घटना के बाद से कहीं न कहीं भाजपा आश्वस्त थी कि लोकसभा में एक बार फिर सभी पांचों सीटों पर निष्कंटक जीत सुनिश्चित हो चुकी है। लेकिन 25 हजार संविदा कर्मियों और उनके परिवारों के सामने फिलहाल धर्म से बड़ा आजीविका का संकट है, जिसे वे निरंतर फिसलते देख आक्रोशित हैं। 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी। फिलहाल 3 दिनों के लिए भाजपा की दिल्ली में आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारियों के सिलसिले में राज्य से दूर रहने वाले हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इन 25 हजार संविदा कर्मचारियों को स्थायीकरण की सौगात की कोई संभावना अभी भी बाकी है, या आने वाला भविष्य आज से और ज्यादा अंधकारमय होने जा रहा है? 

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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