Sunday, April 28, 2024

मनोज मंजिल सहित 23 लोगों का हुआ न्यायिक जनसंहार, भाकपा-माले जाएगी उच्च न्यायालय

पटना। भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि हत्या के एक कथित मामले में हमारी पार्टी के युवा विधायक मनोज मंजिल सहित 23 लोगों को आरा व्यवहार न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ हमारी पार्टी उच्च न्यायालय जा रही है। यह बिहार के दलित-गरीबों और छात्र-नौजवानों का न्यायिक जनसंहार है।

उन्होंने कहा कि उसी भोजपुर में दलितों-गरीबों के एक से बढ़कर एक जनसंहार हुए, लेकिन एक मामले में भी अपराधियों को आज तक सजा नहीं हुई। लेकिन दलित-गरीबों की आवाज बनने वाले हमारे नेताओं के साथ घोर अन्याय हुआ है। सभी 23 अभियुक्तों को एक प्रकार की ही – आजीवन कारावास की सजा दी गई। न्यायालय द्वारा दोषी पाए गए लोगों में 90 साल के बुजुर्ग रामानंद प्रसाद भी शामिल हैं।

अन्य लोगों के नाम इस प्रकार हैं – गुड्डु चौधरी, चिन्ना राम, भरत राम, प्रभु चौधरी, रामाधार चौधरी, गब्बर चौधरी, जयकुमार यादव, नंदू यादव, चनरधन राय, नंद कुमार चौधरी, मनोज चौधरी, टनमन चौधरी, सर्वेश चौधरी, रोहित चौधरी, रविन्द्र चौधरी, शिवबाली चौधरी, रामबाली चौधरी, पवन चौधरी, प्रेम राम, त्रिलोकी राम और बबन चौधरी। इससे बड़ा न्यायिक जनसंहार और क्या हो सकता है?

मनोज मंजिल और अन्य 22 पार्टी कार्यकर्ता भाजपा व वहां की सामंती ताकतों की राजनीतिक साजिश के शिकार हुए हैं। भोजपुर में ये ताकतें हमारे नेताओं को जेल भेजकर या जनसंहार रचाकर दलित-गरीबों के आंदोलन को रोक देने की लगातार कोशिशें करती रही हैं। इसी कोशिश में यह अन्याय हुआ है। बिहार और भोजपुर इसका मुकम्मल जवाब देगा।

मोदी शासन में विपक्ष की हर पार्टी व हर धारा पर जिस प्रकार के हमले हो रहे हैं, उसी कड़ी में मनोज मंजिल और हमारे अन्य साथियों पर हमला हुआ है। यह किसी एक पार्टी पर नहीं बल्कि लोकतंत्र की आवाज को खामोश कर देने की भाजपा की साजिशों का चरम उदाहरण है।  

देश को मनोज मंजिल जैसे नेताओं की जरूरत है। एक दलित-मजदूर परिवार से आने वाले मनोज मंजिल ने छात्र जीवन में ही दलित-गरीबों के संघर्ष को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। छात्र जीवन में उन्होंने कैंपस के भीतर एक प्रखर छात्र नेता की पहचान बनाई। उसके बाद उन्होंने भोजपुर के ग्रामांचलों में काम करना शुरू किया। उनके नेतृत्व में चलाए गए सड़क पर स्कूल आंदोलन ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की। सीएए कानून में संशोधन के खिलाफ भी उन्होंने इलाके में कई आंदोलन किए। कोविड काल में भी उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही। वे अपनी टीम के साथ लगातार अस्पतालों में कैंप करते रहे और अपनी जान की बिना परवाह किए लोगों के इलाज की व्यवस्था करवाते रहे। सड़क दुर्घटना हो या फिर जनता की कोई अन्य समस्या, मनोज मंजिल जनता तक पहुंचने वाले सबसे पहले नेता हुआ करते थे। अभी वे खेत मजदूर मोर्चे पर काम कर रहे थे और खेग्रामस के राज्य अध्यक्ष थे।

अपनी पहलकदमियों और दलित-गरीबों के प्रति अटूट समर्पण की वजह से मनोज मंजिल अपने इलाके में काफी लोकप्रिय थे। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें अगिआंव विधानसभा सीट पर 62 प्रतिशत से अधिक मत मिले। उनके निकटतम प्रतिद्वन्दी भाजपा-जदयू गठबंधन के उम्मीदवार 50 हजार से अधिक वोटों से पीछे रहे गए थे। इसी लोकप्रियता के कारण भाजपा व सामंती ताकतों को इस उभरते नौजवान दलित विधायक से डर समाया हुआ था और वे लगातार उनके खिलाफ साजिशें करती रहती थीं। संसद या विधानसभा में इन ताकतों को जनता के पक्ष में बोलने वाली आवाजें नहीं चाहिए। लेकिन उनकी इन साजिशों से दलित-गरीबों की दावेदारी नहीं रूकने वाली है। विदित हो कि 2015 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मनोज मंजिल व उनके साथियों को हत्या के उपर्युक्त मुकदमे में साजिश करके फंसाया गया था।

उच्च न्यायालय के साथ-साथ इस न्यायिक जनसंहार के खिलाफ जनता के व्यापक हिस्से में भी जाने का पार्टी ने अभियान लिया है। पूरे बिहार में इसके खिलाफ आंदोलन चल रहा है। भोजपुर में 19 से 25 फरवरी तक विशेष अभियान लिया गया है। इस अन्याय के खिलाफ हमारे कार्यकर्ता एक-एक गांव में जायेंगे।

(भाकपा-माले की प्रेस विज्ञप्ति)

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