‘जल जीवन मिशन योजना’ झारखंड में साबित हो रहा है चूंचूं का मुरब्बा

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केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में ‘जल जीवन मिशन योजना’ के तहत ‘हर घर नल-जल योजना’ शुरू की थी। जल जीवन मिशन योजना का लक्ष्य 2024 तक घरेलू नल कनेक्शन (एफएचटीसी) के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण परिवार के लिए पीने के पानी की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना है। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता व भ्रष्टाचार ने जल जीवन मिशन योजना के लक्ष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है।

जल जीवन मिशन में 2009 में शुरू किए गए राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम को भी शामिल कर लिया गया। इसकी कुल अनुमानित लागत पांच वर्षों (2019-24) में 3.6 लाख करोड़ रुपये थी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए मिशन को 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में व्यय की तुलना में 33% की वृद्धि है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में मिशन के लिए भारत सरकार का संशोधित आवंटन 45,011 करोड़ रुपये था।

सरकारी दावों पर भरोसा करें तो अभी तक पूरे देश में 73.76% घरों तक ‘हर घर नल जल योजना’ के तहत पानी पहुंचाया जा सका है। वहीं राष्ट्रीय औसत के मुकाबले झारखंड 25% पीछे है। आंकड़ों पर भरोसा करें तो राज्य के 61.76 लाख घरों में से 28.33 लाख घरों तक ही पाइपलाइन से झारखंड सरकार पानी पहुंचा पायी है। बाकी के 33.43 लाख घरों तक 2024 साल के अंत तक निर्धारित लक्ष्य को पूरा करना असंभव ही नहीं मुश्किल भी है। यह दूसरी बात है कि फ़र्जी आंकड़ों से उक्त लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है।

पूरे देश में झारखंड का स्थान सिर्फ पश्चिम बंगाल से ऊपर है। वहीं पड़ोसी राज्य बिहार में 95.21 प्रतिशत घरों तक नल से जल पहुंचाया जा चुका है। जिलावार आंकड़ों की बात करें तो झारखंड में पाकुड़ जिले की स्थिति सबसे खराब है। यहां 8.63 प्रतिशत घरों तक ही पानी पहुंच पाया है। वहीं राज्य में रामगढ़ जिले की प्रगति सबसे बेहतर है। यहां 60.86 प्रतिशत घरों तक नल से जल पहुंच गया है।

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के अधिकारियों का कहना है कि झारखंड की भौगोलिक संरचना पथरीली होने के कारण पानी की उपलब्धता मैदानी क्षेत्रों की तुलना में कम है। झारखंड की सिर्फ छह से सात नदियों में ही अधिकांश माह पानी उपलब्ध रहता है। ऐसे में भूगर्भ जल के माध्यम से योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। विभाग की ओर से 33,354 नयी योजना स्वीकृत की गयी है। इसमें 64 बहु ग्रामीण जलापूर्ति योजना व 33,290 लघु ग्रामीण योजना शामिल है।

राज्य में पानी की स्थिति और नदियों की दशा

गर्मी के बढ़ते ही इसका असर गुमला जिला में दिखने लगा है। नदी, नाला सहित कुएं का जलस्तर में गिरावट आती जा रही है। जिले की लाइफ लाइन समझी जाने वाली नदियां सूख गयी हैं। एकाध नदियों में थोड़ा सा पानी है। वहीं कुछ नदियों में कामचलाऊ बांध बनाया गया है। क्षेत्र के लोग बताते हैं कि गर्मी का यही हाल रहा तो कुछ ही दिनों में ये नदियां भी सूख जायेंगी।

बता दें कि इन नदियों से शहर से लेकर गांव तक पानी की सप्लाई होती है। दूसरी तरफ नदियां सूखने से सबसे ज्यादा परेशानी पशु-पक्षियों को है। क्योंकि नदी-नालों के सहारे ही पशु-पक्षी अपनी प्यास बुझाते हैं। हालांकि कुछ लोग नदियों में बोरे में बालू भरकर बांध बनाकर पानी रोकने की कवायद में लगे हैं, जिससे पानी जमा कर कुछ दिनों तक उसका उपयोग कर सकें।

जिले के नागफेनी गांव से दक्षिणी कोयल नदी बहती है। वह भी सूखने लगी है। इसी नदी से गुमला शहर के करीब 52 हजार आबादी की प्यास बुझती है। नदी के सूखने से शहर में जलसंकट गहराने की लगा है। वहीं नदी किनारे बसे गांव के लोगों सहित पशुओं की परेशानी बढ़ गयी है।

सिसई प्रखंड मुख्यालय के दक्षिणी दिशा से बहने वाली पारस नदी का अस्तित्व बालू के अवैध उठाव से समाप्त हो चुका है। अभी नदी का पानी सूख गया है और उसपर घास उग आयी है। अगर इसे बचाया नहीं गया, तो यह नदी खत्म हो जायेगी।

शहर से तीन किमी दूर गुमला व लोहरदगा मार्ग पर खटवा नदी है जो अब सूख चुकी है। कहीं-कहीं थोड़ा बहुत पानी जमा है, जिसका उपयोग ग्रामीण पशुओं को पानी पिलाने व कपड़ा धोने में कर रहे हैं। कुछ साल पहले तक खटवा नदी से शहर में जलापूर्ति होती थी। अब नदी का अस्तित्व समाप्त हो चुका है।

झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्य के सीमा पर स्थित रायडीह प्रखंड के मांझाटोली गांव से होकर बहती है शंख नदी। वह भी अब सूखने लगी है। कहीं-कहीं थोड़ा-बहुत पानी जमा है, जिसका उपयोग फिलहाल लोग कर रहे हैं। लेकिन यह जल्द ही सूख जाएगी और लोग पानी के लिए तरसने लग जाएंगे।

बसिया प्रखंड मुख्यालय से होकर गुजरती है दक्षिण कोयल नदी जिससे बसिया, कोनबीर सहित आसपास के क्षेत्रों में लाखों की आबादी को जलापूर्ति होती है। इस नदी में जलापूर्ति के लिए दो बड़े सप्लाई कूप का निर्माण हुआ है। लेकिन अब यह नदी भी सूखने लगी है।

पालकोट प्रखंड के बंगरू पंचायत से होकर बहने वाली छोटी नदी है तोरपा जिसका उद्गम स्थल है कटरडांड़ छपला। तोरपा नदी कुरा, बंगरु होते हुए कोयल नदी में मिलती है। नदी के किनारे गांव के लोग सब्जी की खेती करते हैं। चोरडांड़ के ग्रामीण बताते हैं कि नदी अब सूखने लगी है। हमलोग श्रमदान से बोरा बांध बनाकर पानी रोकने की कोशिश में लगे है।

बिशुनपुर प्रखंड का लोंगा, तुमसे गांव होते हुए बनारी से गुजरती है बड़ी कोयल नदी जो प्रखंड मुख्यालय से एक किमी दूर है। पीएचइडी विभाग द्वारा इस नदी से क्षेत्र के एक हजार परिवारों को पानी आपूर्ति की जाती है। जलापूर्ति की जाती है। परंतु यह नदी भी धीरे-धीरे सूखने लगी है। स्थिति यह है कि अप्रैल खत्म होते ही यहां पानी का गंभीर संकट हो सकता है।

जारी प्रखंड की लावा नदी बड़काडीह, रूद्रपुर, बितरी, जारी, भिखमपुर, पतराटोली, करमटोली, रेंगारी, श्रीनगर, जामटोली, बरवाडीह, जरडा व गोविंदपुर गांव से होकर गुजरती है, जो अब नदी सूखने लगी है। इससे नदी के किनारे खेतों में पटवन के साथ साथ गांव के लोगों और पशुओं के लिए पानी की किल्लत हो गयी है। डुमरी प्रखंड की बासा नदी जो छत्तीसगढ़ व झारखंड की सीमा के पकरीगछार गांव के समीप से निकल कर डुमरी होते हुए बहती है। यह नदी गर्मी में सूख जाती है। लेकिन सरकारी व प्रशासनिक स्तर से इसके जलस्तर को बनाए रखने को लेकर आजतक कोई कदम नहीं उठाया गया।

घाघरा प्रखंड अंतर्गत देवाकी गांव से होकर गुजरने वाली अड़िया नदी पूरी तरह सूख गयी है। जिसके कारण नदी के किनारे बसे गांव व पशु-पक्षियों को परेशानी होने लगी है। प्रखंड की अन्य नदियों की स्थिति भी खराब है।

सिंगरी नदी जो भरनो प्रखंड के मारासिल्ली पंचायत से होकर बहती है, वह भी अब सूखने लगी है। ग्रामीण बताते हैं कि नदी से बालू के उठाव के कारण नदी का अस्तित्व भी खत्म होने के कगार पर है। वे कहते हैं नदी को बचाने के लिए बालू के उठाव पर रोक लगाने की जरूरत है। लेकिन इस दिशा में क्षेत्र के किसी भी जनप्रतिनिधि ने कोई पहल नहीं की और न ही प्रशासनिक स्तर पर इसे लेकर कोई गंभीरता दिखाई गई। प्रखंड की अन्य नदियों की भी स्थिति खराब है।

हर घर नल से जल योजना में शिथिलता और भ्रष्टाचार

ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति जितनी खराब है उससे कम खराब स्थिति राज्य की राजधानी रांची की नहीं है। जहां राजधानी रांची में इस योजना की गति काफी धीमी है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रष्टाचार काफी हावी है।

रांची के लोगों का कहना है कि एक तरफ जहां राजधानी के कई इलाकों में घरों तक पाइप जल योजना नहीं पहुंची है, वहीं दूसरी तरफ राजधानी की बढ़ती आबादी के अनुरूप पर्याप्त संख्या में जलमीनार भी नहीं बनाये गये हैं। जबकि राज्य के शहरी क्षेत्रों की आबादी के लिए कम से कम 45 जल मीनार की आवश्यकता है, वहां लगभग 25 जल मीनार ही बनाये गये हैं।

एक सर्वे से पता चला कि राजधानी में ‘हर घर नल जल योजना’ की स्थिति का हाल यह है कि योजना के तहत पाइप और नल एक साल पहले लगाए गए थे। लेकिन आज तक इसमें पानी ही नहीं आया है। वहां रहने वाली महिलाओं ने पेयजल की समस्या का जिक्र करते हुए कहा कि पास के बोरिंग से पानी लाना पड़ता है। अधिकांश हैंडपंप खराब हैं, लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता।

वहीं राज्य के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने राज्य में हर घर तक पेयजल पहुंचाने की योजना की गति धीमी होने की बात को स्वीकारते हुए कहते हैं कि वर्ष 2024 के अंत तक राज्य के सभी घरों में पाइप के जरिये पीने का पानी पहुंचा दिया जायेगा।

‘हर घर नल से जल योजना’ जहां राज्य में चूंचू का मुरब्बा साबित हो रहा है वहीं यह योजना अन्य योजनाओं की तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। इसको लेकर आए दिन खबरों की सुर्खियां देखने सुनने को मिलती रही हैं। इन्हीं सुर्खियों में राज्य के गुमला जिले का भरनो प्रखंड के कनीय अभियंता, सहायक अभियंता व संवेदकों की मिलीभगत से ‘हर घर नल जल योजना’ में भ्रष्टाचार का आरोप लगा है।

बताते हैं कि नल जल योजना के तहत प्रखंड में 30 करोड़ रुपये से अधिक का काम हो रहा है। परंतु कहीं भी काम ठीक से नहीं हो रहा है। इंजीनियर से मिल कर संवेदक जैसे-तैसे काम करा कर निकलने में लगे हैं। हालांकि, इसकी शिकायत पेयजल विभाग के कार्यपालक अभियंता मंतोष मनी से की गयी है। उन्होंने जांच कर काम में सुधार करने का आश्वासन दिया है।

मामले पर भरनो प्रखंड के पूर्व सांसद प्रतिनिधि रामनंदन शाही ने पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के कार्यपालक अभियंता को एक ज्ञापन सौंप कर नल-जल योजना में हो रही अनियमितता की शिकायत की है। ज्ञापन में कहा गया है कि पेयजल विभाग से प्राक्कलन के आधार पर निविदा निकाल कर संवेदकों द्वारा इकरारनामा कर कार्य कराया जा रहा है। परंतु भरनो प्रखंड में संवेदक अपने से कार्य कर रहे हैं। एक संवेदक द्वारा नींव खुदाई कर पिलर निकाल कर ऊपर का कार्य किया जा रहा है, जबकि दूसरे संवेदक द्वारा ट्रैक्टर से ड्रील कर कार्य किया जा रहा है।

शाही द्वारा इसकी जानकारी व प्राक्कलन की मांग कनीय अभियंता से की गयी है। उन्होंने प्राक्कलन उपलब्ध करा दिया, परंतु कार्य की जानकारी मांगने पर बार-बार टाल रहे हैं। जबकि जूनियर इंजीनियर द्वारा कभी बैठक का बहाना बनाया जा रहा है, तो कभी दूसरे काम में फंसने का बहाना किया जा रहा। इससे प्रतीत होता है कि विभाग के अभियंता व संवेदकों की मिलीभगत से कार्य में गड़बड़ी की जा रही है।

राज्य के गिरिडीह जिला अंतर्गत बगोदर प्रखंड के मुंडरो पंचायत अंतर्गत पीरटांड़ में नल-जल योजना में अनियमितता का मामला सामने आया है। ड्राई बोरिंग में स्ट्रक्चर लगा दिया गया है और घर-घर पाइप पहुंचाकर नल लगा दिया गया है, लेकिन ग्रामीणों को नल से एक बूंद भी पानी नहीं मिल सका है। इतना ही नहीं, स्ट्रक्चर में हर घर नल-जल योजना का बोर्ड भी लगाया गया है। इससे न सिर्फ यह योजना बेकार साबित हो रही है, बल्कि ग्रामीणों में संवेदक के प्रति आक्रोश है।

लाभुक बुंदिया देवी का कहती है कि अगर बोरिंग अधिक गहरी होती तो पानी निकल आता, लेकिन बोरिंग गहरी नहीं होने से न तो टंकी में पानी चढ़ रहा है और न ही घरों तक पानी पहुंच रहा है मिनवा देवी कहती हैं कि नल-जल योजना का लाभ तो हर जगह मिल रहा है लेकिन हमारे घरों में लगे नल शोभा की वस्तु बनकर रह गये हैं। उन्होंने नल-जल योजना का लाभ दिये जाने की मांग की है।

वहीं जूनियर इंजीनियर लालू प्रसाद ने कहा है कि मामला जांच का विषय है। जांच के बाद ही पता चलेगा कि यह ड्राई बोरिंग है या फिर बोरिंग धंस गयी है। इसके बाद समस्या के समाधान की दिशा में काम किया जाएगा।

ऐसा ही मामला पंचायत के बिहारो गांव में देखने को मिला है। जलापूर्ति शुरू होने के साथ ही पानी टंकी से पानी का रिसाव होने लगा है। बता दें कि भुइयांटोला में पानी टंकी से जलापूर्ति शुरू हुई, यहां 8 हजार लीटर क्षमता की पानी टंकी का निर्माण कराया गया, जलापूर्ति शुरू होने के साथ ही टंकी से पानी का रिसाव शुरू हो गया है।
ऐसे में पानी की टंकी शोभा की वस्तु बनी हुई है।

ग्रामीण झरी मुसहर ने बताया कि तीन दिन पहले पानी टंकी से जलापूर्ति शुरू हुई और टंकी से पानी भी लीक हो रहा है। वहीं सलैयाटांड़ के अंतिम छोर पर स्थित पानी टंकी का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि सूखी बोरिंग के बावजूद ढांचा खड़ा कर घरों में नल तो चला दिया गया है, लेकिन नलों से पानी नहीं आता है। बड़ी मुश्किल से टंकी से दो-चार बाल्टी पानी निकलता है। उसी मोहल्ले में एक बंद चहारदीवारी के अंदर एक ढांचा खड़ा कर दिया गया। इस पर मुखिया ने नाराजगी भी जतायी है। पंचायत समिति सदस्य गुड़िया देवी के घर के सामने स्थित पानी टंकी से भी पानी का रिसाव हो रहा है।

प्रखंड प्रमुख आशा राज बिहारो पहुंचकर भुइयांटोला और सलैयाटांड़ में नल जल योजना के निर्माण में अनियमितता पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि नल-जल योजना के निर्माण में ठेकेदार द्वारा घोर अनियमितता बरती गयी है। संबंधित अधिकारी भी इस अनियमितता को नजरअंदाज कर रहे हैं। उन्होंने पूरे मामले की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई और संवेदक के भुगतान पर रोक लगाने की मांग की है।

बताते चलें कि बगोदर प्रखंड के खेतको गांव में भी नल-जल योजना का बुरा हाल है। नल-जल योजना में काफी अनियमितता बरती जा रही है। कहीं ड्राई बोरिंग में स्ट्रक्चर खड़ा कर, पाइप बिछाकर घरों तक नल लगा दिया गया है, तो कहीं नल-जल योजना से जलापूर्ति शुरु होने के कुछ दिनों बाद ही जलापूर्ति ठप पड़ गयी है। कुछ ऐसे भी बोरिंग जहां पर नल से दो-चार बाल्टी ही पानी निकलता है। जिसके कारण कुछ लोग नदी का पानी पीने को विवश हैं।

सरकारी व प्रशासनिक उदासीनता का शिकार सिसई का पानी टंकी

सरकारी व प्रशासनिक उदासीनता का शिकार गुमला जिला अंतर्गत सिसई प्रखंड का सिसई का पानी टंकी जो कभी भी बंद हो सकता है। सिसई का यह पानी टंकी कुदरा, लकैया व भदौली पंचायत सहित मुख्यालय के पांच हजार से अधिक घरों को पानी मुहैया कराता है और इसके फिल्टर प्लांट को पानी देने के लिए इंटेक वेल कंस नदी पर आश्रित है, जो नदी अब सूख चुकी है। गर्मी के बढ़ने के साथ ही नदी का आंतरिक जलस्तर भी सूखने लगा है। वहीं पेयजल कर्मी कभी कच्चा बांध बनाकर, तो कभी जेसीबी से खुदाई कराकर इंटेक वेल के पास पानी जमा करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं, ताकि गर्मी में लोगों को पानी मिल सके।

इंटेक वेल के मोटर और फिल्टर प्लांट को चलाने वाले मकिर अंसारी बताते हैं कि “सभी क्षेत्रों में पर्याप्त पानी सप्लाई के लिए प्रतिदिन ढाई लाख लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है। जिस कंस नदी में इंटेक वेल है, वह मार्च अप्रैल महीना में ही पूरी तरह से सूख जाती है। जनवरी-फरवरी से ही कच्चा बांध बनाकर पानी रोकने की हमलोग कवायद शुरू कर देते हैं। फिल्टर प्लांट को पानी देने के लिए संप मोटर को कम से कम 7 से 8 घंटा चलाना जरूरी है। जबकि संप मोटर अभी 24 घंटे में रुक-रुक कर केवल दो से तीन घंटा ही चला पाता है। वहीं दूसरी तरफ संप मोटर के आधा घंटा चलते ही इंटेक वेल में पानी सूख जाता है। पानी खींचने के लिए लगाया गया जानसन पाइप पानी की सतह से बाहर आ जाता है और पानी देना बंद कर देता है। नदी में बालू नहीं होने के कारण गर्मी बढ़ते ही नदी की आंतरिक जलधारा भी सूखने लगती है। इंटेक वेल में दो संप मोटर और फिल्टर प्लांट में मोटर लगा हुआ है, जिसमें दोनों का एक एक मोटर महीनों से खराब पड़ा हुआ है। एक-एक मोटर को किसी तरह से मरम्मत कराकर काम चला रहे हैं। पानी रोकने के लिए नदी में एक पक्का चेकडैम बनाना ही एक मात्र विकल्प बच गया है।”

मकिर बताते हैं कि कनेक्शन धारियों से प्रतिमाह 62 रुपये शुल्क लिया जाता है। आधे से अधिक लोग शुल्क भी नहीं देते हैं। हर माह 30 से 35 हजार रुपये ही वसूली होता है। जिसमें पानी साफ करने के लिए केमिकल, मशीनों की मरम्मत और टंकी के रखरखाव में 30 हजार से अधिक खर्च हो जाता है। जो बचता है, उसे कर्मियों के बीच खर्च के लिए बांट दिया जाता है।

बताते चलें ऑपरेटर के तौर पर मकिर अंसारी, मनोज उरांव, दीपक गोप व महेंद्र लोहरा चार कर्मी हैं। पांच साल पहले सभी को नौ हजार प्रतिमाह के मानदेय पर पीएचइडी विभाग ने काम पर रखा है। परंतु चार साल से सभी को मानदेय नहीं मिला है। कर्मी कहते हैं कि मानदेय नहीं मिलने से आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गयी है। पर कभी, तो मानदेय मिलेगा, इसी उम्मीद से काम कर रहे हैं।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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