Saturday, April 27, 2024

AIIMS के डा. शाह आलम का लेख: अनैतिक है राजस्थान के स्वास्थ्य विधेयक पर डॉक्टरों का विरोध

21 मार्च को, राजस्थान ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ (‘आरटीएच’) विधेयक पारित करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया। यह विधेयक राज्य के सभी सरकारी और चुनिंदा निजी अस्पतालों में ओपीडी और भर्ती, सभी तरह के मरीजों की चिकित्सा सेवाओं तक मुफ्त पहुंच को सुनिश्चित करता है।

जब से यह विधेयक पारित हुआ है, तभी से चिकित्सा बिरादरी इसके खिलाफ खड़ी हो गयी है। संक्षेप में, अधिकांश डॉक्टरों को लगता है कि ‘आरटीएच’ विधेयक उनके “बिजनेस मॉडल” पर एक हमला है। इस समस्या को केवल स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित करके नहीं, बल्कि जीवन के राजनीतिक, सामाजिक या पेशेवर, सभी क्षेत्रों में टूटे हुए नैतिक दिशासूचक तले लड़खड़ा रहे एक राष्ट्र के संकट के तौर पर देखा जाना चाहिए।

इससे पहले कि हम ‘आरटीएच’ विधेयक के विरोध की जटिलताओं को समझें, इस बात पर जोर देना आवश्यक है कि राजस्थान किसी भी मानक से “स्वस्थ” राज्य नहीं है। 2022 में, नीति आयोग, विश्व बैंक और केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’ नामक एक रिपोर्ट में राजस्थान को 19 बड़े राज्यों में 16वें स्थान पर रखा था। ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5’ (2019-21) के अनुसार, राज्य में शिशु मृत्यु दर 30.3 प्रति 1,000 जन्म और नवजात मृत्यु दर 20.2 प्रति 1,000 जन्म है। बाल्यावस्था में इतनी ऊंची मृत्यु दर राज्य के स्वास्थ्य ढांचे की खराब स्थिति को दर्शाती है।

यह महिलाओं और बच्चों में कुपोषण संबंधी एनीमिया के उच्चतम स्तर वाले राज्यों में से एक है। राज्य का डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात प्रति 10,000 जनसंख्या पर पांच डॉक्टरों के आश्चर्यजनक रूप से निम्न स्तर पर है (इसकी तुलना में, जम्मू और कश्मीर में यह अनुपात प्रति 10,000 जनसंख्या पर 21 डॉक्टर का है)। इस तरह की निराशाजनक स्वास्थ्य तस्वीर के साथ राजस्थान ‘आरटीएच’ विधेयक लाने और लागू करने के लिए एक आदर्श राज्य था।

इस विधेयक के खिलाफ राज्य की चिकित्सा बिरादरी का विरोध असाधारण है। हम एक ऐसे युग में रह रहे हैं जहां पूंजीवाद की अपराजेय शक्ति ने स्वास्थ्य संकटों की झड़ी लगा दी है।

की अपराजेय शक्ति ने स्वास्थ्य संकटों की झड़ी लगा दी है। वे दिन गए जब चिकित्सा सबसे नेक व्यवसाय था। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत में 78 प्रतिशत से अधिक स्वास्थ्य सेवाएं अब निजी हाथों में हैं। निजी चिकित्सकों ने पारंपरिक सरकारी चिकित्सा को लगभग पूरी तरह से बदल दिया है और यह निजी चिकित्सक ही हैं जो राजस्थान में ‘आरटीएच’ विधेयक से सबसे ज्यादा नाखुश हैं।

‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ (आईएमए) ने आने वाले दिनों में ‘आरटीएच’ विधेयक के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर विरोध प्रदर्शन करने की धमकी दी है। यह एक ज्ञात तथ्य है कि ‘आईएमए’ के अधिकांश पदाधिकारी निजी व्यवसायी हैं और संगठन के विभिन्न पदों के लिए चुनाव क्षेत्रीय, राजनीतिक और धनबल के दबदबे के आधार पर भारी उत्साह के साथ लड़ा जाता है।

यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि ‘आईएमए’ अधिकारी जो कह रहे हैं, उसके विपरीत, इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, राजस्थान का ‘आरटीएच’ विधेयक डॉक्टरों और सरकारी अधिकारियों के बीच बैठकों की एक लंबी शृंखला के बाद तैयार किया गया था। सितंबर 2022 में विधानसभा में पेश किए गए मूल विधेयक में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। इस प्रकार, यह कोई ऐसा विधेयक नहीं है जिसे उन लोगों से बातचीत किये बिना तैयार किया गया है, जिनके हित इससे जुड़े हुए हैं।

राजस्थान के विरोध करने वाले डॉक्टरों की मुख्य शिकायत विधेयक के उस प्रावधान से है, जिसके अनुसार राज्य के किसी भी निवासी को सभी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में पूर्व भुगतान के बिना आपातकालीन उपचार और देखभाल का अधिकार होगा। यह निश्चित रूप से उस “बिजनेस मॉडल” को गड़बड़ कर देता है, जिस पर अधिकांश निजी स्वास्थ्य सेवाएं काम करती हैं।

इस प्रावधान के बारे में डॉक्टरों की चिंता दोहरी है: पहला, यह कौन तय करेगा कि आपातकालीन चिकित्सा स्थिति क्या है, और दूसरा, इन रोगियों को भर्ती करने तथा बाद में चिकित्सा-खर्च वसूलने के समय नौकरशाही और राजनीतिक लोगों द्वारा दबाव बनाने और जबर्दस्ती किये जाने का डर।

ये दोनों आशंकाएं जायज हैं लेकिन किसी भी भारतीय राज्य द्वारा अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए की जा रही अपनी तरह की अनूठी पहल का विरोध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। डॉक्टरों को एक ऐसे मामले में अपने रोगियों का पक्ष लेते हुए दिखना चाहिए था जिससे उन्हें स्पष्ट रूप से लाभ हो रहा हो।

उपर्युक्त दोनों मुद्दे ‘आरटीएच’ विधेयक के कारण पैदा हुई समस्याएं नहीं हैं, बल्कि व्यवस्था के प्रति डॉक्टरों के अविश्वास से उत्पन्न समस्याएं हैं। दुर्भाग्य से, जब महत्वपूर्ण मुद्दों की बात आती है तो विशेषाधिकार प्राप्त भारतीय चिकित्सक उसी व्यवस्था के साथ हाथ मिला लेते हैं।

राजस्थान के डॉक्टरों को सांप्रदायिकता, जातीय अत्याचार, पुलिस की बर्बरता या समाज को नुकसान पहुंचाने वाली राजनीतिक विचारधारा के खिलाफ बोलते हुए हमने कितनी बार देखा है? डॉक्टरों का वर्तमान विरोध इस देश में रोगियों की देखभाल संबंधी एक ऐतिहासिक क्षण का स्वागत करने में विफल रह जाने के उनके भोलेपन को प्रदर्शित करता है।

एक न्यायोचित और रोगियों को फायदा पहुंचाने वाले विधेयक को लेकर राजस्थान के डॉक्टरों की बेचैनी और हताशा से पता चलता है कि भारतीय चिकित्सक आम आदमी से कितने दूर हो चुके हैं। निजी प्रैक्टिस कर रहे मेरे कई मित्र और साथ ही युवा चिकित्सक पूछते हैं, क्या पैसा कमाना अपराध है? नहीं, ऐसा नहीं है, लेकिन पैसा कमाने और पैसा निचोड़ने के बीच का अंतर आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इतना बारीक है कि इस रेखा के पार चले जाना बहुत मुश्किल नहीं है।

राजस्थान का ‘आरटीएच’ रोगियों के लिए एक कानूनी अधिकार है, जो उम्मीद है कि कई डॉक्टरों को उस सीमा को पार करने से रोकेगा। यह ध्यान रखना दिलचस्प हो सकता है कि देश में स्वास्थ्य पेशेवरों के खिलाफ होने वाली हिंसा की सबसे ज्यादा घटनाओं वाले राज्यों में राजस्थान भी है।

स्वास्थ्य पेशेवरों के खिलाफ हिंसा के बहुत सारे कारण होते हैं, लेकिन इस हिंसा के केंद्र में जो कारण होता है, वह है रोगियों या उनके परिजनों के मन में सामान्य रूप से पूरी व्यवस्था के प्रति, और विशेष रूप से डॉक्टर के प्रति गहरा अविश्वास। रोगियों के हितैषी इस विधेयक को अपनाना राजस्थान के डॉक्टरों के लिए इस अविश्वास को कुछ हद तक दूर करने का एक अवसर होता।

चिकित्सक लोगों के सीधे संपर्क में रहते हैं। समाज और चिकित्सक एक दूसरे का आईना होते हैं। यदि आज चिकित्सक को आईने में अच्छा दिखना है, तो उसे समाज को अच्छा दिखने में मदद करनी होगी। समाज को अच्छा दिखने का सबसे आसान तरीका है समानता और न्याय लाना, और यह चिकित्सक की पैसे कमाने की क्षमता में कटौती का कारक ही हो सकता है।

हम डॉक्टरों को संगठनात्मक विशेषाधिकारों की छत्रछाया में नहीं इकट्ठा होना चाहिए। बल्कि, हमें उन लोगों की तरह दिखना चाहिए जो हर जगह गरीबों तथा वंचितों के साथ मिलकर काम करते हैं। भले ही हम अमीर न दिखें, हममें कम से कम दयालुता तो दिखनी ही चाहिए।

 (डॉ.शाह आलम ख़ान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ( AIIMS) में  हड्डी रोग विभाग में  प्रोफेसर हैं। ये लेख  Doctors must embrace Right to Health Bill, not protest against it  शीर्षक से 31 मार्च को प्रकाशित हुआ था। ‘इंडियन एक्सप्रेस से साभार’। अनुवाद : शैलेश )

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Prem chandra
Prem chandra
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1 year ago

I am very much fan of the Dr shah alam khan reading his social view analysis how he deeply involved with marginalised, minority and poor people of India. He is very sensitive see the love between a man and lizard (chiptia) and a His friend died in aboard (dara…..)
Regards

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