वाराणसी। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में लोहता थाना क्षेत्र के टड़िया (कोटवां) गांव के 11 नाबालिग बच्चे बाल सुधार गृह से छूटकर अपने घर लौट आए हैं, लेकिन गांव में अब भी डर और तनाव का माहौल बना हुआ है। परिजनों को डर है कि पुलिस फिर से कोई सख्त कार्रवाई कर सकती है, जिससे बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। माता-पिता का कहना है कि बच्चों को सजा देने के बजाय सुधारने की जरूरत थी, लेकिन उनके मासूम बच्चों पर हत्या के प्रयास जैसी गंभीर धाराएं लगा दी गईं।
यह घटना 4 मार्च 2025 को हुई, जब लोहता थाना क्षेत्र के टड़िया गांव में 11 नाबालिग बच्चे खेल रहे थे। खेल के दौरान उन्होंने पत्थर उछाले, जो कुछ घरों की छतों और दरवाजों से टकरा गए। पुलिस ने यह मुकदमा तब दर्ज किया जब वाराणसी के कोटवा का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें कुछ नाबालिग मुस्लिम लड़के स्ट्रीट लाइट को नुकसान पहुंचाते नजर आए। पुलिस जांच में पता चला कि इन लड़कों का मकसद सिर्फ बल्ब चुराना था, न कि किसी विशेष समुदाय को निशाना बनाना।

इस मामले के तूल पकड़ते ही किसी ने पुलिस को सूचना दे दी और फिर शिकायत दर्ज हो गई। 7 मार्च को लोहता थाने में एफआईआर संख्या 76/2025 दर्ज कर इन सभी नाबालिगों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की विभिन्न कठोर धाराएं लगाई गईं।
इस प्रकरण में कुल 11 बच्चे आरोपी बनाए गए, जिनकी उम्र 11 से 16 वर्ष के बीच बताई जा रही है। सभी टड़िया गांव के निवासी हैं और इनके नाम इस प्रकार हैं- जिकर हुसैन (पिता: नसीम अहमद), अब्दुल रहमान (पिता: अलाउद्दीन), फरहान (पिता: शफीक), नसीमुद्दीन (पिता: शौकत अली), नसीरुद्दीन (पिता: नसीरुद्दीन), फरहान (पिता: शफीक), अलीमुद्दीन (पिता: मुश्ताक हुसैन), फरहान (पिता: मुस्तफा), सिकंदर (पिता: हबीबुर रहमान), हसीन (पिता: नसीम अहमद), जावेद (पिता: मोहम्मद इकबाल) और इमरान (पिता: रऊफ हुसैन) शामिल हैं।
किन धाराओं में दर्ज हुआ केस?
इन 11 बच्चों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत कई गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया गया है। एफआईआर संख्या 76/2025 में उन पर धारा 303(2) – हत्या या गंभीर अपराध, धारा 317(2) – आपराधिक षड्यंत्र में संलिप्तता, धारा 324(4) – खतरनाक हथियारों से हमला, धारा 192 – न्याय प्रक्रिया को गुमराह करने, धारा 3(5) – संगठित अपराध में भागीदारी, और धारा 191(2) – झूठे साक्ष्य तैयार करने से संबंधित प्रावधान लगाए गए हैं।

भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 303(2) के तहत आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है। इस धारा के तहत किसी व्यक्ति द्वारा हत्या या गंभीर अपराध में संलिप्तता सिद्ध होने पर उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जा सकती है। 12 मार्च की रात सभी 11 नाबालिगों को बाल सुधार गृह से रिहा कर दिया गया, लेकिन वे और उनके परिवार अब भी डरे हुए हैं।
बच्चें के परिजनों का कहना है कि बच्चे खेल रहे थे, जानबूझकर किसी को नुकसान पहुंचाने की उनकी कोई मंशा नहीं थी। फिर भी उनके खिलाफ इस तरह के गंभीर आरोप लगाए गए हैं, जिनमें आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। माता-पिता चिंतित हैं कि यदि पुलिस ने फिर से कोई कार्रवाई की, तो उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो सकता है।
बच्चों की गिरफ्तारी के बाद से ही कोटवा गांव सुर्खियों में है। बीते कुछ दिनों से यहां का माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है, जिसके कारण प्रशासन को पुलिस और पीएसी (प्रांतीय सशस्त्र बल) की तैनाती करनी पड़ी है। हालांकि पुलिस ने माना है कि वीडियो में कोई लक्षित सांप्रदायिक हमला नहीं दिख रहा। शरारती लड़कों ने घरों को निशाना नहीं बनाया, बल्कि सिर्फ स्ट्रीट लाइट को तोड़ा था। लेकिन गांव में पहले से मौजूद तनाव को देखते हुए इस घटना ने माहौल को और गरमा दिया।
कोटवां में पहले से ही है तनाव
दरअसल, कोटवा गांव में सांप्रदायिक तनाव की नींव एक महीने पहले ही पड़ चुकी थी। फरवरी की शुरुआत में गांव के एक हिंदू युवक भैयालाल पटेल की हत्या कर दी गई थी। उनका शव आंशिक रूप से जली हुई हालत में मिला था, जिससे इलाके के हिंदू परिवारों में डर का माहौल बना हुआ था।
पुलिस जांच में पता चला कि भैयालाल की हत्या शराब पीने के दौरान हुए विवाद में हुई थी। आरोप है कि अशरफ अली, अब्दुल कादिर, सुल्तान और शकील नामक चार लोगों ने उन्हें पीट-पीटकर मार डाला और बाद में शव को जलाने की कोशिश की। हत्या के पीछे कोई सांप्रदायिक वजह नहीं थी, लेकिन इलाके में हिंदू समुदाय के लोगों ने इसे अलग नजरिए से देखा। उनका कहना था कि गांव में रहने वाले 15 हिंदू परिवार असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। हत्या के बाद कुछ हिंदू परिवारों ने अपने घरों में सीसीटीवी कैमरे लगवा लिए। इसी कैमरे में चार मार्च की रात पत्थरबाजी का वीडियो कैद हुआ, जिसके वायरल होते ही हालात और बिगड़ गए।

पथराव की घटना की जांच के बाद पुलिस ने 12 से 15 साल के नौ नाबालिग लड़कों को गिरफ्तार किया। लोहता पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर सभी की पहचान की और उन्हें रामनगर के किशोर सुधार गृह भेज दिया। पुलिस के मुताबिक, लड़कों का मकसद सिर्फ स्ट्रीट लाइट का बल्ब चुराना था, न कि किसी समुदाय को निशाना बनाना। लेकिन इलाके के हिंदू परिवार इस तर्क को मानने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने गांव में स्थायी रूप से पीएसी की तैनाती की मांग की है।
रमजान और होली जैसे त्योहार नजदीक हैं, ऐसे में प्रशासन किसी भी हाल में स्थिति को बिगड़ने नहीं देना चाहता। 8 मार्च 2025 को अतिरिक्त पुलिस आयुक्त डॉ. एस. चांस्या ने कोटवा गांव में पुलिस बल के साथ रूट मार्च निकाला। उनके साथ डीसीपी वरुणा जीन चंद्रकांत मीना, एसीपी रोहनिया संजीव शर्मा और पीएसी के जवान भी मौजूद थे।

इसके अलावा, लहुराबीर स्थित आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) हॉल में एक शांति बैठक बुलाई गई, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के प्रमुख लोगों को बुलाया गया। पुलिस अधिकारियों ने लोगों से शांति बनाए रखने, अफवाहों पर ध्यान न देने और किसी भी विवाद की स्थिति में तुरंत पुलिस से संपर्क करने की अपील की।
कोटवा गांव का माहौल अब भी पूरी तरह सामान्य नहीं हुआ है। हिंदू परिवारों का कहना है कि वे डरे हुए हैं और गांव छोड़ने की सोच रहे हैं। वहीं, प्रशासन का दावा है कि स्थिति नियंत्रण में है और किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए कड़ी निगरानी रखी जा रही है।
नाबालिगों पर केस कितना सही?
वाराणसी के कोटवा में नाबालिग बच्चों को संगीन आपराधिक धाराओं में केस दर्ज किए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए राजनीतिक व नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने 12 मार्च 2025 को पुलिस कमिश्नर से मुलाकात की और आरोप लगाया कि मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाकर हिंसा भड़काने की कोशिशें की जा रही हैं। पुलिस की निष्क्रियता पर चिंता जताते हुए पुलिस कमिश्नर को ज्ञापन सौंपा गया और वाराणसी में सांप्रदायिक तनाव फैलाने की साजिशों को रोकने की मांग की गई।
ज्ञापन में संतोष यादव, हरीश मिश्रा, आबिद शेख, प्रेम प्रकाश सिंह यादव, फादर आनंद, परमिता, अनूप श्रमिक, जागृति, मुनीजा खान, विनय, ज़ुबैर, जुबेर खान बागी, अनवर, मुकेश, कात्यायनी, संदीप समेत दर्जनों सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिक शामिल रहे।

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि बनारस, जो हमेशा से गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक रहा है, लेकिन अब जानबूझकर शहर की फिजा बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। मामूली झगड़ों को सांप्रदायिक रंग देकर हिंसा को भड़काने की कोशिशें हो रही हैं, निर्दोष मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारियां हो रही हैं और खुलेआम भीड़ द्वारा हमले किए जा रहे हैं। यह सब मिलकर बनारस की सांस्कृतिक पहचान को खतरे में डाल रहे हैं। सामाजिक संगठनों और नागरिक समूहों ने इस बढ़ते तनाव पर चिंता जताई है और निष्पक्ष जांच व न्याय की मांग की है।
सामाजिक कार्यकर्ता फादर आनंद और डा.मुनीजा खान ने कहा, “बच्चों के खिलाफ संगीन धाराएं लगाना न केवल भारतीय कानूनों के खिलाफ है, बल्कि मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। जुवेनाइल जस्टिस (JJ) एक्ट, 2015 के अनुसार, 18 साल से कम उम्र के बच्चों को अपराधी नहीं बल्कि ‘संघर्षरत बच्चे’ माना जाता है। ऐसे में उनके खिलाफ IPC की धाराएं लगाकर उन पर कड़े अपराधों के मुकदमे चलाना कानून की भावना के विरुद्ध है। जब कोई नाबालिग अपराध करता है, तो सबसे पहले जांच यह होती है कि वह इस अपराध को समझने में सक्षम था या नहीं। उसके मानसिक स्थिति को परखा जाता है, फिर आवश्यक कार्रवाई होती है। लेकिन इस मामले में सीधे बच्चों पर गंभीर धाराएं लगाकर, उन्हें अपराधी बना दिया गया।”
“प्रशासन को जल्द ही स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। बच्चों की मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए काउंसलिंग और उनकी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देना चाहिए। नाबालिग बच्चों के खिलाफ संगीन अपराधों की धाराओं में रिपोर्ट दर्ज करना कई सवाल खड़े करता है। क्या यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं? क्या पुलिस ने बिना पूरी जांच किए निर्दोष बच्चों को इस मामले में फंसाया? यह घटना सिर्फ कानून-व्यवस्था का सवाल नहीं है, बल्कि समाज में व्याप्त पूर्वग्रह और भेदभाव को भी उजागर करती है।”

बनारस के पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल को पत्रक सौंपते हुए कहा कि बनारस शहर के मुस्लिम बहुल इलाकों में हाल में कई ऐसी वारदातें हुई हैं जो इस बात का संकेत देती हैं कि इस शहर का भाईचारा और सद्भाव खतरे में है। ताबड़तोड़ हो रही घटनाओं के बीच कमिश्नरेट पुलिस की चुप्पी बहुत कुछ कहती है। बनारस के अमनपसंद लोग अब पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाने लगे हैं। पत्र में बनारस में मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ हाल में हुई कई और संगीन वारदातों का जिक्र किया गया है।
1-अंबियामंडी, थाना आदमपुर (6 मार्च 2025)
वाराणसी के अंबियामंडी इलाके में 6 मार्च को अचानक तनाव बढ़ गया, जब स्थानीय अराजक तत्वों के आरोपों के आधार पर पुलिस ने 14 निर्दोष मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इलाके में पहले से ही डर और भय का माहौल था, लेकिन इस कार्रवाई ने मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना और बढ़ा दी। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पुलिस द्वारा पक्षपातपूर्ण कार्रवाई है, क्योंकि कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया।
2-बकरियाकुंड (27 फरवरी 2025, रात 11:30 बजे)
बकरियाकुंड में रहने वाले रेहान के लिए 27 फरवरी की रात भयावह साबित हुई। जब उसने कुछ युवकों को पांडेपुर का रास्ता बताया, तो कार सवार युवकों ने “मुल्ला झूठ बोल रहा है” कहते हुए उस पर ब्लेड से हमला कर दिया। किसी तरह रेहान ने अपनी जान बचाई और भाग निकला। अगले दिन जब उसने जैतपुरा थाने में शिकायत दर्ज कराई, तो पुलिस ने महज खानापूर्ति की और अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह कोई इकलौती घटना नहीं है, बल्कि एक पैटर्न बन चुका है, जिसमें मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है।
3-दीनदयालपुर, थाना सारनाथ (11 मार्च 2025)
11 मार्च की रात दीनदयालपुर इलाके में दो मुस्लिम युवकों पर हमला हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमलावरों की संख्या 10-12 थी और वे लाठी-डंडों से लैस थे। दोनों पीड़ित गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। स्थानीय लोगों ने पुलिस को सूचना दी, लेकिन पुलिस ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता इस घटना को प्रशासन की लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण मानते हैं।

पुलिस कमिश्नर से मांग की गई है कि हाल ही में हुई सांप्रदायिक घटनाओं की निष्पक्ष जांच की जाए और दोषियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो। पुलिस की भूमिका की स्वतंत्र जांच कर यह सुनिश्चित किया जाए कि वह किसी भी पक्षपात से मुक्त होकर कार्य करे। धार्मिक सौहार्द्र और शांति बनाए रखने के लिए प्रशासन द्वारा ठोस कदम उठाए जाएं।
प्रतिनिधिमंडल ने इस बात पर जोर दिया कि वाराणसी में कुछ असामाजिक तत्व लगातार सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। विशेष रूप से होली और जुम्मे की नमाज़ एक ही दिन पड़ने के कारण हालात और संवेदनशील हो गए हैं। भगत सिंह आंबेडकर विचार मंच से जुड़े एसपी राय ने कहा है, “सरकार धर्म की राजनीति कर रही है क्योंकि वह जनता की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में असफल रही है। पुलिस प्रशासन सरकार के संगठन की तरह काम कर रहा है।”
समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष सुजीत सिंह यादव ‘लक्कड़’ ने आरोप लगाया है कि सरकार के संरक्षण में ऐसी घटनाएं हो रही हैं। ये घटनाएं लोगों को बांटने और सत्ता में बने रहने की साजिश है। कम्युनिस्ट फ्रंट के मनीष शर्मा ने कहा है, “सरकार ने त्योहारों का भी राजनीतिकरण कर दिया है। धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाया जा रहा है।”
मुस्लिम बहुल इलाकों में बढ़ता तनाव
बनारस के बिगड़ते माहौल के मद्देनजर मौलाना हारून रशीद नक़्शबंदी की अध्यक्षता में मुत्तहिदा उलमा कौंसिल की बैठक हुई, जिसमें शहर के प्रतिष्ठित उलमा-ए-किराम शामिल हुए। मुफ्ती अब्दुल बातिन नोमानी, मुफ्ती नियाज़ अहमद, मौलाना गुलाम नबी ज़ायाई, मौलाना नसीर अहमद सिराजी समेत कई उलमा ने होली और जुम्मे के दिन शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक सौहार्द्र को नुकसान पहुंचाने वालों पर सख्त कार्रवाई हो।
बनारस में मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ हुई कई संगीन वारदातों के बाद बाद पूर्व सांसद प्रत्याशी अतहर जमाल लारी ने बयान जारी कर कहा, “बनारस को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने की लगातार कोशिश हो रही है। किसी न किसी बहाने मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। हम इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और प्रशासन से मांग करते हैं कि दोषियों पर तुरंत सख्त कार्रवाई हो। होली और रमज़ान का दूसरा जुमा शांतिपूर्वक संपन्न हो, इसके लिए ऐसे असामाजिक तत्वों पर लगाम लगाना बेहद जरूरी है।”
“मुस्लिम समुदाय के लोगों कं साथ हुई घटनाओँ को अलग-अलग नज़रिए से देखने की बजाय, इनकी कड़ी जोड़ने की ज़रूरत है। बनारस, जो हमेशा से सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल रहा है, वहां इस तरह के हमले होना चिंता का विषय है। क्या ये सिर्फ़ इत्तेफाक हैं या फिर बनारस का माहौल खराब करने की सुनियोजित कोशिश की जा रही है? पुलिस-प्रशासन की भूमिका पर सवाल क्यों उठ रहे हैं? क्या यह किसी बड़ी सांप्रदायिक घटना की आहट है? “
लारी ने यह भी कहा है, “समय रहते इन घटनाओं पर ध्यान नहीं दिया गया, तो बनारस की पहचान और सौहार्द्रपूर्ण माहौल पर गहरा असर पड़ सकता है। प्रशासन को चाहिए कि निष्पक्ष तरीके से कार्रवाई करे और बनारस की गंगा-जमुनी तहज़ीब को बचाने की कोशिश करे। बनारस में हालिया सांप्रदायिक घटनाएं चिंताजनक हैं। जहां एक ओर प्रशासन की निष्क्रियता सवालों के घेरे में है, वहीं दूसरी ओर नागरिक समाज ने एकजुट होकर शांति बनाए रखने की अपील की है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा या बनारस में सांप्रदायिक तनाव का यह सिलसिला यूं ही जारी रहेगा? “
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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