Thursday, April 25, 2024

खास रिपोर्ट: बिल गेट्स की दान की आड़ में ‘जनता के ब्रेनवाश’ के लिए मीडिया पर धनवर्षा

एक धमाकेदार नयी खबर में पता चला है कि अरबपति बिल गेट्स ने “जनता का ब्रेनवॉश” करने के प्रयास के तहत दुनिया भर के मुख्यधारा के मीडिया प्रतिष्ठानों का चुनाव किया और उन्हें गुप्त रूप से 31.9 करोड़ डॉलर की रकम दिया है।

इस शैतानी योजना का पर्दाफाश खोजी पत्रकार एलन मैकलॉयड द्वारा प्राप्त दस्तावेजों से हुआ है।

‘न्यूजपंच’ की रिपोर्ट बताती है: मैकलियोड के अनुसार, ‘बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ की वेबसाइट के डेटाबेस में 30,000 से अधिक व्यक्तियों को दिये गये अनुदानों की समीक्षा के दौरान धन के इस स्थानांतरण का खुलासा हुआ।

लाभार्थियों की इस सूची में सीएनएन, एनबीसी, एनपीआर, पीबीएस, द अटलांटिक, न्यूयॉर्क पब्लिक रेडियो और अन्य अति वाम प्रतिष्ठान शामिल हैं।

मैकलॉयड ने इस मामले पर अपनी रिपोर्ट में लिखा है, “गेट्स फाउंडेशन द्वारा मीडिया कार्यक्रमों को भेजे जाने वाले इस धन को संगठन की वेबसाइट पर सबसे ज्यादा, फिर उससे कम, इस तरह से घटते हुए क्रम में दर्ज किया गया है, और इसमें दिये जाने वाले अनुदानों के लिंक भी हैं”

सीधे मीडिया प्रतिष्ठानों को दिये गये पारितोषिक:

•    एनपीआर- $24,663,066

•    द गार्जियन (TheGuardian.org सहित)- $12,951,391

•    कैस्केड पब्लिक मीडिया – $10,895,016

•    पब्लिक रेडियो इंटरनेशनल (PRI.org/TheWorld.org)- $7,719,113

•    द कन्वर्सेशन- $6,664,271

•    यूनिविज़न- $5,924,043

•    डेर स्पाइजल (जर्मनी) – $5,437,294

•    प्रोजेक्ट सिंडिकेट- $5,280,186

•    एजुकेशन वीक – $4,898,240

•    WETA- $4,529,400

•    एनबीसी यूनिवर्सल मीडिया- $4,373,500

•    नेशन मीडिया ग्रुप (केन्या) – $4,073,194

•    ले मॉन्ड (फ्रांस) – $4,014,512

•    भेकिसिसा (दक्षिण अफ्रीका) – $3,990,182

•    अल पेस – $3,968,184

•    बीबीसी- $3,668,657

•    सीएनएन- $3,600,000

•    केसीईटी- $3,520,703

•    पॉपुलेशन कम्युनिकेशंस इंटरनेशनल (population.org)- $3,500,000

•    द डेली टेलीग्राफ – $3,446,801

•    चाकबीट – $2,672,491

•    द एजुकेशन पोस्ट- $2,639,193

•    रॉकहॉपर प्रोडक्शंस (यूके) – $2,480,392

•    कॉरपोरेशन फॉर पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग – $2,430,949

•    अप वर्दी – $2,339,023

•    फाइनेंशियल टाइम्स – $2,309,845

•    द 74 मीडिया- $2,275,344

•    टेक्सास ट्रिब्यून- $2,317,163

•    पंच (नाइजीरिया) – $2,175,675

•    न्यूज डीपली – $1,612,122

•    द अटलांटिक- $1,403,453

•    मिनेसोटा पब्लिक रेडियो- $1,290,898

•    वाईआर मीडिया- $1,125,000

•    द न्यू ह्यूमैनिटेरियन- $1,046,457

•    शेगर एफएम (इथियोपिया) – $1,004,600

•    अल-जज़ीरा- $1,000,000

•    प्रोपब्लिका- $1,000,000

•    क्रॉसकट पब्लिक मीडिया – $810,000

•    ग्रिस्ट मैगज़ीन- $750,000

•    कुर्जगेसाट – $570,000

•    एजुकेशनल ब्रॉडकास्टिंग कॉर्प – $506,504

•    क्लासिकल 98.1 – $500,000

•    पीबीएस – $499,997

•    गैनेट – $499,651

•    मेल एंड गार्जियन (दक्षिण अफ्रीका)- $492,974

•    इनसाइड हायर एड.- $439,910

•    बिजनेसडे (नाइजीरिया) – $416,900

•    मीडिया डॉट कॉम – $412,000

•    न्यूटोपिया- $350,000

•    इंडिपेंडेंट टेलीविजन ब्रॉडकास्टिंग इंक. – $300,000

•    इंडिपेंडेंट टेलीविजन सर्विस, इंक. – $300,000

•    काइज़िन मीडिया (चीन) – $250,000

•    पैसिफिक न्यूज सर्विस – $225,000

•    नेशनल जर्नल – $220,638

•    क्रॉनिकल ऑफ हायर एजुकेशन – $149,994

•    बेली एंड विसेल, को. $100,000

•    मीडिया ट्रस्ट – $100,000

•    न्यूयॉर्क पब्लिक रेडियो – $77,290

•    KUOW – पुगेट साउंड पब्लिक रेडियो – $5,310

‘मिंटप्रेसन्यूज़डॉटकॉम’ की रिपोर्ट के अनुसार: ये दान कुल मिलाकर 166,216,526 डॉलर हैं। यह धन आमतौर पर गेट्स के अपनी पसंद के मुद्दों के लिए दिया जाता है। उदाहरण के लिए, ‘सीएनएन’ को दिया गया 36 लाख डॉलर का अनुदान “लैंगिक समानता पर रिपोर्टिंग के लिए, दुनिया भर में, और उसमें भी विशेष रूप से कम विकसित देशों में महिलाओं और लड़कियों द्वारा सहन की जाने वाली रोज़मर्रा की असमानताओं पर पत्रकारिता के लिए” दिया गया, जबकि ‘टेक्सास ट्रिब्यून’ को लाखों डॉलर “टेक्सास में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और शिक्षा सुधार के मुद्दों पर काम करने के लिए” मिले। यह देखते हुए कि बिल गेट्स चार्टर (अपने मूल बोर्ड से स्वतंत्र निजीकृत) स्कूलों के सबसे उत्साही समर्थकों में से एक हैं, एक आलोचक इसकी व्याख्या मीडिया में वस्तुनिष्ठ समाचार रिपोर्टिंग की आड़ में छिपे हुए कॉरपोरेट चार्टर स्कूल प्रणाली के प्रचार के रूप में कर सकता है।

‘गेट्स फाउंडेशन’ ने लगभग 6.3 करोड़ डॉलर के ऐसे दान भी दिये हैं जो बड़े मीडिया प्रतिष्ठानों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं। इसमें ‘बीबीसी मीडिया एक्शन’ को लगभग 5.3 करोड़ डॉलर, ‘एमटीवी’ के ‘स्टेइंग अलाइव फाउंडेशन’ को 90 लाख डॉलर और ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स नीडिएस्ट कॉजेज फंड’ को 10 लाख डॉलर शामिल हैं। खास तौर पर पत्रकारिता के नाम दिये जा रहे इस धन के साथ ही परोपकारी कामों के नाम पर तैयार किये गये मीडिया समूहों के उपसमूहों को दिये जा रहे धन की भी गणना की जानी चाहिए।

गेट्स खोजी पत्रकारिता समूहों के एक विस्तृत नेटवर्क को भी वित्तपोषित करते हैं। इनको दिये गये कुल 3.8 करोड़ डॉलर के आधे से अधिक धन वाशिंगटन डीसी आधारित ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स’ को अफ्रीकी मीडिया को विस्तृत और विकसित करने के लिए दिया गया है।

इन खोजी पत्रकारिता समूहों में शामिल हैं:

•    इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स- $20,436,938

•    प्रीमियम टाइम्स सेंटर फॉर इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म (नाइजीरिया) – $3,800,357

•    पुलित्जर सेंटर फॉर क्राइसिस रिपोर्टिंग – $2,432,552

•    फाउंडेशन यूरएक्टिव पॉलिटेक – $2,368,300

•    इंटरनेशनल वीमेन्स’ मीडिया फाउंडेशन – $1,500,000

•    सेंटर फॉर इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग – $1,446,639

•    इंटरमीडिया सर्वे इंस्टीच्यूट – $1,297,545

•    द ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म – $1,068,169

•    इंटरन्यूज नेटवर्क – $985,126

•    कम्युनिकेशंस कंसोर्टियम मीडिया सेंटर – $858,000

•    इंस्टीच्यूट फॉर नॉनप्रॉफिट न्यूज – $650,021

•    द पोयन्टर इंस्टीट्यूट फॉर मीडिया स्टडीज- $382,997

•    वोले सोयिंका सेंटर फॉर इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म (नाइजीरिया)- $360,211

•    इंस्टीच्यूट फॉर एडवांस्ड जर्नलिज्म स्टडीज – $254,500

•    ग्लोबल फोरम फॉर मीडिया डेवलपमेंट (बेल्जियम) – $124,823

•    मिसिसिपी सेंटर फॉर इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग – $100,000

इसके अलावा, ‘गेट्स फाउंडेशन’ प्रेस और पत्रकारिता संघों को कम से कम 1.2 करोड़ डॉलर की नकद राशि भी देता है। उदाहरण के लिए, ‘नेशनल न्यूजपेपर पब्लिशर्स एसोसिएशन’, एक ऐसा समूह है जिससे 200 से अधिक संगठन जुड़े हुए हैं, उसे 32 लाख डॉलर मिले हैं।

इन संगठनों की सूची में शामिल हैं:

•    एजुकेशन राइटर्स एसोसिएशन – $5,938,475

•    नेशनल न्यूजपेपर पब्लिशर्स एसोस्एशन – $3,249,176

•    नेशनल प्रेस फाउंडेशन- $1,916,172

•    वाशिंगटन न्यूज कौंसिल- $698,200

•    अमेरिकन सोसाइटी ऑफ़ न्यूज़ एडिटर्स फ़ाउंडेशन – $250,000

•    रिपोर्टर्स कॉमिटी फॉर फ्रीडम ऑफ द प्रेस- $25,000

यह सब धन जोड़ कर 21.64 करोड़ डॉलर तक पहुंचता है।

‘गेट्स फाउंडेशन’ दुनिया भर के पत्रकारों को छात्रवृत्तियों, पाठ्यक्रमों और कार्यशालाओं के रूप में प्रशिक्षित करने के लिए सीधे धन भी लगाता है। आज, ‘गेट्स फाउंडेशन’ के अनुदान की बदौलत एक व्यक्ति के लिए रिपोर्टर के रूप में प्रशिक्षण लेना संभव है। इसके लिए उसे बस गेट्स द्वारा वित्तपोषित किसी प्रतिष्ठान में काम ढूंढना होगा, और गेट्स द्वारा वित्तपोषित किसी प्रेस एसोसिएशन से संबंधित होना होगा। स्वास्थ्य, शिक्षा और वैश्विक विकास के क्षेत्र में काम करने वाले पत्रकारों के लिए यह विशेष रूप से सच है। गेट्स स्वयं भी इन्हीं क्षेत्रों में सबसे अधिक सक्रिय रहते हैं और यही वे क्षेत्र हैं जिनमें इस अरबपति के कार्यों और उद्देश्यों की जांच-पड़ताल सबसे आवश्यक है।

गेट्स फाउंडेशन द्वारा पत्रकारों के निर्देशन से संबंधित अनुदानों में शामिल संस्थान हैं:

•    जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय – $1,866,408

•    टीचर्स कॉलेज, कोलंबिया यूनिवर्सिटी- $1,462,500

•    कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय बर्कले- $767,800

•    सिंघुआ विश्वविद्यालय (चीन) – $450,000

•    सिएटल विश्वविद्यालय – $414,524

•    इंस्टीच्यूट आफ एडवांस्ड जर्नलिज्म स्टडीज – $254,500

•    रोड्स विश्वविद्यालय (दक्षिण अफ्रीका) – $189,000

•    मोंटक्लेयर स्टेट यूनिवर्सिटी- $160,538

•    पैन-अटलांटिक यूनिवर्सिटी फाउंडेशन – $130,718

•    विश्व स्वास्थ्य संगठन – $38,403

•    द आफ्टरमैथ प्रोजेक्ट- $15,435

‘गेट्स फाउंडेशन’ दुनिया भर में ढेर सारे विशिष्ट मीडिया अभियानों के लिए भी भुगतान करता है। उदाहरण के लिए, 2014 से इसने दक्षिण एशिया में परिवार नियोजन के तरीकों को बढ़ाने के इरादे से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले नाटक बनाने के लिए ‘पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ को 57 लाख डॉलर का दान दिया है। इस बीच, इसने सेनेगल के एक संगठन को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देने वाले रेडियो शो और ऑनलाइन सामग्री विकसित करने के लिए 35 लाख डॉलर से अधिक का आवंटन किया। उनके समर्थक इसे बेहद कम वित्तपोषित मीडिया की मदद मानते हैं, जबकि विरोधी इसे एक अरबपति द्वारा अपने पैसे के बल पर अपने मत और विचारों को प्रेस में फैलाने के रूप में देख सकते हैं।

गेट्स फाउंडेशन द्वारा समर्थित मीडिया प्रोजेक्ट:

•    यूरोपियन जर्नलिज्म सेंटर – $20,060,048

•    वर्ल्ड यूनिवर्सिटी सर्विस ऑफ कनाडा – $12,127,622

•    वेल टोल्ड स्टोरी लिमिटेड – $9,870,333

•    सॉल्यूशन्स जर्नलिज्म इंक.- $7,254,755

•    एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री फाउंडेशन – $6,688,208

•    पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया- $5,749,826 –

•    पार्टिसिपेंट मीडिया – $3,914,207

•    रेस्यू अफ्रीकन डे ल’एजुकेशन पोर ला सैंटे- $3,561,683

•    न्यू अमेरिका – $3,405,859

•    ऑल अफ्रीका फाउंडेशन – $2,311,529

•    स्टेप्स इंटरनेशनल – $2,208,265

•    सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च – $2,200,630

•    द सिसेम वर्कशॉप – $2,030,307

•    पैनोस इंस्टीट्यूट वेस्ट अफ्रीका – $1,809,850

•    ओपन सिटीज लैब – $1,601,452

•    हार्वर्ड विश्वविद्यालय – $1,190,527

•    लर्निंग मैटर्स – $1,078,048

•    द आरोन डायमंड एड्स रिसर्च सेंटर- $981,631

•    थॉमसन मीडिया फाउंडेशन- $860,628

•    कॉम्युलिकेशन्स कंसोर्टियम मीडिया सेंटर – $858,000

•    स्टोरी थिंग्स- $799,536

•    सेटर फॉर रूरल स्ट्रेटेजीज – $749,945

•    द न्यू वेंचर फंड – $700,000

•    हेलियनथस मीडिया – $575,064

•    यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया – $ 550,000

•    विश्व स्वास्थ्य संगठन- $530,095

•    फि डेल्टा कप्पा इंटरनेशनल – $446,000

•    इकाना मीडिया – $425,000

•    सिएटल फाउंडेशन – $305,000

•    एजुकेशन एनसी – $300,000

•    बीजिंग गुओकर इंटरएक्टिव – $300,000

•    अप्सवेल- $246,918

•    अफ्रीकन एकेडमी ऑफ साइंसेज – $208,708

•    सीकिंग मॉडर्न एप्लीकेशन्स फॉर रीयल ट्रांसफॉर्मेशन (स्मार्ट) – $201,781

•    बे एरिया वीडियो कोलिशन- $190,000

•    पो-हर-फुल फाउंडेशन – $185,953

•    पीटीए फ्लोरिडा कांग्रेस ऑफ पैरेंट्स एंड टीचर्स – $150,000

•    प्रोसोशल – $ 100,000

•    बोस्टन विश्वविद्यालय – $ 100,000

•    नेशनल सेंटर फॉर फैमिलीज लर्निंग – $ 100,000

•    डेवलपमेंट मीडिया इंटरनेशनल – $100,000

•    अहमदु बेल्लो विश्वविद्यालय- $ 100,000

•    इंडोनेशियाई ईहेल्थ एंड टेलीमेडिसिन सोसाइटी – $ 100,000

•    द फिल्ममेकर्स कोलेबरेटिव – $50,000

•    फाउंडेशन फॉर पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग इन जॉर्जिया इंक. – $25,000

•    एसआईएफएफ – $13,000

कुल: 97,315,408 डॉलर

31.94 करोड़ डॉलर से भी बहुत ज्यादा

गेट्स द्वारा प्रायोजित ये मीडिया प्रोजेक्ट कुल मिलाकर 31.94 करोड़ डॉलर के हैं। हालांकि, इस संक्षिप्त सूची में स्पष्ट कमियां हैं, जिसका अर्थ यह है कि वास्तविक आंकड़े निस्संदेह इससे भी बहुत अधिक हैं। सबसे पहले, इसमें अनुदानों के इन प्राप्तकर्ताओं द्वारा दुनिया भर के मीडिया को दिये गये धन का विवरण उप-अनुदानों के रूप में नहीं है। और, जबकि ‘गेट्स फाउंडेशन’ अपने बारे में खुलेपन की डींगें हांकता रहता है, फिर भी वास्तव में प्रत्येक अनुदान के धन का क्या इस्तेमाल होता है, इसके बारे में बहुत कम सार्वजनिक जानकारी दी जाती है। स्वयं फाउंडेशन द्वारा अपनी वेबसाइट पर एक या दो-वाक्य के संक्षिप्त विवरण डाले गये हैं। केवल खुद प्रेस संगठनों या अभियानों को दिये गये अनुदानों की गणना की गयी है जिन्हें ‘गेट्स फाउंडेशन’ की वेबसाइट पर मीडिया अभियानों के रूप में दर्ज किया गया है। इसका मतलब यह है कि उन हजारों अनुदानों को इस सूची में नहीं शामिल किया गया है, जिनमें कुछ-न-कुछ मीडिया तत्व मौजूद रहते हैं।

उदाहरण के तौर पर, ‘सीबीएस न्यूज’, ‘एमटीवी’, ‘वीएच1’, ‘निकलोडियन’ और ‘बीईटी’ को नियंत्रित करने वाली कंपनी ‘वायाकॉमसीबीएस’ के साथ ‘गेट्स फाउंडेशन’ की साझेदारी को लिया जा सकता है। तत्कालीन मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि ‘गेट्स फाउंडेशन’ इन मीडिया समूहों के कार्यक्रमों में अपने पसंद की सूचनाएं और प्राथमिकताएं घुसाने के लिए मनोरंजन क्षेत्र के इन दिग्गजों को भुगतान कर रहा था। और साथ ही गेट्स ने ‘ईआर’ और ‘लॉ एंड ऑर्डर: एसवीयू’ जैसे लोकप्रिय कार्यक्रमों के कथा-सूत्रों को बदलने के लिए भी हस्तक्षेप किया था।

जबकि ‘गेट्स फाउंडेशन’ के अनुदान आंकड़ों की जांच करते समय, ‘वायाकॉम’ और ‘सीबीएस’ के नाम कहीं नहीं हैं। संभव है कि उन 60 लाख डॉलर से अधिक के अनुदानों में यह रकम शामिल हो, जिनका उल्लेख केवल इस रूप में किया गया है कि यह परियोजना “खास करके अभिभावकों और छात्रों पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य हाई स्कूल स्नातक पाठ्यक्रम पूरा करने, और उत्तर-माध्यमिक पाठ्यक्रम पूरा करने की दरों में सुधार के लिए सार्वजनिक जुड़ाव अभियान” चलाना है। इसका अर्थ यह है कि इस पैसे को उपरोक्त मीडिया पर किये गये खर्च के आंकड़ों में शामिल नहीं किया गया है। निश्चित रूप से ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। तकनीकी क्षेत्र के इस अरबपति की छानबीन करने वाले कुछ खोजी पत्रकारों में से एक, टिम श्वाब ने मिंटप्रेस को बताया, “कर-छूट हासिल करने वाला एक विशेषाधिकार प्राप्त खैराती संस्थान, जो अक्सर पारदर्शिता की डुगडुगी पीटता रहता है, यह उल्लेखनीय है कि ‘गेट्स फाउंडेशन’ अपने वित्तीय प्रवाह को कितना गुप्त रखता है।” .

इन आंकड़ों में वे अनुदान भी शामिल नहीं हैं जो अकादमिक पत्रिकाओं के लिए लेख तैयार करने के उद्देश्य से दिये गये हैं। हालांकि ये लेख बड़े पैमाने पर पढ़े जाने के लिए नहीं लिखे जाते हैं, फिर भी नियमित रूप से मुख्यधारा की प्रेस में प्रकट होने वाली कहानियां इन्हीं पर आधारित होती हैं और ये लेख ही प्रमुख मुद्दों के बारे में मतों को आकार देने में मदद करते हैं। ‘गेट्स फाउंडेशन’ ने भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अकादमिक स्रोतों को धन मुहैया कराया है। इसने प्रतिष्ठित चिकित्सा पत्रिका ‘द लैंसेट’ के लिए सामग्री तैयार करने के लिए कम से कम 1.36 करोड़ डॉलर दिये हैं।

और, ज़ाहिर है, विशुद्ध रूप से शोध परियोजनाओं के लिए विश्वविद्यालयों को दिये गये पैसे का असर भी अंततः इन शोधों पर आधारित अकादमिक पत्रिकाओं में दिखता है, और अंततः फैलते हुए जनसंचार माध्यमों तक पहुंच जाता है। शिक्षाविदों पर अपने लेखों को प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित कराने के लिए भारी दबाव रहता है। विश्वविद्यालयों के विभागों का मंत्र होता है, “प्रकाशित कराओ, नहीं तो भाड़ में जाओ।” इसलिए, इस प्रकार के अनुदानों का भी हमारे मीडिया पर प्रभाव पड़ता है। इस तरह से हम देखते हैं कि उपरोक्त आंकडों में न तो इन अनुदानों को जोड़ा गया है, न ही पुस्तकों की छपाई या वेबसाइटों की स्थापना के लिए दिये गये अनुदानों को जोड़ा गया है, जबकि वे भी मीडिया के ही रूप हैं।

देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर

     तकनीकी क्षेत्र के अन्य अरबपतियों की तुलना में, गेट्स ने मीडिया नियंत्रक के रूप में अपनी प्रोफ़ाइल अपेक्षाकृत कम रखी है। ‘अमेज़ॉन’ के संस्थापक जेफ बेजोस द्वारा 2013 में 25 करोड़ डॉलर में ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ की खरीद मीडिया पर प्रभाव का एक बहुत स्पष्ट और खुला रूप था, और ऐसा ही रूप ‘ई-बे’ के संस्थापक पियरे ओमिडयार द्वारा ‘द इंटरसेप्ट’ के मालिकाने वाली कंपनी ‘फर्स्ट लुक मीडिया’ का निर्माण भी था।

अपनी नीची उड़ान के कारण जांच-पड़ताल वाले राडार की सीमा में आये बगैर ही गेट्स और उनकी कंपनियों ने मीडिया में अत्यधिक प्रभाव हासिल कर लिया है। हम संचार (जैसे ‘स्काइप’, ‘हॉटमेल’), सोशल मीडिया (‘लिंक्डइन’) और मनोरंजन (‘माइक्रोसॉफ्ट एक्सबॉक्स’) के लिए ‘माइक्रोसॉफ्ट’ के स्वामित्व वाले उत्पादों पर पहले से ही निर्भर हैं। इसके अलावा, जिस हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर का हम संचार के क्षेत्र में उपयोग करते हैं, वह अक्सर 66 वर्षीय ‘सिएटलाइट’ के सौजन्य से आता है। इस लेख को पढ़ने वाले न जाने कितने लोग ‘माइक्रोसॉफ्ट सरफेस’ या ‘विंडोज फोन’ पर ऐसा कर रहे हैं और ‘विंडोज’ ऑपरेटिंग सिस्टम के जरिए ऐसा कर रहे हैं। इतना ही नहीं, ‘माइक्रोसॉफ्ट’ के पास ‘कॉमकास्ट’ और ‘एटीएंडटी’ जैसे मीडिया दिग्गजों में भी हिस्सेदारी है। और ‘एमएसएनबीसी’ में भी “एमएस” का मतलब ‘माइक्रोसॉफ्ट’ ही है।

मीडिया के ‘गेट्स’ के रखवाले

‘गेट्स फाउंडेशन’ हमारे मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र के एक महत्वपूर्ण हिस्से को वित्तपोषित कर रहा है, जिससे निष्पक्षता संबंधी गंभीर समस्याएं खड़ी हो रही हैं। 2011 में गेट्स के स्थानीय ‘सिएटल टाइम्स’ ने लिखा था, “मीडिया संगठनों को दिये जा रहे  ‘गेट्स फाउंडेशन’ के अनुदान से … हितों के टकराव के स्पष्ट सवाल उठते हैं: जब मौद्रिक नियंत्रण ही एक प्रमुख संस्थान के हाथों में होगा तो रिपोर्टिंग निष्पक्ष कैसे हो सकती है?” इस अखबार ने यह सब तब लिखा था जब उसने अपने ‘एजुकेशन लैब’ के लिए ‘गेट्स फाउंडेशन’ से आर्थिक मदद अभी स्वीकार नहीं किया था।

श्वाब के शोध में पाया गया है कि हितों का यह टकराव बहुत ऊपर तक जाता है: ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के दो स्तंभकार वर्षों से ‘गेट्स फाउंडेशन’ के बारे में स्पष्ट रूप से लिख रहे थे, बिना यह जाहिर किये कि वे ‘द सॉल्यूशंस जर्नलिज्म नेटवर्क’ नाम के एक अन्य समूह के लिए भी काम करते हैं। जैसा कि ऊपर दिखाया गया है, ‘गेट्स फाउंडेशन’ की चैरिटी से इस समूह ने भी 70 लाख डॉलर से अधिक प्राप्त प्राप्त किये हैं।

इस साल की शुरुआत में, श्वाब ने ‘द ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म’ के लिए ‘कोवैक्स’ (कोविड-19 टीके को वैश्विक स्तर पर उपलब्ध कराने की परियोजना) के बारे में एक समाचार पर रिपोर्टिंग सहयोग करने से इनकार कर दिया था। उन्हें यह संदेह था कि गेट्स जिस तरह से इस प्रतिष्ठान में पैसा लगा रहे थे, उससे गेट्स के इतने प्रिय विषय पर सटीक रूप से रिपोर्टिंग करना असंभव हो जाएगा। यही हुआ भी। पिछले महीने जब यह लेख प्रकाशित हुआ था, तो इसमें इस दावे पर बार-बार जोर दिया गया था कि  गेट्स का ‘कोवैक्स’ की विफलता से कोई लेना-देना नहीं था। ‘गेट्स फाउंडेशन’ के इसी रुख को फाउंडेशन के बयान से लिये गये उद्धरणों की बदौलत पुष्ट करने की कोशिश की गयी थी। 5,000 से ज्यादा शब्दों वाली इस खबर के अंत में ही यह पता चला कि इसमें जिस संगठन का बचाव किया जा रहा था वही अपने इन कर्मचारियों के वेतन का भुगतान कर रहा था।

श्वाब इसे “गेट्स द्वारा वित्तपोषित पत्रकारिता के खतरों की एक केस स्टडी” के रूप में वर्णित करते हैं। वे कहते हैं, “मुझे विश्वास नहीं है कि गेट्स ने ‘द ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म’ को बताया होगा कि क्या लिखना है। मुझे लगता है कि निस्संदेह अवचेतन रूप से ब्यूरो को पता था कि उन्हें इस कहानी को बताने का एक ऐसा तरीका खोजना होगा जो उनको धन देने वाले को निशाना न बनाये। वित्तीय हितों के टकरावों के पक्षपाती प्रभाव जटिल लेकिन बहुत वास्तविक और विश्वसनीय होते हैं।”

‘मिंटप्रेस’ ने टिप्पणी के लिए ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ से भी संपर्क किया, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया।

गेट्स, जिन्होंने एकाधिकार का निर्माण करके और अपनी बौद्धिक संपदा की उत्साह पूर्वक रक्षा करके अपनी क़िस्मत को संजोया है, उनके माथे पर कोरोनावायरस वैक्सीन को दुनिया भर में उपलब्ध कराने में विफलता का महत्वपूर्ण लांछन है। न केवल ‘कोवैक्स’ योजना उनके कारण विफल हुई, बल्कि उन्होंने ‘ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय’ पर दबाव डाला कि वह सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित अपनी वैक्सीन को सर्वसुलभ न बनाये और वह एक निजी कॉरपोरेशन ‘ऐस्ट्राजेनेका’ के साथ साझेदारी करे। इसका परिणाम यह हुआ कि जो वैक्सीन सभी के लिए मुफ्त में उपलब्ध हो सकती थी, उसे भुगतान न कर पाने वालों को इसका उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया गया। गेट्स ने इस विश्वविद्यालय को 100 से अधिक दान दिए हैं, जो कुल मिलाकर करोड़ों डॉलर की रकम है। संभवतः इस पैसे ने भी इस निर्णय में कुछ भूमिका निभायी। कम आय वाले देशों में आज तक कोविड वैक्सीन की एक खुराक भी 5% से भी कम लोगों को मिल पायी है। इसकी वजह से हुई मौतों की संख्या बहुत ज्यादा है।

दुर्भाग्य से, गेट्स और उनके नेटवर्क की इन वास्तविक आलोचनाओं पर कुछ अन्य बातें भारी पड़ जाती हैं और उन्हीं की चर्चा ज्यादा होती है। जैसे कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए इन टीकों में माइक्रोचिप्स डालने जैसे बे-सिर-पैर वाले ‘षड्यंत्रकारी सिद्धांत’। इसका मतलब यह है कि माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक की वास्तविक आलोचनाओं को अक्सर धन मिलना बंद हो जाता है और उन्हें एल्गोरिदम (इंटरनेट आधारित निर्णय लेने की प्रक्रिया) द्वारा भी दबा दिया जाता है। इसका अर्थ है कि उन प्रतिष्ठानों को ऐसे विषयों को कवर करने से दृढ़ता से मना कर दिया जाता है, क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें धन से वंचित कर दिया जाएगा। दुनिया के इस दूसरे सबसे धनी व्यक्ति की जांच न हो पाने का परिणाम यह होता है कि यह ढेर सारे अन्य संदेहों को जन्म देता है।

गेट्स पर ये संदेह निश्चित रूप से वाजिब हैं। जेफरी एपस्टीन जैसे कुख्यात व्यक्ति के साथ अपने दशकों के लंबे और गहरे संबंधों के अलावा, अफ्रीकी समाज को मौलिक रूप से बदलने के उनके प्रयास, और विवादास्पद विशाल रासायनिक कॉरपोरेशन ‘मोनसेंटो’ में उनके निवेश के अलावा, अमेरिकी चार्टर स्कूल आंदोलन के पीछे प्रमुख संचालक संभवतः वही हैं। यह आंदोलन एक ऐसा प्रयास है जो अमेरिकी शिक्षा प्रणाली का अनिवार्य रूप से निजीकरण चाहता है। शिक्षक संघों के बीच चार्टर स्कूल बेहद अलोकप्रिय हैं, क्योंकि इस आंदोलन को वे अपनी स्वायत्तता को कम करने वाला और छात्रों को क्या और कैसे पढ़ाया जाता है, इस बारे में सार्वजनिक निगरानी को कम करने के प्रयास के रूप में देखते हैं।

बड़े आराम से और ज्यादा अमीर

अधिकांश रिपोर्टों में, गेट्स के दान को परोपकारी भावों के साथ दिये जा रहे दान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। फिर भी कई लोगों ने इस मॉडल के अंतर्निहित दोषों की ओर इशारा किया है। वे बताते हैं कि यह मॉडल अरबपतियों को यह तय करने की अनुमति देते हुए कि वे अपने पैसे के साथ क्या करते हैं, उन्हें सार्वजनिक एजेंडा निर्धारित करने की अनुमति भी दे देता है, जिससे उन्हें समाज पर नियंत्रण की बेहिसाब ताक़त मिल जाती है। ब्रिटेन के एसेक्स विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर और ‘नो सच थिंग ऐज ए फ्री गिफ्ट: द गेट्स फाउंडेशन एंड द प्राइस ऑफ फिलैन्थ्रोपी’ नामक पुस्तक की लेखिका लिन्से मैकगोय कहती हैं, “आजकल परोपकार का इस्तेमाल वैश्विक असमानता को और ज्यादा बढ़ाने वाले आर्थिक शोषण के विभिन्न रूपों से ध्यान हटाने के लिए जानबूझकर किया जा सकता है और यही किया जा रहा है।” वे आगे कहती हैं:

“यह नया ‘परोपकारी पूँजीवाद’ सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों की कीमत पर कॉरपोरेट क्षेत्र की शक्ति को बढ़ाकर लोकतंत्र के लिए खतरा बनता जा रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन लगातार बजट की कमी का सामना करते हैं, जिसका एक कारण यही है कि लाभ कमाने वाले संगठनों को ऐसी सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने के लिए ज्यादा से ज्यादा पुरस्कृत किया जा रहा है जिन्हें  निजी क्षेत्र की भागीदारी के बगैर और सस्ते में उपलब्ध कराया जा सकता था।”

पूर्व ब्रिटिश प्रधान मंत्री क्लेमेंट एटली ने कहा था, “दान एक बेजान, उदासीन सी, प्रेमविहीन चीज है। अगर कोई अमीर आदमी गरीबों की मदद करना चाहता है, तो उसे खुशी-खुशी अपना टैक्स देना चाहिए, न कि अपनी मर्जी के हिसाब से पैसा।”

इसका कोई अर्थ नहीं कि गेट्स का पैसा प्राप्त करने वाले मीडिया या अन्य संगठन अविश्वसनीय रूप से भ्रष्ट हैं, और न ही इसका कि ‘गेट्स फाउंडेशन’ दुनिया में बिल्कुल कोई अच्छा काम नहीं करता है। लेकिन यह हितों के एक स्पष्ट टकराव से हमें रूबरू कराता है, जिसके तहत हम जिन संस्थानों पर भरोसा करते हैं कि वे इस धरती के इतिहास के सबसे अमीर और सबसे शक्तिशाली जिन व्यक्तियों पर जवाबदेही तय करेंगे, वे खुद उन्हीं द्वारा गुपचुप तरीके से वित्त पोषित किये जा रहे हैं। हितों का यह टकराव वही है जिसे कॉरपोरेट मीडिया ने बड़े पैमाने पर नजरअंदाज करने की कोशिश की है, जबकि कथित दानवीर और परोपकारी गेट्स बड़े आराम से और ज्यादा अमीर होते जा रहे हैं।

(मैग्सपंचडॉटकॉम से साभार)

 (अनु. शैलेश ने किया है।)

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Nishant
Nishant
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1 year ago

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