ज्योति मौर्या मामले में सामने आया मर्दवादी समाज का क्रूर चेहरा

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ज्योति मौर्या मामले में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। पति-पत्नी, दोनों में से सही-गलत जो भी है पर अभी तक इस पूरे मामले में जो कुछ भी हुआ है, उसने हमारे पितृसत्तात्मक समाज की पोल जरूर खोल दी है। इस मामले को तूल दिए जाने के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं, जिन्हें समझना बहुत जरूरी है।

पंचायत राज विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी आलोक मौर्य की ज्योति से शादी हुई। शादी के बाद पढ़ाई जारी रखते हुए ज्योति पीसीएस अधिकारी बनी और अब पति-पत्नी के बीच तीसरे व्यक्ति को लेकर विवाद हुआ तो यह मामला राष्ट्रीय खबर बन गया है। अभी इस मामले में रोज नए खुलासे हो रहे हैं और पति-पत्नी दोनों एक दूसरे पर लगातार आरोप लगा रहे हैं।

यह तो वक्त ही बताएगा कि पति-पत्नी में कौन सही है पर इस मामले के सुर्खियों में आने के बाद से ही सोशल मीडिया पर शादी के बाद महिलाओं की पढ़ाई को लेकर तरह-तरह की बातें कही जाने लगी हैं। जिस देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए सती प्रथा पर रोक, विधवा पुनर्विवाह जैसे आंदोलन हुए, वहां महिलाओं की स्वतंत्रता की वास्तविक स्थिति एक बार फिर हमारे सामने आ गई है।

घटना के बाद से महिलाओं की स्वतंत्रता को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल उठने लगे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी आया कि घटना के बाद से बहुत सी महिलाओं ने परिवार के दबाव में आकर नौकरी की तैयारी के लिए चल रही कोचिंग छोड़ दी हैं।

सोशल मीडिया में कुछ इस तरह की तस्वीरें वायरल हैं, घटना से जुड़ी रील्स की भी भरमार है।

ज्योति मौर्या नाम को एक गाली बना दिया गया

लेखिका प्रतिमा सिन्हा ने ज्योति मौर्या घटनाक्रम के बाद महिलाओं को निशाना बनाए जाने पर लिखा है-

“मैं ज्योति मौर्या कहूं, तुम गाली समझना।
देश की नई गाली ईजाद हो चुकी है… ज्योति मौर्या।
कहने की जरूरत नहीं कि ये गाली औरतों के लिए रिज़र्व है। अब कोई पति अपनी पत्नी को ज्योति मौर्या नहीं बनाना चाहता। शायद कोई पत्नी भी ज्योति मौर्या नहीं बनना चाहती। आखिर चरित्र का सवाल है, स्त्री के लिए चरित्र ही सब कुछ है।

अब कोई पति भी अपनी पत्नी को एसडीएम, एडीएम, डीएम, कलेक्टर तो छोड़िए… डॉक्टर, इंजीनियर भी भूल जाइए, टीचर, क्लर्क या कलाकार कुछ नहीं बनाएगा।

इस भूल में मत रहिए कि लड़की अपनी मेहनत से कुछ बनती है। एक बार शादी हो गई तो वो पति की प्रॉपर्टी है। फिर उसे जो बनाता है, पति ही बनाता है। पति के बनाए बिना पत्नियां कुछ भी नहीं बनतीं।

सुना नहीं है क्या कि शादी के बाद पति जब इजाज़त देता है, तभी पत्नी कुछ करती है और ये इजाज़त हर बात के लिए ली जाती है।
साज, सिंगार, खाना, कपड़ा, घूमना, बोलना, उठना, बैठना, हर बात के लिए अनुमति पत्र ज़रूरी है।

पत्नी को खुशी से अनुमति पत्र देने वाले पति देवतातुल्य होते हैं। पति के समर्थन, सहयोग और योगदान के बिना पत्नी कुछ नहीं कर सकती और अगर कर लिया तो ऐसी पत्नियां चरित्रवान नहीं होतीं।

तो अब तय है कि लड़कियों का शादी के बाद कुछ भी बनना बंद।

तो लड़कियों सोच लो,

अब शादी करने और किसी की पत्नी बनने से पहले ही एसडीएम-वेसडीएम, कलेक्टर-वलेक्टर, डॉक्टर-वॉक्टर या कलाकार-वलाकार, जो बनना है, बन जाना। उसके बाद कोई चांस नहीं मिलने वाला अब।

देश में अब पत्नियों को ‘ज्योति मौर्या’ नहीं बनने देने का अभियान चालू हो चुका है।”

इस घटना से लोगों की असलियत सामने आई

दिल्ली की रहने वाली रश्मि (परिवर्तित नाम) शादी से पहले एक बड़े मीडिया संस्थान से जुड़ी थीं और शादी के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी। बच्चा होने के बाद दो साल से उसकी परवरिश में लगी रश्मि अब फिर काम करना चाहती हैं और तीन महीने से वह अपने पति से इस पर बात कर रही हैं पर उन्हें अब तक काम के लिए हां नहीं कहा गया है।

वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में औपचारिक तौर पर पांच में से सिर्फ एक महिला काम करती है और यह आंकड़े पाकिस्तान से भी कम हैं।

महिलाओं को काम पर जाने के लिए पति की रजामंदी क्यों लेनी पड़ती है और ज्योति मौर्या से जुड़ी घटना का समाज पर क्या असर पड़ेगा, सवाल का जवाब ढूंढने के लिए स्त्री अधिकारवादी गीता गैरोला से बात की गई। उन्होंने कहा कि “कोई स्त्री पितृसत्तात्मक समाज की वर्जना को तोड़ती है तो उसका नाम बदनाम होता है। मैं अपने पति को डीएम बनाना चाहती थी, नहीं बने। कोई किसी को कुछ नहीं बनाता, एक सपोर्ट सिस्टम होता है बस।”

उन्होंने कहा कि ‘काम करने, पढ़ने की अनुमति दी’ यह वाक्य ही बहुत गहरी बात है कि औरत को अनुमति की आवश्यकता क्यों होती है? वह घर के काम करती है, बच्चे संभालती है, क्या उसका यही काम है? लोग कह रहे हैं कि ज्योति मौर्या के पति ने उसे पढ़ाने पर अपनी कमाई खर्च की, तो क्या घर के काम और बच्चे संभालने की कोई फीस नहीं होती। मुझे तो खुशी है कि इस घटना से लोगों की असलियत सामने आ रही है, वो एक महिला के आगे बढ़ने पर अपनी खीज निकाल रहे हैं।

पुरुषों की इस खीज के पीछे के मनोवैज्ञानिक कारण

सोशल मीडिया पर इस तरह ज्योति मौर्या को निशाने पर लिए जाने के मनोवैज्ञानिक कारणों को जानने के लिए मनोवैज्ञानिक सत्य प्रकाश यादव से बात की गई। उन्होंने कहा कि “लोग इस घटना के बारे में ज्यादा पढ़ और बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि किसी भी व्यक्ति के रवैये में बदलाव के लिए तीन प्रमुख कारक प्रभाव डालते हैं और यह सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।”

सत्य प्रकाश कहते हैं कि “पहला कारक है अतिरिक्त जानकारी की उपलब्धता। आजकल हम सभी सोशल मीडिया पर अधिक समय बिता रहे हैं और कहीं न कहीं हमें इससे आनंद भी मिलता है। इसी कारण हम सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त किसी भी प्रकार की जानकारी पर आसानी से विश्वास कर लेते हैं। ऐसा सामाजिक मनोविज्ञान में कहा गया है कि जब हमें एक ही विषय पर अधिक से अधिक जानकारी विभिन्न माध्यमों से प्राप्त होती है तब हमारा दृष्टिकोण बदलने की संभावना अत्यधिक हो जाती है। यहां भी यही हुआ सब जगह अभी तक यही पढ़ा कि एक महिला ज्योति मौर्या ने अपने पति को धोखा दिया तो लोगों ने हर महिला के बारे में यही विचार बना लिया।”

उन्होंने कहा कि “दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारक सांस्कृतिक है। आज भी हमारा समाज पुरुष प्रधान है, हमारे समाज में पहले से ही एक सांस्कृतिक दृष्टिकोण है कि जब महिलाओं को अधिकार मिलते हैं तो उनका दृष्टिकोण बदल जाता है। यही वजह है कि यहां ज्योति को एक खलनायिका की तरह पेश किया गया।”

सत्य प्रकाश कहते हैं कि “तीसरा और आखिरी कारक प्रेरक संचार- जो सुनने वाले व्यक्तियों के लिए आकर्षक एवं मनमोहन हो और उसी प्रकार का संचार बार-बार उनके सामने आने लगे तो यह उनके दृष्टिकोण को बदल देता है। यहां बार-बार एक महिला ज्योति मौर्या की कहानी लोगों को सुनाई दे रही है तो उनके रवैये में भी बदलाव आ रहे हैं।

(हिमांशु जोशी लेखक और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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