टीएमसी के चार नेताओं के हाउस अरेस्ट के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपनी याचिका सीबीआई ने वापस ले ली है। उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई को याचिका को वापस लेने की इजाजत दे दी है और इस आधार पर याचिका ख़ारिज कर दिया है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस बी आर गवई की पीठ के समक्ष हुयी। सीबीआई ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दाखिल की थी, जिसके तहत नारदा घोटाले में राज्य के मंत्रियों सहित चार वरिष्ठ अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेताओं को जेल में बंद होने के बजाय घर में नजरबंद होने का लाभ दिया गया था।
जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने सीबीआई के इस तर्क पर अनुकूल रुख नहीं अपनाया कि टीएमसी मंत्रियों के आचरण के कारण कलकत्ता के माहौल का असर सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा 17 मई को जमानत देने पर पड़ सकता है। सीबीआई द्वारा अपनी याचिका वापस लेने का फैसला करने के बाद अदालत ने आदेश दिया, हम मेरिट के आधार पर कुछ नहीं दे रहे हैं। सालिसिटर जनरल ने स्वीकार किया है कि कलकत्ता हाईकोर्ट की 5 जजों की पीठ इन मुद्दों पर गौर कर रही है। इस प्रकार, याचिका को वापस लेने और ऐसे सभी मुद्दों को उच्च न्यायालय के समक्ष उठाने की अनुमति मांगी गई है। अन्य सभी पक्षों को भी उच्च न्यायालय के समक्ष इस तरह के विवाद उठाने की स्वतंत्रता होगी।
दरअसल सीबीआई टीएमसी के चार बड़े नेताओं को हिरासत में ले कर पूछताछ करना चाहती है। लेकिन कोलकाता हाईकोर्ट ने उन नेताओं को हाउस अरेस्ट करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा है की नारदा घोटाले के ये आरोपी सीबीआई की निगरानी में रहेंगे और वहां पूछताछ हो सकती है। साथ ही हाईकोर्ट की पांच जजों की पीठ इस बात पर विचार कर रही है की इन आरोपियों को अग्रिम जमानत दी जाए या नहीं।
सीबीआई ने उच्चतम न्यायालय से मांग की थी कि हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाए।आरोपियों को अग्रिम जमानत न दी जाए। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई की ये अर्जी मानने से इनकार कर दिया और उनके सामने ये विकल्प रखा कि या तो याचिका वापस ले जाएं या वो इस याचिका को पूरा सुनने के बाद खारिज कर देंगे। तब सीबीआई ने याचिका वापस लेने पर अपनी सहमति जताई।
सीबीआई का ये तर्क था की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और कानून मंत्री ने अदालत और सीबीआई दोनों पर दबाव बनाया है और उन्हें आतंकित किया है। लेकिन पीठ ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति कानून को अपने हाथ में लेता है तो सीबीआई उसके खिलाफ कार्रवाई करे। चाहे कोई कितना बड़ा मंत्री हो वो कानून से ऊपर नहीं है। उन मंत्रियों की वजह से आरोपियों को सजा नहीं दी जा सकती। ज़मानत आरोपियों का अधिकार है और जब पांच जजों की बेंच उस मामले पर हाईकोर्ट में सुनवाई कर रही है तो उच्चतम न्यायालय क्यों दखल दे। पीठ ने कहा कि चारों आरोपी सीबीआई की निगरानी में ही हाउस अरेस्ट हैं जहां सीसीटीवी भी लगा है फिर वो घोटाले के किसी सबूत को कैसे नष्ट कर सकते हैं। ये सब सुनने के बाद सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी अर्जी वापस लेना बेहतर समझा।
कोलकाता हाईकोर्ट द्वारा 21 मई को नारदा घोटाला मामले के आरोपी टीएमसी के तीन नेताओं समेत चार नेताओं को न्यायिक हिरासत में जेल भेजने की बजाए हाउस अरेस्ट करने और मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। दरअसल सीबीआई ने कोलकाता हाईकोर्ट में पांच सदस्यीय पीठ के समक्ष इन आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर सोमवार को होने वाली सुनवाई को स्थगित करने वाले आवेदन में कहा है कि उसने 21 मई के हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस आधार पर सीबीआई ने हाईकोर्ट में सुनवाई न करने की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार नहीं किया और सुनवाई की।
उच्चतम न्यायालय सुनवाई के दौरान सीबीआई की तरफ से तुषार मेहता ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि ये आदेश कानून व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। वहीं बंगाल सरकार की तरफ से विकास सिंह ने कहा कि वैकेशन बेंच के सामने एसएलपी लगने का प्रावधान नहीं है, कौन रजिस्ट्री को कंट्रोल कर रहा है। इसके बाद पीठ ने सीबीआई से पूछा कि क्या गिरफ्तारी से पहले आरोपी को नोटिस दिया गया था?
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सीबीआई मुख्यालय की घेराबंदी की गई थी, हजारों लोग वहां जमा थे, पत्थर फेंके जा रहे थे, ताकि आरोपियों को मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं कर सकें। उनको हाई कोर्ट के सामने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश करना पड़ा। जब सुनवाई हो रही थी उस समय कानून मंत्री अदालत में मौजूद रहे, जबकि वह मामले में पार्टी नहीं थे। न्याय व्यवस्था में लोगों का विश्वास क्षीण हो जाएगा, यह कानून व्यवस्था का फेलियर है, ऐसा कई बार हुआ है।
इस पर पीठ ने कहा कि आप उच्च न्यायालय पर आरोप लगा रहे हैं। तब भी जब उसने पहले ही असाधारण कार्य किया है। पीठ ने अपनी टिप्पणी देते हुए कहा, हम कानून मंत्री या मुख्यमंत्री की कार्रवाई का समर्थन नहीं करते। न्यायमूर्ति गवई ने टिप्पणी की कि आमतौर पर विशेष पीठ का गठन स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किया जाता है । यह पहली बार है कि स्वतंत्रता को छीनने के लिए एक विशेष पीठ का गठन किया गया।
इसके बाद तुषार मेहता ने कहा कि आरोपियों का समर्थन करने के लिए राज्य की सीएम पुलिस थाने में प्रवेश कर जाती हैं। यह इसी राज्य में हो रहा है। उन्होंने कहा कि मैंने जो तथ्य रखे हैं वो अदालत को संज्ञान में लेने के लिए काफी हैं। तुषार मेहता ने पीठ से इस मामले को दूसरी जगह ट्रांसफर करने की मांग करते हुए कहा कि इससे हमारे लोगों का मनोबल गिरेगा। यह इतना गंभीर मामला है कि इसे सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता है कि हाईकोर्ट में इसकी सुनवाई चल रही है या कोई नोटिस नहीं दिया गया था। कोर्ट रूम में सरकार के मंत्री तक मौजूद थे। इससे राज्य सरकार की मंशा पता चलती है।
पीठ ने कहा कि हम धरने की सराहना नहीं कर रहे हैं, लेकिन अगर मुख्यमंत्री धरने पर बैठी हैं तो क्या आरोपी को भुगतना पड़ेगा? पीठ ने कहा कि हमें नहीं लगता है कि भीड़ जुटाकर किसी कोर्ट पर दबाव बनाया जा सकता है। अगर हम ऐसा मान लें तो यह निचली अदालतों और हाईकोर्ट को हतोत्साहित करेगा। आप चाहें तो अभी अपना केस वापस लेकर हाईकोर्ट में अपनी बातें रख सकते हैं।
कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ के जजों में 21 मई को आरोपियों को अंतरिम जमानत देने के मामले में अलग-अलग राय थी। जहां एक जज का कहना था कि आरोपियों को अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए, वही दूसरे जज की राय बिल्कुल उलट थी। यही वजह थी कि खंडपीठ ने सभी आरोपियों को हाउस अरेस्ट में भेजने का निर्णय लिया था। साथ ही खंडपीठ ने इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेज दिया था। मालूम हो कि 17 मई को सीबीआई ने टीएमसी नेता फरियाद हकीम, सुब्रतो मुखर्जी, मदन मित्रा और शोभन चटर्जी को नारदा घोटाला मामले में गिरफ्तार किया था।
साल 2016 में बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग टेप का खुलासा किया गया था। ऐसा दावा किया गया था कि ये टेप साल 2014 में रिकॉर्ड किए गए थे। इसमें टीएमसी के मंत्री, सांसद और विधायक और कोलकाता के मेयर को कथित रूप से एक काल्पनिक कंपनी के प्रतिनिधियों से रकम लेते दिखाया गया था। यह स्टिंग ऑपरेशन नारदा न्यूज पोर्टल के सीईओ मैथ्यू सैमुअल ने किया था। साल 2017 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने इन टेप की जांच का आदेश सीबीआई को दिया था।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)