जो होना था वह हो गया। जिसकी संभावना थी वह संभव हो गया। झामुमो वाले चम्पई सोरेन आखिरकार बीजेपी में शामिल हो गए। मजे की बात है कि चम्पई को दिल्ली के बड़े बीजेपी नेताओं ने पार्टी में शामिल नहीं कराया। अमित शाह और मोदी ने बड़े विचार के साथ यह खेल किया कि चंपई को रांची में ही बीजेपी में शामिल कराया जाए ताकि चम्पई के साथ उनके हजारों समर्थक भी एक साथ बीजेपी में आ सकें। इससे झामुमो को बड़ा झटका लगेगा और बीजेपी चुनावी माहौल में आगे बढ़ती दिखेगी।
हालांकि यह सब बीजेपी के बड़े नेताओं का तर्क भर है। चम्पई से जुड़े सलाहकार खूब खुश हैं। ख़ुशी इस बात की है कि उन्होंने जैसा सोचा वैसा ही हुआ। चम्पई के सीएम रहते जितने घपले घोटाले किये गए थे अब भला उसकी जांच कौन करेगा? वे बेदाग़ निकल गए और हेमंत को सबक भी सिखा गए। रांची में जब चम्पई बीजेपी के मंच पर चढ़ रहे थे तभी चम्पई के सलाहकार कुछ इसी तरह की बातें करते सुने गए। जो दलाल नुमा सलाहकार असम में डेरा डाले हुए थे वह भी आज बीजेपी के मंच पर खड़े थे। ठहाका लगा रहे थे।
आगे बढ़ें इससे पहले चम्पई के भाजपाई होने पर एक नजर डालने की ज़रूरत है। रांची के धुर्वा मैदान में आज बीजेपी का बड़ा मंच सजा था। बीजेपी के सभी नेता मंच पर पधारे थे। सभी तो थे। झारखंड बीजेपी के प्रभारी शिवराज सिंह और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा बड़े खुश थे। उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। लग रहा था मानो बजी मार ले गए हों। उधर एक तरफ बाबूलाल मरांडी भी बैठे थे। उनके साथ उनके समर्थक भी बिराजे थे। लगे हाथ अर्जुन मुंडा भी पधार लिए थे। अर्जुन मुंडा झारखंड के कई बार सीएम रह चुके हैं लेकिन अब झारखंड में उनकी राजनीति कोई मायने नहीं रखती। वे केंद्र सरकार में अभी मंत्री हैं और खास तौर पर वे इसी कार्यक्रम के लिए दिल्ली से यहां पधारे थे।
इसके साथ ही बड़ी संख्या में बीजेपी के लोग भी थे और फिर आम जनता जनार्दन। अधिकतर जनता बिहार की रहने वाली थी। इन लोगों की पृष्ठभूमि बिहार की रही है लेकिन झारखंड में जीवन यापन करते रहे हैं। याद रहे झारखंड में बिहार के रहने वाले अधिकतर लोग बीजेपी के अंध समर्थक हैं और आदिवासी समाज की राजनीति को स्वीकार नहीं करते। झारखंड में इन लोगों को बाहरी माना जाता है लेकिन यह भी सच है कि झारखंड में बीजेपी को सफल कराने में ये बहरी लोग काफी अहम रहे हैं।
चम्पई सोरेन ने बीजेपी का दामन थाम लिया। चम्पई के साथ उनके बेटे बाबूलाल सोरेन ने भी बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की। खूब तालियां बजीं और जयकारे भी लगे। बाद में चम्पई बीजेपी कार्यालय भी गए और उनकी वहां आवभगत की गई।
धुर्वा के मैदान से सभी चले गए। मंच भी बिखर गया। टेंट वाले टेंट के सामान को समेटने लगे। कुछ पत्रकार छोटी बात कर रहे थे। उन छोटे नेताओं में कुछ मरांडी के लोग थे तो कुछ चम्पई के लोग। मरांडी समर्थक कहे सुने गए कि ये अच्छा नहीं हुआ। चंपई कितने दिनों तक बीजेपी में रह पाएंगे? अगर बीजेपी उन्हें आगे बढ़ाती है तो बाकी नेताओं का क्या होगा? कलह तो बढ़ेगा ही। बाबूलाल मरांडी अगले सीएम के दौर में हैं और ऐसा नहीं हुआ तो खेल ख़राब हो सकता है।
पत्रकार मजा ले रहे थे और कई और सवालों को से घेर रहे थे। इसी बीच चंपई समर्थक एक नेता ने कहा कि बीजेपी वालों ने चंपई को सीएम बनाने के लिए ही तो लाया है। अगर वे सीएम नहीं बनेंगे तो यहाँ क्यों रहेंगे? कोल्हान में अगर चंपई बेहतर करेंगे तो बीजेपी को उन्हें सीएम तो बनाना होगा और ऐसा नहीं हुआ तो खेल ख़राब भी हो सकता है।
एक पत्रकार ने चंपई समर्थक से पूछा कि आप लोग तो बीजेपी वालों को हमेशा कोसते रहे हैं। आप लोगों की पहचान तो तीर धनुष और शिबू सोरेन की तस्वीर रही है और अब मोदी और बाबू लाल की तस्वीर के साथ ही कमल चिन्ह से आपको परहेज नहीं होगा। बेचारा समर्थक चुप हो गया। खूब कुरेदा गया तो कहा कि यह बात तो ठीक है। लेकिन देखिये आगे क्या होता है। जो नेता जी करेंगे वही हम लोग भी करेंगे। चुनाव तक तो देखना हो होगा।
टेंट समेत रहे लोगों में भी एक भगवाधारी खड़ा था। वह नेता तो नहीं था लेकिन नेतागिरी का शौक पाले हुए लगता था। बिहार का था। तपाक से बोल पड़ा। गए देखिये क्या होता है। पहला काम तो हो गया। अब चंपई को स्थापित किया जाएगा फिर झामुमो और कांग्रेस के कई नेताओं को तोड़ा जायेगा। यह जो असम वाले नेता हैं उन्हें कम मत समझिये। पहले से ही खेल चल रहा था। तय मानिये दर्जन भर लोग झामुमो और कांग्रेस से निकल सकते हैं और बीजेपी में जा सकते हैं। बीजेपी ने यही काम चम्पई को दिया है और कहा है कि अब अगला ऑपरेशन शुरू करो और फिर अगला सीएम बन जाओ।
उधर रांची के सीएम आवास से लेकर सीएम कार्यालय तक इस खेल की चर्चा होती रही। झामुमो के नेताओं की भी बैठक हुई और कांग्रेस के नेताओं ने भी अपनी बैठक की। सीएम हेमंत सोरेन से पत्रकार मिले लेकिन उन्होंने कोई बड़ा बयान नहीं दिया। वे मौन ही रहे। मानो कोई बड़ी बात को लेकर कोई प्लानिंग कर रहे हों। खबर मिली कि झामुमो के कुछ नेताओं ने दिल्ली से संपर्क साधा है। लेकिन यह सम्पर्क किससे किया गया कुछ पता नहीं चला।
सीएम कार्यालय में बहुत से कर्मचारी काफी खुश भी थे तो बहुत दुःख भी प्रकट कर रहे थे। एक नौकरशाह ने कहा कि इस राज्य का भला कोई नहीं कर सकता। जब पार्टी बनाने वाले ही पार्टी छोड़ने लगे तो फिर यकीन किस पर किया जाये। झारखंड की यही त्रासदी है।
तो क्या झारखंड में अब बड़ा ऑपरेशन कमल चलेगा? अब सबकी जुबान पर यही बात हो रही है। बीजेपी को लग रहा है कि उसके लिए यह बड़ा मौक़ा है और इस मौक़े को चूकने नहीं देना है। कहते हैं कि बीजेपी अपने इस ऑपरेशन को आगे बढ़ाने के लिए कई तरह की तैयारी भी कर रखी है। इस खेल में पैसे भी बहाये जा सकते हैं और नेताओं के परिजनों को भी उपकृत किया जा सकता है।
खबर ये भी आ रही है कि झामुमो के दागी नेताओं को चिन्हित किया जा रहा है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि अभी हेमंत सरकार में दो मंत्रियों पर भी बीजेपी की ख़ास नजर है। बीजेपी हाईकमान ने चंपई को कह दिया है कि ऑपरेशन सफल किया जाए और सफल होने पर उन्हें वह सब मिल जाएगा जो उनकी चाहत है। उनके बेटे को भी बीजेपी में टिकट दिया जाएगा भले ही बीजेपी पर परिवारवाद का आरोप ही क्यों न लगे।
हालांकि चंपई के बीजेपी में आने से झामुमो की राजनीति पर क्या असर होगा यह तो देखने की बात होगी लेकिन इतना साफ़ है कि कोल्हान की 14 सीटों पर अब घमासान होगा और यही घमासान बीजेपी चाहती है। झमुमो और चंपई के अगले कदम पर सबकी निगाहें टिकी होंगी।
लेकिन यह सब सिक्के का एक पहलू है। दूसरा पहलू भी कम खतरनाक नहीं है। यह पहलू इंडिया और खासकर कांग्रेस से जुड़ा है। दिल्ली में अब इस बात की चर्चा चल रही है कि राहुल गाँधी के न चाहने के बाद भी कांग्रेस के भीतर कुछ बड़े नेट ‘ऑपरेशन पंजा’ की तैयारी भी कर रहे हैं। इस बात की जानकारी इंडिया गठबंधन के शीर्ष नेताओं को भी दी गई है। शरद पवार से लेकर ममता बनर्जी तक को यह बता दिया गया है कि ऑपरेशन पंजा चल सकता है।
ऑपरेशन पंजा बीजेपी के भीतर लोकसभा चुनाव जीतकर आये सौ से ज्यादा संसदों को लेकर है। इसके साथ ही बीजद और केसीआर और जगन रेड्डी को अपने पाले में लाने को लेकर है। लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि कांग्रेस के भीतर इस बात की चर्चा ज्यादा है कि बीजेपी के साथ जुड़े सौ से ज्यादा उन सांसदों को अपने पाले में लाया जाये जो कभी कांग्रेस के नेता हुआ करते थे। जानकारी के मुताबिक कांग्रेस की इनमें से कई बड़े नेताओं से बात भी हुई है जो कह रहे हैं कि वे भले ही बीजेपी के साथ हैं लेकिन उनकी आत्मा आज भी कांग्रेस के साथ है। जब कभी मौका मिलेगा वे पाला बदल सकते हैं।
तो क्या कांग्रेस का ऑपरेशन पंजा चालू होगा? कहा जा रहा है कि चार राज्यों में चुनाव के बाद इस ऑपरेशन को अंजाम दिया जा सकता है। अगर चार राज्यों के चुनाव में इंडिया गठबंधन की अच्छी जीत होती है तो ऑपरेशन को रोका जा सकता है और ऐसा नहीं हुआ तो बड़े स्तर पर ऑपरेशन पंजा को अंजाम दिया जाएगा और मोदी सरकार को गिरा दिया जाएगा। जानकार यह भी कह रहे हैं कि इसकी जानकारी बीजेपी को भी है और वह भी अपने कांग्रेस से आये नेताओं की हरकतों को भांपने के लिए आदमी लगा रहे हैं। लेकिन दो पैर वाले इंसान को भला कोई इंसान कब तक पहरे में रख सकता है? और होनी को कोई टाल नहीं सकता।
लेकिन इस पूरे खेल में जनता के साथ कितना विश्वासघात राजनीतिक पार्टियां कर रही हैं इसे भी दुनिया देख रही है। और यह सब इसलिए कि सत्ता और सरकार बची रहे। सत्ता गई तो जेल का दरवाजा सबके लिए खुला है। और जेल आखिर कौन जाना चाहता है? वर्षों की काली कमाई का फिर क्या होगा?
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)