योगी के पोस्टर मामले में युवा कांग्रेस नेताओं की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ लखनऊ में कांग्रेस का प्रदर्शन

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नई दिल्ली। युवा कांग्रेस नेताओं सुधांशु वाजपेयी और अश्विनी यादव की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने आज लखनऊ के जीपीओ पर प्रदर्शन किया। ये सभी गिरफ्तार दोनों नेताओं की तत्काल रिहाई की मांग की कर रहे थे।

शनिवार को सुधांशु वाजपेयी और अश्विनी यादव को उस समय गिरफ्तार कर लिया गया जब वे अपने घर पर थे। सुधांशु वाजपेयी और एक दूसरे नेता लालू कन्नौजिया पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के आपराधिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने का आरोप है। इसके साथ ही इसमें बीजेपी नेताओं संगीत सोम, सुरेश राणा, संजीव बालियान, साध्वी प्राची और उमेश मलिक के भी मुक़दमों की फ़ेहरिस्त शामिल है। इस सिलसिले में दर्ज एफआईआर में पुलिस ने दोनों पर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का आरोप लगाया है। और उनके ख़िलाफ़ 505 (1) बी, प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक एक्ट 1967 की धारा 12/3 तथा सार्वजनिक संपत्ति के नुक़सान की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।

लखनऊ में कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन।

प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक एक्ट ब्रिटिश काल के सबसे पुराने क़ानूनों में से एक है। इसके ज़रिये सरकार को प्रिंटिंग प्रेस और न्यूज़पेपर को रेगुलेट करने का अधिकार मिल जाता है। 

पोस्टर में सरधना से विधायक संगीत सोम, विधायक राना और मुज़फ़्फ़रनगर लोकसभा क्षेत्र से सांसद बालियान पर 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया है। मुख्यमंत्री आदित्य नाथ को गोरखपुर में हुए दंगों का मुख्य आरोपी बताया गया है इस सिलसिले में उस दौरान उनके ख़िलाफ़ लगायी गयी तमाम धाराओं का पोस्टर में ज़िक्र है। इसके साथ ही पोस्टर में आदित्य नाथ तथा मौर्या द्वारा अपने चुनावों के दौरान एफिडेविट के ज़रिये बताए गए तमाम मुक़दमों का भी उल्लेख इस पोस्टर में किया गया था। 

पोस्टर में सबसे ऊपर मोटे हर्फ़ों में लिखा था कि ‘जनता मांगे जवाब- इन दंगाइयों से वसूली कब’? अभी तक कन्नौजिया की गिरफ़्तारी नहीं हो पायी है।

यह कोई पहला पोस्टर नहीं है जिसे राजधानी लखनऊ में चस्पा किया गया है। पिछले 15 दिनों में वहाँ तरह-तरह के पोस्टर सामने आए हैं। इसके पहले स्वामी चिन्मयानंद और बीजेपी से निलंबित एमएलए कुलदीप सिंह सेंगर का पोस्टर ठीक उन होर्डिंग के बगल में लगाया गया था जिनमें सीएए विरोधी आंदोलनकारियों के फ़ोटो और नाम पता के साथ दर्ज थे।

सरकार द्वारा लगाई गयी इस होर्डिंग का स्वत: सज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसे 16 मार्च यानी कल तक हटाए जाने का आदेश दिया था। हालाँकि इस बीच हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गयी थी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अवकाश कालीन दो सदस्यीय बेंच ने उसकी सुनवाई की और उसने मामले को तीन सदस्यीय बेंच को सौंपने की चीफ़ जस्टिस से सिफ़ारिश कर दी है। हालांकि कोर्ट ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को स्टे नहीं दिया। जिससे यह उम्मीद की जानी चाहिए कि यूपी सरकार कल तक उस होर्डिंग को हटा लेगी।

https://twitter.com/IPSinghSp/status/1238175879412322304

बहरहाल चिन्मयानंद और सेंगर का दूसरा पोस्टर सपा नेता आईपी सिंह द्वारा लगाया गया था। इसमें लोगों को अपनी बेटियों को इन बलात्कारियों से बचाने की सलाह दी गयी थी। उसके बाद आईपी सिंह ने ट्वीट की पूरी एक श्रृंखला के ज़रिये इन पोस्टरों के पीछे के उद्देश्य को बताया। उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि “जब प्रदर्शनकारियों की कोई निजता नहीं है। और हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी योगी सरकार होर्डिंग को हटाने की ज़रूरत नहीं समझ रही है तब हमने भी क़ानून का उल्लंघन करने वाले कुछ लोगों की होर्डिंग लगाने की आज़ादी हासिल कर ली। जिससे हमारी बेटियाँ इनसे दूर रह सकें”।

कांग्रेस प्रवक्ता अनूप पटेल ने कहा कि हमारे युवा नेताओं ने योगी आदित्य नाथ और दूसरे प्रमुख नेताओं के अपराधों को पोस्टर पर इसलिए चस्पा किया है क्योंकि योगी सरकार ने सीएम के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में शामिल लोगों का पोस्टर चस्पा किया था। 

दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के एक दिन बाद ही योगी सरकार ने अध्यादेश जारी कर नया क़ानून बना दिया। यूपी रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रापर्टी आर्डिनेंस 2020 के नाम से पारित किए गए इस क़ानून में सार्वजनिक संपत्तियों के नुक़सान के एवज़ में सरकार को आरोपियों से वसूली का अधिकार मिल जाता है।

अध्यादेश के बारे में प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हुए यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि पता नहीं क्यों मुख्यमंत्री ख़ुद को न्यायालय से ऊपर समझते हैं। उन्हें इस बात का भ्रम है कि वह राजनीति और अदालत दोनों के हिस्से हो सकते हैं। हम देख रहे हैं कि वह लगातार अपनी ज़िद पर अड़े हुए हैं। वह गैर संवैधानिक चीजों को करना चाहते हैं। जिन पर अदालतों ने रोक लगा रखी है। लेकिन वह इन अध्यादेशों के ज़रिये इसको लागू करना चाहते हैं।

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