चंडीगढ़। पंजाब में एकबारगी सरगोशियां फिर तेज हैं कि राज्य में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच राज्य स्तरीय गठजोड़ हो सकता है। हालांकि फिलहाल दोनों पार्टियों के नेता खुलकर कुछ नहीं बोल रहे। हफ्ता भर पहले तक कांग्रेस खिलाफत में मुखर थी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजा वडिंग अमरिंदर सिंह इन अफवाहों के बीच दिल्ली गए थे तथा वहां से लौटकर कहा था कि था किसी भी कीमत पर कम से कम पंजाब में ‘आप’ और कांग्रेस के हाथ नहीं मिल सकते।
नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा का कहना था कि पंजाब कांग्रेस के नेताओं को आम आदमी पार्टी के साथ एक टेबल पर बैठना मंजूर नहीं, तो समझौते की बात कोरी बकवास समझिए। हमारे नेताओं को एक-एक करके जेल का रास्ता दिखाया जा रहा है। जब यह कहा जा रहा था, तब दिल्ली में ‘आप’ विपक्षी दलों के समूह ‘कांग्रेस’ का हिस्सा बन गई थी। परंपरागत पार्टी कांग्रेस तो पहले ही उसमें शामिल हो गई थी। यानी दोनों राजनीतिक दल एक मंच पर आ चुके थे।
अब आलम बदल गया है। संभावना जताई जा रही है कि पंजाब में सबसे ज्यादा सीटों वाली पार्टी ‘आप’ कांग्रेस के साथ रिश्ते गहरे करने के लिए कम से कम दो कांग्रेसियों को भगवंत मान मंत्रिमंडल में शामिल करेगी। खुलेआम जो पहला नाम सामने आ रहा है, वह कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का है। बताया जाता है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल या विस्तार में उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
राजा वडिंग अमरिंदर सिंह कह तो यही रहे हैं कि वह उपमुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। तर्क भी देते हैं कि यह ओहदा नाम भर का होता है। उपमुख्यमंत्री के पास शक्तियां कैबिनेट मंत्री की ही होती हैं। कांग्रेस के सरकार में शामिल होने की रत्ती भर गुंजाइश भी नहीं होती तो कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के तेवर दूसरे होने थे और वह सिरे से इस बात को नकार देते, जैसे पहले नकारते आए हैं। नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा भी इस पर खामोश हैं। बताया जा रहा है कि दूसरा नंबर उनका है।
आप सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अंतिम समय तक पता नहीं चलने देते कि वह कौन सा पत्ता खेलेंगे। भगवंत मान पूरी तरह से उनकी मुट्ठी में हैं। मुरीद भी। इस वक्त पंजाब के सहारे ही आम आदमी पार्टी का सारा ताम-झाम चल रहा है। सर्वविदित है कि पंजाब के संसाधन दिल्ली के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं। मुख्यमंत्री भगवंत मान का एक कदम राज्य में होता है तो दूसरा दिल्ली या केजरीवाल के साथ कहीं और।
विपक्ष का खुला आरोप है कि इसके लिए राज्य का उड़न खटोला (सरकारी विमान) इस्तेमाल किया जा रहा है। कहीं न कहीं यह बात सच भी है। आज हालात यह हैं कि दिल्ली में आप पंजाब के बगैर अधूरी है। असलियत यह है कि इस सूबे का सारा नियंत्रण अरविंद केजरीवाल के हाथों में है। पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले कई नामवर लोगों को टिकट देते वक्त वादा किया गया था कि जीत की सूरत में उन्हें मंत्रिमंडल में लिया जाएगा। ऐसा नहीं हुआ। भगवंत मान की इच्छा के बावजूद।
पूर्व आईपीएस अधिकारी और अमृतसर से विधायक कुंवर विजय प्रताप सिंह और बुढलाडा से विधायक प्रिंसिपल बुधराम (जिन्हें अब ‘आप’ की राज्य इकाई का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है) इसके पुख्ता उदाहरण हैं। प्रतिद्वंदी भी हैरान हैं कि ये दो नाम मंत्रिमंडल की सूची में क्यों नहीं हैं। कुंवर वादा खिलाफी पर नाराज हैं लेकिन बोलते कुछ नहीं। प्रिंसिपल बुधराम एकदम शांत हैं और इस से ज्यादा कुछ नहीं कहते कि, ‘आलाकमान का फैसला उन्हें मंजूर है’। पंजाब की बाबत राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा की राय को भी खास अहमियत दी जाती है।
दिल्ली दरबार के नजदीकी पंजाब के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता पुष्टि करते हैं कि कांग्रेस को मौजूदा आम आदमी पार्टी की अगुवाई वाली भगवंत मान सरकार में शामिल किया जा सकता है। यह दोनों पार्टियों के गठजोड़ पर मोहर होगी। राज्य में ‘आप’ और कांग्रेस का एक होने का सीधा मतलब विपक्ष का सफाया है। विपक्ष के नाम पर सिर्फ शिरोमणि अकाली दल और भाजपा बचेंगे। जोड़-तोड़ के बावजूद जिनका जनाधार अभी भोथरा है।
विधानसभा में आम आदमी पार्टी की 92, कांग्रेस की 18, भाजपा की 2 और एलआईपी की 1 सीटें हैं। यानी ‘आप’ के पास 92 सीटें हैं तथा विपक्ष 25 तक सिमटा हुआ है। इस लिहाज से विपक्ष में सबसे बड़ा दल कांग्रेस है।
राजनीति में प्रत्याशित कुछ नहीं होता। पंजाब एक तरफ बाढ़ से जूझ रहा है और दूसरी तरफ सियासत के ऐसे समीकरण बन रहे हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी, विपक्षी दलों के समूह ‘इंडिया’ में बाकायदा शामिल है। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल मध्य प्रदेश को अपनी नई शिकारगाह का मानते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वहांं के चुनाव से पहले वह चौंका देने वाला कुुछ करना चाहते हैं। पंजाब फौरी तौर पर माकूल मंच है।
(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)