एनआईए नहीं छीन सकेगा लबों की आजादी, बुलंद हौसलों के साथ चुनाव में जुटेंगे सामाजिक कार्यकर्ता

5 सितंबर की भोर में उत्तर प्रदेश स्थित आठ घरों के अंदर घुसकर एनआईए ने दहशतगर्दी का माहौल बना दिया। ‘छापे’ के नाम पर इन घरों (जिनमें मेरा घर भी शामिल है) में घुसकर उन्होंने हमारी निजता का गंभीर हनन किया है। ‘घर’ का मतलब होता है, जहां हम अपनी जरूरत का सामान रखने के अलावा अपना बहुत सारा इमोशन भी सहेजकर रखते हैं। ये इमोशन प्यार का, दुख का, सुख का, उपलब्धि और निराशा का भी होता है। जिसे हम अपने घरों में कविता-कहानियों में, डायरियों में दर्ज करके रखते हैं।

5 सितंबर को हमारे सामने एक सरकारी कागज प्रस्तुत कर इस निजता की धज्जियां उड़ाई गईं। उन्होंने हमारी निजी डायरी, मेरी कहानियों का फर्स्ट ड्राफ्ट, हमारी प्रेम कविताएं तक पढ़ी और मेरी कुछ कहानियों का फर्स्ट ड्राफ्ट उठाकर भी ले गए। अब वो कहानियां उनकी गिरफ्त में छटपटा रही हैं और उसके पात्र खुद को गढ़े जाने के लिए आकुल हो रहे हैं। यह वैसा ही है, जैसे भ्रूण में तैयार होते बच्चे की हत्या कर देना।

मेरी किताबों, खास तौर पर फोटो कॉपी कर जुटाई गई किताबों, लेखों, कई जांच रिपोर्ट्स को वे कफ़न वाले कपड़े में बांधकर ले गए, जो वे अपने साथ ले आए थे। किताबों और अक्षरों का होना उनके पन्नों में फड़फड़ाने से होता है, लेकिन उन्होंने उन पन्नों को कफन में बांधकर लाश बना दिया। उनका मुख्य मकसद भी यही है कि रोशनी देने वाली हर चीज़ की हत्या कर दी जाए। लेकिन यह लेख मैं इसलिए नहीं लिख रही हूं कि आपको फिर से बताऊं कि उस दिन हमारे घरों पर क्या हुआ। मैं इसे यह बताने के लिए लिख रही हूं कि हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ?

हम ऐसे देश में रहते हैं जहां चुनावों की आहट हर सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता को चिंतित कर देती है। क्योंकि सत्ता में आने के लिए कई संगठन और पार्टियां खुले आम लोगों को धार्मिक-जातीय समुदायों में बांटने वाले नफरती भाषण देते हैं, लोगों में नफरत भरने वाले गंदे कारनामे करते हैं और मीडिया को अपने नफरती प्रचार का हिस्सा बना लेते हैं। हम सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं की चिंता इससे बढ़ जाती है और हम सभी को इसकी काट खोजने और समाज में लोगों को एकजुट बनाए रखने के अभियान में जोरशोर से लगना पड़ता है।

हम लगते भी हैं। इस बार भी हम अपनी कमर कस कर तैयार हो रहे हैं। पीयूसीएल की प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते मैं भी इसकी तैयारी में जुट गयी हूं और मानवाधिकार के नजरिये से इस चुनावी माहौल में हस्तक्षेप करने की योजनाओं पर लोगों से विचार विमर्श कर रही हूं। मुझे नहीं पता था कि मेरे ही मानवाधिकार पर हमला होने वाला है।

इस बार का चुनावी माहौल थोड़ा और अलग और थोड़ा अधिक संवेदनशील है। यह विश्व राजनीति से जुड़ा है। चुनाव के पहले ही हमारे देश में जी 20 होना था। 20 देशों के ‘राजाओं’ के आगमन के मद्देनजर 2 दिन के लिए पूरी दिल्ली को ही बंद कर दिया गया था। लेकिन यहां में इस पर बात नहीं करूंगी। इस पर बात करूंगी कि जी 20 से हमारे घरों पर हुई एनआईए रेड का क्या संबंध है?

जी 20 के दौरान ही कुछ अखबारों ने बताया कि भारत ने जी 20 के लिए जारी अपने घोषणा पत्र में कहा है कि “हम भारत को विदेशी निवेश के लिए स्वर्ग बनाने जा रहे हैं।” हमारे घरों पर हुई एनआईए की दहशतगर्द कार्रवाई का संबंध सरकार की इस घोषणा पत्र से है। सरकार साम्राज्यवादी देशों के निवेश के लिए पलक-पावड़े बिछाए बैठी रहती है। जबकि सामाजिक कार्यकर्ता इसका विरोध करते हैं। हम इसे अपने देश को फिर से विदेशी आकाओं को सौंपने जैसा मानते हैं। हम सब मानते हैं कि इस देश की जनता अपने संसाधन से ही देश का बेहतर विकास कर सकती है, इससे रोजगार भी पैदा होगा।

इसलिए हम सभी इस देश की प्राकृतिक और मानव संपदा को बचाने के लिए लिखते-बोलते हैं और धरना-प्रदर्शन भी करते हैं। माओवादी इस विरोध में एक कदम आगे बढ़कर साम्राज्यवादी निवेश करने वाली कंपनियों को इस क्षेत्र में घुसने से ही रोक देते हैं। इससे निवेश करने वाले पूंजीवादी घराने और निवेश करवाने वाली सरकार दोनों परेशान रहते हैं। वास्तव में हमारे घरों पर हुई छापेमारी का यही कनेक्शन है। वे चाहते हैं कि जी 20 में आए देशों की सुरक्षा एजेंसियों को दिखा सकें कि ‘देखिए विदेशी निवेश का विरोध करने वालों पर हम कितनी कड़ी कार्रवाई कर रहे हैं और उनका खात्मा कर रहे हैं।’

विदेशी निवेश के लिए सचमुच खतरा बन चुके माओवादियों को तो वे छू भी नहीं पाते, इसलिए ‘माओवादी’ का नाम देकर वे सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी कर अपने ‘गुड वर्क’ की छवि बनाने की कोशिश करते हैं। ऐसा करके सरकार साम्राज्यवादी पूंजी की देश में घुसपैठ को सुनिश्चित करती है, साथ ही अगले चुनाव में अपने कंधे पर उनका हाथ प्राप्त करने का माहौल बनाती है। मौजूदा सरकार इस वक्त इसी प्रक्रिया में लगी हुई है।

‘गार्डियन’ से लेकर ‘सीएनएन’ तक तमाम विदेशी अखबारों के रुख से साफ समझ में आ रहा है कि साम्राज्यवादी आका वर्तमान सरकार से ‘पूंजी निवेश की घुसपैठ’ के मामलों में बहुत खुश नहीं हैं, वे उनसे और आक्रामक होने की मांग कर रहे हैं और मौजूदा सरकार उन्हें आश्वस्त करना चाह रही है। हमारे घर पर हुई छापेमारी का सरकार से यही कनेक्शन है।

हमारा मामला इस दौरान हुए सरकारी दमन का पहला नमूना नहीं है, इससे पहले उड़ीसा में यह ‘क्रैक डाउन’ हो चुका है, क्योंकि वहां नियामगिरी के ‘कोंध’ आदिवासियों ने अपना पहाड़ नहीं बिकने दिया। इसलिए हाल ही में पहाड़ों को बचाने के आंदोलन से जुड़े कई लोगों पर यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें परेशान किया जा रहा है। इसके पहले भी तेलंगाना में प्रोफेसर हरगोपाल सहित 152 लोगों पर अज्ञात मामले में केस दर्ज होने की बात सामने आई। हम पर भी किसी अज्ञात पुराने मामले में केस दर्ज किया गया है, जिसकी प्रति हमें लेख लिखे जाने तक प्राप्त नहीं हुई है।

हमारे बाद जी 20 के दौरान ही अखबारों में खबर आई कि छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी कुछ घरों पर एनआईए ने छापेमारी की है। यह सब इस वक्त भारत में उपस्थित ‘राजाओं’ उनके कॉर्पोरेट घरानों और उनके सुरक्षा कर्मियों और मीडिया सेना को आश्वस्त करने के लिए है कि ‘आप निवेश करिये, आपका निवेश और मुनाफा सुरक्षित है।’ वे जनता व सामाजिक कार्यकर्ताओं की ‘असुरक्षा’ को बढ़ाकर उन्हें ‘सुरक्षा’ का वचन दे रहे हैं। इस एनआईए की रेड की इतनी सी ही कहानी है, बेशक इसका असर बहुत बड़ा है।

लेकिन हमारे दिलों और दिमाग में फ़ैज़ की ये लाइनें हमेशा मौजूद रहती हैं-

 “यूं ही हमेशा उलझती रही है जुल्म से खल्क

  न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई

  यूं ही हमेशा खिलाए हैं हमने आग में फूल

  न उनकी हार नई है, न अपनी जीत नई।”

(सीमा आज़ाद पीयूसीएल उत्तर प्रदेश की अध्यक्ष और दस्तक पत्रिका की संपादक हैं।)

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