नौगढ़\चंदौली। केन्द्र की मोदी सरकार अपनी जिन कल्याणकारी योजनाओं को बतौर अपनी उपलब्धि पेश कर रही है, उनमें उज्जवला योजना का भी नाम शुमार है। सरकार का दावा है कि उज्ज्वला के तहत पिछले नौ वर्षों में 30 जनवरी 2023 तक 9.58 करोड़ एलपीजी कनेक्शन वितरित किए जा चुके हैं। लेकिन, हैरानी की बात यह है कि जहां सरकार नौ करोड़ से अधिक एलपीजी कनेक्शन बांटने की बात कर रही है, वहीं दूसरी तरफ चंदौली जनपद के नौगढ़ विकासखंड के आदिवासी इलाके में केंद्र सरकार की फ्लैगशिप उज्ज्वला योजना की लौ लगभग बुझ चुकी है।
तमाम प्रयासों के बावजूद गरीबी, बेहताशा महंगाई, बेरोजगारी के चलते आदिवासी परिवार रसोई गैस सिलेंडर भराने के लिए 1170 रुपए नहीं जुटा पा रहा है। इनकी जगह सैकड़ों उज्ज्वला लाभार्थी आदिवासी महिलाएं रोजाना उपले, भूसी और लकड़ी से मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकने को विवश हैं, कइयों आदिवासी महिलाओं के योजना में मिले सिलिंडर चार सालों से धूल फांक रहे हैं। लिहाजा, उज्ज्वला सुविधा का नियमित लाभ उठाने से महरूम कई महिलाओं को धुआं, धुंध, राख और ताप से अनेक बीमारी भी लगने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से 120 किलोमीटर दूर पड़ोसी जनपद के चंदौली का नौगढ़ विकासखंड विंध्याचल पहाड़ों में स्थित है। नौगढ़, चकिया और समीप के सोनभद्र के जंगलों में आदिवासियों की आठ जातियां रहती हैं; जिनमें कोल, खरवार, भुइया, गोंड, ओरांव या धांगर, पनिका, धरकार, घसिया और बैगा हैं।
सिलेंडर रिफिल कराने भर की आमदनी नहीं
आसमान में बादल के उमड़ते-घुमड़ते ही तीस वर्षीय मंजू कोल अपने घर के आंगन में कपड़े, खाट और अन्य सामानों भींगने से बचाने के लिए रखने में जुटी हुई है। उनको मिला रसोई गैस सिलेंडर भूसा रखने के घर में पटनी पर धूल फांकता मिला। “साढ़े तीन- चार साल पहले हमें उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर और चूल्हा मिला था। जब मिला तो पूरे परिवार के लिए तकरीबन दो महीने खाना बना। साथ ही रसोई घर में धुआं नहीं होने से काफी राहत महसूस होती थी। लेकिन यह राहत और सुकून जल्द ही ख़त्म हो गया। मेरे पति को हमेशा काम-धंधा नहीं मिलता है। मनरेगा और वन विभाग के गड्ढे खोदने से जो रुपए मिलते हैं। वह गृहस्थी के सामान जुटाने में ही कम पड़ते हैं। ऐसे में जब से सिलेंडर मिला है। एक बार बाद आज तक हमलोग सिलेंडर को रिफिल नहीं करा पाए। हमारी विवशता है, गोबर के उपले और लकड़ी के धुएं के बीच रोज मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने की। चूल्हे से निकलने वाले धुंए और धूम से घुटन होती है। आंखों से पानी गिरता है।” नौगढ़ विकासखंड की जमसोती गांव निवासी आदिवासी समाज की मंजू कोल ने ऐसा ‘जनचौक’ को बताया।
मंजू आगे कहती हैं ” मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने में गर्मी, बारिश और सर्दी के दिनों में बहुत समस्या होती है. बारिश में चूल्हे भींगकर ख़राब हो जाते हैं और गर्मीं में गर्मी से बचने के लिए जल्दी खाना बनाना पड़ता है। फिर भी बेहताशा गर्मी और उमस में मर-जी के खाना बनाना पड़ता है।”
अधिकांश आबादी अब भी मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने को विवश
जमसोती, गोड़टुटवा, लौआरी, औरवाटाड़, चिकनी, चिकनी-औरवाटाड़ आदि आदिवासी बाहुल्य गांवों में दस हजार से अधिक की आबादी निवास करती है। उज्ज्वला योजना का लाभ मिलने के बाद भी मंजू कोल अकेली गोबर के उपले और लकड़ी से चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिला नहीं है। अपितु, महिलाओं को योजना के तहत मिला सिलेंडर और चूल्हा कमाई के अभाव में बेहताशा मंहगाई से धूल फांक रहा है।
चार सालों से खाली पड़ा है सिलेंडर
नौगढ़ विकासखंड के गुपुत कोल को उज्ज्वला योजना के तहत तकरीबन चार साल पहले रसोई गैस सिलेंडर और चूल्हा मिला था। वह “जनचौक” को बताते हैं कि “मनरेगा और वन विभाग के गड्ढे खोदने के बाद भी इतनी आमदनी भी नहीं होती है, जिससे कि परिवार का गुजारा आसानी से हो सके। सात-आठ लोगों के परिवार में भोजन में दाल और सब्जी खाए हफ़्तों बीत जाता है। पूड़ी-पकवान तो त्योहारों पर ही होता है। ऐसे में जब सिलिंडर मिला था, तो खाना बना। गैस ख़त्म हो गई तो भरवाने का आर्थिक सामर्थ्य ही नहीं हो पा रहा है। सालों से घर के कोने में खाली सिलेंडर और चूल्हा फेंका हुआ है। तब से लेकर अब तक मेरे घर का खाना लकड़ी और गोबर की कंडी पर ही बन रहा है। चूल्हे से निकलने वाले धुएं से बड़ी परेशानी होती है, लेकिन करें भी तो क्या ? गैस रिफिल के दाम सरकार 500-600 रुपए करे, तो हमलोग जैसे-तैसे सिलेंडर रिफिल करा पाएंगे।”
क्या है प्रधानमंत्री उज्जवला योजना?
यूपी के बलिया जनपद से प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना को 01 मई, 2016 को लॉन्च किया गया था, जिसका लक्ष्य हर गरीब परिवार को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन उपलब्ध कराना था। उज्ज्वला योजना को महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, ताकि रसोई घर को जलाऊ लकड़ी और अन्य धुएं वाले खाना पकाने के माध्यमों से स्वच्छ ईंधन में शिफ्ट किया जा सके। इस योजना के तहत पात्र परिवारों को सरकार प्रति कनेक्शन 1,600 रुपये की वित्तीय सहायता के साथ जमा-मुक्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान करती है और पहली बार नि:शुल्क एलपीजी रिफिल और गैस चूल्हा प्रदान किया जाता है। देश में पिछले 9 वर्षों में 17 करोड़ एलपीजी कनेक्शन जारी किए गए हैं। इससे कुल कनेक्शन मार्च, 2023 तक 31.26 करोड़ के पार पहुंच गया है। इस दौरान इसमें दोगुना की वृद्धि हुई है। अप्रैल, 2014 में सक्रिय गैस कनेक्शनों की संख्या 14.52 करोड़ थी।
90 लाख सिलेंडर नहीं कराए गए रिफिल
आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौर की ओर से दाखिल की गई आरटीआई (सूचना का अधिकार अधिनियम) में यह खुलासा हुआ है, जिसमें उन्होंने तीनों सरकारी तेल वितरण कंपनियों इंडियन ऑयल कारपोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड और भारत पेट्रोलियम लिमिटेड से जानकारी मांगी थी। कंपनियों ने आरटीआई के जवाब में जो आंकड़े दिए, उनसे पता चलता है कि पिछले फाइनेंशियल ईयर-22 में यानी अप्रैल 2021 से मार्च 2022 के दौरान 90 लाख लाभार्थियों ने एक बार भी सिलेंडर नहीं भराया। इनके अलावा 1 करोड़ से ज्यादा लाभार्थियों ने पूरे साल के दौरान सिर्फ एक सिलेंडर भरवाया।
योजना के पहले फेस का आंकड़ा
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, इंडियन ऑयल ने बताया कि मार्च 2021 तक दिए एलपीजी कनेक्शनों में से करीब 65 लाख ग्राहकों ने पिछले वित्त वर्ष में एलपीजी सिलेंडर भराया नहीं है जबकि हिंदुस्तान पेट्रोलियम के 9.1 लाख और भारत पेट्रोलियम के 15.96 लाख ग्राहकों ने भी एलपीजी सिलेंडर भराया नहीं है। भारत पेट्रोलियम ने बताया कि यह आंकड़ा सिंतबर 2019 तक उज्जवला योजना के पहले फेस में दिए गए कनेक्शनों का हैं।
धुएं से लगती है बीमारी
साइंटिस्टों का मानना है कि एक गरीब महिला जब लकड़ी, उपले और भूसी से मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाती है, तो एक दिन में उसके शरीर में 400 सिगरेट के बराबर धुआं चला जाता है। आंखों में जलन, सिर में दर्द, दमा, श्वास संबंधी बीमारियां आम होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंडियन चेस्ट सोसाइटी फाउंडेशन के आंकड़ों के अनुसार, 5 लाख मौतें सालाना लकड़ी, उपले-भूसी ईंधन वाले रसोई से होती थी।
दाम घटेंगे तभी कम होगी गरीबों की दुश्वारियां
वाराणसी स्थित कांग्रेस के प्रवक्ता वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि ‘गरीब महिलाओं की आंखों में धुआं न जाए, ये सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कही जाने वाली बात थी। इस बात से उन्होंने अपने कॉर्पोरेट एजेंडे को सेट किया और सबको कनेक्शन दिलवा दिया। फिर पीछे से एलपीजी गैस के दाम धीरे-धीरे लगातार बढ़ने लगे और देखते-देखते दो गुना हो गए। जब योजना का आगाज हुआ था तब एलपीजी सिलेंडर के दाम लगभग 5 से 6 सौ रुपए था, आज की डेट में सिलेंडर का दाम 1160 रुपए है। ये दिखाते कुछ हैं और डिलीवर कुछ और की करते हैं। ‘कांग्रेस की सरकार में एक रसोईं गैस सिलेंडर 350-400 रुपए में मिलता था।”
वैभव आगे कहते हैं “आज भाजपा सरकार में सिलेंडर के दाम 1150 रुपए हो गए है। यह सरकार सिर्फ आम पब्लिक का दोहन करना जानती है। देश-शहर में बढ़ती महंगाई के लिए पूर्ण रूप से एक तरफा केंद्र सरकार जिम्मेदार है। निदान यही है कि सरकार को जीएसटी के दायरे में पेट्रोलियम को लाना चाहिए। साथ ही तत्काल प्रभाव से एलपीजी गैस के सब्सिडी को भी जारी कर देना चाहिए। फौरी तौर पर रसोईं गैस और पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाकर कीमतों को कम किया जाए, ताकि गरीबों की दुश्वारियां कुछ कम हो सके।”
(चंदौली जनपद के आदिवासी बेल्ट नौगढ़ से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)