दलित समुदाय को लेकर कल हरियाणा के हिसार जिले के बरवाला में एक किसान महापंचायत का आयोजन किया गया। किसान संगठनों की अब कोशिश है कि महापंचायतों के जरिए दलित समुदाय के लोगों को भी इससे जोड़ा जाए, जिससे कि देश भर में इस किसान आंदोलन को व्यापक रूप से बढ़ाया जा सके। कल ही इस किसान महापंचायत में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया, जिसमें किसानों को अपने घरों में दलित आइकन डॉ. बीआर आंबेडकर की तस्वीर रखने के लिए कहा गया। साथ ही दलितों को सर छोटूराम की तस्वीर रखने के लिए भी कहा गया।
शनिवार को बरवाला में हुई किसान महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रधान गुरनाम सिंह चढूनी ने किसानों और दलितों के बीच अधिक सामंजस्य बनाने का आह्वान किया। महापंचायत को संबोधित करते हुए चढूनी ने कहा, “हमारी लड़ाई न केवल सरकार के खिलाफ है, बल्कि पूंजीपतियों के खिलाफ भी है। सरकार हमें आज तक विभाजित करती रही है, कभी जाति के नाम पर या कभी धर्म के नाम पर। आप सभी सरकार की इस साजिश को समझें।” उन्होंने कहा कि आपसी भाईचारे को मजबूती प्रदान करने के लिए हमारे दलित भाई अपने घरों में सर छोटूराम की फोटो और किसान भाई अपने घरों में डॉ. बीआर आंबेडकर की फोटो लगाएं।
हजारों किसान हस्ताक्षर कर राष्ट्रपति से लगाएंगे गुहार
किसान आंदोलन के समर्थन में माता सावित्री बाई फुले महासभा की ओर से शनिवार को हस्ताक्षर अभियान शुरू किया गया। यह अभियान तीन दिनों तक चलेगा। इसके तहत हजारों लोग किसानों के समर्थन में एक लंबे कपड़े पर हस्ताक्षर करेंगे और बाद में इसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ज्ञापन के रूप में भेजा जाएगा। इस आशय की जानकारी महासभा की अध्यक्षा निर्देश सिंह ने दी।
उन्होंने बताया कि महासभा के तत्वावधान में विगत एक महीने से गाजीपुर बार्डर पर सावित्रीबाई फुले पाठशाला चलाई जा रही है। इसमें करीब डेढ़ सौ बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जा रही है। हस्ताक्षर अभियान के संबंध में उन्होंन बताया कि यह अभियान इस उद्देश्य से शुरू किया गया है, ताकि सरकार किसानों की मांगों पर गंभीरतापूर्वक विचार करे। उन्होंने बताया कि यह एक ऐसा अभियान है, जिसमें बार्डर पर आंदोलनरत सभी किसानों और अन्य लोगों को शामिल कर रहा है। बड़ी संख्या में लोग पाठशाला के पास आ रहे हैं और अपनी तरफ से कृषि कानूनों को वापस लेने के संबंध में अपनी बात दर्ज कर रहे हैं।
निर्देश सिंह ने यह भी बताया कि महासभा की ओर से आने वाले समय में कई और गतिविधियां शुरू की जाएंगी। इनमें आसपास के दलित-बहुजन महिलाओं को जोड़ने के लिए भी अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि चूंकि हम सभी अन्न खाते हैं और इसलिए हम सभी को किसानों के साथ खड़ा होना होगा। नहीं तो जिस तरह से सरकार खेती-किसानी को बाजार के भरोसे करने को प्रतिबद्ध दिख रही है, वह दिन दूर नहीं जब कंपनियां भूख का व्यापार करेंगी। इस स्थिति में सबसे अधिक शिकार वही होंगे जो आजादी के सात दशक बाद भी अंतिम पायदान पर हैं।