दिल्ली चुनाव : क्या मुस्लिम महिलाओं की जागरूकता राजनीति में बदलाव लाएगी ?- ग्राउंड रिपोर्ट

दिल्ली। दिल्ली की जनता पिछले पांच सालों का हिसाब देने को तैयार हो गई है। राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सभी पार्टियां अपने-अपने तरीके से प्रचार-प्रसार कर रही हैं। लेकिन दिल्ली के एक हिस्से में जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है, वहां का माहौल बाकी जगहों से थोड़ा अलग है।

इसके पीछे की कई वजहें हैं। जिनमें दिल्ली दंगा, जहांगीरपुर में दंगा और सीएए-एनआरसी के विरोध में मुस्लिम महिलाओं का आगे आना और राजनीतिक तौर पर डट कर सामना करना शामिल है।  

जनचौक की टीम ने दिल्ली चुनाव से पहले मुस्लिम बहुल सीट ओखला का दौरा किया। जहां 53 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। यहां के लोगों का कहना है कि इस सीट में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे मुस्लिम रहते हैं। जो इस बार यहां की राजनीति में कुछ बदलाव कर सकते हैं।

इलाके की अलग-अलग जगहों में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और एआईएमआईएम के पोस्टर दिखाई देते हैं। जाकिर नगर की मार्केट पूरी तरह से लोगों से भरी पड़ी थी। जहां पार्टी दफ्तर पर साथ-साथ पोस्टर बांटते लोग नजर आ जाएंगे। पिछले पांच साल में जो कुछ भी हुआ उसके बारे में कोई भी बात करने को तैयार नहीं है।

विभिन्न पार्टियों द्वारा लगातार विकास के दावे के बाद भी जाकिर नगर में एक तरफ कूड़े का ढेर और दूसरी तरफ दुकानें हैं। जहां लगातार आती बदबू किसी को भी बीमार करने के लिए काफी है।

ओखला विधानसभा के अलग-अलग इलाकों में लोगों की एक ही सबसे बड़ी समस्या जल जमाव और गंदगी है।

लेकिन इन सबके अलावा जो सबसे ज्यादा अपनी ओर खींच रहा है। वह है एआईएमआईएम के उम्मीदवार का नाम और उसकी पत्नी द्वारा उसका प्रचार-प्रसार करना।

फिलहाल एआईएमआईएम के प्रत्याशी शिफाउर्रहमान को कोर्ट से प्रचार के लिए पैरोल मिल गई है। लेकिन हमारी चुनाव कवरेज के दौरान शिफाउर्रहमान की पत्नी नूरानी लगातार पति के जेल में होने के बावजूद भी प्रचार कर रही थी।

नूरानी के लिए यह नया सा माहौल है। प्रचार के दौरान वह जहां भी जाती हैं लोगों को यही बताती हैं कि ‘मेरे पति निर्दोष हैं। उन्होंने जनता की हक की लिए बहुत सारी लड़ाईयां लड़ी हैं। अब आपकी बारी हैं उन्हें जिताने की’।

पिछले पांच सालों में मुस्लिम राजनीति पर जनचौक की टीम ने बात की। एक राजनीतिक कैदी की पत्नी होने के नाते नूरानी कहती हैं ‘यह बहुत साफ है कि जो भी हुआ वह आंदोलन के कारण ही हुआ है। शिफा आंदोलन में लोगों की मदद कर रहे थे। उस वक्त कई लोग थे जो घरों से बाहर निकलकर आंदोलन को समर्थन कर रहे थे’।

वह आगे कहती हैं कि ‘यह हमारे हक की लड़ाई थी। जो काले कानून अल्पसंख्यकों के लिए लाए गए थे। उसके लिए सभी लोग एक साथ आगे आए थे। यह किसी एक की लड़ाई नहीं थी। इसलिए ऐसे दौर में हमें राजनीतिक कैदियों के हक के लिए एक साथ आगे आना होगा’।

हमने नूरानी से मुस्लिम महिलाओं की राजनीतिक भूमिका में आते बदलाव के बारे पूछा तो वह कहती हैं ‘मैं एक साधारण सी हाउस वाईफ थी। जिसकी जिम्मेदारी घर संभालना था। मैं सिर्फ इतना ही जानती थी मेरे शौहर लोगों की अलग-अलग तरीके से मदद करते थे। मेरे घर पर लगभग हर रोज कोई न कोई आता ही था। किसी न किसी काम के लिए’।

मेरे जीवन में राजनीति की एंट्री आंदोलन के बाद हुई। इतना ही नहीं यहीं से बाकी मुस्लिम महिलाएं भी अपनी हक के लिए आगे बढ़ी हैं।

मेरे पति को आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया। यहीं से मेरे जीवन ने पूरा एक मोड़ ले लिया। मैंने कोर्ट-कचहरी जाना शुरु कर दिया। पहले परेशानी हुई। लेकिन बाद में मुझे समझ आया कि अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। आज स्थिति यह है कि मैं अपने शौहर के लिए प्रचार कर रही हूं।

आपको बता दें कि साल 2019 में सीएए-एनआरसी के विरोध में दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए। जिसमें दिल्ली का शाहीनबाग और मुस्तफाबाद का आंदोलन चर्चित था।

इसी दौरान दिल्ली में दंगे भी हुए और पूर्वोत्तर दिल्ली का माहौल एकदम बदल गया। माना जाता है कि यहीं से साधारण मुस्लिम महिलाओं की राजनीतिक जागरूकता भी बढ़ी है।

मुस्लिम राजनीति के जानकार आदित्य मेनन का इस बारे में कहना है कि “सीएए-एनआरसी प्रोस्टेट में मुस्लिम महिलाओं की मौजदूगी ने राजनीतिक तौर पर बीजेपी को बहुत कुछ बता दिया है।

बीजेपी को एक साफ संदेश दिया गया है कि मुस्लिम महिलाएं भी मुस्लिम पुरुष की तरह सियासी मामलों में रुचि लेती हैं। इस आंदोलन के द्वारा मुस्लिम महिलाएं राजनीतिक तौर पर मैदान में दिखाई देने लगी। जिससे बीजेपी का मुस्लिम महिलाओं के लिए ट्रिपल तलाक के जरिए बेचारापन दिखाने का तरीका थोड़ा कमजोर हो गया’।

इसी मामले में हमने राजनीतिक कैदी सफूरा जरगर से मुस्लिम महिलाओं की राजनीति में आते बदलाव के बारे में बातचीत की। उन्होंने कहा कि “अब यहां के लोग राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से ज्यादा आंदोलन से निकले लोगों पर भरोसा कर रहे हैं।

खासकर महिलाओं से बातचीत के दौरान यह बात बाहर निकलकर आती हैं कि यहां की हर दूसरी महिला आंदोलन से जुड़ी हुई थी और यह आज भी उस आंदोलन को सपोर्ट कर रही हैं। राजनीतिक तौर पर मुस्लिम महिलाओं का इतना जागरूक होना ही हमारे लिए एक बड़ी सफलता है’।

वह आगे कहती हैं ‘साल 2020 के बाद से ही मुस्लिम महिलाओं की राजनीतिक चेतना में भी बदलाव आया है। इसका बड़ा कारण महिलाओं पर आंदोलन के कारण चल रहे मुकदमे, अब जो महिलाएं अपने मुकदमे लड़ रही हैं, उनकी राजनीतिक चेतना किस स्तर की होगी, यह हमें बताने की जरूरत नहीं है’।

आदित्य मेनन का कहना है कि “इस आंदोलन से मुस्लिम समाज में भी यह संदेश चला गया कि मुस्लिम महिलाएं अपने समाज के लिए न सिर्फ लड़ सकती हैं बल्कि उनकी नुमाइंदगी भी कर सकती हैं। जिसका नतीजा यह हुआ कि पिछले पांच साल में हिजाब को लेकर जितना भी विरोध हुआ।

सबका महिलाओं ने ही स्वयं जवाब दिया है। इससे साफ हो गया है कि मुस्लिम महिलाओं की राजनीतिक चेतना राजनीति में बदलाव जरुर लगाएंगी।

आपको बता दें कि ओखला विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या तीन लाख 80 हजार 268 हैं। जिसमें दो लाख 19 हजार 447 पुरुष, एक लाख 60 हजार 817 महिलाएं और चार ट्रांसजेंडर हैं।

साल 2020 में सीएए-एनआरसी आंदोलन के दौरान हुए मतदान में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी अमानतुल्लाह खान 1 लाख 30 हजार 367 वोट से जीते थे। 

(ओखला विधान सभा क्षेत्र से पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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