(दिल्ली के महरौली इलाके में 31 जनवरी को डीडीए के बुलडोजरों ने मंदिर, मस्जिद और मदरसे को अवैध बताते हुए जमींदोज कर दिया। जबकि सच्चाई यह है कि मस्जिद 13वीं सदी में बनी थी। सीपीआई-एमएल, दिल्ली-एनसीआर की तरफ से 1 फरवरी को आकाश (सीपीआई-एमएल के महरौली सचिव) और सना आमिर (पत्रकार ) की दो सदस्यीय टीम ने तोड़े गए मस्जिद अखुंजी और मदरसा बहर-उल-उलूम का दौरा किया। )
नई दिल्ली। सीआरपीएफ ने अन्दर जाने के सारे रास्ते बैरिकेडों से बन्द कर दिए थे। घटनास्थल से 500 मीटर के दायरे में धारा 144 लागू थी। टीम को घटनास्थल के पास खड़े होकर लोगों से बात करने से रोका गया। स्थानीय लोगों से पता चला कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) का अभियान अभी चल रहा है। अभी मलबे को हटाया जा रहा है।
टीम ने सबसे पहले मदरसे के दो शिक्षकों से बात की। उन्होंने पुष्टि की कि 31 जनवरी की सुबह 13वीं सदी की मस्जिद और मदरसे के साथ-साथ कई कब्रों को भी तोड़ा गया था। मदरसे के शिक्षक मुजम्मिल ने बताया कि दिल्ली सरकार द्वारा गठित धार्मिक समिति ने 4 जनवरी को एक बैठक बुलाई थी, जिसमे डीडीए और वक्फ दोनों के अधिकारियों को बुलाया गया था। बैठक के दौरान केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) और डीडीए – जो कि एक केंद्र सरकार की एजेंसी है – दोनों “अवैध” मस्जिद और मदरसे को तुड़वाने की बात पे सहमत हुए।
वक्फ अधिकारियों ने विरोध किया, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। कोई लिखित आदेश भी जारी नहीं किया गया। 31 जनवरी की सुबह जब स्थानीय लोगों ने डीडीए अधिकारियों से सवालात किये, तो उन्होंने बात को टाल दिया। किसी ने बोला अदालत का आदेश है, किसी ने बोला बागवानी विभाग का आदेश है, या बस “ऊपर से आदेश” है। लिखित आदेश दिखाए बिना तोड़फोड़ पूरी तरह ग़ैरक़ानूनी है।
टीम को यह भी पता चला कि महरौली वार्ड नंबर 2 की दलित बस्ती में स्थित एक काली मंदिर पर भी उसी सुबह बुलडोजर चला। एक दिन पहले, डीडीए अधिकारियों ने मंदिर के पुजारी शुभम शास्त्री से मुलाकात की और मंदिर में नियमित आने वाले लोगों के बारे में पूछताछ की। शास्त्री ने उन्हें बताया कि प्रतिदिन 15-20 लोग आते हैं और प्रमुख कार्यक्रमों के दौरान 50-60 लोग आते हैं। अधिकारी चुपचाप चले गए और अगली सुबह बुलडोजर लेकर पहुंचे, शास्त्री को रोका और बिना कोई आधिकारिक आदेश दिए मंदिर को गिरा दिया।
शास्त्री के अनुसार, कुछ मुस्लिम निवासी जो मस्जिद और मदरसे पर बुलडोज़र चलने से उत्तेजित थे, उन्हें (ध्वस्त) मंदिर में लाया गया और आश्वासन दिया गया कि सभी “अवैध” संरचनाओं- चाहे वे मंदिर हों या मस्जिद- को निशाना बनाया जा रहा है।
तोड़फोड़ की अवैधता और सदियों पुरानी मस्जिद के “अतिक्रमण” होने के बेतुके दावे के अलावा, यह घटना मुसलमानों और दलितों दोनों के प्रति केंद्र सरकार के भयावह रवैये को दर्शाता है। ऐसा लगता है कि मंदिर को तोड़ के डीडीए एक प्रकार का दिखावा करने की कोशिश कर रहा था। यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है। एक अवैध तोड़फोड़ दूसरे को उचित नहीं ठहराता। और छात्रों और शिक्षकों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था किए बिना एक कार्यरत मदरसे को और एक विरासत मस्जिद को ध्वस्त करना सरासर गलत है। और अगर मंदिर में अधिक लोग, विशेषकर उच्च जाति के लोग आते, तो क्या डीडीए इस तरह तोड़ फोड़ करता?
डीडीए ने जनवरी-फरवरी 2024 में महरौली में इसी तरह की दिखावटी तोड़फोड़ की थी। दिखावे के लिए एक अपार्टमेंट परिसर को ध्वस्त कर दिया ताकि तोड़फोड़ गरीब विरोधी ना लगे। बाद में अपार्टमेंट परिसर का पुनर्निर्माण किया गया लेकिन बुलडोज़र से तोड़े गए झुग्गियों का पुनर्निर्माण नहीं हुआ।
पिछले कुछ हफ्तों में महरौली के रेहड़ी-पटरी वालों को चुनिंदा तरीके से बेदखल करने की खबरें आई हैं। इस प्रक्रिया का खामियाजा मुस्लिम दुकानदारों को भुगतना पड़ रहा है। हालाँकि महरौली में समुदायों के बीच शांति और सद्भाव कायम है, लेकिन चयनात्मक बेदखली और तोड़फोड़ जैसी कार्यवाइयों से इलाके में ध्रुवीकरण का खतरा है। 22 जनवरी और उसके आगे दिल्ली शहर में, खासकर दक्षिणी दिल्ली के कई इलाकों में, हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं। ऐसा लग रहा है कि इस माहौल का गलत फायदा उठाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाने की कोशिश जारी है।
यह प्रकरण यह भी दर्शाता है कि केंद्र सरकार दिल्ली के लिए कितना गंभीर ख़तरा बन चुकी है। धार्मिक समिति, जिसने तोड़फोड़ पर अंतिम निर्णय लिया है, की स्थापना 2014 में दिल्ली सरकार द्वारा की गई थी। शांतिपूर्ण तरीके से अतिक्रमण हटाना इसका उद्देश्य था। लेकिन समिति में निर्णय निर्वाचित दिल्ली सरकार नहीं बल्कि एलजी ले रहे हैं। केंद्र सरकार के दो प्रतिनिधियों ने मिलकर अवैध तरीके से तोड़फोड़ करने का निर्णय लिया, जिससे दो समुदायों के हितों और कई छात्रों के भविष्य को नुकसान पहुँचा। यह कार्यवाही निंदनीय है।
हम दिल्ली के नागरिकों से आग्रह करते हैं कि वे केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को अवैध तोड़फोड़, ध्रुवीकरण की रणनीति, और राज्य के मुस्लिम और दलित समुदायों पर हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराएं। हम निम्नलिखित मांग करते हैं:
1. अब से किसी भी विरासत संरचना को ध्वस्त नहीं किया जायेगा।
2. अदालतों को अवैध तोड़फोड़ के लिए डीडीए को दंड देना पढ़ेगा और पर्याप्त नोटिस के बिना तोड़फोड़ पर रोक लगानी पड़ेगी।
3. मदरसे, मस्जिद और मंदिर के छात्रों, शिक्षकों और संरक्षकों को पर्याप्त मुआवजा दिया जायेगा।
4. केंद्र सरकार की एजेंसियों को महरौली में ध्रुवीकरण बढ़ाने वाली गतिविधियों को तुरंत बंद करना पढ़ेगा।
(सीपीआई-एमएल, दिल्ली एनसीआर की जांच रिपोर्ट)