राजस्थान की विधानसभा ने सोमवार को राजस्थान प्लेटफ़ॉर्म आधारित गिग वर्कर्स (पंजीकरण और कल्याण) विधेयक 2023 को पास कर दिया है और इसके साथ ही राजस्थान गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। राजस्थान सरकार ने गिग वर्करों को कानून के दायरे में लाने के लिए ऐसा किया है।
शुक्रवार को ये बिल विधानसभा में पेश किया गया था और सोमवार को बिना बहस, बिना किसी हंगामे के इस बिल को विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इस विधेयक का सीधा लाभ ऑनलाइन फूड डिलीवरी ब्वॉयज और जरूरत के सामान को लोगों के घर तक पहुंचाने वाले वर्करों को मिलेगा। जैसे ओला, उबर, स्वीगी, जोमैटो, अमेज़ॅन, ब्लिंकिट आदि कंपनियो में ऑनलाइन डिलीवरी का काम करने वाले वर्कर इसका फायदा उठा सकेंगे।
देश भर में करोड़ों की संख्या में गिग वर्कर काम करते हैं लेकिन उनकी सुरक्षा की गारंटी अब तक किसी ने नहीं ली। पहली बार राजस्थान सरकार ने राज्य में काम करने वाले गिग वर्करों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस विधेयक को पारित किया है। राजस्थान प्लेटफ़ॉर्म आधारित गिग वर्कर्स विधेयक के लागू होने के बाद से गिग वर्करों और एग्रीगेटरों को राज्य के साथ पंजीकृत किया जाएगा।
उन्हें सामान्य और विशिष्ट सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ दिया जाएगा और उनकी किसी भी शिकायत पर जल्द सुनवाई की जाएगी। गिग वर्करों के कल्याण के लिए गिग वर्कर्स कल्याण बोर्ड की स्थापना की जाएगी। बोर्ड में नौकरशाहों के अलावा गिग वर्करों और एग्रीगेटरों में से प्रत्येक के दो प्रतिनिधि होंगे, जिन्हें राज्य सरकार नामित करेगी। राज्य सरकार गिग वर्करों का एक डेटाबेस भी बनायेगी जिसमें प्रत्येक गिग वर्कर के लिए यूनिक आईडी तैयार की जाएगी।
इस विधेयक का एक अन्य महत्वपूर्ण घटक “प्लेटफ़ॉर्म आधारित गिग वर्कर्स फंड और कल्याण शुल्क” है। इसके तहत गिग वर्करों के लिए एक सामाजिक सुरक्षा और कल्याण कोष की स्थापना की जाएगी। जिसमें अन्य स्रोतों के अलावा, एग्रीगेटर्स पर शुल्क लगाया जाएगा, “जो प्लेटफ़ॉर्म-आधारित गिग वर्कर से संबंधित प्रत्येक लेनदेन के मूल्य की ऐसी दर (प्रतिशत) पर होगा, जैसा कि राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है।”
इस विधेयक में राजस्थान सरकार ने जुर्माने का भी प्रावधान किया है। यदि कोई एग्रीगेटर समय के भीतर कल्याण शुल्क का भुगतान नहीं करता है, तो उस पर भुगतान की तारीख से 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज लगाया जाएगा। अगर एग्रीगेटर्स अधिनियम के किसी अन्य खंड का उल्लंघन करता है, तो विधेयक राज्य सरकार को पहले उल्लंघन के लिए 5 लाख रुपये तक और बाद के उल्लंघन के लिए 50 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का अधिकार देता है।
यह कानून दिसंबर 2022 में राजस्थान में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे द्वारा सुझाए जाने के बाद आया। इसके बाद, राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से गिग वर्करों के लिए सामाजिक सुरक्षा और एक सहायता प्रणाली लाने के लिए कहा। जिसके बाद इस साल की शुरुआत में अपने बजट भाषण में गहलोत ने इसकी घोषणा की थी।
तब अपने संबोधन में, गहलोत ने कहा था कि “वर्तमान में, ओला, उबर, स्विगी, ज़ोमैटो और अमेज़ॅन आदि जैसी कंपनियों ने प्रति लेनदेन के आधार पर युवा श्रमिकों को अनुबंध पर रखा है। ऐसे श्रमिकों को गिग वर्कर कहा जाता है। दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह राज्य में भी ‘गिग इकॉनमी’ का दायरा लगातार बढ़ रहा है। आज राज्य में गिग वर्कर्स की संख्या बढ़कर 3-4 लाख हो गयी है। ये बड़ी कंपनियां इन गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं करती हैं।”
विधेयक के उद्देश्यों और कारणों के विवरण में, सरकार का कहना है कि “अर्थव्यवस्था और रोजगार में प्रमुख योगदान के बावजूद, गिग वर्कर असंगठित श्रमिकों का हिस्सा हैं और अभी भी श्रम कानूनों के तहत कवर नहीं किए गए हैं। उन्हें उतनी सुरक्षा नहीं मिलती जितनी पारंपरिक कर्मचारियों को मिलती है।”
रक्षिता स्वामी, जो सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान (एसआर अभियान), सोशल अकाउंटेबिलिटी फोरम फॉर एक्शन एंड रिसर्च (एसएएफएआर) से जुड़ी हैं और गिग श्रमिकों के कल्याण के लिए काम कर रही हैं, ने इसे “ऐतिहासिक विकास” बताया है। उन्होंने कहा कि “पहली बार किसी सरकार ने प्लेटफ़ॉर्म-आधारित गिग वर्करों के प्रति अपने दायित्व और जवाबदेही को स्पष्ट रूप से बताया है, जो अब तक न तो एग्रीगेटर्स की ज़िम्मेदारी थी और न ही श्रम विभाग की, क्योंकि उन्हें श्रमिकों के बजाय “साझेदार” के रूप में वर्गीकृत किया गया था।”
“इस कानून में कई महत्वपूर्ण सफलताएं हैं, जिनमें वर्करों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के वित्तपोषण के लिए व्यक्तिगत लेनदेन पर उपकर शुल्क लगाना शामिल है। यह सुनिश्चित करता है कि वर्करों को एग्रीगेटर्स से दान या सरकार द्वारा आवंटन पर निर्भर रहने के बजाय, अपने स्वयं के काम से अर्जित सामाजिक सुरक्षा से लाभ हो।“ उन्होंने कहा कि, उम्मीद है कि इस कानून को भारत सरकार के लिए पालन करने और आगे बढ़ाने के लिए एक मानक स्थापित करना चाहिए।
(कुमुद प्रसाद जनचौक की सब एडिटर हैं।)