Sunday, April 28, 2024

16 दिनों बाद भी मजदूरों की जिंदगियां अधर में! एक के फेल होने के बाद कितना होगा दूसरा प्लान कारगर?

उत्तरकाशी। 41 मजदूरों को सुरंग में फंसे 16 दिन हो गये हैं। अब भी दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। ऑस्ट्रेलिया से बुलाये गये टनल स्पेशलिस्ट अर्नाेल्ड डिक्स आते वक्त बेहद उत्साह में थे और लग रहा था, वे कुछ न कुछ ऐसा जरूर करेंगे कि मजदूर जल्द से जल्द बाहर निकल आएं। उनके आते ही मजदूरों को निकालने का सारा जिम्मा एक तरह से उन पर छोड़ दिया गया था।

यह मान लिया गया था कि अब जो करेंगे वही करेंगे और उन्होंने प्रयास किये भी। लेकिन, अब उनकी बातों में निराशा है। जब वे कहते हैं कि फंसे हुए लोग क्रिसमस अपने घर पर मनाएंगे तो यह एक तरह से निराशा का चरम है, वे मान बैठे हैं कि कम से कम एक महीने तक तो फंसे हुए मजदूरों को बाहर निकाल पाने की कोई उम्मीद नहीं है।

जब अर्नोल्ड डिक्स आये थे तो मीडिया में यह बात प्रचारित की गई कि उन्होंने रेस्क्यू के 5 प्लान बनाये हैं। हालांकि सामने 3 प्लान ही आये। पहला प्लान अर्नोल्ड डिक्स के आने से पहले से ही चल रहा था। यह प्लान था, सुरंग में आये मलबे को ऑगर ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल करके 900 मिमी व्यास के पाइप मजदूरों तक पहुंचाना। यह प्रयास 21 मीटर पर रुक गया था। जबकि मजदूरों तक पहुंचने के लिए 57 मीटर पाइप पहुंचाना था।

अर्नाेल्ड ने 900 की जगह 800 मिली व्यास की पाइप का प्लान बनाया। यह प्रयास कुछ सफल हुआ और पाइप 45 मीटर तक पहुंचा। इसके बाद लोहे की चीजें मशीन के रास्ते में आ गईं। कुछ मजदूरों को पाइप में 45 मीटर अंदर भेजकर लोहे के कुछ टुकड़ों को काटकर बाहर निकाला गया। इससे पाइप 1.8 मीटर और आगे बढ़ा। उसके बाद ऑगर मशीन पूरी तरह खराब हो गई और खुद मलबे में फंस गई।

अब दावा किया जा रहा है कि ऑगर मशीन के फंसे हिस्से को निकालने के लिए हैदराबाद से मंगवाई गई प्लाज्मा कटर सिलक्यारा पहुंच चुकी है। मलबे से पाइप को आगे बढ़ाने के लिए अब मैन्यूअल तरीके से काम किया जा रहा है। यानी कि एक्सपर्ट को 800 मिमी व्यास के पाइप से 46.8 मीटर अंदर भेजकर वे सामने आये लोहे को काटने का प्रयास कर रहे हैं।

सूचना के अनुसार यह कोई बड़ी मशीन है, जिसे काटना है। ऑक्सीजन और कटर लेकर पाइप में करीब 47 मीटर तक जाना और विषम परिस्थितियों में काम करना बड़ी चुनौती है। जाहिर है यह काम बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। 10 मीटर का रास्ता बनाना अभी बाकी है। कब तक हो पायेगा, यह कहना कठिन है।

इस बीच प्लान बी पर काम शुरू कर दिया गया है। इस प्लान के तहत सुरंग को ऊपर से ड्रिल किया जाना है। घटना के तुरंत बाद इसी प्लान पर काम शुरू किया गया था। इसके लिए वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन की व्यवस्था कर दी गई थी। लेकिन, जो मशीन मिली उसकी कैपेसिटी इतनी नहीं थी कि करीब 80 मीटर ड्रिल कर पाती। लिहाजा इस प्लान को रोककर हॉरिजेंटल ड्रिलिंग शुरू कर दी गई थी।

हॉरिजेंटल ड्रिलिंग में दिक्कतें सामने आने लगीं तो फिर से वर्टिकल ड्रिलिंग के प्लान पर काम शुरू किया गया। यह काम 20 नवम्बर को ही शुरू कर दिया गया था। इसके लिए टनल से एप्रोच रोड भी उसी रात तैयार कर दी गई थी। वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन 23 नवंबर को सिलक्यारा पहुंच पाई।

26 नवंबर को वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन को सुरंग के ऊपर पहुंचाकर वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू कर दी गई है। लेकिन, फिलहाल एक छोटे पाइप के लिए ड्रिलिंग की जा रही है। यदि छोटा पाइप सफलता पूर्वक सुरंग तक पहुंच गया तो उसके बाद की बड़े पाइप के लिए ड्रिलिंग की जाएगी। यह ड्रिलिंग करीब 80 मीटर होनी है। जाहिर है इसमें भी लंबा वक्त लगने वाला है।

वर्टिकल ड्रिलिंग का यह काम रेल विकास निगम के हवाले किया गया है। खास बात यह है कि रेल विकास निगम की ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन की ज्यादातर सुरंगों का निर्माण सिलक्यारा टनल बनाने वाली नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी ही कर रही है।

25 नवंबर से प्लान सी पर भी काम शुरू किया गया है। इस प्लान के तहत ब्रह्मखाल की तरफ से सुरंग बनाई जानी है। लेकिन इसमें कम से कम 40 दिन का समय लगने की संभावना जताई जा रही है। इसके बावजूद टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन से ब्रह्मखाल की तरफ से सुरंग बनाने का काम शुरू कर दिया है।

ऐसी है सुरंग की स्थिति

सिलक्यारा-बड़कोट सुरंग की लंबाई करीब 4.50 किमी है। यह सुरंग गंगोत्री और यमुनोत्री के बीच है। गंगोत्री से यमुनोत्री जाने के लिए सिलक्यारा से एक ऊंचा पहाड़ शुरू होता है। इसे राड़ी का डांडा कहा जाता है। सड़क सिलक्यारा से लगातार ऊपर चढ़ती है और करीब 12 किमी चढ़ाई के बाद राड़ी टॉप पहुंचती है। राड़ी टॉप से करीब 18 किमी नीचे उतरकर बड़कोट आता है और बड़कोट से आगे यमुनोत्री पहुंचा जाता है। राड़ी का डांडा चढ़कर उतरने में करीब 30 किमी का सफर करना पड़ता है।

सुरंग बनाकर इस दूरी को सिर्फ 4.50 किमी में समेटने की योजना है, जिसके लिए फिलहाल 41 मजदूरों की जान दांव पर लगी हुई है। सिलक्यारा यानी गंगोत्री की ओर से सुरंग करीब 2.50 किमी खोद दी गई है और बड़कोट की तरफ से 1.50 किमी खोदी गई है। बीच में 500 मीटर का पैच बाकी है, जिस पर टीएचडीसी ने काम शुरू कर दिया है। इस तरफ से काम करने में एक सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सुरंग का निर्माण विस्फोट करके किया जा रहा है। ऐसे में एक और बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।

इस बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, जो यह कहकर उत्तरकाशी गये थे कि रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा होने तक वे मातली से मुख्यमंत्री कार्यालय चलाएंगे, अब वापस लौट आये हैं। 16 दिन से फंसे मजदूरों की सेहत को लेकर लगातार चिन्ताएं बढ़ रही हैं। दो दिन पहले तीन मजदूरों की तबीयत बिगड़ने की भी सूचना मिली थी।

अधिकारियों का दावा है कि सभी लोग सुरक्षित हैं और उनसे बातचीत हो रही है। 19 नवंबर को रेस्क्यू टीम 6 इंच का पाइप मजदूरों तक पहुंचाने में सफल रही थी। इस पाइप के जरिये एक कैमरा भी अंदर भेजा गया था, जिसमें कुछ मजदूर नजर आये थे। इसके बाद कैमरा मजदूरों तक पहुंचाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

सुरंग में फंसे लोगों के परिजन घटना के बाद से ही सिलक्यारा पहुंचने शुरू हो गये थे। वे लगातार उम्मीद लगाये हुए हैं कि जल्द उनके परिजन बाहर आएंगे। अधिकारी और सिलक्यारा पहुंचने वाले नेता भी परिजनों को लगातार ढाढस बंधा रहे हैं कि सभी लोग जल्दी बाहर आ जाएंगे। लेकिन, यह जल्दी कब होगा, अब भी कोई नहीं जानता।

12 नवंबर सुबह हुए हादसे के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह रावत 13 नवंबर को सुरंग पर पहुंचे थे। उन्होंने दो दिन में रेस्क्यू अभियान पूरा होने की बात कही थी। बाद में वहां पहुंचे, केन्द्रीय राज्यमंत्री वीके सिंह, केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और पीएमओ के अधिकारियों ने भी दो दिन में मजदूरों को बाहर निकाल लिये जाने का दावा किया था, लेकिन अब कोई समय सीमा नहीं दी जा रही है। टनल स्पेशलिस्ट अर्नोल्ड डिक्स ने खुद क्रिसमस तक रेस्क्यू पूरा हो जाने की संभावना जताई है।

(उत्तरकाशी से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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