कैसे आरएसएस के शताब्दी वर्ष में महाराष्ट्र को औरंगजेब के बहाने आग में झोंका जा रहा है ?

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“चीन 100 वर्ष आगे की सोच के साथ काम कर रहा है, जबकि भारत 325 वर्ष पीछे की ओर झाँक रहा है।” कल रात महाराष्ट्र के नागपुर शहर में जो कुछ देखने को मिला, उसके लिए शायद इससे बेहतर टिप्पणी नहीं हो सकती। सोशल मीडिया पर कुछ लोग हैं, जो इससे मिलती-जुलती टिप्पणियाँ कर रहे हैं, जबकि अधिकांश लोग एक बार फिर हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव के चश्मे से देखने के लिए अभिशप्त बना दिए जा रहे हैं।

इस बात से तो सभी वाकिफ हैं कि नागपुर को आरएसएस का गढ़ कहा जाता है, और यह वर्ष उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आरएसएस का शताब्दी वर्ष है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के पीछे भी आरएसएस की शताब्दी वर्ष का बहुत बड़ा योगदान रहा है, वर्ना 6 माह पूर्व लोकसभा चुनाव के परिणाम तो इसके ठीक उलट थे। 

हालांकि आज जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस विधानसभा के समक्ष इस दंगे की पृष्ठभूमि पर चर्चा कर रहे हैं तो इसके पीछे वे जिन कारकों की चर्चा कर रहे हैं, उसमें तथ्य साफ़-साफ उन्हें रक्षात्मक मुद्रा अख्तियार करने के लिए बाध्य कर रहे हैं। विधानसभा का शीतकालीन सत्र नागपुर में ही चल रहा है, जिसमें आज उन्होंने इस “पूर्व नियोजित हमला” करार दिया है और इसे शांति भंग करने की साजिश से जोड़ा है। 

अगर मुख्यमंत्री के बयान पर गौर करें तो उनका कहना है कि 17 मार्च की रात हुए हमले में चुनिंदा घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया, जो एक षड्यंत्र का संकेत देता है। उनके अनुसार, “यह ऐसा लगता है कि यह सब पहले से प्लान किया गया था।” इसके साथ ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने “छावा” फिल्म का जिक्र करते हुए कहा कि, “इस फिल्म ने औरंगजेब के प्रति लोगों के गुस्से को भड़काया है, लेकिन फिर भी सभी को महाराष्ट्र में शांति व्यवस्था बनाए रखना चाहिए।” यह फिल्म, जो छत्रपति संभाजी महाराज पर आधारित है, औरंगजेब को खलनायक के रूप में चित्रित करती है।

बता दें कि छावा फिल्म 14 फरवरी 2025 को महाराष्ट्र में रिलीज हुई, जो असल में मराठा सम्राट छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित एक ऐतिहासिक एक्शन ड्रामा है। इस फिल्म का महाराष्ट्र के हिंदुओं, खासकर मराठा समुदाय और हिंदुत्व समर्थकों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इस फिल्म में औरंगजेब का चरित्र चित्रण एक ऐसे क्रूर और आततायी बादशाह के रूप में किया गया है, जिसने शिवाजी के पुत्र संभाजी महाराज को भारी यातनाएं देकर मार डाला और उनके बेटे को बंदी बना लिया था। हालाँकि, कई इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब की मृत्यु के बाद जब संभाजीराव के पुत्र को मुक्त कर दिया गया था तो उन्होंने सबसे पहले औरंगजेब की कब्र पर जाना स्वीकार किया था।   

इस प्रकार की फिल्में आजकल क्यों बनाई जाती हैं, और औरंगजेब क्यों और कैसे हाल के वर्षों में महाराष्ट्र की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका में आ चुका है, को जाने बगैर राज्य की सियासत को समझना आसान नहीं रहने वाला है। 

आज जब चर्चा इस मुद्दे पर केंद्रित है कि औरंगजेब की मजार को नेस्तनाबूद करने की मांग, औरंगजेब की फोटो के साथ कुरान की आयतें आग के हवाले करने की खबर से मुस्लिम समुदाय आक्रोशित हो गया, और कल रात 200-300 लोगों की भीड़ ने नागपुर के महाल इलाके में कई वाहनों को क्षतिग्रस्त और आगजनी की। इस हमले के बाद जब आज कई मीडिया टीम ने पीड़ितों का बयान लिया तो उनका साफ़ कहना था कि पुलिस को लगातार संदेश देने के बाद वह घटनास्थल पर एक-डेढ़ घंटे बाद पहुंची। 

इस हिंसा में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है, हालाँकि पुलिस का दावा है कि कुछ कर्मी इसमें घायल हुए हैं। कुछेक वीडियो में पुलिस के साथ पत्थरबाजी की घटना देखने को मिल रही है। इस घटना के बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया है, और कुल मिलाकर यह निष्कर्ष निकालने की छूट हासिल है कि महाराष्ट्र का बहुसंख्यक हिंदू समाज इतिहास में औरंगजेब की भूमिका को लेकर बेहद नाराज था, लेकिन मुस्लिम समुदाय प्रतिवाद करने के बजाय हिंसक गतिविधियों में शामिल होकर औरंगजेब की हिमायत करता देखा गया। 

ऐसा निष्कर्ष निकालना आसान है, क्योंकि देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा केंद्र में भी शासन में है, और महाराष्ट्र में भी। कुछ मीडिया आउटलेट जो कल तक महाराष्ट्र के कुछ भाजपा नेताओं, मंत्रियों की सांप्रदायिक बयानबाजी पर सवाल खड़े कर रहे थे, वे भी कल की हिंसक घटनाओं के बाद ख़ामोशी की चादर ओढ़ लें तो कोई अचंभा नहीं होना चाहिए। 

लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में औरंगजेब की एंट्री की बात करें तो इसकी शुरुआत आज नहीं बल्कि कुछ वर्ष पूर्व 2022 में तब हुई जब AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने औरंगजेब की कब्र का दौरा किया था। इस दौरे के बाद बीजेपी और शिवसेना ने इसे बहुत बड़ा मुद्दा बनाया, और बीजेपी ने ओवैसी पर देशद्रोह का मुकदमा दायर करने और शिवसेना ने राज्य की शांति भंग करने की साजिश करार दिया था। 

इसके बाद राज्य में कई जगहों पर AIMIM के नेताओं द्वारा औरंगजेब की तस्वीर के साथ प्रदर्शन के बाद उन शहरों में तनाव और हिंसा का वातावरण बनाया गया। इन सभी हमलों और आगजनी की पृष्ठभूमि में विश्व हिंदू परिषद या उसके जैसे कई अन्य हिंदू संगठनों की भूमिका रही है। AIMIM और बीजेपी, संघ की इस जुगलबंदी के पीछे की कहानी को समझना इतना मुश्किल नहीं है, लेकिन चूँकि देश में वास्तविक धर्मनिरपेक्ष दलों का अस्तित्व नहीं रह गया है, और तब महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी के भीतर कांग्रेस और एनसीपी के साथ शिवसेना की खिचड़ी सरकार चल रही थी, जिसे भीतर से ध्वस्त करने के लिए लगातार ऐसे मुद्दों को जिंदा रखना हिंदुत्ववादी संगठनों की बुनियादी जरूरत बनी हुई थी। 

शिवसेना में दोफाड़ के पीछे भी ऐसे मुद्दे बड़े काम के रहे, क्योंकि एकनाथ शिंदे गुट ने तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार पर ठीक यही इल्जाम लगाकर खुद को बालाजी ठाकरे का असली उत्तराधिकारी और अपने गुट को असली शिवसेना होने का औचित्य बताया था। राज्य में एकनाथ शिंदे की शिवसेना और भाजपा के शासन के साथ सकल हिंदू समाज नामक हिंदुत्व की एक छतरी निकाय का उदय देखने को मिला, जिसमें विश्व हिंदू संगठन के साथ-साथ तमाम क्षेत्रीय हिंदुत्ववादी संगठनों के द्वारा जगह-जगह प्रदर्शन आयोजित किये जाने लगे थे। इन प्रदर्शनों में लव जिहाद, औरंगजेब और हिंदुत्व की रक्षा को प्रमुख आधार बनाया जा रहा था, लेकिन जालना जिले में मराठा आरक्षण के मुद्दे पर कई दिनों से अनशन पर बैठे मनोज जरांगे पाटिल पर महाराष्ट्र सरकार की सख्ती ने अचानक राज्य की राजनीति की दिशा ही बदलकर रख दी। 

तब महाराष्ट्र के गृहमंत्री थे, आज के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस। जिस महाराष्ट्र को 2 वर्ष पहले गहरे सांप्रदायिक विभाजन की आग में झोंकने की पूरी तैयारी हो चुकी थी, मराठा आरक्षण की आंधी ने अचानक उसमें बड़ा पलीता लगा दिया। नतीजा भाजपा को 2024 लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा, जिसका संताप आज भी मोदी सरकार का साल रहा है। 

कल की घटना से ठीक पहले महाराष्ट्र में क्या हो रहा था, के बारे में यदि देखें तो हम देखते हैं कि महाराष्ट्र में तेलंगाना के भाजपा विधायक टी। राजा सिंह 16 मार्च को पुणे में आग उगल रहे थे। अपने भाषण में उन्होंने औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर चलाने का आह्वान किया था। यह बयान उन्होंने विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के बीच उनका उत्साह बढ़ाने के मकसद से दिया था, जो औरंगजेब की कब्र जमींदोज किये जाने की मांग कर रहे थे।

टी. राजा सिंह का बयान सोशल मीडिया में अभी भी वायरल हो रहा है, जिसमें उनका कहना है कि, “जो औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर चलाएगा, उसे हिंदुस्तान कभी नहीं भूलेगा।” यह विधायक खुलेआम राज्य के मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से औरंगजेब की कब्र को जमींदोज कर इतिहास में अमर हो जाने की अपील कर रहा था। 

इससे पहले 4 मार्च को राज्य के एक मंत्री नितेश राणे ने अपनी कोल्हापुर की सभा में कहा था कि “औरंगजेब की कब्र को उखाड़कर फेंक देना चाहिए, और जिसे वो प्यारा लगता है, वो उसे अपने घर ले जाए।” नितेश राणे राज्य में घूम-घूमकर नफरती बयानबाजी कर रहा है, लेकिन महाराष्ट्र सरकार को अपने ही मंत्री और विधायक के नफरती बोल पर कुछ नहीं कहना है। आज भी नितेश राणे का बयान वायरल हो रहा है, जिसमें उसने कल की घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा है, “जिसने हमारी पुलिस के ऊपर हाथ उठाया है, उनको अपना अब्बा पाकिस्तान से याद आयेगा। ये कैसा आंदोलन है? ये जिहादी हमेशा पुलिस पर ही हाथ क्यों उठाते हैं? किताबों से औरंगजेब को हटाना होगा, ये कांग्रेस का पाप है…”

आज विधानसभा के बाहर महाविकास अघाड़ी के विधायक हाथों में तख्तियां लेकर मांग कर रहे थे, “दंगे नहीं, शांति चाहिए। शांति चाहिए, हमारे प्यारे महाराष्ट्र में। हम दंगा मुक्त महाराष्ट्र चाहते हैं।” इसके साथ ही विपक्ष नितेश राणे की तस्वीर वाले बैनर के साथ विरोध प्रदर्शन करते दिखा, जिसकी प्रमुख मांग ही यही है कि महाराष्ट्र सरकार नफरत फैलाने वाले मंत्री नितेश राणे को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करे। इसके जवाब में सत्ता पक्ष के विधायक हाथों में तख्तियां लेकर औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग करते देखे गये। 

इसलिए कहा जा सकता है कि भाजपा जिस लक्ष्य को लेकर महाराष्ट्र में लंबे समय से काम कर रही थी, उसमें उसे भले ही कुछ समय के लिए झटका लगा, जिसका नुकसान उसे लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ा, लेकिन अंततः वह अपने इरादे में सफल रही। आरएसएस के गढ़ नागपुर, जहां से देश का एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री और खुद महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री और गृहमंत्री आता हो, उस शहर से यदि देश को इतिहास के 350 साल पीछे ले जाने की मुहिम का आग़ाज हो चुका है, तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि संघ के शताब्दी वर्ष में अभी और क्या-क्या पटाखे फूटने वाले हैं? फिलहाल तो हम-आप ओडिशा के एक भाजपा सांसद की संसद में दिए गये इस बयान से धन्य महसूस कर सकते हैं, जिन्हें किसी बाबा ने ज्ञान दिया है कि प्रधानमंत्री मोदी ही पिछले जन्म में छत्रपति शिवाजी महाराज थे।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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