यूपीः फूलन देवी पर अभद्र टिप्पणी से गरमाई सियासत, निषाद समुदाय का उग्र विरोध

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बनारस। राजनीति में बयानबाजी का दौर कभी थमता नहीं, लेकिन जब बात किसी ऐतिहासिक और क्रांतिकारी शख्सियत के सम्मान की होती है, तो देशभर में इसका असर गहराई से महसूस किया जाता है।  ऐसा ही मामला अब फूलन देवी को लेकर सामने आया है, जिनके खिलाफ एक आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद उत्तर प्रदेश में बवाल मच गया है। मामला इतना गरमा चुका है कि प्रदेश के लगभग सभी जिलों में निषाद समुदाय के लोग सड़कों पर उतर आए हैं। विरोध प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहा और सियासी दलों के बयानबाजी के चलते माहौल लगातार गरमता जा रहा है।

जालौन के एक शख्स डॉ. आशीष द्विवेदी ने कुछ दिन पहले ही फूलन देवी के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अशोभनीय और अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया था। यह वही शख्स है जिसने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के खिलाफ भी शर्मनाक टिप्पणी की थी और उस मामले में उसे गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सोशल मीडिया पर भाजपा के कथित प्रवक्ता डॉ. आशीष द्विवेदी द्वारा की गई अमर्यादित टिप्पणी को समाज के सम्मान पर हमला बताते हुए विभिन्न संगठनों ने एक सप्ताह के भीतर माफी की मांग की है।  यदि ऐसा नहीं हुआ तो प्रदेशव्यापी आंदोलन छेड़ने की चेतावनी दी गई है। 

मऊ, सोनभद्र, सुल्तानपुर, फतेहपुर, बहराइच, जालौन, गाजीपुर, वाराणसी, प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर, आगरा और गोरखपुर समेत कई जगहों पर मार्च निकाले गए। निषाद समाज और फूलन सेना ने पूर्व सांसद वीरांगना फूलन देवी पर की गई अभद्र टिप्पणी के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। पूर्व सांसद वीरांगना फूलन देवी पर सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर की गई अपमानजनक टिप्पणी को लेकर निषाद समाज और अन्य पिछड़ी जातियों में भारी आक्रोश है।  उत्तर प्रदेश के कई जिलों में इस टिप्पणी के विरोध में प्रदर्शन किए गए और ज्ञापन सौंपे गए।

चंदौली में सोमवार को निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए जुलूस निकाला और कलेक्ट्रेट पहुंचकर एसडीएम को ज्ञापन सौंपा।  निषाद पार्टी के जिलाध्यक्ष अरविंद बिन्द ने दो प्रमुख मांगें रखीं-पहली, जालौन जिले के डॉ. आशीष द्विवेदी के खिलाफ सख्त कार्रवाई, जिन्होंने सोशल मीडिया पर पूर्व सांसद फूलन देवी को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की थी।  दूसरी, निषाद समाज की सभी उपजातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की अधिसूचना जारी करने की मांग। 

जिलाध्यक्ष ने कहा कि प्रदेश सरकार अब तक अनुसूचित जाति की अधिसूचना जारी करने में विफल रही है।  उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “लोकसभा चुनाव में भाजपा को निषाद समाज ने सबक सिखाया था, और यदि विधानसभा चुनाव से पहले उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो इसके नतीजे सत्ताधारी दल के लिए प्रतिकूल होंगे।  प्रदर्शन में महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष शिव कुमारी निषाद, सुरेश निषाद, चंद्रकला निषाद, चंद्रमणि पांडेय, विजय निषाद, मेघनाथ निषाद, रेखा देवी और काशी साहनी समेत बड़ी संख्या में कार्यकर्ता शामिल रहे।  निषाद पार्टी ने आगे की रणनीति को लेकर जल्द ही बड़ा फैसला लेने की बात कही है।”

गाजीपुर जिले में निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन किया।  पार्टी के जिलाध्यक्ष ओमप्रकाश निषाद ने कहा कि, “जालौन निवासी डॉ. आशीष द्विवेदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर पूर्व सांसद फूलन देवी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की, जिससे निषाद, केवट, मल्लाह, बिंद, कश्यप, कहार, धीवर, रायकवार, बाथम, तुरैहा, मझवार, भर, राजभर सहित पूरे मछुआ समाज में भारी आक्रोश है।  फूलन देवी न केवल निषाद समाज की प्रतीक थीं, बल्कि उन्होंने सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई थी।  उनकी गरिमा पर प्रहार करना पूरे समाज के स्वाभिमान पर हमला करने जैसा है। निषाद पार्टी की जिला कमेटी ने प्रशासन से आरोपी के खिलाफ तत्काल प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की।”

मऊ जिले के मुंशीपुरा में शनिवार को फूलन सेना कोर कमेटी की बैठक आयोजित हुई। बैठक में भाजपा प्रवक्ता द्वारा पूर्व सांसद फूलन देवी के प्रति अमर्यादित भाषा के प्रयोग की निंदा की गई और माफी की मांग की गई।  राष्ट्रीय महासचिव रामलाल राजभर ने भाजपा को दलित, पिछड़ा और महिला विरोधी पार्टी करार दिया।  उपाध्यक्ष मुखदेव साहनी ने चेतावनी दी कि यदि एक सप्ताह के भीतर माफी नहीं मांगी गई, तो प्रदेशव्यापी आंदोलन किया जाएगा।  बैठक की अध्यक्षता रामदरस राजभर ने की और संचालन वीरेंद्र साहनी ने किया।

बड़े पैमाने पर निकाले गए मार्च

सोनभद्र जिले में निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कलेक्ट्रेट परिसर में जोरदार प्रदर्शन किया और दोषी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।  जिला अध्यक्ष अनिकेत निषाद के नेतृत्व में सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री और राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि दोषी पर कार्रवाई नहीं हुई तो उग्र आंदोलन होगा। पार्टी ने इस मामले में त्वरित और निष्पक्ष जांच की मांग की और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणियों के खिलाफ कड़े कानून बनाए जाने की मांग रखी।

फतेहपुर में निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं ने डीएम कार्यालय पहुंचकर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। जिलाध्यक्ष लोकनाथ निषाद ने कहा कि पूर्व सांसद पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी दलित समाज का अपमान है। उन्होंने दोषी युवक की गिरफ्तारी की मांग की। निषाद पार्टी ने यह भी मांग उठाई कि निषाद, केवट और मल्लाह जैसी जातियों को पिछड़ी जाति की सूची से हटाने के फैसले पर पुनर्विचार किया जाए।

बहराइच में निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पुलिस अधीक्षक और जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा। जिलाध्यक्ष मनोज कुमार निषाद के नेतृत्व में सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया और आरोपी डॉ. आशीष द्विवेदी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की।  जालौन जिले में निषाद समाज के लोग डीएम कार्यालय पहुंचे और आरोपी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।  पार्टी कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी कि यदि दोषी पर कार्रवाई नहीं हुई तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा।

फतेहपुर जिले में निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। जिलाध्यक्ष लोकनाथ निषाद ने कहा कि, “अभद्र टिप्पणी ने न केवल दलित समाज का अपमान किया है, बल्कि महिलाओं के सम्मान को भी ठेस पहुंचाई है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि आरोपी के खिलाफ त्वरित कार्रवाई नहीं हुई तो पार्टी आंदोलन को और तेज करेगी।” ज्ञापन देने वालों में रेनू, रेखा, सुरेश कुमार निषाद, रजनी निषाद और गंगाराम निषाद सहित कई कार्यकर्ता शामिल थे।

सुल्तानपुर जिले में मोस्ट कल्याण संस्थान ने भी सोशल मीडिया पर की गई अभद्र टिप्पणी के विरोध में प्रदर्शन किया।  महिला विंग की जिला सचिव आरती बौद्ध के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने नगर कोतवाल को तहरीर सौंपकर पुलिस अधीक्षक और जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया। ब्रॉडकास्टर शुभांकर मिश्रा और डॉ. आशीष द्विवेदी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की।  आरोप है कि शुभांकर मिश्रा ने अपने शो में फूलन देवी के हत्यारे शेर सिंह राणा से अपमानजनक भाषा में सवाल पूछा, जबकि डॉ. आशीष द्विवेदी ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणी की।

मुरादाबाद, मेरठ, बनारस और चंदौली में भी निषाद पार्टी ने जोरदार प्रदर्शन किया। फूलन देवी पर की गई अपमानजनक टिप्पणी के विरोध में विभिन्न जिलों में प्रदर्शन हुए, जिनमें निषाद समाज और अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों ने भाग लिया। सभी संगठनों ने दोषी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की और सरकार से निष्पक्ष जांच कराने का अनुरोध किया। यदि कार्रवाई नहीं हुई तो प्रदेशव्यापी आंदोलन किया जाएगा। 

आंदोलनकारियों ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियां समाज में जातीय और वर्गीय वैमनस्य को बढ़ावा देती हैं और महिलाओं के प्रति असम्मानजनक व्यवहार को प्रोत्साहित करती हैं। उन्होंने प्रशासन से दोनों व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की। फूलन देवी के परिवार ने भी इस टिप्पणी पर नाराजगी जताई है।  उनकी बहन मुन्नी देवी ने कहा, “फूलन दीदी ने जो संघर्ष किया, वह किसी एक जाति के लिए नहीं, बल्कि सभी दबे-कुचले लोगों के लिए था। उनका अपमान पूरे समाज का अपमान है।”

दर्दविद्रोह और सियासत का सफर

फूलन देवी-यह नाम सिर्फ एक महिला डकैत का नहीं था, बल्कि सामाजिक अन्याय, विद्रोह और बदले की एक ज्वलंत मिसाल बन गया।  उनका जीवन संघर्ष, पीड़ा, अपमान और प्रतिरोध की एक गाथा है, जिसने भारतीय समाज की सामंती और जातिवादी संरचना को हिला दिया था।

10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के घूरा का पुरवा गांव में जन्मी फूलन देवी का जीवन किसी भी आम लड़की जैसा नहीं था।  वे एक बेहद गरीब परिवार में जन्मीं, जहाँ उनकी जाति और गरीबी उनके हर कदम को कुचलने के लिए तत्पर थी।  बचपन से ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाली फूलन को अपने ही चाचा से जमीन के लिए संघर्ष करना पड़ा।  जब वह महज 10 साल की थीं, तब अपने ही चाचा से जमीन के लिए धरने पर बैठीं। नतीजा यह हुआ कि उनके सिर पर ईंट मार दी गई और परिवार ने भी उन पर अत्याचार करने में कोई कमी नहीं छोड़ी।

लेकिन सबसे बड़ा अन्याय तब हुआ जब महज 10 साल की उम्र में ही उनकी शादी एक 30-40 साल के व्यक्ति से कर दी गई।  यह शादी एक जेल जैसी थी, जिसमें उनके साथ मारपीट और शोषण हुआ। 16 साल की उम्र में कुछ डकैतों ने उनका अपहरण कर लिया, और यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गई।

जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न से त्रस्त फूलन देवी को अंततः डाकुओं के एक गिरोह में शामिल होना पड़ा। वहां भी उन्होंने जातिगत भेदभाव का सामना किया। उच्च जाति के डाकू अपने दलित और पिछड़ी जाति के साथियों को तिरस्कार और हिंसा का शिकार बनाते थे। उनके साथी की हत्या कर दी गई और उन्हें अपमान व अत्याचार झेलना पड़ा। इन अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए फूलन देवी ने अपने गिरोह के साथ बेहमई गांव में प्रवेश किया, जहां ठाकुरों ने उनके साथ अमानवीय अत्याचार किए थे। हालांकि उनका उद्देश्य अपने अपराधियों को दंडित करना था, लेकिन इस घटना ने उन्हें एक जटिल विवाद का केंद्र बना दिया।

निषाद पार्टी के वरिष्ठ नेता अरविंद बिंद कहते हैं, “फूलन देवी न्यायपालिका और मीडिया की राजनीति का शिकार बनीं। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और संसद तक का सफर तय किया। वे दलित और पिछड़ी जातियों की आवाज बनीं, परंतु अंततः 2001 में उनकी हत्या कर दी गई।  डाकू बनने के बावजूद, फूलन देवी ने कभी भी निजी स्वार्थ के लिए लूटपाट नहीं की। उनके गिरोह के सदस्य पूंजीवाद और जातिवाद की दमनकारी व्यवस्था से त्रस्त लोग थे, जिनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था। वे अमीर उच्च जातियों के घरों को निशाना बनाते थे, जिन्होंने गरीबों का शोषण किया था। लूट का एक बड़ा हिस्सा वंचितों को लौटाया जाता था।  फूलन देवी ने खुद कहा था: “मैं न्याय की अपनी भूख से प्रेरित थी।”

बैंडिट क्वीन बनने की कहानी

डकैतों के गिरोह में रहने के दौरान उन्होंने समाज के उस क्रूर रूप को देखा, जिसमें गरीब और कमजोर महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं थी।  सामंतों और ऊँची जाति के लोगों ने न सिर्फ उनका अपमान किया, बल्कि उन्हें घोर यातनाएं दीं।  1981 में, फूलन देवी ने अपने साथ हुए सामूहिक बलात्कार का बदला लेने के लिए 22 सामंतों की हत्या कर दी।  यह घटना ‘बेहमई कांड’ के नाम से इतिहास में दर्ज हो गई और इसने पूरे देश को हिला कर रख दिया।  मीडिया ने उन्हें ‘बैंडिट क्वीन’ का नाम दे दिया।

एक्टिविस्ट डॉ. लेनिन रघुवंशी का मानना है कि फूलन देवी का विद्रोह जातिवादी और सामंती समाज के खिलाफ था।  उन्होंने कहा था, “फूलन देवी के विरोधी भारतीय संविधान के विरोधी हैं, क्योंकि संविधान हर व्यक्ति को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार देता है। ऊँची जाति के अधिकतर लोग मनुस्मृति के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं, इसलिए वे फूलन को स्वीकार नहीं कर पाए।”

फूलन देवी के बेहमई कांड ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वी.पी. सिंह की कुर्सी छीन ली थी। अंततः एमपी के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। उन पर हत्या, डकैती और अपहरण के कुल 70 से अधिक मामले दर्ज थे।  उन्हें 11 साल जेल में रहना पड़ा, लेकिन 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने उन पर लगे सभी आरोप हटा दिए।

1994 में जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने उम्मेद सिंह से विवाह कर लिया और राजनीति में कदम रखा।  1996 में वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बनीं।  हालाँकि, 1998 का चुनाव वे हार गईं, लेकिन 1999 में फिर से मिर्जापुर से सांसद बन गईं।  उनका राजनीतिक सफर यह दिखाने के लिए काफी था कि एक स्त्री, जिसे समाज ने कुचलने की हर संभव कोशिश की, वह अपने साहस के दम पर सत्ता के गलियारों तक पहुँच सकती है।

25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा नाम का युवक उनके घर आया। उसने फूलन से ‘एकलव्य सेना’ में शामिल होने की इच्छा जताई।  उसने खीर खाई और फिर बाहर निकलते ही फूलन देवी पर गोलियां बरसा दीं।  फूलन देवी वहीं दम तोड़ गईं।  उनकी हत्या को बेहमई कांड का बदला बताया गया।  14 अगस्त 2014 को दिल्ली की अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

फूलन की जीवन विद्रोह की मिसाल

पूर्व सांसद फूलन देवी पर गहन शोध करने वाले इतिहासकार रमाशंकर सिंह कहते हैं, “फूलन देवी का जीवन एक त्रासदी और विद्रोह की मिसाल है।  उनकी कहानी हमें बताती है कि सामाजिक और जातिगत अन्याय किस तरह एक व्यक्ति को अपराधी बनने पर मजबूर कर सकता है।  लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके संघर्ष का मूल कारण वही व्यवस्था थी, जिसने उन्हें जीवनभर प्रताड़ित किया।  यह कहानी केवल फूलन देवी की नहीं, बल्कि उन लाखों दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों की भी है, जो अब भी न्याय और सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं।”

“फूलन देवी का जीवन केवल व्यक्तिगत संघर्ष और प्रतिशोध की गाथा नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में जाति, वर्ग और लैंगिक असमानताओं का जीवंत दस्तावेज भी है। उनके जीवन की त्रासदी यह रही कि बचपन से ही उन्हें अन्याय, शोषण और अत्याचार का शिकार होना पड़ा।  दस वर्ष की उम्र में जबरन विवाह, पति द्वारा हिंसा, गांव में सामाजिक बहिष्कार और पुलिस-प्रशासन द्वारा उपेक्षा-इन सभी घटनाओं ने उन्हें एक विद्रोही योद्धा बना दिया।  बेहमई हत्याकांड को फूलन देवी की जीवन यात्रा का सबसे विवादित मोड़ माना जाता है।  लेकिन इस कांड की व्याख्या केवल अपराध की दृष्टि से करना उनके संघर्ष को कम करके आंकने जैसा होगा।  यह उन जातिगत शोषणों का परिणाम था जिनका सामना उन्होंने वर्षों तक किया था।”

इतिहासकार श्री सिंह कहते हैं, “फूलन देवी की छवि दो धाराओं में विभाजित है-एक तरफ वे दलितों और पिछड़े समुदायों के लिए नायिका थीं, जिन्होंने पुरुष-प्रधान व्यवस्था को चुनौती दी।  दूसरी ओर, उन्हें कानून व्यवस्था के लिए एक अपराधी माना गया।  लेकिन इतिहास यह बताता है कि कई मामलों में सत्ता द्वारा परिभाषित ‘अपराध’ असल में अन्याय के खिलाफ विद्रोह होता है।  उनका जेल से निकलकर राजनीति में आना और सांसद बनना यह दर्शाता है कि उनके संघर्ष को समाज ने केवल अपराध के रूप में नहीं देखा, बल्कि उसे एक सामाजिक चेतना और राजनीतिक शक्ति में तब्दील किया।”

“आज फूलन देवी का नाम केवल उनके जीवन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वे एक आंदोलन, एक विचारधारा और एक राजनीतिक चेतना का प्रतीक बन चुकी हैं। वे सामाजिक अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाली हर महिला के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।  उनकी कथा को केवल एक डाकू की कहानी के रूप में देखने की बजाय इसे जाति, लिंग और वर्ग के शोषण के खिलाफ खड़ी एक प्रतिरोधी महिला की जीवनी के रूप में देखा जाना चाहिए। उनकी मृत्यु के दो दशक बाद भी फूलन देवी की स्मृति भारत की सामाजिक और राजनीतिक चेतना में गूंजती है। वे आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं-उनके साहस, संघर्ष और विद्रोह की गूंज आज भी कई समुदायों में महसूस की जाती है। “

संघर्ष की अमर गाथा

राजनीतिक समीक्षक विनय मौर्य मानते हैं कि, “भाजपा अब निषाद वोटों को साधने के लिए आक्रामक रणनीति अपना रही है।  निषाद समाज के बारे में ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि ये ‘गंगापुत्र’ कहलाते हैं। कभी नाविक तो कभी मछुआरे, इस समुदाय के लोग पीढ़ियों से जलस्रोतों के आसपास जीविका चलाते आए हैं।  किंवदंती के अनुसार, जब भगवान राम लंका जा रहे थे, तो निषादों ने ही उन्हें गंगा पार कराई थी। लेकिन आज इस समाज को हाशिए पर धकेल दिया गया है। “

“सवाल उठता है कि क्या सिर्फ बलात्कार ने फूलन को ‘डकैत’ बनाया? अगर ऐसा होता, तो देश में हजारों फूलन देवियां होतीं।  असल में, यह पूरी व्यवस्था ही मर्दवादी संस्कृति की उपज है, जहाँ महिलाओं को प्रतिरोध करने पर दंडित किया जाता है।  फूलन देवी की विरासत सिर्फ उनके जीवन संघर्ष तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने निषाद समुदाय को एक राजनीतिक पहचान भी दी।  उत्तर प्रदेश में निषाद समुदाय की बड़ी आबादी है। यह समुदाय वर्षों से सामाजिक और राजनीतिक हाशिए पर रहा है। “

राजनीति में निषाद वोटों के महत्व को देखते हुए भाजपा और सपा दोनों इसे अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं। निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद का दावा है कि गोरखनाथ मंदिर का मूल इतिहास उनके समुदाय से जुड़ा है। वे अनुसूचित जाति का दर्जा और सत्ता में हिस्सेदारी चाहते हैं।

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं, “फूलन देवी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थीं, वे एक विचार थीं।  उनका संघर्ष यह बताता है कि कोई भी अन्याय को चुपचाप स्वीकार नहीं करे। उन्होंने प्रतिरोध किया, इसलिए वे एक लीजेंड बन गईं।  उत्तर प्रदेश में कई राजनीतिक दल निषाद वोटों के लिए लड़ रहे हैं, तब सवाल यह उठता है कि क्या वे फूलन देवी की वास्तविक विरासत को समझते हैं?”

राजीव यह भी कहते हैं, “क्या वे समाज की उस महिला के लिए आवाज उठाएंगे, जिसने अपने जीवन के हर कदम पर अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया? फूलन देवी की कहानी यह दिखाती है कि समाज चाहे जितना भी औरतों को दबाने की कोशिश करे, अगर वह विद्रोह करना सीख जाए, तो इतिहास में अपना नाम खुद लिख सकती है।  वे एक प्रतीक थीं, हैं और रहेंगी।”

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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