‘बंटेंगे तो कटेंगे’, बात तो सही है, लेकिन यही काम तो आप कर रहे ज़नाब!

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26 अगस्त को आगरा में जन्माष्टमी के मौके पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ ने सभा में उपस्थित भीड़ के लिए यह नया नारा उछाला था, जिसमें उन्होंने बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए इस विचार को आकार दिया। अपने भाषण में उन्होंने कहा था, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे, और बटेंगे तो कटेंगे।

देखते ही देखते भाजपा और आरएसएस के सर्किल में यह जुमला इतना चल निकला कि पीएम नरेंद्र मोदी और हाल ही में आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी नागपुर में दशहरे के अपने वार्षिक भाषण में इससे मिलते-जुलते नारे उछाले। 

यह एक ऐसा कोड-वर्ड साबित हुआ, जिसके मायने आम बहुसंख्यक हिंदू समाज के लिए एक है तो बीजेपी-संघ के दिग्गजों के लिए भी इसके निहितार्थ छुपे हैं। 4 जून के बाद से आलम कुछ ऐसा था कि भाजपा और सरकार पर वास्तविक पकड़ रखने वाले नेताओं के लिए अपदस्थ होने का खतरा खुद संघ और भाजपा की कतारों से नजर आने लगा था।

निगाहें चुराकर पब्लिक में दमदार दिखने की असफल कोशिशें जारी थीं, लेकिन संघ लगातार कुछ ऐसे तार छेड़ रहा था, जो सत्ताधीशों के लिए आसन्न खतरे को पल-पल अपने पास आता देख रहा था।

आम चुनावों से पहले ही जमीन पर मौजूद धुर-दक्षिणपंथी शक्तियां भी बड़े हद तक शिथिल पड़ी थीं। अबकी बार, 400 पार के नारे और जमीन पर उसके बेअसर दिखने, 10 वर्ष के जुमलों की बारिश और मुंह बाए खड़ी बेरोजगारी, महंगाई से अब तक टूट चुके अधिकांश समर्थक भी पस्तहाल नजर आ रहे थे।

पीएम मोदी के चुनावी भाषणों में घुसपैठिये, भैंस चुरा लेने वाले जैसे तमाम विभाजनकारी वक्तव्यों के बावजूद, देश का मूड बदला-बदला सा था।

लेकिन, लगता है उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को अपदस्थ करने की योजना को ठंडे बस्ते में डालने और हरियाणा में अप्रत्याशित जीत ने एक बार फिर से बीजेपी और आरएसएस के बीच के बिखरे तारों को जोड़ दिया।

और एक समझौते की मेज पर लाकर, योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे संदेश को आत्मसात कर, पूरे जोशो-खरोश के साथ एक बार फिर से देश को हिंदू-मुस्लिम की बाइनरी में आगे बढ़ाने वाले घिसे-पिटे फार्मूले को ही आगे करने पर मूक समझौता कर लिया है।

देश में आज कौन से मुद्दे आम लोगों के सिर चढ़कर बोल रहे हैं?

लारेंस बिश्नोई गैंग का आजकल पूरे देश में डंका बज/बजाया जा रहा है, गोया अब राम, कृष्ण या पृथ्वीराज चौहान/राणा प्रताप जैसे ऐतिहासिक प्रतीकों के स्थान पर एक सजायाफ्ता मुजरिम को हिंदू समाज का तारणहार मान लिया जाये?

एक गैंगस्टर, जिसके कारनामे जेल के भीतर रहते हुए भी देश में सबसे सनसनीखेज साबित हो रहे हों, जिसे पिछले वर्ष अगस्त माह दिल्ली की सेंट्रल जेल, तिहाड़ से गांधीनगर, गुजरात में स्थानांतरित कर भारतीय न्याय संहिता की पता नहीं कौन सी धारा के तहत, इतनी तगड़ी सुरक्षा के तहत रखा गया है कि उसकी तुलना में Z सिक्यूरिटी भी फेल है।

ऐसे अपराधी, जिसे तमाम सूत्रों के मुताबिक, गृह मंत्रालय के निर्देश पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के तहत साबरमती जेल में कैद रखा गया है, के पास राष्ट्रीय मीडिया के एंकर इंटरव्यू लेने पहुंच सकते हैं।

वह जेल के भीतर रहते हुए भी, भारत और भारत के बाहर भी बड़ी-बड़ी हस्तियों को धमकी और अपने गैंग के रिक्रुट्स के माध्यम से बड़ी आसानी से टपका सकता है, एक ऐसे जंगलराज का नायाब नमूना पेश करता है, जिसकी मिसाल इससे पहले शायद ही कभी देखने को मिली हो।

आरएसएस का मुखपत्र, पांचजन्य इस गैंग्स्टर के कारनामों को खुलेआम गर्व से बताते हुए ट्वीट कर रहा है कि, बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद, “खौफ में है सलामन खान! धमकी, रेकी, फायरिंग और अब दोस्त का कत्ल, सलमान खान के इर्द-गिर्द लारेंस बिश्नोई ने खौफ कायम कर दिया है।”

क्या संघ और भाजपा ने भारत सरकार, संविधान, कार्यपालिका और साथ ही न्यायपालिका को एक गैंग के हवाले कर दिया है? जिसे भारत की न्यायालय ने संविधान और भारतीय दंड संहिता के तहत उसके किसी एक अपराध के लिए सजा मुकर्रर कर रखी है, संघ का मुखपत्र उसी अपराधी के कसीदे पढ़ रहा है?

क्या लारेंस बिश्नोई का बदला/न्याय ही भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) का सारतत्व बन चुका है? अगर ऐसा है तो फिर ये न्यायपालिका और माननीय न्यायाधीशों और पुलिस महकमे की जरूरत ही क्या है?

बता दें कि लारेंस बिश्नोई गैंग के बॉलीवुड को अपने भय के चंगुल में जकड़ लेने की खबरें इस समय सबसे अधिक वायरल हो रही हैं। आज बड़े पैमाने पर यह खबर सोशल मीडिया पर उड़ाई जा रही है कि इस गैंग ने कॉमेडियन, मुनव्वर फारुकी को अपना अगला टार्गेट बनाया हुआ है।

पंजाबी गायक, सिद्धू मूसेवाला की हत्या के दोषी के कारनामे भारत के बाद अब सात समंदर पार, कनाडा से भी आने लगी हैं। 

मशहूर कार्टूनिस्ट, मंजुल ने एएनआई के वीडियो को अपने सोशल मीडिया हैंडल साझा करते हुए लिखा है, “कैनेडा के पुलिस वाले गंभीर आरोप लगा रहे हैं कि विश्वगुरु उनके देश में बिश्नोई ग्रुप के सहारे ठांय-ठांय का खेल, खेल रहे हैं।

लगता है इस सबसे नए भारत की इज्जत दुनिया में बढ़ेगी और वो जल्द ही सुपर पॉवर हो जाएगा। वैसे अगर बाबा सिद्दकी की हत्या में बिश्नोई गैंग का हाथ है तो उसका पार्टनर कौन हो सकता है?”

वैसे, यह सवाल अकेले मंजुल का नहीं है, बल्कि आज देश का सभी प्रबुद्ध वर्ग विचार कर रहा है कि क्या यही है विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र? ये देखते ही देखते हम, क्या से क्या हो गये?

बुद्ध और गांधी का देश कह, हमारे राजनेता बड़ी आसानी से विश्व रंगमंच पर अपने लिए सम्मान बटोरते अक्सर देखे जा सकते हैं, लेकिन जमीन पर हालात ऐसे हो गए हैं कि भारत को आज नहीं तो कल अफ्रीका के साहिली क्षेत्र या दक्षिणी अमेरिकी चंद सबसे बदनाम देशों की श्रेणी में जोड़कर देखा जा सकता है।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल दुनिया के लिए यह हमेशा बना रहने वाला है कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश यदि बर्बाद होता है तो उसका असर सारी दुनिया पर निश्चित रूप से पड़ेगा।

क़ायदे से पश्चिमी मुल्कों को अपने भूराजनैतिक एजेंडे को आगे करने के लिए भारत जैसे विशाल देश को बक्श देना चाहिए, और उसे अपनी विशाल जनसांख्यकीय को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन और रोजागर कैसे उपलब्ध कराए जा सकें, ताकि शेष विश्व इसकी चपेट में न आ जाये, पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। 

उत्तर प्रदेश में बहराइच ने ‘कटेंगे तो बटेंगे’ नारे को हिट बना दिया है 

जी हां, आखिर तमाम कोशिशों के बाद एक हिंदू युवा की मौत संभव हो सकी, क्योंकि पिछले तमाम वर्षों से इस समुदाय के खिलाफ घृणा अभियान, भीड़ की हिंसा, लव जिहाद, थूक जिहाद जैसे न जाने कितने अफवाहों और अभियान के अलावा मस्जिदों पर पत्थरबाजी के बावजूद मुस्लिम समुदाय की ओर से कोई प्रतिक्रिया न मिलने से उग्र हिंदुत्ववादी भावनाओं का ज्वार संभव ही नहीं हो पा रहा था। 

दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के लिए जिस रूट का चयन किया गया, निश्चित रूप से इसे स्थानीय प्रशासन की रजामंदी पर ही स्वीकृति मिली होगी। इस समारोह में भीड़ मुस्लिम बहुल इलाके से गुजरती है और डीजे की धुन से जो आवाज चीख-चीखकर उस इलाके के घर-परिवारों में घुसती है, वह मां दुर्गा की स्तुति में नहीं बल्कि मां-बहन के नाम पर अपशब्दों की बारिश है।

बाकी मुख्यमंत्री ने डीजे या लाउडस्पीकर की अनुमति तो शायद हिंदू-मुस्लिम सभी के लिए रोकी है, फिर भी पुलिस बंदोबस्त के बावजूद इसे बदस्तूर जारी रखने की गलती यदि देखने को मिली है तो इसका कसूर तो उत्तर प्रदेश प्रशासन या कहें सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मत्थे चढ़ता है। 

इतना ही नहीं, एक युवा मुस्लिम समाज के धार्मिक झंडे को ऊपर चढ़कर फाड़ देता है और भगवा झंडा फहरा देता है, जिसे सोशल मीडिया में साइबर सेल चीख-चीखकर एक छोटा गुनाह साबित करते हुए बड़ा बदला लिए जाने के लिए योगी आदित्यनाथ पर दबाव बना रहे हैं।

देश को हिंदू-मुस्लिम की बाइनरी पर बांटकर अपनी राजनीति करने वालों के लिए तो यह ‘अन्धा क्या चाहे, दो आंखें’ ही साबित हो रही है।

जिस प्रदेश ने एक कर्तव्य पारायण पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या पर कोई प्रतिक्रिया न दी हो, सैकड़ों एनकाउंटर और बुलडोजर के बल पर त्वरित न्याय के नाम पर मनमानेपूर्ण इकतरफा कार्रवाई कर संविधान और न्यायपालिका की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रखे हों, उस शासन से आखिर एक गुमराह युवा के माता-पिता को आज मुलाक़ात करने के बाद क्या मिल सकता है?

उस लड़की का क्या कुसूर, जिसे चंद माह पहले ही ब्याह कर इनके घर लाया गया, उसे कैसे अंदाजा हो सकता है कि कैसे एक धार्मिक अनुष्ठान को बड़े ही सचेतन ढंग से कुछ राजनीतिक शक्तियां अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर उसका भविष्य बिगाड़ सकती हैं, जिसे बाद में दिखाकर एक बड़ा नैरेटिव खड़ा किया जाना है। लेकिन यही कड़वी सच्चाई है।  

छत्तीसगढ़ का हाल भी बेहाल है 

भाजपा के राज्यों में उत्तर प्रदेश में दंगे, महाराष्ट्र में बॉलीवुड आतंक के साए में, असम और उत्तराखंड में स्वंय मुख्यमंत्रियों की ओर से जब-तब एक विशेष समुदाय को टारगेट करने के अभियान के अलावा छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी कोई सामान्य हालात नहीं हैं।  

विस्तारा न्यूज़ के पत्रकार, रवि मिरी ने एक वीडियो ट्वीट करते हुए बताया है कि, “सूरजपुर में भारी बवाल मच गया है। आक्रामक भीड़ ने SDM जगन्नाथ वर्मा को दौड़ाया तो SDM साहब पुलिसवाले के साथ भीड़ से बचकर भाग निकले।”

बता दें कि सूरजपुर में एक बदमाश ने पिछले दिनों एक पुलिसकर्मी के घर में घुसकर उसकी पत्नी और छोटी बच्ची को मार डाला था। इतना ही नहीं, रात को उसने पुलिसकर्मी के ऊपर गर्म तेल से भी हमला किया था।

इस घटना से आम लोगों का गुस्सा बुरी तरह से भड़क उठा, और उन्होंने आरोपी के गोदाम में आग लगा दी। अब खबर आ रही है कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने आरोपी को झारखंड से गिरफ्तार कर लिया है।

छत्तीसगढ़ के हाल इतने खराब हैं कि सत्तारूढ़ भाजपा के ही विधायक प्रदीप पटेल अपने प्राणों की खातिर एएसपी के कार्यालय में दोनों हाथ जोड़कर दंडवत होकर घिसटते देखे जा रहे हैं।

उनका आरोप है कि प्रदेश में मादक पदार्थों के तस्करों और माफियाओं का राज चल रहा है, जिनसे उन्हें भी खतरा उत्पन्न हो चुका है। अब सवाल ये है कि यदि जो कानून निर्माता स्वंय की सरकार होने के बावजूद इस कदर असहाय महसूस का रहा है तो प्रदेश की आम जनता और आदिवासी समुदाय का हाल-खबर कौन ले रहा होगा? 

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि लगभग समूचा देश ही अराजकता की चपेट में आता जा रहा है

कुछ लोग बहराइच की घटना को मणिपुर प्रयोग बता रहे हैं। लेकिन ध्यान से देखने पर लगता है कि हमारे देश के हुक्मरानों के पास अब देश के युवाओं, किसानों, मजदूरों सहित 90% आबादी के लिए देने के लिए कुछ बचा ही नहीं।

चूंकि कुछ दे नहीं सकते, लेकिन सत्ता को छोड़ना कहीं से भी निरापद नहीं है, इसलिए बटेंगे तो कटेंगे जुमला सच में उनके भी काम आ रहा है, और अगर पब्लिक ने भी उसे हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव के संदर्भ में ग्रहण कर लिया तो बल्ले-बल्ले है।

लेकिन अगर इसी नारे की असलियत उसके सामने आ गई कि देशवासी यदि हिंदू-मुस्लिम में बंटे, तो उनका कटना बदस्तूर जारी रहने वाला है तो सारा मामला पलक झपकते ही उलट भी सकता है।

सवाल है, इसे दिखाने वाला नेतृत्व चाहिए, जिसे इसकी समझ हो।  

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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