दिल्ली में ताजपोशी से समय मिले तो देखो कि अमेरिकी एजेंसी क्या कह रही है?

Estimated read time 1 min read

भले ही देश की मीडिया कल शाम से ही दिल्ली के लिए नए मुख्यमंत्री का चेहरा दिखाकर यूरेका मोमेंट बना रही हो, और आज भाजपा के लिए एकमात्र महिला मुख्यमंत्री के तौर पर एक और अनूठी उपलब्धि गिनाने में व्यस्त हो, लेकिन कल शाम से ही रायटर्स की एक खबर ने कॉर्पोरेट जगत और दिल्ली की सियासत की नींद उड़ा रखी है।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यूनाइटेड स्टेट्स सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) ने अडानी समूह के संस्थापक गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी की जांच में मदद के लिए भारतीय विधि एवं न्याय मंत्रालय से मदद मांगी है। यह जानकारी कोर्ट के दस्तावेजों के हवाले से दी गई है।

सोशल मीडिया पर लोग विधि एवं न्याय मंत्रालय से सवाल पूछ रहे हैं कि अमेरिकी प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग ने अडानी को SEC और DoJ का समन भेजने के लिए आपसे मदद मांगी है। क्या विधि मंत्रालय ऐसा करेगा?

बता दें कि 18 फरवरी को अमेरिकी कोर्ट में दाखिल एक फाइलिंग के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका की SEC ने भारत सरकार से अडानी के खिलाफ कथित प्रतिभूति धोखाधड़ी और 265 मिलियन डॉलर की रिश्वतखोरी योजना की जांच में मदद करने की मांग की है।

न्यूयॉर्क जिला न्यायालय में दायर अपनी फाइलिंग में एसईसी ने कहा है कि गौतम और सागर अडानी को अपनी शिकायत भेजने के उसके प्रयास “जारी” हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि अडानी को शिकायत भेजने के लिए भारतीय विधि एवं न्याय मंत्रालय से मदद मांगी गई है, क्योंकि इनमें से एक भी अमेरिकी हिरासत में नहीं है और भारत में रह रहे हैं।

इस पत्र में यह भी लिखा गया है कि FRCP-4 (f) और हेग सर्विस कन्वेंशन के मुताबिक भारत में रह रहे अडानी समूह तक नोटिस भेजने की प्रक्रिया जारी है, और कोर्ट को इस बारे में होने वाली प्रगति से समय-समय पर अपडेट किया जाता रहेगा।

यह मामला अब इसलिए भी बेहद अहम हो जाता है क्योंकि कुछ दिन पहले ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी मीडिया के द्वारा इसी मुद्दे पर जानने की कोशिश की कि क्या राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ उनकी इस बारे में कोई बात हुई है या नहीं। इसके जवाब में पीएम मोदी ने दो टूक शब्दों में कहा था कि जब दो देशों के प्रमुख मिलते हैं, तो ऐसे निजी मामलों पर बात नहीं होती है।

यानि प्रधानमंत्री ने साफ़ कर दिया था कि अमेरिकी अदालत और SEC में अडानी के मुद्दे पर जो विवाद चल रहा है, उससे उनका कोई लेना-देना नहीं है, और न ही उन्होंने इस सिलसिले में डोनाल्ड ट्रम्प से कोई फेवर लेने की कोशिश की है।

बड़ी अच्छी बात है। फिर तो भारत का विधि एवं न्याय मंत्रालय भी SEC के इस पत्र का संज्ञान ले रहा होगा, और हेग कन्वेंशन के समझौते के मुताबिक, जिसमें अमेरिका सहित भारत भी हस्ताक्षरकर्ता है, के लिए बाध्यता बन जाती है। तो क्या भारत सरकार अब जैसा SEC और अमेरिका की अदालत निर्देश देगी, उसके काम में अडंगा लगाने के बजाय उसे ख़ुशी-ख़ुशी अपने हाथों से अंजाम देने जा रही है?

अडानी-मोदी रिश्तों के बारे में बताने के लिए कुछ भी नहीं है। इसे देश 2014 लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौर से ही बखूबी समझ गया था। लोकसभा और राज्यसभा में सभापति तक जिस शख्स का नाम उच्चारित किये जाने पर उस शब्द को सदन की कार्यवाही से निकाल दिया करते हैं, और उस लोकसभा सदस्य के ऊपर भारी मुसीबतें आने लगती हैं, वह सवाल विदेश की धरती पर पीछा करता रहने वाला है।

इस विषय पर पत्रकार, राजू पारुलेकर ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर टिप्पणी करते हुए लिखा है, “विषय: मेरे मित्र

अडानी एवं अन्य कॉरपोरेट क्रोनी, जो कॉर्पोरेट के वेश में छिपे हुए हैं, के पास निश्चित रूप से मोदी के रूप में उनकी परवाह करने वाला प्रधानमंत्री मौजूद है। क्या यही बात आम भारतीय नागरिकों, गरीबों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, निम्न मध्यम वर्ग के बारे में भी कही जा सकती है? आइए देखें।

  1. अडानी को बंदरगाह चाहिए थे, मोदी ने उन्हें सरकारी बंधनों से मुक्त कर दिया।
  2. अडानी को हवाई अड्डे चाहिए थे, मोदी की कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने मुंबई हवाई अड्डे का प्रबंधन करने वाले समूह के खिलाफ छापेमारी और जांच अभियान चालू कर दिया। आख़िरकार उक्त समूह ने मुंबई हवाई अड्डे को अडानी को सौंप दिया।
  3. अडानी को कोयला खदान की दरकार हुई, मोदी ने सभी आवश्यक प्रशासनिक बदलावों के साथ, सारे पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करते हुए इन बाधाओं को परे हटा डाला।
  4. अडानी को धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट (डीआरपी) चाहिए था, मोदी ने इस बात को सुनिश्चित किया कि महाराष्ट्र में विपक्षी सरकार इस चाहत में बाधा न बने।
  5. अडानी को DRP के बहाने मुंबई में अतिरिक्त भूमि चाहिए थी, मोदी ने नमक अधिनियम में संशोधन कर DRP के लिए Salt Pan lands के उपयोग की अनुमति प्रदान कर उन्हें यह मिल जाये, इसे सुनिश्चित किया।
  6. अडानी बांग्लादेश को बिजली बेचने की ख्वाहिश रखते थे, मोदी ने अडानी के व्यवसायिक हितों के लिए सारे नियमों को संशोधित कर डाला।
  7. बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद जब वहां की सरकार ने अडानी से महंगी बिजली की खरीद को बंद करने का फैसला किया, तो मोदी ने अडानी को भारत में इस महंगी बिजली को बेचने में सक्षम बनाने के लिए नियमों में फेरबदल कर दिया।
  8. अडानी पर आज के दिन अमेरिका में रिश्वतखोरी के आरोप लगे हैं, और अभियोगपत्र में लाभार्थी भारतीय सार्वजनिक उपक्रमों और व्यक्तियों का विवरण मौजूद है। लेकिन मोदी सरकार अभियोग में उल्लिखित तथ्यों को लेकर खमोश बैठी है।
  9. पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील पश्चिमी घाटों में अडानी पंप स्टोरेज हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट लगाना चाहते थे, मोदी के पर्यावरण मंत्रालय ने इस परियोजना को मंजूरी दे दी है, जिससे दुर्लभ वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं का नुकसान होगा और बाघों का अभयारण्य प्रभावित होने जा रहा है।
  10. भारतीय सीमा शुल्क विभाग ने अडानी द्वारा आयातित कोयले के चालान की जांच के लिए अपने विदेशी समकक्षों को पत्र लिखा, मोदी ने इस पर आंखें मूंद लीं और जांच को दबा दिया।
  11. मोदी की विदेश यात्राएं और विदेशी राष्ट्राध्यक्षों की भारत यात्राओं के उपरांत अडानी और उस देश की किसी सार्वजनिक/निजी इकाई के बीच व्यापारिक साझेदारी करार होते रहे हैं।
  12. वहीं दूसरी ओर,

▪️भारतीयों को अमेरिका से सैन्य विमानों में बेड़ियों में जकड़कर अपमानजनक तरीके से निर्वासित किया जा रहा है,

▪️महाकुंभ में रेलवे स्टेशनों पर भीड़ के कुप्रबंधन के चलते लोगों की मौतें हो रही है,

▪️कठोर कृषि कानूनों का विरोध करते हुए किसानों की मौत हो रही है, किंतु उन्हें दिल्ली में प्रवेश की इजाजत नहीं दी जा रही है,

▪️कोविड-19 महामारी में अचानक से लॉकडाउन की घोषणा के चलते करोड़ों की संख्या में असंगठित श्रमिकों को भारी कष्ट उठाना पड़ा और कईयों की मृत्यु भी हो गई,

▪️नोटबंदी की अचानक घोषणा के कारण नकदी की भारी कमी, वित्तीय संकट और संबंधित आघात के कारण लोगों की मौतें हुईं,

▪️वन रैंक वन पेंशन के लिए आज भी सेना के रिटायर्ड प्रदर्शन कर रहे हैं,

▪️शिक्षित युवा बेरोजगार हैं,

▪️भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को नुकसान हो रहा है,

▪️पक्षपाती मार्केट रेगुलेटर के कारण मिडिल क्लास को अपने निवेश में भारी नुकसान वहन करना पड़ रहा है,

▪️महाकुंभ में श्रद्धालु, गरीब हिंदुओं को सीवेज के पानी में नहलाया जाता है,

▪️दूसरे देशों की नागरिकता लेने वाले भारतीयों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

भारतीयों को एक ऐसे प्रधानमंत्री की सख्त जरूरत है जो उनकी जरूरतों के प्रति संवेदनशील हो और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके सम्मान के लिए लड़े, न कि कोई कॉरपोरेट का गुलाम।”

लेकिन सबसे बड़ा सवाल आज भी यही बना हुआ है कि क्या जो कुछ वास्तव में भारत और जनता-जनार्दन के ऊपर बीत रही है, उसे सटीक रूप से देखने और दिखाने के लिए भारत का मीडिया, विपक्षी दल और जागरूक भारतीय सक्रिय है, या वह भी उन्हीं मुद्दों पर टीका-टिप्पणी कर अपनी पीठ थपथपा रहा है, जिसे सत्ता पक्ष की ओर से आगे बढ़ाया जा रहा है?

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author