इंडिया सोशल फोरम 2023: हाशिए के समाजों की लड़ाई को नई ऊंचाई पर ले जाने का लिया गया संकल्प

पटना। बिहार की राजधानी पटना के बिहार विद्यापीठ सदाकत आश्रम में आयोजित इंडिया सोशल फोरम 2023 का आयोजन हाशिए पर पड़े समाजों की आकांक्षाओं और सामाजिक संगठनों की प्रतिबद्धताओं का अनूठा उदाहरण रहा है। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम का सोमवार को जहां गर्मजोशी के साथ समापन किया गया, वहीं इंडिया सोशल फोरम 2023 के मंच से संकल्प, एकता और संघर्ष का जश्न भी देखने को मिला।

2 दिसंबर से 4 दिसंबर 2023 तक पटना में आयोजित हुए इंडिया सोशल फोरम (आईएसएफ) 2023 में देश के कई राज्यों से चलकर आए प्रतिभागियों और नागरिक संगठनों के नेताओं की भागीदारी रही।

इंडिया सोशल फोरम में तीन दिनों तक सबकी जोशीली सहभागिता देखी गई। अलग-अलग तरह की आवाजें, साझे अनुभव, हाशिए पर पड़े समाजों की आकांक्षाएं और सामाजिक संगठनों की प्रतिबद्धताओं का एक अनूठा और सार्थक चित्र भी उभरा।

संवाद और आदान-प्रदान के तीन गतिशील प्लेनरी सत्रों, विकास संबंधी मुद्दों और मानवाधिकार पर प्रकाश डालने वाले 70 से अधिक समानांतर सत्रों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक समृद्ध सामूहिकता से भरा आईएसएफ इन सबके जीवंत कलरव से गुंजायमान रहा।

समागम ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया। जैसे किसान, भूमिहीन मजदूर, असंगठित क्षेत्र के श्रमिक, दलित, आदिवासी, महिलाएं, एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय, छात्र-युवा, शिक्षाविद और सांस्कृतिक कार्यकर्ता इनमें मुख्य रहे। इन सबने इस मंच का उपयोग कर अपने संघर्षों और जीत की कहानियों को साझा किया।

समागम में मुद्दों और स्थानों की सीमाओं को पार करते हुए लोगों ने परस्पर एकता और सहयोग को बढ़ावा देते हुए अपनी एकजुटता मजबूत की। निरंतर सहयोग की जरूरत को स्वीकार करते हुए सभी सामाजिक आंदोलनों और हाशिए पर पड़ी पहचानों के साथ तालमेल बैठाने और पूरे भारत में क्रॉस-सेक्टोरल एकजुटता बढ़ाने का आह्वान किया गया। संवैधानिक मूल्यों में निहित एकता और सहयोग की भावना को अपनाते हुए, सभी के लिए न्याय, शांति, गरिमा और समानता के साथ जीवन के अधिकार को रेखांकित किया गया।

फोरम में वक्ताओं ने बताया कि इतिहास की इस घड़ी के महत्व को स्वीकार करते हुए आईएसएफ ने विश्व सामाजिक मंच की नैतिकता और भावनाओं को मूर्त रूप देते हुए एक असाधारण मंच के रूप में कार्य किया है। इसने ऐसे समय में एक दुर्लभ अवसर प्रदान किया, जब विविध समूहों और आंदोलनों को इकट्ठा करना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है।

आह्वान किया गया कि ऐसे में इस क्षण का जश्न मनाएं, यहां बनी मित्रताओं को संजोएं और अपने चल रहे प्रयासों में इस एकता, एकजुटता और साझा उद्देश्य को बनाए रखने का संकल्प लें। अटूट संकल्प के साथ, सभी के लिए न्याय, समानता और सम्मान की ओर अपनी सामूहिक यात्रा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए इंडिया सोशल फोरम 2023 के प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया गया।

अभिव्यक्ति की आजादी को बचाने की चुनौती

तीन दिवसीय परिचर्चा में विरोध करने का अधिकार, लोकत्रांत्रिक अभिव्यक्ति एवं राजनीतिक विरोध पर खासतौर पर चर्चा की गई। इंडिया सोशल फोरम के दूसरे दिन के प्लेनरी सत्र में पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव ने अभिव्यक्ति के अधिकार को बचाने की चुनौती पर बोलते हुए कहा “नव-उदारवादी और नव-पूंजीवादी व्यवस्था में हमें अभिव्यक्ति के अधिकार को बचाने की चुनौती है। इससे हमें तनिक भी घबराना नहीं चाहिए।”

उन्होंने कहा कि “आज अगर कोई सरकार के खिलाफ बोलता है तो उसके खिलाफ पुलिसिया तंत्र को लगा दिया जाता है। लेकिन, लोकतंत्र में कुछ गलत हो रहा है तो उसपर सवाल उठाने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए। हमें डर को मिटा कर काम करना होगा। हमें अपनी एकता को कायम रखना होगा तभी हम इनका मुकाबला कर सकेंगे।”

संयुक्त किसान मोर्चा के डॉ. सुनीलम ने कहा कि “वर्तमान समय में दलितों, मजदूरों, किसानों, महिलाओं और आदिवासियों के साथ दमन का जो चक्र चल रहा है, वह सबसे बड़ा खतरा है। वर्तमान सरकार गांव, खेती और किसानी को समाप्त करना चाह रही है। सरकार को लगता है कि देश के किसान कुछ नहीं कर सकते है, इसलिए तीन कानून को लाया गया था। ताकि यह सबकुछ मनमुताबिक कर सकें।”

आरटीआई अभियान से जुड़ी अंजली भारद्वाज ने कहा “लोकतंत्र में हर नागरिक सरकार से सवाल पूछ सकता है। यह हमारा मौलिक अधिकार है। आज के समय में सवाल पूछने पर सरकार तीन तरह से प्रहार कर रही है। जेलों में डाला जा रहा है, उन कानूनों को समाप्त करने की कोशिश की जा रही है, जो सरकार का विकेंद्रीकरण करते हैं, उन संस्थानों को कमजोर और समाप्त करने की कोशिश की जा रही है, जो लोगों की सुरक्षा के लिए बनाए गए थे। उनके खिलाफ सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया जा रहा है।

नैकडोर के अशोक भारती ने कहा कि “देश का भविष्य हमारी निराशा से नहीं, हमारी आशाओं से तय होगा। हमें अपने नेतृत्व में हर स्तर पर समाज के सभी वर्गों, समूहों, समुदायों को शामिल करना होगा। अगर हमें समावेशी भारत चाहिए तो यह खेती और आजीविका, समानता और सम्मान पर आधारित होना चाहिए।”

अखिल भारतीय वन श्रमजीवी यूनियन की रोमा ने कहा “सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी भूमिका पूरी तरह से नहीं निभा रही हैं। सभी को मिलकर जनता के आंदोलनों को खड़ा करना होगा। तभी हम सभी पूंजीवादी ताकतों को रोक सकते हैं।”

बिहार विद्रोह की भूमि है

उल्का महाजन के शब्दों में कहें तो “बिहार विद्रोह की भूमि है, वह इसलिए कि हाशिए पर खड़े समाज के हक-हकूक से लेकर विभिन्न जनांदोलन की आवाज भी यहीं से उठती रही है। दूसरे यह देश का पहला राज्य है, जहां जातीय जनगणना कराई गई है।”

उन्होंने कहा कि “हमें कॉर्पोरेट पूंजीवाद के खिलाफ लड़ना होगा। जब पेट में भूख और दिमाग में डर होगा तो सरकार आसानी से अच्छे दिन का भ्रम फैलाएगी। अलग-अलग समूहों और समुदायों में भेद पैदा कर अपनी सत्ता को कायम रखेंगे। इनकी मंशा को समझना होगा और लोगों को समझाना भी होगा। अन्यथा यह कॉर्पोरेट पूंजीवाद का दायरा बढ़ता ही जायेगा।”

प्लेनरी सत्र के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन हुआ। इसमें जन संस्कृति मंच, पटना इप्टा, प्रेरणा पटना, प्रेरणा वाराणसी, रेला, नैकडोर के अलावा महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के युवा कलाकारों ने गीत, संगीत, नृत्य और नाटक की प्रस्तुतियां दीं।

कार्यक्रम में मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा, झारखंड, उतरप्रदेश, दिल्ली, मिजोरम, असम, बंगाल के साथ 80 से अधिक सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग शामिल हुए। दूसरे दिन के कार्यक्रम में 50 समानांतर सत्रों का आयोजन किया गया। जिनमें अलग-अलग संगठनों ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा की।

 लोकगीतों के जरिए उकेरी गई सच्चाई

इंडिया सोशल फोरम में लोकगीतों के माध्यम से कलाकारों ने आदिवासियों, दलितों के उत्पीड़न पर प्रकाश डाला। नाट्य कलाकारों की टीम ने देश के नेताओं की नौटंकी पर तंज कसते हुए कटाक्ष किए। तो भागलपुर लोकनृत्य की प्रस्तुति ने सभी का मन मोह लिया। आदिवासी इलाकों के कलाकारों ने वर्तमान समय और व्यवस्था पर प्रहार करते हुए प्रतिभागियों को जागरूक किया।

इसी क्रम में न्याय के आंदोलनों के ज्ञात-अज्ञात शहीदों की वेदी पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। न्याय के आंदोलनों में शहीद होने वाले शहीदों की शहादत को जानने की जिज्ञासा और उनके जीवन वृत्त को देखने-सुनने की ललक भी रही।

5 हजार से ज्यादा ज़मीनी कार्यकताओं की रही भागीदारी

इंडिया सोशल फोरम का आयोजन 2, 3 व 4 दिसंबर 2023 को किया गया। सम्मेलन में देश भर से हज़ारों संगठनों, सामाजिक संस्थाओं के लोग शामिल हुए। तीन दिन के अंदर 79 सत्र चले। हर सत्र में अलग अलग मुद्दों पर चर्चा की गई। इंडिया सोशल फोरम में 5 हजार से भी अधिक जमीनी कार्यकर्ता शामिल हुए।

नर्मदा बचाओं आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, वरिष्ठ वैज्ञानिक गौहर रज़ा, शबनम हाशमी, गुफरान सिद्दीकी, मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार, डॉ सुनीलम, हर्ष मंदर, उल्का महाजन, दयामनी बराला, अशोक चौधरी, शबनम हाशमी, अशोक भारती, आफाक उल्ला, सदरे आलम, राहुल, उत्तर प्रदेश के जौनपुर से युवा सामाजिक कार्यकर्ता लाल प्रकाश राही ने सत्रों को संबोधित किया।

अवध यूथ कलेक्टिव, परिधि, अवध पीपल फोरम, दिशा फाउंडेशन, आईकैन समेत सैकड़ों सामाजिक संगठन और संस्थाएं शामिल हुए।

नेपाल में होने वाले विश्व सामाजिक मंच में भागीदारी के लिए किया गया आमंत्रित

फोरम में पड़ोसी देश नेपाल से भी कई संगठनों के नेताओं ने भाग लिया। इन संगठनों के 39 लोगों की मजबूत भागेदारी रही है। इसी के साथ ही सभी भारतीय नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ) और आंदोलनों को, नेपाल की राजधानी काठमांडू में 15 से 19 फरवरी 2024 तक आयोजित होने वाले आगामी विश्व सामाजिक मंच में सक्रिय भागीदारी के लिए आमंत्रित भी किया गया है।

यह महत्वपूर्ण आयोजन दक्षिण एशियाई और वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देने, भौगोलिक सीमाओं के परे जाने और सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए एक मंच के रूप में काम करेगा।

(बिहार के पटना से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

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