पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को पटना से भागलपुर जेल भेजा गया, नहीं कराई जा रही ई-मुलाकात

पटना/रांची। 23 जनवरी 2024 को भागलपुर के शहीद जुब्बा साहनी केन्द्रीय कारा में पत्रकार व लेखक रूपेश कुमार सिंह को ट्रांसफर किया गया है। रूपेश कुमार सिंह से जब उनकी पत्नी ने मुलाकात की तो पता चला कि 23 जनवरी 2024 से रूपेश को पटना के आदर्श केन्द्रीय कारा से भागलपुर के शहीद जुब्बा साहनी केन्द्रीय कारा लाया गया है। उन्हें सेल नंबर 3 में रखा गया है, जहां लगभग 20 फीट की ऊंचाई पर 9 वाल्ट का एक बल्ब सेल के साइड में लगा है जिससे सेल में रोशनी नाममात्र हो पाती है।

रूपेश कुमार सिंह पटना के आदर्श केन्द्रीय कारा में बीते साल 2023 को 17 अप्रैल को एनआईए के एक केस में लाये गये थे। गौरतलब है कि रूपेश एक स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। वह बौद्धिक वर्ग से संबंध रखते हैं। वह जेल में जाने के बाद भी अपने समय का सदुपयोग करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं। वह इग्नू (IGNOU) में 2 कोर्स- MAH और MAJMC- में enrolled हैं। साथ ही जेल से ही राजनीतिशास्त्र में भी स्नातकोत्तर के लिए भी नामांकन का प्रोसेस भी हो रहा था।

और पटना के आदर्श केन्द्रीय कारा से ही पत्नी के प्रयास और NIA कोर्ट और जेल प्रशासन की पहल से दोनों कोर्स के पहले वर्ष की परीक्षा में भी इसी जेल में पिछले साल 2023 के जून और दिसंबर में शामिल भी हुए हैं। जून की परीक्षा का रिजल्ट भी ऑनलाइन आ चुका है। अब दूसरे वर्ष के लिए इन्हें मार्च तक असाइनमेंट भी लिखकर जमा करना है और परीक्षा की तैयारी भी करनी है।

साथ ही एक लेखक होने के कारण कुछ रचनात्मक लिखना पढ़ना भी उनके जिंदगी का हिस्सा है, और उनका अधिकार भी। कोई कानून पढ़ाई से वंचित नहीं करता, मगर जेल प्रशासन इसके विरोध में खड़ा है।

बंदी का पढ़ने लिखने में व्यस्त रहना तो जेल प्रशासन के साथ-साथ बाहरी प्रशासन के लिए भी सकारात्मक होना चाहिए, पर स्थित इससे उलट है। रूपेश के पास से सारी किताबें जो कि पहले वाले जेल में इनके पास थीं, वर्तमान जेल में वापस ले ली गयी हैं। जबकि रूपेश को असाइनमेंट बनाने के लिए इग्नू के कोर्स की किताबों के अलावा भी कई अन्य किताबों के अध्ययन की जरूरत होती है।

अब जब रूपेश कुमार सिंह के पास किताब, काॅपी और कलम ही नहीं होंगे तो पढ़ाई कैसे संभव हो पाएगी। साथ ही सेल के बल्ब की कम रोशनी में कुछ भी पढ़ना या लिखना संभव नहीं है। इससे सर दर्द की समस्या भी हो रही है।

इसके साथ ही रूपेश से उनका Milton Thermosteel बोतल भी ले लिए गया है। उन्हें इस बोतल की सख्त आवश्यकता है क्योंकि रूपेश साइनस जैसी प्रॉब्लम से पीड़ित हैं। जेल अस्पताल ने भी उन्हें गर्म पानी पीने की सलाह दी है। जेल प्रशासन की ओर से समय-समय पर गर्म पानी उपलब्ध करने की भी कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में एक स्वस्थ व्यक्ति को जेल प्रशासन का रवैया बीमार करने वाला है।

इतना ही नहीं पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की पेशी भी न तो शारीरिक और न ही वीडिओ कॉन्फ्रेसिंग के जरिए ही वर्तमान जेल से कराई गई है, जबकि बीते 24 जनवरी को एनआईए कोर्ट में पेशी की तारीख थी। STD से भी बात करने की सुविधा अभी उपलब्ध नहीं है। बंदियों को कानूनन जो अधिकार मिले हुए हैं, जेल प्रशासन उससे भी उन्हें वंचित कर रहा है, जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए ठीक नहीं है।

रूपेश की पत्नी ने बताया कि उनके द्वारा भी जब वीडियो कांफ्रेंसिंग के लिए नंबर लगाया गया तो वह भी अप्रूव्ड नहीं किया गया। फिलहाल वे झारखंड में रहती हैं और मिलने के लिए बार बार 330 किलोमीटर दूर भागलपुर आना उनके लिए बहुत परेशानी की बात है।

ई मुलाकात के लिए रजिस्ट्रेशन करने के बाद न तो उसे अप्रूव्ड किया गया और न ही रिजेक्ट। ऐसे में बार-बार इतनी दूर आ पाना बहुत परेशानी वाली बात है। क्योंकि बच्चा भी छोटा है जिसको छोड़कर वो नहीं आ सकती हैं और लेकर आने से बच्चे की पढ़ाई भी प्रभावित होगी और स्वास्थ्य भी। जेल प्रशासन द्वारा यह विद्वेषपूर्ण तरीका क्यों अपनाया जा रहा है पता नहीं, पर यह सब रुपेश के परिजनों के लिए बड़ी समस्या वाली बात है।

रुपेश कुमार सिंह की ओर से इस मामले की शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और बिहार मानवाधिकार आयोग को पत्र और मेल द्वारा की गई है।

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