विपक्ष के खिलाफ मोदी के हमलों का मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं खड़गे और प्रियंका गांधी

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7 मई को जब लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण का मतदान संपन्न हो जायेगा, तब तक देश की आधी से ज्यादा सीटों का भविष्य ईवीएम में कैद हो चुका होगा। पूर्व की तुलना में कम मतदान और मतदाताओं में उत्साह की कमी इंडिया गठबंधन के घटक दलों से कहीं अधिक सत्ताधारी भाजपा और कथित राष्ट्रीय मीडिया को सता रही है। अब तक के रुझानों से यही बात स्पष्ट हो रही है कि 2014 और 2019 के विपरीत इस बार के आम चुनाव में मोदी मैजिक गायब है। नरेंद्र मोदी और भाजपा ने जी-20 की मेजबानी, नये संसद, राम मंदिर निर्माण, महिला आरक्षण और एक देश एक चुनाव जैसे मुद्दों को आधार बनाते हुए अपनी चुनावी रणनीति तैयार की थी, और ‘अबकी बार, 400 पार’ के नारे के साथ विपक्षी खेमे और आम मतदाताओं के दिलोदिमाग को अपने कब्जे में लेने का जबर्दस्त दांव तैयार कर रखा था।

लेकिन कई चुनावी विश्लेषक मौजूदा चुनावों को 2004 के साथ जोड़कर देख रहे हैं। तब अटल बिहारी वाजपेई की सरकार सत्ता में थी, जिसने 2003 की तीव्र आर्थिक वृद्धि को आधार बनाकर ‘शाइनिंग इंडिया’ का नारा दिया था, और सभी मानकर चल रहे थे कि वाजपेई सरकार को पहले से भी ज्यादा बड़ी संख्या में जीत दर्ज होगी। लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट थी। राष्ट्रीय राजमार्गों का काम तो लोगों को नजर आ रहा था, लेकिन महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से बेहाल आम आदमी को अपनी जिंदगी में शाइनिंग की जगह कालिख नजर आ रही थी। 

2024 का चुनाव भी कुछ इसी कशमकश के बीच जारी है। इवेंट मैनेजमेंट के मामले में अव्वल मोदी और भाजपा ने आम मध्यवर्ग को राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण पर अंधाधुंध खर्च और वन्दे भारत ट्रेन, जीएसटी की वसूली में भारी बढ़ोत्तरी और नीति आयोग की मदद से देश में रोजगार की परिभाषा को बदलकर भ्रमित आंकड़े जारी कर देश में बेरोजगारी पहले की तुलना में काफी कम दिखाने का प्रयास किया है। लेकिन 10 वर्षों से मंदिर-मस्जिद, गाय और हिंदू-मुस्लिम में उलझे गरीब युवा की उम्र और अनुभव भी इस बीच दस बरस के दौरान घिसट-घिसटकर परिपक्व हो चुकी है। असंगठित श्रमिकों और किसानों के लिए हर आने वाला वर्ष पहले से ज्यादा दुष्कर होता जा रहा है। 

कोविड लॉकडाउन के बाद छोटे कस्बों से महानगरों को जाने वाले रेलगाड़ियों में जनरल बोगी के डिब्बे अचानक से क्यों काफी कम हो गये, और उसकी जगह पर एसी बोगियों को क्यों बढ़ाया जा रहा है, यह बात उसके गले नहीं उतरती। रोजी-रोटी की उपलब्धता अब गांव में ही नहीं बल्कि शहरों में भी काफी सीमित हो चुकी है। आम आदमी आज खुद से सवाल कर रहा है और पा रहा है कि इन दस वर्षों में उसे सिर्फ छला गया है, और राहुल गांधी जैसे नेता जिस बात को लंबे अर्से से कहते आ रहे हैं कि मोदी सरकार असल में धर्म की राजनीति को आगे कर बड़े पूंजीपतियों और कॉर्पोरेट को ही मालामाल करती जा रही है, वह पूरी तरह से सच है।

यही वजह है कि मोदी की गारंटी या 400 पार करने के बड़े-बड़े दावे आज धरे के धरे रह गये हैं। मोदी की सभाओं में ‘मोदी-मोदी’ की हुंकार भरने वाले युवा अब गायब हो चुके हैं। राजस्थान, हरियाणा ही नहीं यूपी में भी उल्टी हवा बहने की खबर है। भाजपा के सभी उम्मीदवारों ने अभी तक मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा था, इस बार तो लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में मोदी के नाम पर विधानसभा चुनावों में जीत ने संगठन के भीतर मोदी मैजिक सिर चढ़कर बोलने लगा था। इसलिए सभी उम्मीदवार एक सुर से मोदी के नाम पर 400 पार के नारे के साथ मतदाताओं से अपनी जीत की अपील करते नजर आ रहे हैं। लेकिन मतदाता अपने सासदों से पिछले 10 वर्षों का हिसाब चाहते हैं, और महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने भाजपा की चुनावी रणनीति को ही पटरी से उतार दिया है।

यही कारण है कि मोदी पहले चरण के चुनावों के रुझान के बाद से ही अपनी पिच पर खेलने के बजाय कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में बुरी तरह से उलझ चुके हैं। असल में मोदी लोकसभा चुनाव को राष्ट्रपति चुनाव की तरह लड़ना चाहते थे, जिसमें एक तरफ सिर्फ उनका चेहरा हो और दूसरी तरफ विपक्षी उम्मीदवार। लेकिन इंडिया गठबंधन 2024 के चुनाव को अभी तक स्थानीय मुद्दों और महंगाई, बेरोजगारी, जाति जनगणना, बढ़ती गैर-बराबरी, महिला अधिकार, संविधान और लोकतंत्र की रक्षा को अपने एजेंडे में बनाये रखने में सफल रही है।

बगैर किसी हाई वोल्टेज मुकाबले और विपक्षी प्रतिद्वंदी को वाकयुद्ध में पटखनी देने का एक भी मौका न मिलना, पीएम नरेंद्र मोदी को बुरी तरह से अखरने लगा है। उल्टा, हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण कमजोर पड़ने से धुर-दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी शक्तियों को खुलकर खेलने का अवसर नहीं मिल पा रहा है। हर तरफ से निराश पीएम मोदी, जो 24×7 चुनावी जोड़तोड़ में लगे रहते हैं को खुद पहल लेकर विपक्ष पर ऐसे मनगढ़ंत आरोप लगाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जिनका कोई आधार नहीं है। लेकिन उन्हें पता है कि जो वे कहेंगे, उसे राष्ट्रीय न्यूज़ मीडिया और उनके भक्त सहर्ष आगे बढ़ाएंगे और चुनावी दंगल रोचक हो सकता है।

इसी रणनीति पर काम करते हुए पीएम मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र को आधार बनाकर कांग्रेस और राहुल गांधी पर एक के बाद एक ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए। उन्होंने राजस्थान के आदिवासी बहुल क्षेत्र बासंवाडा में आदिवासियों को संबोधित करते हुए कह दिया कि कांग्रेस सत्ता में आई तो वह आप सबकी संपत्ति को जमाकर घुसपैठियों के बीच बांट देगी, महिलाओं के मंगलसूत्र और सोने-चांदी को भी जब्त कर ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले घुसपैठियों को बांट दिया जायेगा। ऐसे कई मिथ्या और दुष्प्रचार को पीएम मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र के हवाले से अपनी विभिन्न सभाओं में दोहराया है।

भाजपा के लोकसभा उम्मीदवारों के नाम पीएम मोदी का पत्र      

1 मई के दिन भाजपा के कई लोकसभा उम्मीदवारों के द्वारा अपने सोशल मीडिया हैंडल से पीएम नरेंद्र मोदी का एक पत्र साझा किया गया था। हर भाजपा सांसद को मोदी की निजी चिट्ठी आई थी, जिसमें उनकी कुशलक्षेम पूछने के साथ-साथ उनके कार्यों की प्रशंसा और इस लोकसभा चुनाव की महत्ता के बारे में बताया गया था। लेकिन इसके साथ ही सभी उम्मीदवारों को कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र और इंडिया गठबंधन के इरादों के बारे में चेताते हुए नरेंद्र मोदी ने अपने सभी उम्मीदवारों को सूचित किया है कि इनका मकसद चुनाव जीतकर देश में मौजूद आरक्षण व्यवस्था को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग से छीनकर अपने वोटबैंक (मुस्लिम) को देने का है। कांग्रेस ने ‘विरासत कर’ जैसे खतरनाक विचारों का समर्थन कर अपने इरादे भी स्पष्ट कर दिए हैं। इसके खिलाफ देश को एकजुट करना होगा। 

अब जिसने भी राहुल गांधी की मणिपुर से मुंबई की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान एक भी वक्तव्य सुना होगा या कांग्रेस के घोषणापत्र को पढ़ा होगा तो वह साफ़ कहेगा कि ये तो पूरी तरह से उल्टी गंगा बहाई जा रही है! राहुल गांधी ने तो लगभग बोर करते हुए अपने हर भाषण में इस बार सिर्फ जाति जनगणना कर दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की सटीक संख्या और उनके आर्थिक जीवनस्तर का आकलन करने की बात कही है। राहुल ने इसके बरक्श उन चंद बड़े पूंजीपतियों और क्रोनी कैपिटलिस्ट का हवाला दिया है, जो मोदी राज में बेहद तेजी से देश के संसाधनों को अपने कब्जे में लेते जा रहे हैं। 

इसी को ध्यान में रखते हुए, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 2 मई को नरेंद्र मोदी के नाम एक पत्र लिखकर अपने सोशल मीडिया हैंडल पर साझा कर इस लोकसभा चुनाव में उनके द्वारा बोले गये झूठ का पर्दाफ़ाश करने का प्रयास किया है। खड़गे लिखते हैं: 

पीएम नरेंद्र मोदी के नाम मल्लिकार्जुन खड़गे का पत्र 

“प्रिय प्रधानमंत्री जी,

आपने NDA के सभी उम्मीदवारों को मतदाताओं से क्या संवाद करना है यह बताते हुए जो पत्र लिखा है उसे मैने देखा।

पत्र के कंटेट और लहज़े से ऐसा लगता है कि आप बहुत ही ज़्यादा हताश और निराश हो गए हैं। यही कारण है कि आप ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं जो प्रधानमंत्री पद की गरिमा के बिलकुल विपरीत है। पत्र से ऐसा लग रहा है कि आप अपने भाषणों में जो झूठ बोल रहे हैं उसका उस तरह से प्रभाव पड़ता हुआ आपको नहीं दिख रहा है जैसा आप चाहते थे। यही कारण है कि अब आप चाहते हैं कि आपके उम्मीदवार भी आपकी झूठी बातों को आगे बढ़ाएं। एक झूठ को हज़ार बार बोलने से वह सच नहीं बन जाता है प्रधानमंत्री जी।

मतदाता इतने समझदार हैं कि कांग्रेस ने घोषणापत्र में क्या लिखा है और हमने क्या गारंटी दी है, वे खुद पढ़कर समझ सकते हैं। हमारी गारंटी इतनी सरल और स्पष्ट है कि हमें उन्हें समझाने की ज़रूरत भी नहीं है। लेकिन आपके लिए, मैं उन्हें यहां दोहरा रहा हूं।

1। युवा न्याय – हम इस देश के युवाओं को नौकरी का भरोसा दे रहे हैं जो आपकी नीतियों के कारण भयंकर बेरोज़गारी से पीड़ित हैं। कांग्रेस ने युवाओं को ‘पहली नौकरी पक्की’ की गारंटी दी है।

2। नारी न्याय – इसका उद्देश्य हमारे देश की उन महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना है जो आपके नेताओं और उनकी मानसिकता के कारण उत्पीड़न झेलने को मजबूर हैं।

3। किसान न्याय – उन किसानों को सशक्त बनाना जिन्हें अपने फ़सलों के लिए उचित दाम मांगने पर गोली मारी गई और पीटा गया।

4। श्रमिक न्याय – उन श्रमिकों और कामगारों को सशक्त बनाना जो आपकी सूट-बूट की सरकार की नीतियों के कारण बढ़ती महंगाई और बढ़ती आय असमानता से पीड़ित हैं।

5। हिस्सेदारी न्याय – गरीबों को सशक्त बनाने के लिए, जिन्हें उनका अधिकार मिलना चाहिए।

हमारी गारंटियां सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने वाली है। 

हमने आपको और गृह मंत्री को यह कहते सुना है कि कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है। पिछले 10 वर्षों में हमने जो एकमात्र तुष्टिकरण नीति देखी है, वह है आपके और आपके मंत्रियों द्वारा चीनियों का तुष्टिकरण। आप आज भी चीन को ‘घुसपैठिए’ कहने से इनकार करते हैं, बल्कि 19 जून, 2020 को आपने गलवान में 20 भारतीय सैनिकों के सर्वोच्च बलिदान का अपमान करते हुए कहा था, “ना कोई घुसा है, ना ही कोई घुस आया है”। आपने चीन को जो ‘क्लीन चिट’ दी है उसने भारत के पक्ष को कमज़ोर कर दिया है और चीन को और अधिक आक्रामक बना दिया है। यहां तक कि अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख और उत्तराखंड में एलएसी के पास बार-बार चीनी घुसपैठ और सैन्य इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के कारण तनाव बढ़ गया है। भारत में चीनी सामानों का आयात भी काफ़ी बढ़ गया है – सिर्फ़ पिछले 5 वर्षों में 54।76% की वृद्धि हुई है और 2023-24 में 101 बिलियन डॉलर को पार कर गया।

अपने पत्र में आपने लिखा है कि एससी, एसटी और ओबीसी से आरक्षण छीन लिया जाएगा और “हमारे वोट बैंक” को दे दिया जाएगा। हमारा वोट बैंक हर भारतीय है- गरीब, हाशिए पर रहने वाले लोग, महिलाएं, महत्वाकांक्षी युवा, श्रमिक वर्ग, दलित और आदिवासी। हर कोई जानता है कि यह आरएसएस-बीजेपी ही है जिसने 1947 से लगातार आरक्षण का विरोध किया है। हर कोई यह भी जानता है कि आरएसएस-बीजेपी आरक्षण को समाप्त करने के लिए संविधान को बदलना चाहती है। आपके नेताओं ने इस बारे में खुलकर बात की है। आपको यह स्पष्ट करना चाहिए कि आप हमारे संविधान के अनुच्छेद 16 के अनुसार एससी, एसटी और ओबीसी को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का विरोध क्यों करते हैं।

आपने अपने पत्र में कहा है कि लोगों की मेहनत की कमाई छीन ली जाएगी। यहां, मैं आपसे अनुरोध करना चाहता हूं कि आप अपनी पार्टी को गुजरात में गरीब दलित किसानों से ठगे गए और इलेक्टोरल बांड के रूप में दिए गए 10 करोड़ रुपए वापस करने का निर्देश दें। आपकी पार्टी ने चंदा दो-धंधा लो, ठेका लो-घूस दो, हफ्ता वसूली और फर्जी कंपनियों जैसे तरीक़ों से विभिन्न कंपनियों से “अवैध और असंवैधानिक इलेक्टोरल बांड के माध्यम से 8,250 करोड़ रुपए एकत्र किए। 8,250 करोड़ में से, आप कम से कम 10 करोड़ रुपए दलित परिवार को तो वापस कर ही सकते हैं।

आपने अपने पत्र में यह स्पष्ट रूप से झूठ लिखा है कि कांग्रेस विरासत कर लाना चाहती है। हमारे मेनिफेस्टो में कहीं ऐसा नहीं लिखा है। हक़ीक़त यह है कि आपके पूर्व वित्त मंत्री और आपकी पार्टी के नेताओं ने बार-बार इसका उल्लेख किया है कि वे विरासत कर के पक्ष में हैं। आप अपने नेताओं के इन भाषणों और टिप्पणियों को लोग ऑनलाइन देख सकते हैं।

आपके पत्र से पता चल रहा है कि आप चुनाव के पहले दो चरणों में हुए कम मतदान से चिंतित हैं। यह दर्शाता है कि लोग आपकी नीतियों या आपके चुनावी भाषणों को लेकर उत्साहित नहीं हैं। दरअसल ऐसा गर्मी की वजह से नहीं हो रहा है, आपकी नीतियों से गरीब झुलस गए हैं। आप ने अपने कार्यकर्ताओं से धर्म के नाम पर मतदाताओं को लामबंद करने की अपील की है। यदि मतदाता आपको वोट देने के लिए इच्छुक ही नहीं हैं, तो अपने कार्यकर्ताओं को दोष न दें।

आपको लगातार बढ़ती असमानता के बारे में बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। आप बेरोज़गारी और अभूतपूर्व महंगाई के बारे में बात करना नहीं चाहते हैं, जो देश के लोगों को सबसे अधिक प्रभावित कर रही है। न ही आपको महिलाओं पर अपने नेताओं द्वारा लगातार किए जा रहे लगातार अत्याचार पर बात करने में दिलचस्पी है।

हमारा घोषणापत्र न्याय की बात करता है। हमारा फ़ोकस इस बात पर है कि समाज के सभी वर्गों का विकास कैसे हो। यदि आप नफ़रत से भरे भाषण देने के बजाय पिछले दस वर्षों में अपनी सरकार के प्रदर्शन पर वोट मांगते तो प्रधानमंत्री के रूप में बेहतर होता। 

कांग्रेस पार्टी आपको या आपके द्वारा नियुक्त किसी भी व्यक्ति को हमारे घोषणापत्र और आपके द्वारा उठाए गए पॉइंट्स पर बहस करने की चुनौती देना चाहेगी। 

जैसा कि मैंने अपने पहले पत्र में उल्लेख किया था – जब चुनाव खत्म हो जाएंगे, तब लोग आपको केवल एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में याद करेंगे, जो निश्चित दिख रही हार से बचने के लिए झूठ से भरे विभाजनकारी और सांप्रदायिक भाषण दे रहा था।”

https://x।com/kharge/status/1785954271353090214

मोदी अकेले मुकाबले में, लेकिन उनका हर वार खाली क्यों जा रहा है 

यहां पर हमें ध्यान देना होगा कि विपक्ष ने अपनी चुनावी रणनीति को इस बार कुछ इस प्रकार से तैयार किया है कि किसी भी सूरत में मोदी इस मुकाबले को मोदी बनाम राहुल न कर सकें। राहुल ने देश में दो-दो यात्रा कर आम लोगों तक अपनी पहुंच बना ली है। उनके लिए अब जनता से जुड़े मुद्दों को उन्हीं के बीच चर्चा के लिए ले जाने और उस पर बहस करने का रास्ता खुल गया है। गोदी मीडिया भले ही कुछ भी नैरेटिव खड़ा करती रहे, राहुल के नेतृत्व में देश का बहुसंख्यक तबका अपनी रोजी-रोटी और बेहतर भविष्य के मुद्दों पर चर्चा कर रहा है। वैकल्पिक मीडिया के सहारे विपक्ष के नैरेटिव को खड़ा करने की यह कोशिश अब परवान चढ़ रही है, और झख मारकर कई मौकों पर गोदी मीडिया को भी इन मुद्दों पर चर्चा चलाने को मजबूर होना पड़ रहा है। 

नरेंद्र मोदी के हर प्रहार को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के द्वारा चुनौती दी जा रही है। इससे पहले भी जब मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र को लेकर कई बेबुनियाद आरोप लगाये थे, तब खड़गे ने उनसे अनुरोध किया था कि कांग्रेस के घोषणापत्र में क्या लिखा है, उसे समझाने के लिए वे व्यक्तिगत तौर पर मोदी जी से समय चाहते हैं। दूसरी तरफ, प्रियंका गांधी देश में घूम-घूमकर अपनी रैलियों में पीएम नरेंद्र मोदी को सीधे निशाने पर लेते हुए जोरदार हमले कर रही हैं। उनकी रैलियों में भी भारी भीड़ और दर्शकों की तालियां मिल रही हैं। ऐसा लगता है कि इस बार विपक्ष ने बेहद सोच-समझकर अपनी चुनावी रणनीति को तैयार किया है। दलित पृष्ठभूमि के खड़गे और महिला होने के नाते प्रियंका गांधी पर हमलावर होना कैसे प्रधानमंत्री के लिए भारी पड़ सकता है, इसे नरेंद्र मोदी अच्छी तरह से जानते हैं। कुल-मिलाकर कह सकते हैं कि लोकसभा चुनाव का आधा सफर पूरा होने को है, लेकिन भाजपा और मोदी के लिए इस बार ‘अच्छे दिन’ की राह दिन-प्रतिदिन कठिन होती जा रही है।    

(रविंद्र पटवाल लेखक और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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