नई दिल्ली/ मेरठ। मलियाना में एक बार फिर मातम का माहौल है। 36 साल पहले जब यह घटना हुई थी और गांव से एक साथ कुल 68 लाशे उठी थीं। इस घटना ने पूरे प्रदेश को हिला दिया था। तब राजनीतिक दलों, मानवाधिकार संगठनों, कानूनविदों और पत्रकारों ने इस नरसंहार के दोषियों को सजा दिलाने के लिए कसमें खाईं थी, लेकिन तीन दशक बाद अदालत ने ‘सबूतों के अभाव’ और ‘संदेह का लाभ’ देते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत का यह फैसला प्रशासनिक अधिकारियों औऱ जांच एजेंसियों के साथ ही हमारे समाज और व्यवस्था को भी सवालों के घेरे में खड़ा करता है।
23 मई, 1987 को मेरठ के मलियाना होली चौक पर साम्प्रदायिक दंगे हुए थे, जब मलियाना गांव में 68 मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड के बाद कई परिवार गांव छोड़कर बाहर चले गए, जबकि कुछ ने वहीं रहने का विकल्प चुना है। अभी तक लोगों को विश्वास था कि अदालती लड़ाई धीमी गति से चल रही है, लेकिन अंत में न्याय मिलेगा। फिलहाल, 31 मार्च को मेरठ जिला अदालत के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश लखविंदर सिंह सूद ने 39 आरोपियों को बरी कर दिया। अपने 26 पन्नों के फैसले में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश लखविंदर सिंह सूद ने कहा कि “आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध नहीं हैं” और सबूतों की विश्वसनीयता पर “गंभीर संदेह पैदा होता है।”
इस तरह तीन दशक से न्याय की उम्मीद में लड़ाई लड़ रहे हैं लोगों को पिछले सप्ताह अदालती फैसले से गहरा धक्का लगा।
पीड़ितों ने फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर करने का फैसला किया है। मलियाना मामले के मुख्य वादी याकूब अली कहते हैं कि सोमवार को हमें फैसले की प्रति नहीं मिल सकी। हम अधिवक्ताओं से विचार-विमर्श कर हाईकोर्ट में अपील करेंगे। उन्होंने कहा कि 36 साल तो कोर्ट में मामला लंबित था।
34 साल तो इस मामले की एफआईआर की कॉपी ही नहीं मिली। दो सालों से लगातार मामले की सुनवाई करके फैसला आया है। 36 पोस्टमार्टम में केवल 8 को ही एग्जामिन किया गया है। मोहम्मद ईस्माइल जिनके घर के 11 लोग दंगा के शिकार हुए, उनकी गवाही नहीं हुई। वकील अहमद, अली हसन और इस्लामुद्दीन समेत दस चश्मदीद गवाहों ने स्पष्ट रूप से दंगे में शामिल लोगों के नाम लेकर गवाही दी। गवाहों ने नाम लेकर गवाही दी कि किन लोगों ने मारा है। लेकिन अदालत ने कहा कि कोई इंडिपेंडेंट विटनेस नहीं मिला।
खबरों के मुताबिक हिंसा तब भड़की जब कथित तौर पर उत्तर प्रदेश प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी के कुछ कर्मियों के साथ भीड़ ने मलियाना गांव को घेर लिया और गोलियां चला दीं। एक निवासी याकूब अली के बयान के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
63 वर्षीय अली याद करते हैं कि जब वह स्थानीय मस्जिद में नमाज पढ़ रहे थे तो हवा में गोलियों की आवाज कैसे सुनाई दे रही थी। उन्होंने कहा कि वह अपने घर का रास्ता खोजने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि उसके आसपास के लोगों को गोली मार दी गई थी और घरों में आग लगा दी गई थी।
अली ने कहा कि उनके साथ भी मारपीट की गई और उन्हें पैर में चोटें आईं। उन्होंने कहा कि उन्हें पीएसी कर्मी ले जा रहे थे, तभी एक स्थानीय पुलिसकर्मी ने हस्तक्षेप किया। मुझे स्थानीय पुलिस स्टेशन ले जाया गया, इसलिए मैं बच गया। मेरे भतीजे की हिंसा में मौत हो गई। उसकी गर्दन में गोली मारी गई थी…तो हम सबको किसने मारा? हमारे घरों को आग किसने लगाई? अगर हमें किसी ने नहीं मारा तो 36 साल तक मामले की सुनवाई क्यों हुई।
61 वर्षीय वकील अहमद सिद्दीकी ने कहा कि उन्हें पेट और हाथ में गोली मारी गई और उनकी दुकान में आग लगा दी गई। एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जो डरा हुआ या अछूता नहीं बचा था। मुझे आंसू, खून, टूटी टांगें, क्षत-विक्षत शरीर देखना याद है। वर्षों से मुझे लगा कि न्याय दिया जाएगा। मेरा दिल और दिमाग इस फैसले को स्वीकार नहीं कर सकता।
61 वर्षीय रहीज़ अहमद के चेहरे पर गोली लगी थी। हिंसा भड़कने के बाद उनके पिता मोहम्मद यामीन लापता हो गए थे। उन्होंने कहा “हमने उन्हें हर जगह खोजा। वह कानपुर से लौट रहे थे और हिंसा भड़कने पर मलियाना पहुंचा थे। कई अभियुक्तों की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई; पीड़ितों के इतने परिवार गांव छोड़कर चले गए। हम रहते हैं। हम लड़ेंगे। ”
घरों को पेंट करके अपनी जीविकोपार्जन करने वाले 56 वर्षीय मेहताब ने कहा कि खून से लथपथ अपने पिता की याद अभी भी उन्हें परेशान करती है। “उन्हें गर्दन में गोली मारी गई थी। वह नमाज पढ़कर आए था और छत पर खड़े थे। मुझे याद है कि वह शांति की अपील कर रहे थे… जब उसे गोली मार दी गई थी। हम उन्हें अस्पताल ले गए क्योंकि उनका खून बह रहा था… मैं बस दो कदम चला और वह मर गये।”
अदालती फैसले के बाद मेहताब ने न्याय की उम्मीद नहीं छोड़ी है। उन्होंने कहा कि हम न्याय के लिए लड़ेंगे।
55 वर्षीय नवाबुद्दीन ने हिंसा में अपने माता-पिता दोनों को खो दिया। उन्होंने अपने घर के बाहर चौक पर जमीन पर पड़ी उनकी जली हुई लाशों की पहचान की। उन्होंने कहा “मैंने एक मसाला स्टोर स्थापित किया और अपनी दोनों बहनों और बच्चों की शादी करने में कामयाब रहा। मैं इस फैसले के बारे में क्या कर सकता हूं?”
45 वर्षीय यामिन ने अपने पिता को खो दिया, जिन्होंने घर पर रहना चुना, जबकि परिवार के बाकी लोगों ने पास के एक दलित परिवार में शरण ली।
मलियाना कांड तो अदालत तक ले जाने वाले मुख्य वादी याकूब अली पुत्र नजीर निवासी मलियाना ने 93 लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया था। इस मामले में करीब 63 लोग मारे गये थे और 100 से भी ज्यादा घायल हुए थे। रिपोर्ट में वादी ने लिखाया था कि सभी लोग इकठ्ठा होकर आगजनी करते हुए आये और मारने के उद्देश्य से मारपीट और हमला कर दिया था। मुसलमानों को टारगेट बनाया गया और गोली बरसायी गयी थी। जिसमें 63 से ज्यादा लोग मर गये थे।
इस मुकदमे का अपराध सं. 136 सन 1987 दर्ज हुआ। इस मामले में दौरान केस विचारण करीब 40 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और करीब 39 लोग मुकदमे में आ रहे है। जबकि बाकी लोगों का कोई अता-पता नही चल पा रहा है। इस मामले में वादी सहित 10 गवाहों ने अदालत में अपनी गवाही दी। लेकिन अभियोजन आरोपियों के खिलाफ केस साबित करने में सफल नहीं रहा। अदालत ने गवाहों की गवाही और पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर मौजूद 39 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
कौन-कौन हुए बरी
मलियाना मामले में आरोपी कैलाश भारती, कालीचरण, सुनील, प्रदीप, धर्मपाल, विक्रम, तिलकराम, ताराचंद, दयाचंद, प्रकाश, रामजी लाल, गरीबदास, भिकारी, संतराम, महेन्द्र, वीर सिंह, राकेश, जीते, कुन्नू, शशी, नरेन्द्र, कान्ति, त्रिलोक चंद, ओमप्रकाश, कन्हैया, अशोक, रूपचंद, ओमप्रकाश, पूरन, नरेश कुमार, राकेश, केन्द्र प्रकाश, सतीश, लख्मी व विजेन्द्र को बरी करने के आदेश दिए हैं।
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