यूं तो बंगाल में विधानसभा की 294 सीटों पर चुनाव हो रहा है पर पूरे देश की निगाहें नंदीग्राम पर टिकी हैं। यहां 1 अप्रैल को होने वाले चुनाव में मुकाबला वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एवं तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार और तृणमूल से भाजपा में आए शुभेंदु अधिकारी के बीच होगा। इस विधानसभा के चुनाव प्रचार में बार-बार मीरजाफर का जिक्र आता है तो क्या यह चुनाव नवाब सिराजुद्दौला और मीरजाफर इतिहास के पन्नों के जेरेनजर लड़ा जाएगा।
याद दिला दें कि प्लासी के युद्ध में जब मीरजाफर ने अंग्रेजों से हाथ मिला लिया तो नवाब सिराजुद्दौला को अंग्रेजों के मुकाबले पराजय का सामना करने के साथ ही भागना पड़ा था। इसीलिए बंगाल में लोग मीरजाफर शब्द से नफरत करते हैं। शुभेंदु अधिकारी ने भाजपा में शामिल होने के बाद कहा था कि वे 2014 से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के संपर्क में थे। दिल्ली में उनसे मुलाकात हुआ करती थी। हैरानी की बात तो यह है कि 6 साल बीत जाने के बावजूद किसी को इसकी खबर तब तक नहीं लगी जब तक शुभेंदु ने खुद ही खुलासा नहीं किया। अब यह बात दीगर है कि इसके बावजूद शुभेंदु अधिकारी 2016 के विधानसभा का चुनाव तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर लड़े और 2021 के विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले तक मंत्री और निगमों के अध्यक्ष बने रहे। इसी वजह से ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के नेता शुभेंदु अधिकारी को मीरजाफर के रूप में पेश कर रहे हैं।
जनता शुभेंदु अधिकारी को मीर जाफर कहे जाने पर भरोसा करने लगी है और वे इस दबाव को महसूस कर रहे हैं जिसका प्रमाण उनके इस बयान से मिलता है। उन्हें बार-बार विरोध का सामना करना पड़ा रहा है। नंदीग्राम के दाउदपुर में विरोध के बारे में टिप्पणी करते हुए कहते हैं वे एक पक्का हिंदू हैं और घर से पूजा किए बगैर बाहर नहीं निकलते हैं। यानी मीरजाफर कहे जाने का जवाब हिंदू कार्ड से देने की कोशिश करते हैं। कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान गांव वालों के साथ रहा था। उन्हें भोजन का पैकेट दिया था। इसे लेने में उन्हें उस समय कोई दिक्कत नहीं हुई थी। उस समय कोई समस्या नहीं आयी जब मोदी सरकार ने उन्हें मुफ्त में राशन भेजा था। अब यह बात दीगर है कि उन्होंने उस समय मोदी सरकार नहीं बल्कि ममता सरकार का ही जिक्र किया था। शुभेंदु अधिकारी कहते हैं कि मैं हैरान हो जाता हूं जब मुझे इस क्षेत्र में सेंट्रल फोर्स के साथ प्रवेश करना पड़ता है। कहते हैं कि अगर आप मुझे वोट नहीं देना चाहते हैं तो मत दीजिए लेकिन मेरे खिलाफ आंदोलन क्यों कर रहे हैं। लोकतंत्र में लोग बैलेट के जरिए अपनी राय जाहिर करते हैं।
भाजपा ने शुभेंदु अधिकारी के सहयोग से ममता बनर्जी को नंदीग्राम में घेरने की रणनीति पहले से ही बना ली थी। इसी का परिणाम था कि ममता बनर्जी के चुनावी प्रतिनिधि शेख सुफियान और कई प्रमुख नेताओं को ठीक चुनाव से पहले भूमिगत होना पड़ गया। दरअसल 2020 के फरवरी में राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके नंदीग्राम आंदोलन से जुड़े 9 आपराधिक मामलों को वापस ले लिया था। शुभेंदु अधिकारी को इसकी जानकारी थी। चुनावी गहमागहमी शुरू होती है होते ही इन 9 मामलों में से 6 का हवाला देते हुए हाई कोर्ट में पीआईएल दायर कर दी गई। चीफ जस्टिस के डिवीजन बेंच ने मुकदमा वापस लेने के सरकार के फैसले पर स्टे लगा दिया। इस वजह से सुफियान सहित ममता बनर्जी के चुनावी कार्य से जुड़े प्रमुख नेताओं को भूमिगत होना पड़ा। अभी 4 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया तो सुफियान सहित बाकी नेता सक्रिय रुप से चुनाव अभियान से जुड़ पाए हैं।
भाजपा की रणनीति शुरू से ही रही है कि नंदीग्राम के चुनाव का हिंदू और मुसलमान के बीच ध्रुवीकरण किया जाए। ममता बनर्जी ने भी इसका जवाब उन्हीं के अंदाज में दिया है। नंदीग्राम में एक भी ऐसा मंदिर नहीं बचा है जहां ममता बनर्जी ने पूजा अर्चना नहीं की हो। ऐसा पहली बार हुआ है कि वे चुनावी सभाओं में मंत्रों का जाप भी करने लगी हैं। पर इसके साथ ही ममता बनर्जी के पास विकास का कार्ड भी है। सबुज साथी, कन्याश्री और रूपश्री जैसी योजनाएं भी हैं जिनका फायदा लड़कियों और छात्र-छात्राओं को मिला है। लड़कियों के बैंक खाते में 18 साल की उम्र होने पर ₹25000 जमा हो जाते हैं। अब शुभेंदु अधिकारी इन विकास कार्यों में अपना दावा भी पेश करने लगे हैं। दूसरी तरफ जो योजनाएं पूरी नहीं हो पाई हैं उनके लिए ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मसलन नंदीग्राम के नटवरी में शुद्ध पेयजल आपूर्ति योजना में लाखों के पाइप पड़े हैं पर काम नहीं हो पाया है। पर लोग शुभेंदु अधिकारी की इस दलील को हजम नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि मंत्री और विधायक तो शुभेंदु अधिकारी ही थे। लिहाजा शुभेंदु अधिकारी का भरोसा हिंदू कार्ड पर आकर टिक जाता है। इसके लिए अमित शाह ने 30 मार्च को विशेष रूप से नंदीग्राम में रोड शो करने के साथ ही सभा भी की और हिंदू भावनाओं को जमकर उसकाया भी। अब शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी को बेगम कहकर संबोधित करने लगे है।
शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी को भ्रष्टाचार के आरोप में घेरने की कोशिश भी कर रहे हैं। मसलन अंफान में सहायता राशि का वितरण, विभिन्न योजनाओं में कट मनी और नियुक्तियों में भ्रष्टाचार आदि ऐसे बेशुमार आरोप हैं उनके पास। पर लोगों का सवाल है कि जब यह सब हुआ था उस समय तो शुभेंदु अधिकारी राज्य सरकार में मंत्री होने के साथ ही विधायक भी थे। लोग कहते हैं कि, यहां तो एक पत्ता भी नहीं हिलता था तेरी रजा के बगैर अगर कोई खता हुई तो तेरी रजा से ही तो हुई। यह सच भी है क्योंकि सिर्फ नंदीग्राम ही नहीं पूर्व और पश्चिम मिदनापुर में 2011 से 2020 तक कोई भी काम शुभेंदु अधिकारी की मर्जी के बगैर नहीं होता था। उनके अधिकार क्षेत्र में कोई दखल देने की हिमाकत नहीं कर सकता था, क्योंकि वे ममता बनर्जी के सबसे विश्वसनीय सिपहसालार थे।
अब आइए एक नजर आंकड़ों पर डालते हैं। देखे वे क्या कहते हैं। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 67 फ़ीसदी वोट मिले थे। भाजपा को 5 फ़ीसदी और माकपा को 27 फ़ीसदी वोट मिले थे। लोकसभा चुनाव में तस्वीर बदल गई। तृणमूल कांग्रेस को 64 फ़ीसदी भाजपा को 30 फ़ीसदी और माकपा को 5 फ़ीसदी वोट मिले थे। यानी भाजपा को जो 25 फ़ीसदी बढ़त मिली थी उसमें 22 फ़ीसदी माकपा और तृणमूल की 3 फ़ीसदी भागीदारी थी। अब सवाल है कि माकपा की युवा उम्मीदवार मीनाक्षी मुखर्जी कितना फ़ीसदी वोट वापस ला पाती हैं। दूसरा सवाल है कि तृणमूल कांग्रेस को जो 64 फ़ीसदी वोट मिले थे उनमें से कितना फीसदी वोट मोदी शाह एंड कंपनी के नए सिपहसालार शुभेंदु अधिकारी भाजपा की पेटी में ला पाते हैं। तीसरा सवाल है कि 2014 से ही मोदी और शाह से गठबंधन करने के बावजूद इसे राज बनाए रखने, अंतिम समय तक ममता बनर्जी के साथ बने रहने और अंतिम समय में ममता बनर्जी को धोखा देने के कारण तृणमूल कांग्रेस के लोग उन्हें मीर जाफर कहने लगे हैं। इसका असर आम लोगों पर कितना पड़ता है। इन तीन सवालों के जवाब पर टिका है नंदीग्राम का चुनावी परिणाम।
(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल कोलकाता में रहते हैं।)