सनातन संस्था को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित या आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया गया: बॉम्बे हाईकोर्ट

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नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे और एमएम कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्याओं में लगातार सनातन संस्था का नाम लिया जाता रहा है। सनातन संस्था को ऐसा उग्र हिंदूवादी संगठन माना जा रहा है, जिसे अपने कार्यकलापों में हिंसा से कोई गुरेज नहीं है। महाराष्ट्र की एटीएस एजेंसी पहले भी अपनी रिपोर्ट में इसे आतंकवादी संगठन मानते हुए उसके खिलाफ प्रतिबंध की जरूरत पर बल दिया था। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार को नहीं लगता कि सनातन संस्था एक आतंकवादी संगठन है और इस पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि सनातन संस्था को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 2004 के तहत प्रतिबंधित या आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया गया है। जस्टिस सुनील शुकरे और जस्टिस कमल खाता की खंडपीठ ने इसलिए यूएपीए के तहत एक आरोपी विजय लोधी को जमानत दे दी और एक विशेष अदालत के आदेश को रद्द कर दिया, जिसने लोधी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

खंडपीठ ने कहा कि इस मामले का सबसे पेचीदा हिस्सा यह है कि ‘सनातन संस्था’ एक ऐसी संस्था है जिसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 2004 के तहत प्रतिबंधित या आतंकवादी संगठन या किसी प्रतिबंधित आतंकवादी समूह का फ्रंटल संगठन घोषित नहीं किया गया है।

खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य “निराशाजनक” हैं और अभियुक्त के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई सबूत नहीं था। अपीलकर्ता लीलाधर लोधी पर सनबर्न फेस्टिवल, 2017 पर हमला करने की एक असफल साजिश का हिस्सा होने का आरोप है।

प्रताप हाजरा नालासोपारा मामले में एक आरोपी है, जिसमें एक वैभव राउत के घर से विस्फोटक जब्त किए गए थे। अभियोजन पक्ष के अनुसार, वे “सनातन संस्था” नामक एक संगठन के सदस्य हैं, जिसका उद्देश्य महाराष्ट्र और आसपास के राज्यों में एक आतंकवादी समूह के माध्यम से एक हिंदू राष्ट्र बनाना है।

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि लोधी ने कच्चे बम तैयार किए या एकत्र किए और विस्फोटकों को संभालने और फायर आर्म का उपयोग करने के लिए संस्था के सदस्यों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए। इसके अलावा, संस्था के सदस्यों का इरादा सनबर्न फेस्टिवल 2017 को रोकने और उन फिल्मों की स्क्रीनिंग को रोकने का था, जिन्हें वे हिंदू धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ मानते हैं।

अपीलकर्ताओं पर यूएपीए, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, विस्फोटक अधिनियम, शस्त्र अधिनियम, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम और आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि सह-अभियुक्तों के बयान पर्याप्त रूप से लोधी के अपराधों में शामिल होने का संकेत देते हैं।

अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे पता चले कि अपीलकर्ता के पैतृक घर से मिले तीन देशी बम उसके थे क्योंकि वह घर का मालिक नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि घर में पाए गए आपत्तिजनक सामान के लिए अकेले अपीलकर्ता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में अन्य व्यक्तियों के उक्त वस्तुओं के स्वामित्व की संभावना से इनकार नहीं किया गया है।

अदालत ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष ने विस्फोटकों को संभालने में सदस्यों के लिए प्रशिक्षण शिविरों के अस्तित्व का कोई भौतिक सबूत पेश नहीं किया है।

आदेश में यह भी कहा गया है कि संगठन एक पंजीकृत धर्मार्थ ट्रस्ट था, जिसका उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करना और जनता में धार्मिक व्यवहार को विकसित करना था। खंडपीठ ने कहा कि आधिकारिक वेबसाइट भी ‘सनातन संस्था’ की गतिविधियों पर प्रकाश डालती है। इन गतिविधियों में ऐसी पहल शामिल हैं जो समाज में आध्यात्मिकता के प्रसार के लिए की जाती हैं।

आध्यात्मिकता के विभिन्न पहलुओं पर नि:शुल्क व्याख्यान और मार्गदर्शन शिविर आयोजित करने और इसमें रुचि लेने के लिए आध्यात्मिक प्रयास, स्थानीय भाषाओं में साप्ताहिक सत्संग आयोजित करना, आध्यात्मिक विज्ञान के बारे में मार्गदर्शन करना, बच्चों के लिए ‘बाल संस्कार वर्ग/नैतिक शिक्षा वर्ग’ का आयोजन करना, धर्म/धार्मिकता पर शिक्षा का संचालन करना आदि शामिल है।

लोधी को संगठन के लिए अपने घर में कथित रूप से विस्फोटक और शस्त्र इकट्ठा करने या तैयार करने और भंडारण करने के आरोप में महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) द्वारा गिरफ्तार किया गया था। एटीएस ने आरोप लगाया कि आरोपी एक ऐसे संगठन का सदस्य था जिसका उद्देश्य ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाना था और इसे एक साजिश के माध्यम से हासिल करने की कोशिश की गई।

एटीएस ने तर्क दिया कि लोधी संगठन का सक्रिय सदस्य था और साजिश में शामिल था। लोधी ने आरोपों से इनकार किया और कहा कि उनके और कथित साजिश के बीच कोई संबंध दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है। उसने कहा कि एटीएस ने कथित तौर पर उनके पास से जो बम बरामद किए थे, वे वास्तव में उनके पैतृक घर से बरामद किए गए थे, जिसके लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

खंडपीठ ने कहा कि बेशक यह घर जिसकी पुलिस ने तलाशी ली थी, अपीलकर्ता का नहीं है और इसे अपीलकर्ता का पैतृक घर बताया गया है। तब इस तरह की बरामदगी के लिए अभियुक्त को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, जब तक कि घर की तलाशी के दौरान दूसरों द्वारा पाई गई संपत्ति के स्वामित्व की संभावना से इनकार नहीं किया जाता है।

अभियुक्तों द्वारा दौरा किए गए प्रशिक्षण शिविरों के अस्तित्व का कोई भौतिक प्रमाण नहीं मिला। यह निष्कर्ष निकालते हुए कि निचली अदालत का आदेश ग़लत था, उच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया और आदेश दिया कि लोधी को ज़मानत पर रिहा किया जाए। लोधी को एक जमानत के साथ 50,000 रुपये का जमानत बांड भरने का निर्देश दिया गया था।

दरअसल पिछले कुछ सालों से सनातन संस्था लगातार विवादों में है। इस संस्था को लेकर भारी बहस भी चली थी कि इसे आतंकी संगठन घोषित किया जाए या नहीं। इस संस्था को प्रतिबन्धित करने को लेकर भी विवाद की स्थिति बनी। अप्रैल 2017 में महाराष्ट्र विधान परिषद को जानकारी देते हुए ये कहा गया था की राज्य सरकार ने सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र को एक प्रस्ताव भी भेजा था।

तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे की हत्याओं में कथित भूमिका को लेकर हिंदुत्ववादी संगठन सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग महाराष्ट्र के कई लोग, संस्था और राजनितिक पार्टियां कर रही हैं।

इस संस्थान से जुड़े लोगों की गिरफ़्तारी 2007 में घटित वाशी, ठाणे, पनवेल और 2009 में गोवा बम धमाके के लिए की गईं थीं। सनातन संस्था का नाम नरेंद्र दाभोलकर, एमएम कलबुर्गी, गोविंद पानसरे और गौरी लंकेश की हत्या से भी जुड़ा हैं। महाराष्ट्र पुलिस और सीबीआई जो इन केस का अनुसन्धान कर रही है, पूर्व में इसके संस्थापक जयंत बालाजी अठावले से पूछताछ की थी।

हालांकि दिसंबर 2015 में गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने राज्यसभा को लिखित उत्तर में यह जानकारी दी थी कि गोविंद पंसारे, नरेंद्र दाभोलकर और एमएम कलबुर्गी की हत्याओं के बीच किसी भी प्रकार के संबंध का पता नहीं चला। इन हत्याओं में कोई संबंध नहीं हैं। साथ में उन्होंने यह भी कहा था की वर्तमान में दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का दावा करने वाली ये संस्था इस तरह के कई विवादों के कारण तर्कशास्त्रियों और लोगों के निशाने में रही है। आम लोगों के जेहन में ये सवाल उठने लगे हैं कि इतने आरोपों के बाद भी सनातन संस्था को अभी तक प्रतिबन्ध क्यों नहीं किया जा रहा है।

सनातन संस्था के संस्थापक जयंत अठावले हैं, जो लंदन में मनोचिकित्सा का काम कर चुके हैं। सनातन संस्था की वेबसाइट के मुताबिक़ डॉक्टर जयंत अठावले ने एक अगस्त 1991 में ‘सनातन भारतीय संस्कृति’ की स्थापना की थी। इसके बाद 23 मार्च 1999 को उन्होंने सनातन संस्था की स्थापना की। कुल मिलाकर ये एक कट्टर हिंदू संगठन है। सनातन संस्था का मुख्यालय गोवा में है। लेकिन मुख्य गतिविधियों का केंद्र फिलहाल पुणे है।

सनातन संस्था दावा करती रही है कि वो देश और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बनाई गई है। हाल के बरसों में उसकी गतिविधियों पर सवाल उठते रहे हैं। अब इसके खिलाफ प्रतिबंध लगाने की मांग हो रही है। महाराष्ट्र की एटीएस ने इसे आतंकवादी संगठन बताते हुए इसके खिलाफ प्रतिबंध की मांग की थी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)

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