भारतीय शेयर बाजार में हाहाकार के साथ खत्म हुआ सेबी चीफ माधवी पुरी बुच का कार्यकाल 

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महाराष्ट्र के नासिक जिले में 28 वर्षीय राजेन्द्र कोले ने कल खुद को आग लगाकर जान से मार डाला। ऐसी आत्महत्याएं भारत के कोने-कोने में अब आम हो चुकी हैं, लेकिन यहां पर इसका खास महत्व है। खबरों से यह जानकारी निकलकर आ रही है कि राजेन्द्र कोल्हे ने शेयर मार्केट में 16 लाख रुपये गंवा दिए थे। 

नासिक के ही चंदवाड तालुका से आने वाले राजेन्द्र कोल्हे नासिक शहर में नौकरी करते थे। घर पर पैसे भेजने के बजाय अन्य दोस्तों की तरह उसने भी शेयर बाजार में पैसा डालना शुरू कर दिया था, और उसे भी उम्मीद थी कि जल्द किस्मत का दरवाजा उसके लिए भी खुलेगा। लेकिन शेयर बाजार में भारी गिरावट के चलते उसे 16 लाख रुपये का नुकसान हुआ, जिसमें बड़ा हिस्सा उधारी का था। 

बुधवार के दिन शिवरात्रि का त्यौहार होने की वजह से ऑफिस में छुट्टी थी। उसने त्र्यंबकेश्वर मंदिर जाकर पूजा-अर्चना की और वापसी में पिंपलगांव के पास ज्योति विद्यालय के पास अपनी बाइक रोक अपने शरीर में पेट्रोल छिड़क आत्मदाह कर डाला। 

सबसे दुःखद पहलू यह है कि यह सिलसिला किसी एक राजेन्द्र कोल्हे तक सीमित नहीं रहने वाला है, क्योंकि हमारे सत्ताधीशों और नवउदारवादी अर्थव्यवस्था ने जीवन में सफलता के मायने और राह दोनों को निर्धारित कर दिया है। यह वो राह है, जो सिर्फ चंद क्रोनी पूंजीपतियों को हर हाल में और ज्यादा धनवान बनाती है। आज करोड़ों युवाओं के पास शेयर बाजार, गेमिंग एप्प और बिटकॉइन जैसे speculative बाजार में अपनी जमापूंजी और उधारी लगाकर रातोंरात लखपति बनने के अलावा विकल्प ही क्या है?

यदि आज की बात करें तो भारतीय शेयर बाजार में आज कत्लेआम का दिन रहा। शुक्रवार शेयर बाजार के लिए बेहद खराब रहा, जहां निफ्टी और सेंसेक्स में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली है। इस गिरावट के चलते निवेशकों के 6.10 लाख करोड़ रुपये एक दिन में स्वाहा हो चुके हैं। सेंसक्स 1414 अंकों या 1.90%, जबकि निफ्टी-50 420 अंकों की गिरावट के साथ बंद हुआ। बाजार करीब 12 महीने के निचले स्तर से मात्र 1% ऊपर चल रहा है। 

अकेले फरवरी माह के दौरान निफ्टी 50 में करीब 5 फीसदी से अधिक की गिरावट देखी जा चुकी है और बाजार लगातार पांचवें महीने की गिरावट के रिकॉर्ड को 30 साल बाद दोबारा दिखा रहा है। न ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट प्रावधानों में मिडिल क्लास के लिए आयकर में बड़ी छूट का चारा भी इस गिरावट को नहीं रोक सका, और न ही आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में ढील की पेशकश ही कोई कमाल दिखा सकी है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या मार्च में भारतीय अर्थव्यवस्था कोई सकारात्मक करवट लेती है, वर्ना आने वाले दिन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद घातक होने जा रहे हैं। 

निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी कत्लेआम चल रहा है। 26 सितंबर को 26,216 अंकों तक उछाल मारता निफ्टी का बाजार आज लुढ़क कर 22,112 अंक तक जा पहुंचा था। एक दिन में लगभग 2% की गिरावट इससे पहले 4 जून 2024 को ही देखने को मिली थी, जब बाजार 6% तक लुढ़का था। वह दिन भी भारतीय शेयर बाजार में यादगार दिन था, और आज का दिन भी लंबे अर्से तक याद रखा जायेगा।

सितंबर से अब तक 14% की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। विदेशी निवेशक लगातार बाजार से पैसा निकालकर चीन और जापान का रुख कर रहे हैं। आज की गिरावट से पहले ही भारतीय शेयर बाजार 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य में से 1 ट्रिलियन डॉलर खो चुका है। बाजार पर गहरी पकड़ रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि गिरावट का यह दौर अभी आगे भी जारी रहने वाली है।

बाजार में सबसे बड़ी चिंता की एक वजह यह भी है कि कई कंपनियों के प्रमोटर तक अपने निवेश को कम करते देखे जा रहे हैं। यह एक बड़ा संकेत उन निवेशकों के लिए है, जिन्हें कंपनी के शेयर्स 30-40% टूटने के बाद स्थिरता का भरोसा था। 

उससे भी बड़ी चिंता की वजह यह देखी जा रही है कि पहली बार एफएमसीजी सेक्टर भी तेजी से लुढ़क रहा है। आमतौर पर माना जाता था कि बाजार में मंदी के वक्त एफएमसीजी सेक्टर में निवेश ही आपकी पूँजी को सुरक्षित रख सकते हैं। लेकिन बाजार में खाद्य वस्तुओं की बिक्री करने वाली ब्रिटानिया, आईटीसी और टाइटन जैसी कंपनियों के उत्पाद की बिक्री लगातार कमजोर पड़ती जा रही है।

इसलिए, माना जा रहा है कि सिर्फ विदेशी निवेशकों की तेज बिकवाली को ही आधार मानकर चलना भूल होगी, भारतीय अर्थव्यवस्था में ही कुछ संरचनात्मक दरारें आ चुकी हैं, जिन्हें ठीक किये बिना अब भारतीय बाजार और शेयर बाजार में ग्राहकों का विश्वास जमना मुश्किल है।

इस बीच सेबी चीफ माधवी पुरी बुच का 3 साल का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है, जो पहली बार सर्वाधिक विवादित रहा। इससे पहले सेबी चीफ की नियुक्ति कभी भी इतनी विवादित नहीं रही थी। भारतीय शेयर बाजार में अडानी समूह के शेयरों में तेज उछाल और फिर अचानक से गिरावट को कई लोग इनसाइडर ट्रेडिंग बताते आये हैं। सेबी की भूमिका मार्केट रेगुलेटर के साथ-साथ निवेशकों के हितों की रक्षा को सर्वोपरि रखने का रहा है।

लेकिन माधवी की नियुक्ति स्वंय विवाद से अछूती नहीं रही है। गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी की विदेशी फर्म में उनके निवेश से लेकर अपने पति की फर्म के लिए पैरवी तक की खबरें भारतीय निवेशकों तक ही नहीं ग्लोबल इन्वेस्टर्स के सामने बेपर्दा हो चुकी हैं। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ऊपरी नुक्ताचीनी कर माधवी पुरी बुच को बच निकलने दिया, जिसका खामियाजा भारतीय शेयर बाजार में पारदर्शिता की चाह रखने वाले विदेशी निवेशकों के पलायन से ही क्यों न चुकानी पड़ रही हो।

माधवी पुरी बुच की जगह कल देर शाम तुहिन कांत पांडे की गुपचुप नियुक्ति को भी फिलहाल सशंकित दृष्टि से देखा जा रहा है। अमूमन सेबी चीफ के लिए ओपन टेंडर प्रकिया का पालन किया जाना चाहिए, लेकिन आईएएस और वित्त सचिव होने के साथ-साथ लंबे अर्से से सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिमेश की जिम्मेदारी संभाल रहे तुहिन पांडे की नियुक्ति को एक बार फिर से सेबी में नौकरशाही की वापसी के तौर पर देखा जा रहा है। 

बाजार को लगता है कि एक अनुभवी नौकरशाह की नियुक्ति कर मोदी सरकार ने निवेशकों को संकेत दिया है कि भविष्य में बाजार नियामक इनसाइडर ट्रेडिंग सहित क्रोनी पूंजी के लिए बाजार के नियमों को बाधित नहीं करने जा रहा है। पूरी तरह से धड़ाम हो चुके बाजार और देशी-विदेशी निवेशकों के भरोसे को वापस पटरी पर लाने की भागीरथ जिम्मेदारी तुहिन कांत कैसे निभाते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। फिलहाल तो बाज़ार की ओर देखने में ही निवेशकों को 440 वाल्ट का झटका महसूस हो रहा है।  

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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