शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के संभावित गठजोड़ के बीच रोज नया ऐसा कुछ हो रहा है कि एकाएक अटकलों का बाजार गरम हो जाता है कि फिलहाल गठजोड़ किसी भी सूरत में नहीं होगा। बेशक दोनों दलों के दिग्गज नेता यही चाहते हैं कि साल 2024 के चुनाव से पहले अकाली-भाजपा गठबंधन सिरे चढ़ जाए ताकि दोनों दल अपने-अपने हिसाब से इसका फायदा ले सकें। भाजपा की निगाह फिलहाल 2024 के आम लोकसभा चुनाव पर है तो शिअद चाहता है कि चार साल बाद होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में वह जीत हासिल करके सत्ता पर काबिज हो जाए।
जमीनी हकीकत है कि अकाली-भाजपा गठबंधन के बगैर न भाजपा का पंजाब में आगे बढ़ना व्यवहारिक रुप से संभव है और न अकाली दल को कोई फायदा होगा। फौरी हालात यही बयान करते हैं कि अभी पेंच अड़ा हुआ है। दोनों दल अलहदा रुख अख्तियार किए हुए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी को भाजपा अपना सबसे बड़ा चुनावी एजेंडा बनाना चाहती है। बावजूद इसके कि कई राज्य और आमजन इसके विरोध में हैं।
बहुत संभव है कि तब तक पार्टी के हाथ कोई नया बड़ा मुद्दा आ जाए और यूसीसी को फिलवक्त हाशिया हासिल हो जाए। (नरेंद्र मोदी है तो सब संभव है!) लेकिन आज के दिन तो उसकी सबसे बड़ी कवायद यही है कि किसी भी तरह देशभर में यूसीसी के पक्ष में माहौल बनाकर ध्रुवीकरण किया जाए और चुनावी राजनीति में इसका ज्यादा से ज्यादा लाभ लिया जाए।
अन्य कतिपय राजनीतिक दलों के साथ-साथ अब सुखबीर सिंह बादल और सांसद भी खुलकर समान नागरिक संहिता के विरोध में आ गए हैं। सुखबीर बादल मतलब समूचा शिरोमणि अकाली दल। बड़े बादल के निधन के बाद पार्टी के सर्वेसर्वा अब वही हैं। पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने 22वें विधि आयोग को सूचित किया है कि प्रस्तावित समान नागरिक संहिता का लागू होना किसी भी सूरत में देश के हित में नहीं है और देशव्यापी अंतर-धार्मिक सहमति के बगैर अल्पसंख्यकों को इसके दायरे में लाना गलत होगा।
सुखबीर ने कहा कि इसे लागू करने से संविधान की भावना का उल्लंघन होगा और भय, अविश्वास व विभाजनकारी भावनाएं पैदा होंगी जो देश को अस्थिर करेंगीं। शिरोमणि अकाली दल के सर्वेसर्वा सुखबीर बादल द्वारा आयोग के सचिव को भेजे गए पत्र में साफ कहा गया है कि, ‘एकरूपता को एकता के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए। भारत विविधता में एकता का प्रतीक है, सही मायनों में केवल हमारा संघीय ढांचा ही हमारी समस्याओं का समाधान कर सकता है और भारत को वैश्विक महाशक्ति बना सकता है।
जिक्रेखास है कि संघीय ढांचे की मजबूती शिरोमणि अकाली दल की जन्मजात लाइन है और इस पर वह समझौता नहीं करता। सुखबीर सिंह बादल ने नरेंद्र मोदी सरकार से यूसीसी को आगे नहीं बढ़ाने का आग्रह किया है और कहा है कि इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय लेने से पहले सिख समुदाय की भावनाओं का सम्मान किया जाए।
सुखबीर सिंह बादल कहते हैं कि, “हमारे एतराज को जायज माना जाना चाहिए। संवेदनशील और सीमावर्ती राज्य पंजाब में अमन और सद्भाव हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता रहनी चाहिए और रही है। हमने अकेले तौर पर यूसीसी के विरोध में फैसला नहीं किया है। आयोग को सूचित किया गया है कि सूबे के बाहर भी पार्टी की विभिन्न इकाइयों, नेताओं और कार्यकर्ताओं से गहन विचार-विमर्श के बाद निर्णय लिया है कि हम प्रस्तावित समान नागरिक संहिता का कड़ा विरोध करेंगे।”
बादल ने कहा कि “यह क्यों याद नहीं रखा जाता कि अगर यूसीसी भारी विरोध के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार लागू करती है तो इससे निश्चित तौर पर अलग-अलग जाति, पंथ और धर्मों के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग प्रभावित होंगे। हमने अपने पत्र की प्रतियां 22वें विधि आयोग के साथ-साथ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्रालय को भी प्रेषित की हैं तथा इसमें जोर देकर कहा है कि शिरोमणि अकाली दल राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने का पक्षधर होने के साथ-साथ लोकतंत्र और संघवाद की हिफाजत में भी गहरा यकीन रखता है।”
शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने अपना पक्ष उस वक्त के करीब आगे रखा है, जब केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता पर सर्वदलीय बैठक बुलाई है। पंजाब से प्रकाश सिंह बादल के पुराने साथी और अब शिरोमणि अकाली दल से नाता तोड़ चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींडसा को विधिवत पत्र भेजकर आमंत्रित किया गया है। वह बड़े कद के टकसाली अकाली सियासतदान हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार शिअद व सुखबीर बादल को इस बाबत कोई औपचारिक चिट्ठी नहीं भेजी गई। सुखबीर सिंह बादल ने खुद इसकी तस्दीक की है।
इससे साफ यह भी होता है कि पंजाब में अगर सुखबीर बादल की अगुवाई वाले शिरोमणि अकाली दल के साथ भाजपा का गठबंधन नहीं होता तो बड़ा कद रखने वाले सुखदेव सिंह ढींडसा को पूरी तरह साथ लेकर चला जाएगा। बीबी जागीर कौर को भी जिनका कई इलाकों और महिलाओं में अपना जन-प्रभाव है। बीबी जागीर कौर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की तीन बार प्रधान और विधायक तथा मंत्री रही हैं। कुछ महीने पहले ही उन्होंने नाराजगी के साथ बादलों की अगुवाई वाले अकाली दल को छोड़ दिया था। अभी तक उन्होंने न अपना कोई दल बनाया है और न ही किसी अन्य पार्टी में शुमार हुईं हैं। सूत्रों के मुताबिक भाजपा ने जरूर डोरे डाले लेकिन बीबी जागीर कौर ने भगवा में रंगना नामंजूर किया।
प्रकाश सिंह बादल के दिवंगत हो जाने के बाद शिरोमणि अकाली दल में भीतर ही भीतर कई परिवर्तन हुए हैं। शिअद अब पूरी तरह से सुखबीर बादल और उनकी पत्नी पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के भाई विक्रमजीत सिंह मजीठिया के हाथों में है। सरगोशियां हैं कि इस सबके चलते प्रकाश सिंह बादल के पुराने साथी और टकसाली अकाली मन से सुखबीर सिंह बादल और बिक्रमजीत सिंह मजीठिया के कई एकतरफा फैसले बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। सुखबीर और मजीठिया के खिलाफ बाकायदा एक कॉकस उभर रहा है जो जल्द ही सामने आ जाएगा।
नए हालात के मद्देनजर सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई वाले शिरोमणि अकाली दल में बगावत तय है। यकीनन पार्टी इससे और ज्यादा कमजोर ही होगी। शिरोमणि अकाली दल का भीतरी या बाहरी संकट दरअसल आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को अलग-अलग ढंग से फायदे ही देगा। यूसीसी पर शिरोमणि अकाली दल ने आंदोलन की बात भी कही है। आंदोलन अगर होता है तो पार्टी की मौजूदा ताकत का अंदाजा खुद-ब-खुद हो जाएगा।
जो हो, सुखबीर सिंह बादल का समान नागरिक संहिता की खिलाफत में इस मानिंद मुखर होना भाजपा के लिए भी कहीं न कहीं परेशानी का सबब तो है ही। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ अकाली-भाजपा गठबंधन टूटा था। हालांकि मंत्रिमंडल में रहते हुए पहले हरसिमरत कौर बादल ने इन काले कानूनों का बतौर मंत्री समर्थन किया था। किसान और ग्रामीण पंजाब, शिरोमणि अकाली दल का हर लिहाज से गढ़ रहे हैं। वहां से मुखालफत बढ़ी तो हरसिमरत कौर बादल ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया और बरसों पुराना गठबंधन चंद पलों में टूट गया।
सर्वविदित है कि यूसीसी का मसला नहीं खड़ा होता तो प्रकाश सिंह बादल की मृत्यु के बाद अकाली-भाजपा गठबंधन फिर से हो जाना था। समान नागरिक संहिता को आज नरेंद्र मोदी सरकार किसी बड़े विकल्प के चलते फौरी तौर पर ठंडे बस्ते में डाल देती है तो कुछ दिनों में ही अकाली-भाजपा गठबंधन वजूद में आ जाएगा। यह निश्चित है।
(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)