फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट: नूंह में हुई सांप्रदायिक हिंसा पूरी तरह से राज्य प्रायोजित

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नई दिल्ली। पिछले रविवार, 20 अगस्त को दिल्ली से प्रगतिशील जनसंगठनों से जुड़ी एक फैक्ट फाइंडिंग टीम मेवात गई थी, जिसमें समाजवादी लोकमंच से धर्मेन्द्र आज़ाद, न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव से स्वदेश सिन्हा, जनाधिकार संघर्ष दल से अश्विनी कुमार सुकरात तथा नदीम प्रमुख शामिल थे। इन्होंने हरियाणा में मेवात के नूंह जिले में उन इलाकों का दौरा किया, जहां 31 जुलाई को हिन्दुओं के एक जुलूस पर कथित रूप से मुसलमानों ने हमला किया था, जिसमें दो होमगार्डों सहित सात लोगों की मृत्यु हो गई थी तथा कुछ पुलिसकर्मी सहित अनेक लोग घायल भी हुए और अनेक वाहनों में आग लगा दी गई।

इस संबंध में टीम ने विस्तार से हिन्दू-मुसलमानों से बात की तथा उन इलाकों और गांवों में गई, जहां पर आज भी उस घटना को लेकर मुस्लिम युवकों की गिरफ़्तारियां हो रही हैं। उस घटना का विवरण कुछ इस प्रकार है- 31 जुलाई को नूंह के नल्हड़ मंदिर से विश्व हिन्दू परिषद और मातृशक्ति दुर्गावाहिनी की तरफ़ से एक कलश यात्रा फिरोज़पुर झिरका की तरफ़ रवाना हुई थी, जैसे ही वह यात्रा तिरंगा पार्क के पास पहुंची, वहां एक‌ समुदाय के लोग पहले से जमा थे। उनके आमने-सामने आते ही दोनों गुटों में टकराव हुआ और इसके बाद आगज़नी शुरू हुई, जिसमें कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया।

नूंह के फिरोज़पुर झिरका में रहने वाले डॉक्टर अशफा़क आलम;‌ जो एक डॉक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं तथा ‘मेवात विकास मंच’ के बैनर‌ तले हमेशा उस क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए संघर्षरत रहते हैं। टीम की इस यात्रा में उनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। हमने उनके साथ नूंह में विभिन्न हिन्दू-मुस्लिम तबकों से मुलाक़ात की, जिससे एक बात निकलकर सामने आई, कि 31 जुलाई को निकलने वाली यात्रा में करीब 4-5 हज़ार लोग थे, सभी बाहर से आए थे और तलवार-डंडे आदि से लैस थे।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है, कि ब्रजमंडल यात्रा जिस शिव मंदिर से निकली थी, उसके बारे में विश्व हिन्दू परिषद तथा अधिकांशतः मीडिया यह बता रहा है, कि यह मंदिर बहुत अधिक प्राचीन और पांडव कालीन है, परन्तु उस मंदिर में पहुंचकर टीम के सदस्यों ने देखा, कि मंदिर मात्र दस वर्ष पूर्व निर्मित दिखाई देता है। मंदिर के परिसर में भारी मात्रा में पुलिस के जवान रह रहे हैं तथा वे दिल्ली से आए किसी भी मीडिया वाले या किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता को मंदिर में प्रवेश करने नहीं दे रहे थे। बहुत मुश्किल से टीम के सदस्य मंदिर में प्रवेश कर पाए, हालांकि पुलिस लगातार गिरफ़्तार करने की धमकी दे रही थी।

नूंह में लोगों ने बताया कि यहां पर दंगों की रूपरेखा बहुत पहले से ही बनाई जा रही थी। वहीं का एक कथित गौरक्षक मोनू मानेसर तथा उसके साथ बजरंग दल से जुड़े कुछ लोग; जिनके बारे में बताया जाता है कि वे लोग ख़ुद गौ-तस्करी से जुड़े हैं, उनके ऊपर अनेक कथित गौ-तस्कर मुस्लिम युवकों की हत्या का आरोप है। उसने कुछ दिन पहले वीडियो वायरल किया, जिसमें उसने खुले तौर पर चुनौती दी, कि “वह इस कलशयात्रा के दौरान मेवात में रहेगा।” इस कारण से वहां का वातावरण पहले से ही तनावपूर्ण था।

कुछ लोगों ने यह बताया कि उस भीड़ ने कलश यात्रा में मोनू मानेसर को उसके साथियों के साथ देख लिया, वे तलवारें लहराते हुए भड़काऊ नारे लगाए जा रहे थे। इसी सबको लेकर नूंह शहर के पास गुरुग्राम-अलवर राष्ट्रीय राजमार्ग पर जमकर बवाल हुआ। बवाल के दौरान गोलीबारी से लेकर आगज़नी तक की घटना हुई। कई सरकारी वाहनों में तोड़-फोड़ की गई तथा कुछ निजी वाहनों को भी निशाना बनाया गया। नूंह में लोगों का कहना है, कि “इस शिवमंदिर में सावन के महीने में स्थानीय हिन्दू लोग आते हैं और जलाभिषेक करते हैं, लेकिन यहां पर कलश यात्रा जैसी कोई परम्परा कभी नहीं रही है।”

वहां पर कुछ लोगों का यह भी कहना था, कि “कलश यात्रा में ढेरों नक़ाबपोश लोग भी आए थे, जिन्होंने पहले दंगे की शुरुआत की। जब मोनू मानेसर के भड़काऊ वीडियो आ रहे थे, तब उस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई और उसे नूंह आने से क्यों नहीं रोका गया?” इस दंगे का एक प्रमुख किरदार बिट्टू बजरंगी भी है, जिस पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज़ हैं। पुलिस ने उसे दंगे के आरोप में गिरफ़्तार भी किया है। लेकिन अब पुलिस कह रही है, कि “उसे पुलिस अधिकारियों से बदसलूकी तथा भड़काऊ पोस्ट लिखने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया, न कि दंगे के आरोप में।”

उसके बारे में लोगों ने बताया कि “बिट्टू और उसके साथी भारी मात्रा में हथियार लेकर कलश यात्रा में जा रहे थे, पुलिस ने जब उन्हें रोका तथा हथियार ज़ब्त करने की कोशिश की, तब उन सभी ने पुलिस से मारपीट करके अपने हथियार वापस छीन लिए। पुलिस के अधिकारी कह रहे हैं,”वह दंगे का अपराधी नहीं है, लेकिन क्या यह अपराध नहीं है?”

नूंह हिंसा के बाद यह सबसे दुखद प्रकरण; बेगुनाह लोगों की गिरफ़्तारियां एवं अवैध रूप से बहुसंख्यक मुस्लिम लोगों के घरों-दुकानों को बुलडोजर से ध्वस्त करने का अभियान है। टीम ने देखा,कि नूंह के शहरी इलाकों में जिन मुस्लिमों के घर और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ा गया, उन सभी का दंगे से कुछ भी लेना-देना नहीं था। वहीं पर लोगों ने बताया- “जब हाईकोर्ट में मुस्लिमों के घर तोड़ने की बात उठी, तो वहां से 35 किलोमीटर दूर फिरोज़पुर झिरका में पहाड़ की तलहटी में जंगली इलाके के आसपास करीब 40-50 घरों को गिरा दिया गया, जो कई पीढ़ियों से वहां रह रहे थे, जिसमें हिन्दू-मुसलमान दोनों थे।

इनमें पिछड़ी जातियों के कोली और गुर्जर भी थे, जो अत्यन्त गरीबी की अवस्था में बकरी पालन और खेतिहर मज़दूरी के द्वारा अपना जीवन यापन करते हैं। इन लोगों के घर केवल दो घंटे की नोटिस में सुबह-सुबह गिरा दिए गए। उन्हें अपना सामान तक निकालने का मौका नहीं मिला और अनाज सहित सारा सामान मलबे में दबा पड़ा है। इन लोगों ने टीम के सदस्यों को बताया,”हम लोग कई पीढ़ियों से यहां रहते आए हैं, बिजली का बिल भी देते रहे हैं। वन विभाग की ज़मीन पर बसे होने के मुकदमे का स्टे 2019 में ही मिल गया था, फिर एकाएक घरों का ध्वस्तीकरण समझ से परे है।”

ये लोग अपनी जीविका चलाने में ही इतने व्यस्त रहते हैं, कि दंगे में भागीदारी की बात तो दूर इसके बारे में भी उन्हें बहुत कम जानकारी है। उन्हें इस अमानवीय दशा में जंगल में अपने टूटे घरों के पास रहते हुए देखकर किसी का भी दिल दहल सकता है। उन्होंने बताया-“प्रशासन या कोई भी हिन्दूवादी संगठन उनकी मदद के लिए अभी तक नहीं आया है, केवल जमाते-इस्लामी के लोग एक-दो बार आकर कुछ अनाज आदि दे गए हैं।”

यह घटना यह बतलाती है, कि अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कोई भी फासीवादी सरकार कितना नीचे गिर सकती है। इस टीम के सदस्यों ने कुछ उन गांवों का दौरा किया, जहां पर मुस्लिम युवक दंगे के आरोप में गिरफ़्तार किए गए थे। इसमें एक नेवली गांव है, जहां पर एक ही परिवार से करीब 9-10 युवकों को गिरफ़्तार किया गया था। ये गिरफ़्तारियां एक विशेष पैटर्न को दिखाती हैं। जिन परिवारों से इन्हें गिरफ़्तार किया गया, वे सभी कांग्रेसी हैं। दूसरे एक गांव में जहां एक भाजपा का मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़ा था, पर जीत नहीं पाया था, वहां से किसी को गिरफ़्तार नहीं किया गया।

एक युवक के बारे में लोगों ने बताया कि वह दंगे के समय हज़ करने गया था, लेकिन लौटने पर उसे दंगे का आरोपी बताकर गिरफ़्तार कर लिया गया। कुछ युवक फरीदाबाद, गुरुग्राम और दिल्ली में नौकरी करते हैं, वे भी वहां पर उस समय मौज़ूद नहीं थे, लेकिन उन्हें भी दंगे का आरोपी बताकर गिरफ़्तार किया गया। सम्भव है कि लम्बी कानूनी प्रक्रिया में वे लोग छूट भी जाएं, परन्तु बेहद ग़रीब इलाकों में रहने वाले वे लोग मुक़दमे के लिए हमेशा चंडीगढ़ आने-जाने का ख़र्च तक उठाने में सक्षम नहीं हैं।

गांव के लोगों का कहना था, सम्भव है कि “उन्हें मुक़दमे के लिए अपनी ज़मीनें तक बेचनी पड़ें।” उन गांवों में लोगों से बातचीत करने पर पता लगा, कि वहां पर हिन्दू-मुस्लिम तनाव जैसा कुछ भी नहीं है। हिन्दू-मुस्लिम सभी शादी-विवाह और सुख-दु:ख में आपस में मिल जुलकर रहते हैं। वहां पर ढेरों लोगों ने सुदर्शन न्यूज़ चैनल के बारे में बताया, जो लम्बे समय से मेवात के मुस्लिमों की ग़लत छवि पेश करता रहा है। वहां हुए दंगे के बाद उसने कई लोगों के भड़काऊ वीडियो भी अपने चैनल पर दिखाए, बाद में इस चैनल के एक रिपोर्टर मुकेश कुमार को गिरफ़्तार भी किया गया।

लेकिन मुकेश कुमार के ख़िलाफ़ गुरुग्राम पुलिस ने कथित तौर पर फेक न्यूज़ फैलाने और धार्मिक शत्रुता को बढ़ावा देने के आरोप में एफआईआर भी दर्ज़ की गई थी, लेकिन मुकेश कुमार को जल्दी ही ज़मानत मिल गई तथा भाजपा सरकार ने गुरुग्राम की पुलिस आयुक्त (कमिश्नर ऑफ पुलिस) कला रामचन्द्रन का तबादला कर दिया। लोग इस तबादले को रिपोर्टर की गिरफ़्तारी से जोड़ रहे हैं, लेकिन सरकार इंकार कर रही है, इन सबने भी नूंह में दंगा भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अंत‌ में इस टीम का यह निष्कर्ष है, कि हरियाणा का मेवात इलाका; जिसमें नूंह जिला स्थित है, वह हरियाणा का सबसे ग़रीब जिला है, वहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, पशुपालन और दूध का व्यवसाय है। चारों ओर से अरावली की पहाड़ियों से घिरा होने के कारण खेती लायक ज़मीन बहुत कम है तथा सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं है। उस इलाके के गांव में जाने पर पता लगा, वहां पर साफ़-सफ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं है और सड़कें इतनी ख़राब हैं कि वहां पर पहुंचना बहुत मुश्किल है।

वहां पर अनेक लोगों ने बताया कि भाजपा शासन के दौरान जिस तरह वहां के मुस्लिम युवकों को गौ-तस्करी के झूठे आरोप में फंसाया जा रहा है, उसके कारण बहुत से लोग गाय पालन का व्यवसाय छोड़ रहे हैं। इन सब आर्थिक कारणों से भी बहुत से युवक अपराध की ओर मुड़ रहे हैं, जिनकी उस दंगे में भागीदारी से इंकार नहीं किया जा सकता है।

यहां साक्षरता की दर बहुत कम है। सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की नियुक्ति बहुत कम है। इस विषय के जानकार ने टीम को बताया, कि वहां करीब 55 सरकारी स्कूलों के पास अपना कोई भवन नहीं है, वे महज़ कागज़ों पर ही चल रहे हैं। यही सब कारण है, कि वहां पर दंगों की ज़मीन हमेशा तैयार रहती है। हालांकि व्यापक दंगे कराने की योजना सफल नहीं हो सकी,परन्तु शहरी इलाकों में हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण साफ़ दिखाई देता है।

नूंह में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और वहां पर हिन्दू-मुस्लिम के बीच कोई बड़ा विवाद कभी नहीं हुआ। नूंह का दंगा पूरी तरह से सुनियोजित था और उसकी भूमिका लम्बे समय से बनाई जाती रही है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ख़ुद कह रहे हैं, कि यह दंगा पूर्वनियोजित था। घटनाएं यह बता रही हैं, कि देश और हरियाणा का सत्ताधारी दल वहां की घटनाओं की साज़िश में ख़ुद भी शामिल है तथा ये लोग 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर समाज में ध्रुवीकरण करने के लिए गुजरात की तरह समूचे मेवात को हिन्दूवादी फासीवाद की प्रयोगशाला बनाना चाहते हैं।

(स्वदेश कुमार सिन्हा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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