दलहन और कपास की फसल पर प्रस्तावित एमएसपी की जमीनी हकीकत क्या है?

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यह हकीकत है कि पानी की कमी से जूझ रहे पंजाब के लिए फसलों के विविधीकरण को अमली जामा पहनाना आज के दिन एक बड़ी जरूरत बन गया है। लेकिन पिछले कुछ दशकों के दौरान राज्य में दालों, कपास एवं मक्के के उत्पादन और खरीद में काफी कमी आ चुकी है। ऐसे में अपेक्षाकृत बेहद छोटे रकबे में इन फसलों के उत्पदान का अर्थ हुआ कि अगले 5 वर्षों में केंद्र पर इन फसलों पर न के बराबर बोझ पड़ने जा रहा है। आइए देखते हैं कि पंजाब में खेतीबाड़ी की क्या स्थिति है और क्यों किसान संगठन एक बार फिर से दिल्ली चलो के नारे के साथ कल से बड़ी मोर्चेबंदी की तैयारियों में जुट गये हैं।

रविवार को आधी रात तक प्रदर्शनकारी किसानों के साथ चली चौथे दौर की बातचीत के दौरान केंद्र की ओर से पंजाब के किसानों के लिए फसल विविधीकरण का प्रस्ताव पेश किया गया था। इस प्रस्ताव के तहत सरकार समर्थित सहकारी समितियों की ओर से पांच फसलों की खरीद के लिए पांच वर्ष के अनुबंध की पेशकश रखी गई थी। इनमें तुअर, उड़द और मसूर दाल के साथ-साथ मक्का और कपास पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने पर केंद्र राजी हो गया था।

खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने संवाददाताओं से अपनी बातचीत में कहा कि एक “बेहद इन्नोवेटिव, आउट-ऑफ-द-बॉक्स आईडिया” के तहत, नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनसीसीएफ), नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NAFED) और कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया भारत (सीसीआई) के द्वारा इन फसलों को “जितना भी उत्पादित होगा” सारे उत्पाद की खरीद की जायेगी।

लेकिन सोमवार शाम होते-होते किसानों ने, जिनकी ओर से देश भर में पैदा की जाने वाली सभी फसलों पर फसलों की कीमतों के निर्धारण के लिए डॉ स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट की सिफारिश और देश भर में उत्पादित होने वाली सभी फसलों के लिए एमएसपी की क़ानूनी गारंटी की मांग की जा रही थी, ने केंद्र के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इस प्रकार, किसान संगठन बुधवार की सुबह 11 बजे से एक बार फिर ‘दिल्ली चलो’ नारे के साथ विरोध प्रदर्शन की तैयारियों में जुट गये हैं। 

पंजाब में फसल विविधीकरण पर केंद्र सरकार का जोर क्यों है?

पंजाब के कुल भौगोलिक क्षेत्र में से 80% से अधिक (50.33 लाख हेक्टेयर में से 41.17 लाख हेक्टेयर) हिस्से में खेती की जाती है। इसमें भी सबसे अधिक चावल और गेहूं की खेती की जा रही है। वर्ष 2019-20 के दौरान खेती के लिए कुल उपलब्ध 41.17 लाख हेक्टेयर भूमि में से 35.21 लाख हेक्टेयर पर गेहूं की खेती की गई, जबकि 31.42 लाख हेक्टेयर पर धान की खेती की गई थी।

केंद्र की ओर से प्रस्तावित 5 फसलों की इसमें हिस्सेदारी न के बराबर थी। 2019-20 में कपास के लिए 2.48 लाख हेक्टेयर, मक्के की खेती के लिए 1.14 लाख हेक्टेयर और दालों (खरीफ और रबी दोनों) के लिए मात्र 33,000 हेक्टेयर भूमि को खेती के लिए इस्तेमाल किया गया था।

धान में पानी की खपत बहुत ज्यादा होती है। 1 किलो चावल का उत्पादन करने के लिए करीब 2,500 लीटर (सिंचाई या बरसात) की आवश्यकता होती है, और चावल की खेती की वजह से राज्य में भूजल का वृहद पैमाने पर अंधाधुंध दोहन हुआ है, जिसकी वजह से आज पंजाब बड़े पैमाने पर मरुस्थलीकरण की ओर अग्रसर है।

पंजाब में फसल विविधीकरण के प्रयास चले हैं, लेकिन अभी तक इसके वांछित परिणाम नहीं मिल सके हैं। उल्टा, 2017-18 में कपास का रकबा जहां 2.91 लाख हेक्टेयर हुआ करता था, वह 2021-22 में घटकर 2.51 लाख हेक्टेयर रह गया था। इसी तरह मक्के की खेती (पंजाब में ख़रीफ़ की फसल) में भी 2017-18 के 1.14 लाख हेक्टेयर की खेती से घटकर 2021-22 में क्षेत्रफल 1.05 लाख हेक्टेयर रह गया। हालांकि दलहन में 2017-18 में जहां 30,2000 हेक्टेयर में खेती की जा रही थी, वह 2021-22 में बढ़कर 62,600 हेक्टेयर हो गई थी।

सरकार द्वारा प्रस्तावित तीन दालों पर एमएसपी को उगाने वाले राज्य कौन-कौन हैं?

देश में दालों का उत्पादन करने वाले ऐसे चंद राज्य हैं, जो आधे से भी अधिक हिस्सा उगा रहे हैं। दलहन पर एमएसपी इन राज्यों को चाहिए, लेकिन सरकार का प्रस्ताव पंजाब के किसानों के लिए है। भारत में 95% मसूर दाल के उत्पादन के लिए मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड जिम्मेदार हैं। जहां तक तुअर (अरहर) दाल के उत्पादन का प्रश्न है, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात और झारखंड राज्य 80% अरहर का उत्पादन करते हैं। उड़द दाल के उत्पादन में 75% हिस्सेदारी सिर्फ मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र निभाते हैं। पंजाब इनमें कहीं पर नहीं ठहरता, लेकिन एमएसपी के लिए पंजाब को प्रस्तावित किया जाता है। 

यह भी सच है कि भारत दलहन के क्षेत्र में अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में विदेशों से आयात पर निर्भर है। वर्ष 2021-22 में दलहन का कुल उत्पादन 27.69 मिलियन टन ही था। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने 2027 तक दाल के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए दाल की खरीद पर इंसेंटिव (एमएसपी में वृद्धि), मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) एवं मूल्य स्थिरीकरण फंड (पीएसएफ) जैसी पहल के जरिये खरीद के द्वारा दलहन के उत्पादन को बढ़ावा दिए जाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

सरकार कुल कितनी मात्रा में दालों एवं कपास की खरीद करती है?

केंद्र के द्वारा कुल 22 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा की गई है, लेकिन खरीद सिर्फ कुछ फसलों तक ही सीमित है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के द्वारा अनाजों में मुख्यतया गेहूं और धान की खरीद की जाती है, जबकि नैफेड (NAFED) के द्वारा मुख्य रूप से दलहन और तिलहन की खरीद की जाती है, और सीसीआई कपास की खरीद करने वाली संस्था है।

कपास: आधिकारिक आंकड़ों से जानकारी मिलती है कि पिछले तीन वर्षों से पंजाब में सीसीआई के द्वारा कपास की खरीद में वृद्धि हुई है, लेकिन कुल-मिलाकर आंकड़े अभी भी बेहद कम हैं। देश में सीसीआई के द्वारा की जाने वाली कुल कपास की खरीद में पंजाब की हिस्सेदारी करीब 5% ही है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि सीसीआई ने वर्ष 2021-22 के दौरान देश में कुल 91.90 लाख गांठ (प्रत्येक गांठ 170 किलोग्राम के बराबर) की खरीद की थी, जिसमें से अकेले आंध्र प्रदेश से 34.01 लाख गांठ कपास की खरीद की गई थी। पंजाब के हिस्से में यह आंकड़ा 2021-22 में मात्र 5.36 लाख गांठ था, जो कि 2020-21 के 3.58 लाख गांठ की तुलना में वृद्धि को दर्शाता है।

दालें: 2022-23 में, नैफेड के द्वारा PSS के तहत एमएसपी पर 29.64 लाख टन दाल की खरीद की गई थी, जिससे करीब 13.77 लाख किसानों को लाभ हुआ था, और इसी प्रकार PSF के तहत 57,754 टन दाल की खरीद हुई थी। नैफेड के द्वारा की गई कुल खरीद में सबसे बड़ा हिस्सा चने (84.59 लाख टन) का था, इसके बाद मूंग (12.59 लाख टन) की खरीद की गई थी।

विभिन्न फसलों के लिए एमएसपी की सिफारिश करने वाली संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने नेफेड के द्वारा दालों की खरीद को लेकर सवाल खड़े किये हैं, जो गौरतलब हैं।

‘रबी फसल विपणन सीज़न 2024-25 के लिए मूल्य नीति’ नामक अपनी रिपोर्ट में सीएसीपी का कहना है: “पिछले दो सीज़न के दौरान चने की फसल में रिकॉर्ड उत्पादन और बाजार में बेहद कम दाम पर बिकने की वजह से सरकार ने 2022-23 में 25.6 लाख टन और वर्ष 2023-24 में 1 जून 2023 तक 22.3 लाख टन चने की खरीद मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत की। दालों की कुल खरीद भी 2021-22 के लगभग 29.6 लाख टन से बढ़कर 2022-23 में करीब 30.2 लाख टन हो गई। लेकिन चूंकि पीएसएस के तहत खरीदी गई दालों के निपटान के लिए कोई सुनिश्चित तंत्र तैयार नहीं किया गया है, जिसकी वजह से नेफेड ने खुले बाजार में एमएसपी से बेहद कम कीमत पर दालों की बिकवाली कर स्टॉक का निपटान कर दिया था।”

सीएसीपी के मुताबिक, पीएसएस के तहत चने की दाल को वर्ष 2022-23 में दौरान 4,646 रुपये प्रति क्विंटल की दर से निपटान किया गया, जो असल में एमएसपी की तुलना में काफी कम थी। सीएसीपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि, “खुले बाजार में यदि एमएसपी से नीचे मूल्य पर दालों की बिक्री की जाती है तो इससे बाजार में कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, और इससे व्यापारी किसानों से सीधे खरीद करने से दूर बने रहते हैं।”

सीएसीपी के विचार में, “सरकार ने देश के जिन जिलों को आकांक्षी जिलों के तौर पर चिन्हित किया है, उन जिलों में यदि परिवारों को दालों का वितरण किया जाता है, तो इन क्षेत्रों में पोषण में सुधार के साथ-साथ बाजार में कीमतें प्रभावित हुए बगैर दाल के स्टॉक के निपटान में मदद मिल सकती है। नेफेड के द्वारा पीएएस के तहत की गई दाल की खरीद के स्टॉक का निपटान अभी भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है, क्योंकि खुले बाज़ार में नेफेड के परिचालन में नुकसान होना स्वाभाविक है।”

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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