एक कामेडियन को देश इतना पसंद क्यों कर रहा है?

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पिछले दो दिनों से स्टैंड अप कामेडियन कुणाल कामरा के रियलिटी शो के यूट्यूब पर जारी होने के बाद से इस कार्यक्रम को 41 लाख से अधिक लोग देख चुके हैं। भारतीय सोशल मीडिया के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है, जब दर्शक वीडियो लाइक करने के साथ-साथ बड़ी संख्या में कुणाल कामरा को आर्थिक तौर पर मदद भी कर रहे हैं। 

पैसों की बरसात हो रही है, भारत से ही नहीं दुनिया के कोने-कोने से डॉलर, पौंड और दिरहम में पैसे देकर इस प्रोग्राम को देखने वाले कुणाल कामरा की हिम्मत बढ़ाने का काम कर रहे। ऐसा जान पड़ रहा है, मानो जैसे लोगों को मुर्दाघर में कोई सच बोलने वाला इंसान नजर आ गया हो। 

एक टिप्पणी में एक प्रशंसक का कहना है, “जब पत्रकार कॉमेडी करने लगे तब कॉमेडियन को पत्रकार बनना पड़ता है। आपकी हिम्मत को सलाम।” वहीं एक अन्य दर्शक ने लिखा है, “ब्रो, आप सच में बेहद हिम्मती हो, ईश्वर आपकी रक्षा करे। एक कॉमेडियन के रूप में आप सच में एक वास्तविक राजनीतिक कार्यकर्ता हो। मैं कल्पना कर सकता हूँ कि आपके वकीलों को काफी काम करना पड़ रहा होगा।”

एक अन्य दर्शक की टिप्पणी है, “मुझे हिंदी समझ नहीं आती। अगर कुछ बीजेपी के गुंडे आपके खिलाफ हैं, तो आप एक अच्छे इंसान होंगे जो अपने होशो-हवास में सच बोलते होगे।” 

ऐसी हजारों टिप्पणियाँ और कुणाल कामरा की दिलेरी को लेकर बधाइयों का तांता उनके इस यूट्यूब लिंक और सोशल मीडिया में देखा जा सकता है। मौजूदा निजाम ने देश की जैसी हालत बना डाली है, उसमें स्टैंडअप कॉमेडियन आज प्रतिरोध का नायक बनकर उभरा है, क्योंकि विरोध की किसी भी उम्मीद को खत्म कर दिया गया है।     

इस पहलू को देखना इसलिए आवश्यक है क्योंकि दक्षिणपंथी मीडिया या लेफ्ट-लिबरल मीडिया भी इस पूरे घटनाक्रम से जो तस्वीर पेश कर रही हैं, उसमें शिवसेना के गुंडों की हिंसा, तोड़फोड़ और धमकियों को ही प्रमुखता दी जा रही है। शिवसेना और बीजेपी का इकोसिस्टम पूरी मुस्तैदी के साथ यह साबित करने पर तुला हुआ है कि एक स्टैंड अप कॉमेडियन हमारे नेता को गद्दार कहेगा तो हम किसी भी हद तक जा सकते हैं।

कल दिन भर चर्चा इसी बात को लेकर थी कि शिवसेना (शिंदे) के नाराज कार्यकर्ताओं ने उस स्टूडियो के भीतर घुसकर तोड़फोड़ की जहां कुणाल कामरा ने अपना कॉमेडी शो आयोजित किया था। खार स्थित द यूनिकॉन्टिनेंटल थियेटर से कुणाल कामरा का कोई लेनादेना नहीं था, लेकिन सत्ता का नशा और गुंडागर्दी कर अपने बाहुबल का प्रदर्शन करना हमारे देश की राजनीति का अंग बन चुका है, इसलिए सेना के कार्यकर्ता बेख़ौफ़ इसे अंजाम देते रहे।

लेकिन हद तो तब हो गई जब बीएमसी (मुंबई महानगरपालिका) का स्टाफ हथौड़ा लेकर द यूनिकॉन्टिनेंटल पर आ धमका, और बीएमसी के नक्शे से इतर निर्माण के नाम पर कार्रवाई करने लगा। 

यानि, परसों शाम इस कार्यक्रम को यूट्यूब के माध्यम से जारी किया गया, और इसके 24 घंटे के भीतर शिवसेना की ओर से तोड़फोड़ और मारपीट करने की धमकी और शाम तक मुंबई महानगरपालिका एक्शन मोड में आ जाती है। और यह सब किसके खिलाफ? एक स्टैंडअप कॉमेडियन के खिलाफ, जिसने अपने शुरूआती वक्तव्य में जून 2024 में बीजेपी के 400 पार के बजाय 239 लोकसभा सीट पर सिमट जाने को मुद्दा बनाया है।

पूरे 45 मिनट का यह शो सिर्फ शिवसेना या उसके नेता एकनाथ शिंदे को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया था, लेकिन सारा गुस्सा सिर्फ शिवसेना के लोगों का ही फूटा दिख रहा है। असल में इसकी भी समीक्षा होनी चाहिए। 

इस बात को अब 3 वर्ष बीत चुके हैं, जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों के बड़े हिस्से ने बीजेपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना डाली। उस वक्त राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महाविकास अघाड़ी की सरकार थी। शिंदे के साथ पहले ये विधायक गुजरात गये और बाद में कई दिनों तक भाजपा के एक अन्य राज्य असम में बने रहे। 

जब तक शिवसेना (शिंदे) के नेतृत्व में महायुती सरकार चली, ऐसा कोई दिन नहीं रहा होगा जब उद्धव ठाकरे गुट के नेताओं ने शिंदे गुट को गद्दार और 50 खोखे की बात न की हो। यहां तक कि एकनाथ शिंदे की तरह प्रदेश के दूसरे उप-मुख्यमंत्री, अजित पवार ने भी तब एक सार्वजनिक सभा में “50 खोखे एकदम ओके और गद्दार” की बात को सार्वजनिक मंच से कहा था। 

शिंदे गुट के नेताओं और कार्यकर्ताओं को संजय राउत, उद्धव ठाकरे या अजित पवार के बयानों पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन कुणाल कामरा की स्टैंड अप कामेडी से उनकी भावनाएं आहत हो जाती हैं। शायद यह आहत भावना वैसी ही है, जो उत्तरभारत में गौ हत्या की झूठी अफवाह पर भी आहत हो जाती है, लेकिन गोवा या सिक्किम  जैसे उत्तर पूर्व के राज्यों में लजाने लगती है। 

महाराष्ट्र प्रशासन के द्वारा आनन-फानन में कार्यक्रम स्थल को बुलडोज करने की पहल ठीक उस दिन हुई है, जिस दिन महाराष्ट्र के ही एक ऐसे ही मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कार्यपालिका को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि बगैर आरोपी पक्ष को 15 दिन का नोटिस दिए और बचाव का समय दिए, प्रशासन ऐसी कोई भी कार्रवाई को अंजाम नहीं दे सकता। यदि ऐसे मामले में प्रशासन दोषी पाया गया तो ऐसे अधिकारियों को अपनी जेब से पुनर्निर्माण कराना होगा। देखना है इस मामले में कोर्ट दिशानिर्देश से आगे बढ़ने का उपक्रम करेगी या नहीं। 

शिवसेना की आक्रामकता की एक वजह और बताई जा रही है। असल में शिंदे गुट विधानसभा चुनाव के बाद से ही सरकार में शामिल होने के बावजूद खुद को ठगा महसूस कर रही है। एकनाथ शिंदे को पूरा भरोसा था कि गृह मंत्री अमित शाह और देवेंद्र फडनवीस के बीच छत्तीस के आंकड़े की वजह से चुनाव बाद उन्हें ही दोबारा मुख्यमंत्री बनने का आधार तैयार करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उल्टा धीरे-धीरे देवेंद्र फडनवीस और भाजपा की प्रदेश सरकार पर पकड़ मजबूत होती जा रही है।

इतना ही नहीं अजित पवार मजबूती से सरकार के पक्ष में खड़े हैं, और साथ ही उद्धव ठाकरे और शरद पवार गुट से भी देवेंद्र फडनवीस के मित्रवत संबंध शिंदे को अलग-थलग करते जा रहे हैं।

लोकसभा चुनाव में महायुती को मिली करारी हार के बाद एकनाथ शिंदे सरकार ने महिलाओं के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा कर राज्य की फ़िजा को काफी हद तक बदल दिया था। लेकिन सरकार बनने के बाद जिस तरह से आज शिंदे की सेना को दोयम स्थिति में धकेले जाने की शुरुआत हो चुकी है, उसे देखते हुए एकनाथ शिंदे के कमजोर पड़ते जाने की आशंका है।

ऐसे में, कुणाल कामरा के शो ने शिवसैनिकों की हताशा को अचानक से हवा दे दी। ऐसा करने के पीछे भी बीएमसी चुनाव में अपना रौब-दाब दिखाने की कोशिश नजर आती है, जैसा कि कभी बाल ठाकरे के जमाने में शिवससैनिकों की पहचान बन गई थी। 

यहां पर भाजपा बेहद चतुराई से अपना दांव खेलती नजर आ रही है। कल पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने कॉमेडियन कुणाल कामरा के द्वारा अपने डिप्टी एकनाथ शिंदे के ऊपर की गई कथित अपमानजनक टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कामरा को अपनी घटिया स्तर की कॉमेडी के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए। फडनवीस का कहना था, “हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं, लेकिन लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कामरा को अपनी निम्न स्तरीय कॉमेडी के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए।”

फडनवीस ने इस मुद्दे को हवा देते हुए कहा था कि कुणाल कामरा को इस तथ्य से अवगत होना चाहिए कि महाराष्ट्र की जनता ने बता दिया है कि कौन गद्दार है और कौन खुद्दार है? यह शिंदे जी हैं जो वास्तव में बालासाहेब ठाकरे की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।” 

बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस की इस टिप्पणी के फ़ौरन बाद ही शिवसेना कार्यकर्ता होटल यूनिकॉन्टिनेंटल में इकट्ठा हो गये, जिसमें यह हैबिटेट स्टूडियो है, और उन्होंने स्टूडियो और होटल परिसर में तोड़फोड़ शुरू कर दी थी। बाद में, शिवसेना विधायक मुरजी पटेल ने कुणाल कामरा के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। महाराष्ट्र पुलिस ने शिवसैनिकों के खिलाफ भी तोड़फोड़ का आरोप दर्ज कर कम से कम 40 शिवसेना कार्यकर्ताओं पर मामला दर्ज किया, लेकिन कुछ देर बाद ही उन्हें जमानत मिल गई।

देश में कानून और न्यायालय जहां का तहां पड़ा हुआ है, लेकिन सत्ताधारी दल खुलेआम कुणाल कामरा को देख लेने की धमकी दे रहे हैं। शिवसैनिक साफ़ कहते सुने जा सकते हैं कि वे कुणाल कामरा को देश में कहीं भी नहीं छोड़ेंगे। महाराष्ट्र में जगह-जगह कामरा के पुतले जलाकर शिवसेना कार्यकर्ता अपने नेता की हताशा का इजहार करते देखे जा सकते हैं। 

इस बीच, जया बच्चन और उद्धव ठाकरे सहित कुछ राजनीतिज्ञों के सिवाय कुणाल कामरा के पक्ष में किसी भी अन्य दल के नेता ने बयान नहीं दिया है। सबकी चिंता में अपने-अपने मुद्दे और पोजीशन प्रमुख बना हुआ है। नागपुर हिंसा में महाराष्ट्र पुलिस ने जिसे दोषी माना, उसके घर को बुलडोज किया जा चुका है। न्यायपालिका की भूमिका महज दिखावटी दिशानिर्देश से आगे नहीं बढ़ रही। कुणाल कामरा के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन और हैबिटेट स्टूडियो में तोड़फोड़ और बीएमसी की कार्रवाई साफ़ संकेत दे रही है कि जिस बुलडोजर जस्टिस को यूपी में मुस्लिमों के खिलाफ इस्तेमाल करने के साथ शुरू किया गया था, अब इसे अपने राजनीतिक विरोधियों पर भी आजमाया जा सकता है।  

अच्छी बात सिर्फ यह है कि कुणाल कामरा ने अपने स्टैंड अप कॉमेडी शो में दिए गये वक्तव्यों पर माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया है। उन्हें दुःख है कि उनकी वजह से हैबिटेट स्टूडियो में तोड़फोड़ हुई, जिसके मालिक का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कामरा ने ऐलान किया है कि अपनी अगली परफॉरमेंस के लिए वे एलफिंस्टन ब्रिज या मुंबई में कोई ऐसी जगह को चुनना पसंद करेंगे, जिसे ढहाने की सख़्त ज़रूरत है।

कुणाल कामरा ने अपने प्रोग्राम में जिन गीतों की पैरोडी सुनाई है, उसमें से द इंटरनेशनल के थीम सांग के हिंदी तर्जुमे पर जो परोडी बनाई थी, उसके वीडियो को एडिट कर स्टूडियो के भीतर शिवसैनिकों की गुंडागर्दी को दर्शाया है। 

यह फासिस्ट तानाशाही, विकलांग विपक्ष और गोदी मीडिया के बीच आज की राजनीति को लेकर किया गया एक करारा व्यंग्य था, जिससे एक क्षेत्रीय दल आहत दिख रहा है, लेकिन जिसे आगे कर असल में बीजेपी-आरएसएस की शक्तियाँ अपना मकसद पूरा कर रही हैं। इस जद्दोजहद में कल यदि शिवसेना (शिंदे) का राजनीतिक वजूद जनता की निगाह में नीचे जाता है तो उसकी बला से। बीजेपी का तो काम बन गया, अब शिंदे की शिवसेना उसके लिए एक बोझ से ज्यादा कुछ नहीं, जिसका जितना इस्तेमाल हो सके, बेहतर है।  

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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