देश की राजनीति में फर्जी डॉक्टर की डिग्री लिए तो कई नेता घूमते नजर आपको मिल जायेंगे लेकिन देश की राजनीति से लेकर दुनिया के विद्वानों के बीच पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पहचान डॉक्टर के रूप में ही थी। वे वाकई में अर्थशास्त्र में डॉक्टर थे और इसके आगे वे नामी अर्थशास्त्री भी थे। जब 2008 में पूरी दुनिया रिसेशन के दौर से गुजर रहा था भारत तेजी से आगे बढ़ रहा था और दुनिया के लोग भारत की तरफ लालच भरी नजरों से देख रहे थे।
अमेरिका के बराक ओबामा उन्हें गुरु जी कहते थे और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए उनसे सहयोग मांगते नजर आते थे। और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग भी मनमोहन सिंह से मिलकर आह्लादित हुए बिना नहीं रहते थे। डॉक्टर साहब मौन साधे सबको कुछ न कुछ सीख दे जाते थे। सच तो ये है कि वे आकाश के समान थे लेकिन खुद झुककर चलते थे। शास्त्रों में कहा गया है कि विद्या ददाति विनयम। मनमोहन सिंह इस शास्त्रोक्ति के सच्चे बानगी थे। लेकिन अब वे नहीं रहे। इस संसार से विदा हो गए। इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए।
लेकिन जिस व्यक्ति ने देश को उदारीकरण, भूमंडलीकरण और निजीकरण से जोड़ा और विकास की गति को अंजाम दिया उसके पार्थिव शरीर के संस्कार के लिए मोदी सरकार ने जगह तक नहीं दिया। आजाद भारत का यह ऐसा खेल है जिसे दुनिया भी देख और सुनकर लज्जित हो रही होगी। सच यही है कि मोदी सरकार ने राजघाट समाधि क्षेत्र में मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए जगह देने से इनकार कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि डॉ. मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर किया जाए जहां उनका स्मारक बनाया जा सके। लेकिन सरकार ने मांग नहीं मानी। पूर्व पीएम का अंतिम संस्कार दिल्ली के निगम बोध घाट पर होना तय है और बड़ी बात तो यह है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसका आदेश भी दे दिया है।
जानकारी के मुताबिक शुक्रवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से फोन पर बात की और पत्र लिखकर अनुरोध किया कि डॉ. मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर किया जाए जहां उनका स्मारक बनाया जा सके। कांग्रेस ने एक्स पर पत्र साझा करते हुए कहा कि “आज कांग्रेस अध्यक्ष श्री खड़गे ने प्रधानमंत्री जी और गृह मंत्री से फ़ोन पर बात करके व एक पत्र लिख कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से पुरज़ोर अनुरोध किया कि भारत के सपूत सरदार मनमोहन सिंह जी का अंतिम संस्कार व स्मारक स्थापित करना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।” हालांकि सरकार ने अनुरोध मंजूर नहीं किया है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र में आग्रह किया कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर किया जाए जहां उनका स्मारक बन सके। उन्होंने पत्र में कहा, “मैं यह पत्र भारत के पूर्व प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के दुखद निधन के संदर्भ में लिख रहा हूं। टेलीफोन पर बातचीत में मैंने डॉ. मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार, जो कल यानी 28 दिसंबर 2024 को होगा, उनके अंतिम विश्राम स्थल पर करने का अनुरोध किया। यह भारत के महान सपूत के स्मारक के लिए एक पवित्र स्थल होगा। “
उन्होंने कहा कि यह आग्रह राजनेताओं और पूर्व प्रधानमंत्रियों के अंतिम संस्कार के स्थान पर ही उनके स्मारक रखने की परंपरा को ध्यान में रखते हुए है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “डॉ. मनमोहन सिंह देश और इस देश के लोगों के मानस में एक अत्यंत सम्मानित स्थान रखते हैं। हालांकि उनका योगदान और उपलब्धियां अभूतपूर्व हैं। मैं यहां उनकी कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर ध्यान देना चाहूँगा।” उन्होंने कहा, “विश्व नेताओं के मन में डॉ. मनमोहन सिंह के प्रति आदर और सम्मान था…वैश्विक आर्थिक वित्तीय संकट को कम करने में उनकी विद्वतापूर्ण सलाह, नेतृत्व और योगदान को अच्छी तरह से स्वीकार किया जाता है। जैसा कि मुझे याद है, अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति ओबामा ने डॉ. सिंह का उल्लेख किया था और टिप्पणी की थी कि “जब भी भारतीय प्रधानमंत्री बोलते हैं, तो पूरी दुनिया उन्हें सुनती है।” उन्होंने आग्रह किया कि अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर किया जाए जहां उनका स्मारक बन सके।
उधर, कांग्रेस नेता श्रीनिवास बीवी ने एक्स पर पोस्ट कर दिवंगत पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए स्थान नहीं देने पर मोदी सरकार की आलोचना की है। उन्होंने लिखा कि “ये एक दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है! डॉ मनमोहन सिंह का पूरा जीवन इस देश के लिए समर्पित रहा, उनके किये गए कार्य इस देश की अभिन्न विरासत हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, एक दिन सबको जाना है, लेकिन ऐसे महापुरुषों के साथ ये भेदभावपूर्ण रवैया बेहद शर्मनाक है। डॉ मनमोहन सिंह के नाम से स्मारक बनना चाहिए और उसी जगह उनका अंतिम संस्कार होना चाहिए न कि निगम बोध घाट पर। ये फैसला वापस लीजिए, राजधर्म का पालन कीजिये”।
लेकिन कांग्रेस के इस आग्रह को कौन सुनता है? और क्यों सुनता है? राजनीति के बीच सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच में जैसी दुश्मनी आज होती दिख रही है ,ऐसी मिसाल पहले कभी नहीं देखी गई। जिस कांग्रेस की एक-एक राजनीति और एक -एक सरकार मौजूदा सरकार के निशाने पर है और कांग्रेस पार्टी बीजेपी के लिए किसी दुश्मन से कम नहीं ऐसे माहौल में डॉक्टर मनमोहन सिंह के संस्कार की जगह बीजेपी कैसे दे सकती है। बीजेपी की बात तो समझ में आ सकती है लेकिन एनडीए के साथ खड़ी पार्टियां भी तो इस मसले पर मौन ही हैं। कहीं से कोई आवाज नहीं उठ रही। आखिर बीजेपी के खिलाफ एनडीए में बोलने की हिम्मत किसके पास है?
फिर जिस नरेंद्र मोदी ने संसद में मनमोहन सिंह के बारे में न जाने क्या -क्या नहीं कहा हो वही मोदी सरकार डॉक्टर के अंतिम संस्कार के लिए जगह क्यों दे ? अगर यह सरकार ऐसा करती तो फिर मोदी का उपहास ही तो होता। और मोदी उपहास के पात्र खुद से कैसे बन सकते हैं ? याद रहे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपीए सरकार की विफलता का प्रतीक बताया था। लेकिन यह कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के लिए जीवन रेखा साबित हुई। यह योजना मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान ही साल 2005 में शुरू की गई थी।
बता दें कि मनरेगा मनमोहन सिंह सरकार की प्रमुख योजनाओं में से एक थी। इस योजना का मकसद ग्रामीण परिवारों के लिए 100 दिनों की रोजगार की गारंटी सुनिश्चित करना था। यह योजना खासकर उन परिवारों के लिए रोजगार सुनिश्चित करना था, जिनके सदस्य अप्रशिक्षित श्रमिक थे। इसका मुख्य लक्ष्य ग्रामीण इलाकों में रोजगार की स्थिति को मजबूत करना था और पलायन को रोकना था।
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने इस योजना को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एनएसी के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस योजना को ‘काम करने का अधिकार के रूप में परिभाषित किया, जिससे लाखों गरीबों को रोजगार मिला और उनके जीवन स्तर में सुधार करने में मदद मिली।
2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद मनरेगा की आलोचना भी हुई। खबरों में कहा गया था कि यह योजना केवल सबसे पिछड़े जिलों तक ही सीमित है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में लोकसभा में कहा था कि मनरेगा को बंद नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह कांग्रेस की 60 वर्षों की गरीबी को मिटाने में विफलता का जीता-जागता स्मारक है।
2020 में जब कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लागू हुआ, तो लाखों लोग शहरों से अपने गांवों की ओर वापसी करने लगे। इस समय मनरेगा ग्रामीण क्षेत्र के लिए बड़ा सहारा बनी। एक अध्ययन के मुताबिक, इस योजना ने लॉकडाउन के दौरान जो परिवार आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे, उनकी खोई हुई आय का 20 से 80 फीसदी तक की भरपाई की। जो लोग काम नहीं कर पा रहे थे और जिनकी आमदनी घट गई थी, उन्हें इस योजना से कुछ पैसे मिले और उनका गुजारा हुआ।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के हालिया बयान के मुताबिक, इस वित्तीय वर्ष में अब तक करीब 6.7 करोड़ मजदूरों को मनरेगा के तहत रोजगार प्रदान किया गया। इनमें से आधे से अधिक लाभार्थी महिलाएं हैं। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का योगदान न केवल आर्थिक सुधारों बल्कि सामाजिक अधिकारों के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण रहा है। उनकी सरकार में भारत में गरीबों और हाशिए पर रहने वाले वर्गों के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की गईं, जिनका आज भी समाज में गहरा असर है।
यह है एक मौन डॉक्टर का कमाल। डॉक्टर एक विद्वान थे, शिक्षा शास्त्री थे, अर्थशास्त्री थे और इस सबसे बढ़कर बड़े नेक इंसान थे। उनकी नजर में पूरा देश एक समान था। वे सबके लिए करते थे लेकिन आज खास के लिए सब कुछ हो रहा है। आम लोग तो हाशिये पर खड़े हैं और पांच किलो चावल की राह देख रहे रहे हैं और हिन्दू -मुसलमान क नारा बुलंद कर रहे हैं।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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