महिला आरक्षण भी निकला जुमला, दशकीय जनगणना के बाद लागू होगा आरक्षण

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नई दिल्ली। महिला आरक्षण विधेयक यानि “नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल” को केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने मंगलवार को सदन में पेश किया। इस बिल पर बुधवार को चर्चा होगी। विधेयक के पास हो जाने पर महिलाओं को लोकसभा और विधानसभा में 15 वर्ष तक 33 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। मोदी सरकार द्वारा पेश विधेयक में कहा गया है कि “महिला आरक्षण विधेयक के अधिनियम बनने के बाद आयोजित पहली दशकीय जनगणना के बाद ही महिलाओं के लिए आरक्षण लागू होगा।” सबसे बड़ा सवाल है कि यह जनगणना कब होगी? यानि “न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेंगी।”

मोदी सरकार द्वारा आनन-फानन में पेश किए गए महिला आरक्षण विधेयक की असलियत खुलकर सामने आ गई है। संघ-भाजपा जिस बिल को मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक बता रही थी, वह चुनावी जुमला निकला। मोदी सरकार का असली मकसद महिलाओं को आरक्षण देना नहीं बल्कि इस विधेयक के माध्यम से इंडिया गठबंधन में फूट डालना है। लेकिन विपक्षी दलों में महिला आरक्षण के बहाने फूट डालने की कोशिश से पहले ही सरकार का भांडा फूट गया।

दरअसल, मोदी सरकार महिलाओं के आरक्षण का न्यूनीकरण कर रही है। पहला, बिल के मुताबिक लोकसभा और विधानसभाओं मे तो आरक्षण होगा, लेकिन राज्यसभा और विधानपरिषद में नहीं होगा। मोदी सरकार का तर्क है कि लोकसभा और विधानसभा से सीधे चुनाव होता है। इसलिए ऐसा किया जा रहा है।

दूसरा, एसटी/एससी को तो आरक्षण मिलेगा लेकिन पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण नहीं है। वह सामान्य महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर ही चुनाव लड़ेंगी।

तीसरी बात यह है कि मोदी महिला आरक्षण बिल पास कराकर इसे तत्काल लागू नहीं करने जा रही है। बल्कि नई जनगणना होने और सीटों के परिसीमन के बाद महिला आरक्षण लागू होगा।

यह कुछ और नहीं बल्कि ईवीएम-इवेंट मैनेजमेंट है: जयराम रमेश

कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया कहा कि “चुनावी जुमलों के इस मौसम में, यह उन सभी जुमलों में सबसे बड़ा है! करोड़ों भारतीय महिलाओं और लड़कियों की उम्मीदों के साथ बहुत बड़ा धोखा। जैसा कि हमने पहले बताया था, मोदी सरकार ने अभी तक 2021 की दशकीय जनगणना नहीं की है, जिससे भारत G20 में एकमात्र देश बन गया है जो जनगणना करने में विफल रहा है।”

उन्होंने कहा कि अब इसमें कहा गया है कि महिला आरक्षण विधेयक के अधिनियम बनने के बाद आयोजित पहली दशकीय जनगणना के बाद ही महिलाओं के लिए आरक्षण लागू होगा। विधेयक में यह भी कहा गया है कि आरक्षण अगली जनगणना के प्रकाशन और उसके बाद परिसीमन प्रक्रिया के बाद ही प्रभावी होगा। क्या 2024 चुनाव से पहले होगी जनगणना और परिसीमन?

मूल रूप से यह विधेयक अपने कार्यान्वयन की तारीख के बहुत अस्पष्ट वादे के साथ आज सुर्खियों में है। यह कुछ और नहीं बल्कि ईवीएम-इवेंट मैनेजमेंट है।

पीएम मोदी की नीति और नीयत दोनों में खोट: सुप्रिया श्रीनेत

कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि “महिला आरक्षण को लेकर मोदी जी की नीति और नीयत दोनों में खोट है। मोदी सरकार के महिला आरक्षण बिल में साफ लिखा है कि महिला आरक्षण, जनगणना और परिसीमन के बाद ही हो सकता है। मतलब 2029 से पहले महिला आरक्षण संभव नहीं है।”

कांग्रेस ने तंज कसते हुए कहा कि “महिला आरक्षण बिल की क्रोनोलॉजी समझिए यह बिल आज पेश जरुर हुआ लेकिन हमारे देश की महिलाओं को इसका फायदा जल्द मिलते नहीं दिखता। ऐसा क्यों? क्योंकि यह बिल जनगणना के बाद ही लागू होगा। आपको बता दें, 2021 में ही जनगणना होनी थी, जोकि आज तक नहीं हो पाई। आगे यह जनगणना कब होगी इसकी भी कोई जानकारी नहीं है। खबरों में कहीं 2027 तो 2028 की बात कही गई है। इस जनगणना के बाद ही परिसीमन या निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण होगा, तब जाकर महिला आरक्षण बिल लागू होगा। मतलब PM मोदी ने चुनाव से पहले एक और जुमला फेंका है और यह जुमला अब तक का सबसे बड़ा जुमला है। मोदी सरकार ने हमारे देश की महिलाओं के साथ विश्वासघात किया है, उनकी उम्मीदों को तोड़ा है।“

समाजवादी पार्टी ने किया विरोध

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि “महिला आरक्षण लैंगिक न्याय और सामाजिक न्याय का संतुलन होना चाहिए। इसमें पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी (PDA) की महिलाओं का आरक्षण निश्चित प्रतिशत रूप में स्पष्ट होना चाहिए।”

महिला आरक्षण बिल पर सपा सांसद डिंपल यादव ने कहा कि “सरकार को 9 साल पूरे हो गए हैं। अगर इन्हें महिला आरक्षण बिल लाना था तो ये पहले ला सकते थे। ये इसे आखिरी साल में ला रहे हैं, जब चुनाव हैं…सपा ने हमेशा इसका समर्थन किया है और हम सभी चाहते हैं कि OBC महिलाओं का भी इसमें आरक्षण निर्धारित हो क्योंकि जो आखिरी पंक्ति में खड़ी महिलाएं हैं उन्हें उनका हक मिलना चाहिए।”

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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