Tuesday, March 19, 2024

मोदी सरकार के खिलाफ देश भर के मजदूरों ने दी सड़क पर दस्तक

नई दिल्ली। देश के लगभग सभी राज्यों में केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों व विभिन्न फेडरेशनों ने मोदी सरकार की मजदूर और जन विरोधी नीतियों के खिलाफ आज विरोध प्रदर्शन किया। ज्ञात हो कि ये प्रदर्शन तब हो रहे हैं जब कोयला क्षेत्र के मजदूर सरकारी नीतियों के खिलाफ हड़ताल पर हैं, ऑर्डिनेन्स फैक्ट्री के कर्मचारी आन्दोलन की तैयारी कर रहे हैं और करोड़ों की संख्या में बेरोज़गारी और भुखमरी की मार झेल रहे प्रवासी मजदूर रोजी-रोटी को लेकर परेशान हैं।

देशभर में हुए प्रदर्शन : 

कोलकोता के रानी राशमोनि रोड से ट्रेड यूनियन के नेताओं को प्रदर्शन शुरू होने से पहले ही पुलिस ने उठा लिया और लाल-बाज़ार थाना ले गई। चितरंजन में रेल कारखाना मजदूरों ने भी आज के प्रदर्शन में हिस्सा लिया। इलाहाबाद के सिविल लाइन्स पर ट्रेड यूनियनों ने पुलिस-बल की भारी तैनाती के बीच संयुक्त प्रदर्शन किया, जिसमें रेल कर्मचारियों ने भी भागीदारी की। बिहार के लगभग सभी जिलों में ज़ोरदार प्रदर्शन हुए- आशा, रसोइया व निर्माण मजदूरों ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई। पटना के डाक बंगला चौराहा पर प्रधानमन्त्री मोदी का पुतला फूंका गया और संयुक्त सभा की गई।

दिल्ली में प्रदर्शन।

तमिलनाडु के कई हिस्सों में मजदूरों ने आज के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। आन्ध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में भी ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं को पुलिस द्वारा डीटेन किया गया। आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम, विशाखापत्तनम, येल्लेस्वरम, ईस्ट गोदावरी इत्यादि जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए। गुजरात के वलसाड में ऐक्टू से जुड़े मजदूरों ने अच्छी संख्या में भागीदारी की। ऐक्टू से जुड़े मजदूरों ने राजस्थान के उदयपुर, चित्तौड़, अजमेर, जयपुर, झुंझनु आदि जिलों में प्रदर्शन किया।

दिल्ली के विभिन्न जिलों में श्रम कार्यालयों पर मजदूरों ने प्रदर्शन किया। इसके साथ ही रफी मार्ग स्थित श्रम शक्ति भवन पर केन्द्रीय कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी ने कहा कि मोदी सरकार लॉक-डाउन के आड़ में मजदूरों के सारे अधिकार छीनने के साथ-साथ, जनता की संपत्ति को निजी हाथों में बेच रही है। रेल, कोयला, डिफेंस, बीमा जैसे महत्वपूर्ण सेक्टरों में निजी कंपनियों को लूट की छूट दी जा रही है। ऐक्टू उन सभी बहादुर मजदूरों को सलाम करता है, जिन्होंने कोयला क्षेत्र को अपनी एकता के बल पर पूरी तरह से बंद कर दिया। मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ में प्रवासी मजदूरों को राशन के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।

लॉक-डाउन के चलते करोड़ों मजदूरों की नौकरियां चली गईं और मालिकों द्वारा वेतन भी हड़प लिया गया। राजधानी दिल्ली तक में कई सरकारी विभागों के कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को पूरा वेतन नहीं मिला। कई मजदूर सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए तो कइयों ने श्रमिक ट्रेनों में जान गवां दी, अब तो भुखमरी और गरीबी से परेशान कई मजदूर आत्महत्या करने तक को मजबूर हैं ! सफाई कर्मचारियों, स्कीम वर्कर्स और स्वास्थ्य कर्मचारियों को बिना ‘पीपीई’ के काम कराया जा रहा है। मोदी सरकार नफरत-हिंसा और राज्य दमन का सहारा लेकर मजदूरों की एकता को तोड़ने और उन्हें डराने की कोशिश कर रही है। प्रदर्शन के बाद ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने श्रम मंत्री संतोष गंगवार को ज्ञापन सौंपा। जिसमें सभी प्रवासी मजदूरों को 7500 रुपए प्रतिमाह भत्ता, निजीकरण-कॉर्पोरेटीकरण पर रोक लगाने समेत आदि मांगें शामिल थीं।

दूसरी प्रमुख मांगों में 41 कोयला खादानों की नीलामी वापस लेने, रेलवे, कोल, भेल, सेल, बीएसएनएल, डिफेंस, बैंक, बीमा सहित सार्वजनिक क्षेत्र का विनिवेशीकरण व निजीकरण बन्द करने, देश के प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेट को सौंपने की कार्यवाही को बन्द करने, श्रम कानूनों को स्थगित करने का फैसला रद्द करने, काम को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने का आदेश वापस लने, प्रवासी मजदूरों के वेतन व रोजगार की गारंटी करने, मनरेगा में 200 दिन काम देने व 500/-रुपये मजदूरी देने, डीजल-पेट्रोल की मूल्य वृद्धि वापस लेने, सभी मजदूरों को 10,000/-रुपये लॉकडाउन भत्ता प्रति माह देने की गारंटी करने, कोरोना की आड़ में जनविरोधी व राष्ट्र विरोधी फैसले थोपना बन्द करने, 44 श्रम कानूनों की समाप्ति व मजदूरों के गुलामी के 4 कोड बनाने बन्द करने, प्रवासी समेत असंगठित मनरेगा, व सभी मजदूरों को 10,000/-रुपये लॉकडाउन भत्ता प्रति व्यक्ति 10 केजी मुफ्त अनाज व प्रवासी सहित सभी मजदूरों को गृह जिले में स्थाई रोजगार देने तथा 500/- दैनिक या 15000/-मासिक न्यूनतम मजदूरी करने की मांगें शामिल थीं।

इसी तरह का प्रदर्शन बिहार के विभिन्न हिस्सों में भी हुआ। मुख्य कार्यक्रम राजधानी पटना में हुआ। उपरोक्त सभी मांगों को लेकर ऐक्टू सहित 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के कार्यकर्ताओं ने डाकबंगला चौक पर प्रधानमंत्री मोदी का पुतला फूंका। इस कार्यक्रम में आशा, रसोइया आदि स्कीम वर्करों ने प्रतिरोध दिवस में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

नेताओं ने मोदी-नीतीश, मोदी सरकार पर गम्भीर आरोप लगाते हुए कहा कि लॉक डाउन में जब सभी अपने घरों में बन्द थे तब मोदी व नीतीश सरकार ने लॉक डाउन को मजदूरों को गुलाम बनाने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया। ताबड़तोड़ 44 श्रम कनूनों को समाप्त कर गुलामी के 8 घण्टे के बदले 12 घण्टा कार्य दिवस आदेश मजदूरों पर थोप दिया। साथ ही देश की अकूत सम्पतियों को कॉरपोरेटों को लूट की निजीकरण वाली खुली छूट दे दिया जिसे मोदी आत्मनिर्भरता बता रहे हैं वह निजीकरण गुलामी का रास्ता है।

नेताओं ने मजदूरों को गुलाम बनाने, मजदूरों के सारे अधिकार हड़पे जाने, निजीकरण व सरकार की कॉरपोरेट दलाली के खिलाफ आम लोगों से एकजुट हो मुकाबला करने व देश को बचाने का आह्वान किया। इसके अलावा भगलपुर, नालन्दा, जहानाबाद, गया, रोहतास, आरा, अरवल, पूर्वी व पश्चमी चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सिवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, भगलपुर, मुंगेर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, सहरसा, सुपौल आदि सभी जिलों में प्रतिरोध दिवस पर मोदी नीतीश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन व पुतला दहन किया गया।

छत्तीसगढ़ में किसान संगठनों ने इसे भूमि अधिकार आंदोलन से जोड़ दिया। इसके तहत छतीसगढ़ में किसानों और आदिवासियों के बीच खेती-किसानी और जल, जंगल, जमीन से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले 25 से अधिक संगठनों के नेतृत्व में प्रदेश के कई गांवों में किसानों और आदिवासियों ने अपने-अपने घरों से, खेत-खलिहानों और मनरेगा कार्यस्थलों तथा गांवों की गलियों में एकत्रित होकर निर्यात के उद्देश्य से कॉर्पोरेट कंपनियों को कोयले के व्यावसायिक खनन की अनुमति देने और कोल इंडिया जैसी नवरत्न कंपनी के विनिवेशीकरण और निजीकरण के लिए मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही मुहिम के खिलाफ  अपना विरोध जाहिर किया और कहा कि कोल खनन के लिए होने वाले विस्थापन के खिलाफ संघर्ष में वे अपनी जान दे देंगे, लेकिन देशी-विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों को अपनी जमीन और जंगल पर कब्जा नहीं करने देंगे। 

किसान संगठनों के अनुसार आज राजनांदगांव, महासमुंद, धमतरी, गरियाबंद, कोरबा, चांपा, मरवाही, सरगुजा, सूरजपुर, बस्तर तथा बलरामपुर सहित 15 से ज्यादा जिलों में प्रदर्शन हुए हैं। आदिवासी क्षेत्रों के अंदरूनी इलाकों के कई गांवों से विरोध प्रदर्शन किए जाने की खबरें लगातार आ रही हैं।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि  इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, दलित-किसान आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा और छग मजदूर-किसान महासंघ आदि संगठनों से जुड़े किसान नेताओं ने किया। 

सूरजपुर और कोरबा के कोयला क्षेत्रों में ये प्रदर्शन कोयला मजदूरों और ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर किये गए। ये सभी संगठन राज्य सरकार से भी मांग कर रहे हैं कि झारखंड की तरह छत्तीसगढ़ सरकार भी केंद्र के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे, क्योंकि केंद्र सरकार का यह फैसला राज्यों के अधिकारों और संविधान की संघीय भावना का भी अतिक्रमण करता है।

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ के नौ कोल ब्लॉकों सहित देश के 41 कोल ब्लॉकों को केंद्र सरकार द्वारा नीलामी के लिए रखा गया है, जिसका कोयला मजदूर और खदान क्षेत्र के किसानों और आदिवासियों द्वारा व्यापक विरोध किया जा रहा है। कोयला मजदूर तीन दिनों की हड़ताल पर हैं और कल प्रदेश में 90% से ज्यादा मजदूरों के हड़ताल पर थे। झारखंड और छत्तीसगढ़ की सरकारें भी इस नीलामी के खिलाफ खुलकर सामने आ गई है।

इसका नतीजा यह हुआ है कि सघन वन क्षेत्र हसदेव अरण्य की चार कोयला खदानों को नीलामी की प्रक्रिया से बाहर रखने की घोषणा केंद्र सरकार को करनी पड़ी है। हसदेव अरण्य क्षेत्र में विस्थापन के खिलाफ संघर्ष से जुड़े छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने इसे शुरुआती जीत बताते हुए कहा है कि इससे साबित हो गया है कि आदिवासी जन जीवन और पर्यावरण-संबद्ध मुद्दों की चिंता किये बिना ही कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों, जिनका पुन: सृजन नहीं हो सकता, को बेचने का गलत फैसला लिया गया था।

कोरबा में छत्तीसगढ़ किसान सभा के नेतृत्व में आदिवासियों और किसानों ने कई गांवों में प्रदर्शन किया। यहां आयोजित प्रदर्शनों में माकपा की दोनों महिला पार्षदों सुरती कुलदीप और राजकुमारी कंवर ने भी हिस्सेदारी की। प्रशांत झा ने किसानों और आदिवासियों के कई समूहों को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि कोरबा में ही 2004-14 के दौरान चार कोयला खदानों के लिए 23254 लोगों की भूमि अधिग्रहित की गई है, लेकिन केवल 2479 लोगों को ही नौकरी और मुआवजा दिया गया है।

जब सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी का यह हालत है, तो निजी कंपनियां तो पुनर्वास और मुआवजे से जुड़े किन्हीं नियम-शर्तों का पालन ही नहीं करेंगी। उन्होंने कहा कि देश के 10 करोड़ आदिवासी व किसान वनोपज संग्रहण से अपनी कुल आय का 40% हिस्सा अर्जित करते हैं। ऐसे में उनकी आजीविका का क्या होगा?

राजनांद गांव में किसान संघ के नेता सुदेश टीकम ने कहा कि कोयला उद्योग के निजीकरण से न केवल चार लाख कामगारों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा, बल्कि देश की प्राकृतिक संपदा को लूटने की खुली छूट भी कुछ कॉर्पोरेट पूंजीपतियों को मिल जाएगी। कोल इंडिया को बदनाम करने और उसकी उपलब्धियों को दफनाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2018-19 में कोल इंडिया ने न केवल 53236 करोड़ रुपये केंद्र सरकार को राजस्व, रॉयल्टी, सेस और करों के रूप में दिए हैं, बल्कि 17462 करोड़ रुपयों का मुनाफा भी कमाया है।

छत्तीसगढ़ सरकार को भी यहां की कोयला खदानों से 4320 करोड़ रुपयों की प्राप्ति हुई है। इसके बावजूद कोल इंडिया को कमजोर करने और अपने को आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने उसके रिज़र्व फंड से 64000 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं, जो उसके द्वारा पिछले चार सालों में अर्जित मुनाफे के बराबर हैं। आर्थिक रूप से पंगु करने के बाद अब यही सरकार कोल इंडिया की सक्षमता पर सवाल खड़े कर रही है, जबकि कोयला खदानों को बेचना देश को बेचने के बराबर है।

तेजराम विद्रोही, राजिम केतवास, ऋषि गुप्ता, सुखरंजन नंदी, बिफन नागेश, राकेश चौहान, विशाल वाकरे, चंद्रशेखर सिंह ठाकुर, शिवशंकर दुबे, विदुर राम, पूरन दास, अयोध्या प्रसाद रजवाड़े, बाल सिंह, वनमाली प्रधान, लंबोदर साव आदि ने भी गांवों में प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कोयला मजदूरों की इस हड़ताल को देश की आम जनता पर लादी जा रही आर्थिक गुलामी के खिलाफ देशभक्तिपूर्ण संघर्ष बताया।

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