Tuesday, March 19, 2024

‘आरोपी (बृजभूषण) ने मेरी टी-शर्ट खींची और अपना हाथ छाती पर रख दिया, फिर पेट तक हाथ सरका दिया’

ज्यादा स्मार्ट बन रही है क्या? आगे कोई कंपटीशन नहीं खेलने क्या तू ने? यह चेतावनी थी भारतीय कुश्ती संघ के 12 वर्षों से अध्यक्ष और भाजपा के बाहुबली सांसद बृजभूषण शरण सिंह का एक महिला कुश्ती खिलाड़ी को, जब बृजभूषण ने एक टूर्नामेंट के दौरान उसे जबरन अपने से चिपकाने की कोशिश की, जिसके विरोध में उस महिला खिलाड़ी ने उसे धक्का दिया था।

इंडियन एक्सप्रेस ने शुक्रवार को एक बार फिर महिला खिलाड़ियों को लेकर गंभीर खुलासे किये हैं, जो भारतीय राजनीति और विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी की न्यायप्रियता, ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ और बेटी-खिलाओ’ के नारे के खोखलेपन के भीतर ‘अपराधी बचाओ’ और अपराधियों को पुलिस, क़ानूनी और सता की असीमित ताकत से संरक्षण देने की करतूत को बेपर्दा करती है।

इंडियन एक्सप्रेस ने एक बार फिर से खुलासा करते हुए कुल 15 यौन प्रताड़ना के मामलों की फेहरिश्त पेश की है। इसमें कम से कम दो मामलों में उन्हें यौन संबंध बनाने के बदले व्यावसायिक फायदा दिए जाने का प्रस्ताव रखा गया था। इसमें 10 ऐसे मामले हैं जिनमें गलत इरादे से छूने, ब्रेस्ट्स पर हाथ फेरने, नाभि तक हाथ ले जाने, पीछा करने के अनेकों मामले जैसे यौन दुर्व्यवहार के मामले शामिल हैं। 

इन घटनाओं ने महिला खिलाड़ियों के लिए साझे भय और गहन मानसिक आघात की स्थिति पैदा की और उन्हें अपने खेल में पूरी लगन और मेहनत से हिस्सा लेने में बाधित किया। इतना ही नहीं महिला खिलाड़ियों की पुलिस में दायर लिखित शिकायत बताती है कि यह सब कोई एक-दो बार नहीं बल्कि उन्हें कई वर्षों तक झेलने के लिए मजबूर होना पड़ा है। बृजभूषण शरण सिंह पिछले 12 वर्षों से भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख के पद पर विराजमान हैं।

28 अप्रैल को दिल्ली पुलिस के समक्ष दायर दो एफआईआर में इसका विवरण है, लेकिन दिल्ली पुलिस जिसने पहले तो बृजभूषण के खिलाफ एफआईआर दायर करने में टाल-मटोल किया और सिर्फ लिखित शिकायत दर्ज कर मामले को टालना चाहा, को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश पर मजबूरी में प्राथमिकी दर्ज करनी पड़ी थी। इस मामले में धारा 354, 354ए, 354डी और 34 लगाई गई हैं, जिसमें एक से तीन साल की सजा हो सकती है।

पहली प्राथमिकी छह व्यस्क खिलाड़ियों द्वारा दायर की गई है, जिसमें फेडरेशन के सचिव विनोद तोमर को भी नामित किया गया है। दूसरी एफआईआर एक नाबालिग लड़की के पिता की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई है, जिसमें पोस्को एक्ट लागू होता है और इसके लिए 5-7 साल की सजा हो सकती है। ये घटनाएं भारत और विदेशों में 2012 से लेकर 2022 के बीच घटी हैं।

नाबालिग खिलाड़ी की शिकायत में उसके पिता का कहना है कि उनकी बेटी इस घटना से पूरी तरह से विचलित है और उसका सुख-चैन पूरी तरह से छिन गया है। आरोपी बृजभूषण की हरकत उसके दिलो-दिमाग में घर कर गई है। नाबालिगा के आरोप में कहा गया है “बृजभूषण सिंह ने फोटो क्लिक किये जाने का बहाना बनाकर उसे कसकर जकड़ लिया था, उसके कंधों को जोर से दबा रखा था और फिर जानबूझकर अपने हाथ को उसके वक्ष से छू जाने दिया।” इसके अलावा उसने आरोपी बृजभूषण को साफ़-साफ़ बता दिया कि वह उसके साथ किसी प्रकार के शारीरिक संबंध बनाने की इच्छुक नहीं है और वह उसका पीछा करना छोड़ दे।”

जिन छह व्यस्क महिला खिलाड़ियों ने बृजभूषण के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है, उन सभी के साथ हुए यौन दुर्व्यवहार के बारे में एक-एक कर इंडियन एक्सप्रेस ने जिक्र किया है।

पहली शिकायतकर्ता

“एक दिन जब मैं होटल में रात्रि भोजन के लिए रेस्तरां में गई, तो आरोपी (सिंह) ने एक अलग टेबल पर मुझे डिनर पर बुलाया। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि जब उसने मेरी सहमति के बिना अपना हाथ मेरे वक्ष पर रख दिया और मेरे शरीर को टटोलने लगा, और फिर अपना हाथ मेरे पेट तक ले गया। वह यहीं पर नहीं रुका बल्कि उसने एक बार फिर से अपना हाथ नीचे से ऊपर फिराना शुरू किया और फिर से मेरी छाती पर ले गया। उसने मेरी छाती को टटोलना शुरू किया और इस प्रकार 3-4 बार उसने यह हरकत दुहराई।

एक दूसरी वारदात सिंह के ऑफिस में घटी, जब आरोपी ने मेरी मर्जी के बगैर मेरी हथेली, घुटने, जांघ और कंधों पर हाथ फिराया। मैं उसी क्षण कंपकंपाने लगी थी। हम बैठे थे और उसके पैर मेरे पैरों को छू रहे थे। उसने फिर मेरे घुटनों को छुआ। मेरी सांस का निरिक्षण करने के बहाने उसने मेरी छाती पर हाथ रख दिया और पेट की तरफ झुकाने लगा।। उसका इरादा मुझे गलत तरीके से छूकर मेरी इज्जत से खेलने का था।”

दूसरी शिकायतकर्ता

“जब मैं मैट पर लेटी हुई थी, तो मेरे कोच की अनुपस्थिति में आरोपी (सिंह) मेरे पास आ गया और मैं कुछ समझ पाऊं उससे पहले ही उसने मेरी इजाजत के बगैर मेरी टी-शर्ट खींचकर अपने हाथ मेरी छाती पर रख दिए, और मेरी सांस की गति का परीक्षण करने के बहाने अपने हाथ मेरे पेट तक ले गया। मैं पूरी तरह से सकते की हालत में थी।”

दूसरी घटना “फेडरेशन के कार्यालय जाने पर मुझे आरोपी (सिंह) के दफ्तर में बुलाया गया। मेरा भाई जो मेरे साथ आया था, उसे साफ़-साफ़ वहीं पर रुकने के निर्देश दिए गये। आरोपी (सिंह) ने अन्य लोगों के कक्ष से जाने के बाद दरवाजा बंद कर दिया और मुझे अपनी ओर खीच लिया, मेरे साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की।”

तीसरी शिकायतकर्ता

“उस समय मेरे पास अपना व्यक्तिगत मोबाइल फोन नहीं था, तो वह मेरे माता-पिता के फोन पर मुझसे संपर्क साधता था। आरोपी (सिंह) ने मुझे अपने बिस्तर पर बुलाया जहां पर वह बैठा हुआ था, और फिर अचानक से उसने मेरी इजाजत के बिना मुझसे जबरन चिपट गया।” उसने अपनी शिकायत में आगे लिखा है, “अपने यौन इरादों को पूरा करने के लिए उसने मेरे लिए प्रोटीन सप्लीमेंट लाकर देने की पेशकश की थी, जिसे यौन प्रस्ताव के बदले में एक एथलीट के तौर पर मुझे जरूरत हो सकती थी।”

चौथी शिकायतकर्ता

“आरोपी (सिंह) के बुलाने पर जब मैं गई तो उसने सांस की पड़ताल करने के बहाने मेरी टी-शर्ट खींचकर अपना हाथ मेरे पेट पर फेरते हुए नाभि पर ले गया।”

“चूंकि आरोपी (सिंह) हमेशा मेरे सहित अन्य लड़कियों को गलत बात/इशारे के बहाने ढूंढता रहता था, इसलिए हमने सामूहिक रूप से फैसला लिया था कि आगे से कभी भी नाश्ते, लंच या डिनर पर अकेले नहीं निकलेंगी।”

पांचवी शिकायतकर्ता

“जब मैं टीम फोटोग्राफ के लिए सबसे पिछली पंक्ति में खड़ी थी, तभी आरोपी (सिंह) आया और मेरे बगल में खड़ा हो गया। अचानक मुझे महसूस हुआ कि मेरे पृष्ठ भाग में किसी ने हाथ रख दिया है। मैं आरोपी (सिंह) की हरकतों पर भौचक्का थी। मेरी इजाजत के बगैर की जा रही हरकतें बेहद अश्लील और आपत्तिजनक थीं। जब मैंने दूर हटने की कोशिश की, तो मेरे कंधे पकड़कर मुझे ऐसा करने से रोका गया।”

छठवीं शिकायतकर्ता

“फोटो खिंचाने के बहाने मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे पास खींचा गया। अपने को बचाने के लिए मैंने आरोपी (सिंह) से दूर जाने की कोशिश की। चूंकि मैं आरोपी की जबरिया कोशिश की हरकतों से सहज नहीं महसूस कर रही थी, तो मैंने उसकी पकड़ से खुद को छुड़ाने के लिए लगातार प्रतिरोध जारी रखा और इस कोशिश में उसे धक्का दिया, जिस पर उसने धमकाया कि “ज्यादा स्मार्ट बन रही है क्या? आगे कोई कंपटीशन नहीं खेलने क्या तू ने?”

क्यों कानून से ऊपर बना हुआ है बृज भूषण?

इतने संगीन आरोपों के बावजूद दिल्ली पुलिस अनिर्णय का शिकार है। उसकी अभी तक की कार्रवाई में एक बार भी बृजभूषण को पूछताछ के लिए थाने में बुलाने और हिरासत में लेने के कोई प्रयास नहीं किये गये हैं। आखिर बृजभूषण सिंह के पास वह कौन से विशेषाधिकार हैं, जो उसे देश के कानून से ऊपर बनाए हुए हैं? ये सवाल आज देश में सभी जरा सा भी संवेदनशील व्यक्ति के मन को बैचेन कर रहा है।

देश में लाखों बेकसूर लोग आज भी बिना किसी ठोस सुबूत के जेलों में सड़ रहे हैं। देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता पर मोदी सरनेम पर आरोप लगाने के खिलाफ अचानक से मुकदमा जिंदा किया जाता है और मानहानि के मुकदमे में अधिकतम संभव सजा सुनाकर अगले ही दिन त्वरित कार्रवाई कर उन्हें सांसदी और बंगले से बेदखल करने में बिजली कौंधने वाली गति से एक के बाद एक फैसले ले लिए जाते हैं।

जैसा कि हम सभी वाकिफ हैं कि जनवरी में पहली बार धरने पर बैठने और सरकार से जांच कमेटी बिठाने का आश्वासन मिलने के बाद अप्रैल माह में दूसरी बार जंतर-मंतर पर धरने पर बैठीं इन महिला पहलवानों को एफआईआर दर्ज कराने के बाद भी कोई राहत नहीं मिली। दिल्ली पुलिस की जांच का सिलसिला सिरा कब पकड़ेगा, के बारे में कयास ही लगाये जा रहे हैं। उधर बृजभूषण सिंह की ओर से मीडिया चैनलों पर बयानबाजी दिनो-दिन तेज होती गई।

35 दिन गुजर जाने पर जब महिला खिलाड़ियों को लगने लगा कि जो बृजभूषण यह दावा कर रहा है कि यदि प्रधानमंत्री मोदी या गृहमंत्री अमित शाह उसे इस्तीफ़ा देने को कहें तो वो एक मिनट भी इस्तीफ़ा देने में नहीं लगायेगा, साफ़ बता रहा है कि उसे राजनीतिक संरक्षण के साथ-साथ पूर्ण अभयदान मिला हुआ है।

ऐसे में नए संसद के उद्घाटन के मौके पर महिला खिलाड़ियों की ओर से महिला महापंचायत का आह्वान केंद्र सरकार को नागवार गुजरा। न सिर्फ महिला खिलाड़ियों और उनके समर्थकों को बड़ी बेरहमी से दिल्ली की सड़कों पर घसीटा गया, बल्कि गिरफ्तार कर उनके खिलाफ ही तमाम आपराधिक धाराओं में मामला दर्ज कर दिया गया।

न्याय की आस में अपने प्रिय प्रधानमंत्री से फ़ौरन एक्शन की उम्मीद करने वाली महिला खिलाड़ियों को ख्वाब में भी गुमान नहीं रहा होगा कि उन्हें इस प्रकार से अपने ही देश में अपमानित किया जायेगा, जिसे कल तक उन पर गर्व था। ये वे खिलाड़ी हैं, जो हरियाणा जैसे पितृसत्तात्मक प्रदेश में भ्रूण हत्याओं से बची हैं। पहलवानी के लिए इन्होंने और इनके गरीब मां-पिता ने समाज से कितनी लड़ाई लड़ी है, उसकी एक नहीं हजारों मिसालें इनके निजी जीवन का हिस्सा हैं।

इन स्टार खिलाड़ियों ने पिछले एक दशक के दौरान हरियाणा के समाज को बदलने में कितना अहम योगदान दिया है, वह सरकार के करोड़ों-अरबों के ‘बेटी बचाओ’ अभियान से हजार गुना भारी साबित हो रहा था। इनकी देखादेखी हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को खेल और पढ़ने-लिखने की जो नई-नई आजादी मिली थी, उसमें लाखों बच्चियों ने अभी सांस ही लेना शुरू किया था। लेकिन आज उन माता-पिताओं से पूछकर देखें तो आप विश्वास नहीं कर पायेंगे, जो कुश्ती सहित सभी खेलों में अपनी लड़कियों को भेजने की सोचने में भी परहेज करने लगे हैं।

यह प्रश्नचिन्ह सिर्फ एक बात से लगा है, और वह है मोदी सरकार की पारदर्शिता। यह कोई एक बृजभूषण का सवाल नहीं है। पता नहीं किस खेल प्राधिकरण में किन-किन पदों पर ऐसे हजारों बृजभूषण अपना थूथन टिकाये, टकटकी लगाये हमारी बच्चियों की ताक में बैठे हैं? यदि महिला खिलाड़ियों की शिकायत पर कानून-सम्मत एक्शन ले लिया गया होता, और बृजभूषण के खिलाफ मामला दर्ज हो जाता और पुलिस की त्वरित जांच के बाद अदालत में दोनों पक्षों की सुनवाई हो रही होती और पोस्को एक्ट के तहत आरोपी बृज भूषण को हिरासत में ले लिया जाता तो यह दृष्टांत उन लाखों मां-पिताओं को आश्वस्त करता कि भले ही अपराधी कितना भी ऊंची रसूख वाला हो, यह सरकार उसके पक्ष में कभी खड़ी नहीं होगी।

क्योंकि ऐसी घटनाएं भारत में ही नहीं विश्व भर में आम हैं। लेकिन कोई देश चंद वोटों या अपनी पार्टी से जुड़े होने के कारण प्रतिष्ठा धूल में मिल जाने के डर से पुलिस प्रशासन को कोई कार्रवाई करने से ही रोक दे, ऐसी मिसाल अभी तक भारत में तो नहीं देखने को मिली थी। कहां तो इन बहादुर बेटियों को अन्तराष्ट्रीय खेलों में पदक लाने पर जो शाबासी मिली थी, से कहीं ज्यादा शाबासी उन्हें अपने हक और सम्मान के लिए दी जानी चाहिए थी, अफ़सोस उन्हें आज अपने कैरियर को दांव पर लगाकर अब अपने खिलाफ किये जा रहे चारित्रिक हमलों से जूझना पड़ रहा है।

आज यही प्रश्न देश में करोड़ों महिलाओं के जेहन भी कौंध रहा है कि जब इन अंतर्राष्ट्रीय स्तर की महिला खिलाड़ियों की पीड़ा, जिसे मोदी सरकार दिल्ली में ही कान नहीं दे रही है, तो देशभर के दूर-दराज में रह रहे उन जैसे करोड़ों जन के लिए अपनी बेटियों और स्वयं के लिए न्याय की आशा करना पूरी तरह से बेमानी हो जाता है। यह बृजभूषण को जिताने और महिला खिलाड़ियों को पटखनी देना मात्र नहीं है, यह भारत की यत्र नारी पूज्यन्ते वाली परंपरा, जिसे हम बड़े गर्व के साथ दुनिया में गुणगान करते हैं, से ठीक उलट भारत के माथे पर कालिख पोतने जैसा है।

यदि बृजभूषण को बचाया गया तो यह सैकड़ों बृजभूषणों को समाज में खुलकर खेलने की छूट देना है। उनके लिए अपराध कर प्रश्न करने वालों के ऊपर भाजपा की सदस्यता लेना ही पर्याप्त हो जायेगा। यह ख्याल तेजी से देश के बड़े शहरों में मध्यवर्गीय महिलाओं के बीच में पैठ बना रहा है, जो अभी तक मोदी मैजिक और परिवार के पुरुषों के व्हाट्सअप ज्ञान के प्रभाव में खुद को महफूज पा रही थीं। महिला पहलवान खिलाड़ियों का जीवट संघर्ष इस मायाजाल को तेजी से तोड़ रहा है। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles